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Saturday 27 December 2014

पूसक् घाम


पूसक घाम तु इत्गा नखरा दिखो ना।
बगत सब्युं की औंदी इत्गा तरसो ना।।
माया की भुकी पैंदी यु धरती।
धार पिछना ते मुखडी लुको ना।।

गिच कताड़ि रात खड़ी ह्वयीं समणी।
गर्व से गरु गात नि कण जुग् जम्मे ना।
द्वी दिन घडी पोर जेठ ऐ जालु।
फिर तेरी सैे क्वी ज्यु-जमाण सौंण्या ना।

बगत बगत की बात अर,
बगत बगत का फेर होन्दन्
तेरा जन तपोंण वाळा भोत देखी,
जु सौंण कुयेड़ि मुखडी लुक़न्दन्।
पूसक घाम् इत्गा इतरो ना।
बगत सब्युं की औंदी इत्गा तरसो ना।।

रचना:- बलबीर राणा 'अडिग'
©सर्वाधिकार सुरक्षित

Thursday 18 December 2014

रैबार अन्तर्मन् तें


मैन थोडा सी उज्यालु मांगी
त्वेन दुफरा दे दिनी
राति अँधेरा का ये मनखी तें
स्वोनु सी सुबेर कख बटि ऐनी
क्या देख सक्लो ये मुखडी तें
जु अंध्यारा मां अफुं चमकणि रैंदी
मैन जरा सी माया झळक मांगी
त्वेन पुरो मायाजाल दे दिनी।

डैर लगणी ये मायावी संगसार दगड
कखि चकाचौंध मां ना हर्चेयी
राति-राति कुकडे-कुकडे त्वे जग्वाली
सुबेर पाळा जन सर गोली न जयी
क्वी भरोसु नि ते घाम कु
तेन सरि दुन्यां जगेनि
मैंन ठण्डु-ठण्डु हुरमुर मांगी छयी
त्वेन तपण वाळा दिन दे दिनी।

उदंकार करयाली त्वेन ये काळा मन मां त
अब ये ज्योत तें बुजण ना देयी
हँसणी खैलणी ये हरीं-भरीं धरती से
ज्यु तें निष्ठुर न हूँण देयी
गंगा जनी छालु रखिय्याँ माया मनखियत की
यु पराण सब्युं मां बसी रैनी
मैंन संगसार रचना कु सार मांगी
त्वेन ये अडिग तें पूरो ग्रन्थ पकडे देनी।

रचना:- बलबीर राणा 'अडिग'

Tuesday 9 December 2014

जलम भूमि की याचना


सज्यूं रौलु धज्यूं रौलु मितेँ  सजाला तुम
हरयूँ रौलु भरियुं रौलु मितेँ सिंचला तुम
भरलु तुमारु गुठ्यार आशीष दयोलु मुठ्ठी खोली की
भैर भितर हरीष लगलु ड़्वार नि ढ़्वक्ला तुम।

मैन भी जुग- जुग बितायी तुम मंखियों तें कोळी स्येवाळी
प्रकृति का छपोड़- छपोड़ खैकी तुमारी संतति जिवाळी
मेरु क्वोदु - कपुला खैकी,लॉट साहब बण्या तुम
जलम दयोंण वाळी ब्वे छोड़ी लाड मौंस्याणी तें कना तुम।

खाणा रैला मेरी पीठी मां बस्याँ राला मेरी क्वोलि मां
मन्खियत कु निसाब मिललु माया कु भण्डार मिललु
ज्योत जगणि रैली भोळ कुणी उज्यालु कर्ला तुम
अपणा धर्यां ढुंगों पर बंश कु बाटू अग्ने बडौला तुम।

मैंन कल्प देखी, देखी ते कल्प कु कलिकाल भी
आणु-जाणु जीवन देखी घडी-घडी कु बदलाव भी
मन्खीयों कु हंकार- जैकार देखी कब्बी नि रायी गुम-सुम
आज इनि औडालु आयी ये अडिग तें ब्बी हिल्येगा तुम।

क्रमश:-
रचना -बलबीर राणा 'अडिग'
© सर्वाधिकार सुरक्षित मेरे ब्लॉग 'उदंकार' में
www.ranabalbir.blogspot.in

Sunday 30 November 2014

-----ढुंगु सम्पूर्ण जीवन-----

कैन ब्वॉलि ढुंगु मर्युं होन्दु
वै कि सांस हम देखि नि सकदा
वै कि बात हम सुणि नि सकदा
वै का गुणों का उपभोग बिगैर हम रे नि सकदा
फिर कने मर्युं छ ढुंगु
बैकि उदारता द्यखा
कत्गा सहज च
जैन जख बोली वख फिट
छैणिल छटकायी मूर्ति बणगे
हथौडाल कुटी कुड़ी चिणिगे
कूटी-कूटी गारा बणगे
मशीनोंन पिसी रेत बणगे
पाणिन बगाई गंगलोड बणगे
पहाड़ ब्बी बु छन
हिमालय ब्बी वु छन
माटू ब्बी वी बणदू
पाणी वे का आँशु
ये बोला,
धरती ढुंगु.....
दरार हम मंखियों मां औंदी
वे फर नि!!
अफुं वे फर दरार नि औंदी
जबैर तलक प्रकृति या मनखी छेड़दू नि,
अफुं पार्टी बदली नि करदू
ना धर्म ना सम्प्रदाय
बस छन त ढुंगु
सम्पूर्ण जीवन
पूर्ण जीवंतता
अडिग अखंड
माया कर्ला त जीवन बसे जांदू
गुस्सा कर्ला खोपड़ी फ्वेड देन्दु।
रचना:-बलबीर राणा 'अडिग'

-----सौं खैकी------







छयपडा भैजी कबैर तलक रैलू सौं खाणु
कुड़ी त्वेन जमे नि बणाण
भोल सुबेर त्वेन घाम मां गेर तपोण
छव्टा-छव्टा सौंजड़ियों का बांटिक खैकी
ब्यखुन्दा डकार मारी ढुंगा कुछिला लुकि जांण।

नेता तु बणगे सौं खैकी
कर्म नि होन्दा सौं खैकी
तेरी बणायी माया की कुड़ी
सदानी नि रौंदी सौं खैकी

@ बलबीर राणा 'अडिग'

Tuesday 25 November 2014

ब्वे आशीष


तुमारा खुट्टा कांडा नि चुभ्या लाटो
चैs हम किन्गोडक भूड किले ना हो
तुमारा पुटुग सदानी भरिय्याँ रे
चेs हम भूखी क्ले नि स्यों।


जख भी रावा सुखी शान्ति रावा
यख रावा या परदेश जावा 
ब्यो करि यु ब्वे अलाडी ह्वे जान्दी 
जलम जलम की रीति बतौन्दी



मेरी माया मां ही खोट रे ह्वोलू 
कैतें दोष नि द्येणु 
तुम्हारा ज्यू जग्वाल भी ह्वाला 
मुच्चछ्याळू जगि पिछने औंदु...........

रचना :- बलबीर राणा "अडिग"
 

पंछी फिर घोलक तरफां उडी



हे माया भारी नखरी माया
सामणी रैंदी स्येली लगोंदी
दूर जै की झुकड़ा बिणोन्दी
त्यारा जंजाल मा इन लिप्टयों
फिरडा फिरडी त्वेमा उड़ि औन्दी।
@ बलबीर राणा "अडिग"

पडोसी भैजिक स्कूल

म्यार पडोसी भैजी बल
स्कुल चलोन्दन
वखक
पढ़े मा मंखियत नी
राक्षशी वृति पढ़ैयी जान्दी
वख इन्शान तें हैवान
बणे जान्दु
हे फरि बे का
धर्म का वास्ता
जान डाळा या ल्यावा
कण मुश्किल?????
।।।।।
@बलबीर राणा "अडिग"

मठु-माठू जा नन्दा

मठु-माठू जा नन्दा तु अबेर ना करी
उकाळी का बाटा घाटा भली के जेई 
उदास न होया नन्दा तु ते ऊँचा हिंवाला
तेरा मैतियों तें तेरी याद सताणी रैली

बडुली मां रैबार

किले नि औन्दी मेरी याद
नि छिन क्वी खबर सार
हे बथ्वों कख बटि ल्याई
बडुली मां तों कु रैबार

ज्यू मेरु गंगा जनु छालु
भरी देख ल्यावा अँजुली मा
तीजे जन जून ह्वेग्या
टक आँखी अगास मा
कख हर्ची गैणु का भिभ्डाटक बीच
नि पच्छ्णदिन वा अन्वार

हे बथ्वों कख बटिन ल्याई
बडुली मां तों कु रैबार।

औंदा जांदा बटोयी ब्वल्दिन
भट्कणु देखी ढूंगों का बोणु मां
आगास उड्दी पंछी ब्वनी
इकुली बैठियों मन्खियों का दग्ड मां
ऐजा बोडी ऐजा माया नि मिल्दी तों बाजार

हे बथ्वों कख बटिन ल्याई


ब्याखुनी दां आग भभ्डांदी
सुवेर बासन्दु कवा म्वोर परी
जग्वाल मा जिन्दगी कट्येणी
आज-आज भोल-भोल करी
दिन नि बुड़ेंदु रात नि बियेंदी
हर घडी पल-पल तेरु ख्याल

हे बथ्वों कख बटिन ल्याई
बडुली मां तों कु रैबार।

किले नि औन्दी मेरी याद
नि छिन क्वी खबर सार
हे बथ्वों कख बटि ल्याई
बडुली मां तों कु रैबार।

गीत :-  बलबीर राणा "अडिग"

---मेरु स्वाल----

जिजीविषा सहज जीवन कु बाटू
कबैर तलक खोजणी रैली
कथा व्यथा कागजों मां मेरी
कबैर तलक गयेणी रैली
कैन नि जाणी खैरी बिपदा
भोटक बाद सब्युन मुख फरक्याळी।


@ बलबीर राणा 'अडिग'

Monday 24 November 2014

मन दिवा


मन दिवा तु मठु-माठु जगणु रे
सैरी दिन-रात हर घडी हर बगत
झिकुडि मां माया कु बाटू उज्यालु कैर रे।
माया बिरडॉणी ज़िन्दगी का होर-पोर
भटकणी चौक तिवारी गों ख्वाला का धोर
ज्यु जिवा बण बूट जग्वाल बैठय्यां
राँको बणी ये झिकुडि उदंकार कैर रे
मन दिवा तु मठु-माठु जगणु रे।
दुन्या सौंण चौमासी रात बणी ऐ जांदा
माया कि आग जगण नि देन्दा
जून ब्बी लुकीं जान्दी मन्खियोंक जुलम देखी
सुबेरक कोलूँ घाम बणी ऐ जा रे
मन दिवा तु मठु-माठु जगणु रे।
भोल क्या होन्दु कैन नि जाणी
आजक क्या ह्वे सबुन जाणी पच्छयाणी
द्वी दिन का दिनोंण छै यु जीवन
आशा तु जीवन की जगे जा रे
मन दिवा तु मठु-माठु जगणु रे।
मन दिवा तु मठु-माठु जगणु रे
सैरी दिन-रात हर घडी हर बगत
झिकुडि मां माया कु बाटू उज्यालु कैर रे
ये अडिग की बात मान रे।
रचना:- बलबीर राणा 'अडिग'

------भैजी मेरु देशक थोकदार----


मन मेलु तन चमकदार
भैजी मेरु देशक थोकदार
धोती कुर्ता झमाझम
हर दिन नयुं नयुं सुलार
बोली मयाळी भाषा अपणी
अर तिकड़मी चाल
भैर दूध जन उजळु
भितर मुसादूळी भ्रस्टाचार
भैजी मेरु .......

नि ह्वे सकु एक मैंसक स्वेणि
कन ह्वयूं यु पातर चाल
एक घरय्या द्वी घरय्या
बुडडया हूण तलक सड़सट घरों कु ठाट
जन भी हो कुर्सी वाळु मिलण चैन्दि
जै घार भी मारी जाओ फाल
रँगिला पिंग्ला आंगड़ी पिच्छवाडी
ज्वान छोरों कु चैणु भिभडाट्
भैजी मेरु ..
इनु राष्ट्र भक्त
गों गुठियार पर खिंचवे देन्दु तलवार
जै तें हो निराशपंथ
जैकी मवसि लाग्यां धार
भैजी मेरु ....
क्रमश:-
@बलबीर राणा 'अडिग'

Sunday 5 October 2014

बडुली मां रैबार

किले नि औन्दी मेरी याद
नि छिन क्वी खबर सार
हे बथ्वों कख बटि ल्याई
बडुली मां तों कु रैबार

ज्यू मेरु गंगा जनु छालु
भरी देख ल्यावा अँजुली मा
तीजे जन जून ह्वेग्या
टक आँखी अगास मा
कख हर्ची गैणु का भिभ्डाटक बीच
नि पच्छ्णदिन वा अन्वार

हे बथ्वों कख बटिन ल्याई
बडुली मां तों कु रैबार।

औंदा जांदा बटोयी ब्वल्दिन
भट्कणु देखी ढूंगों का बोणु मां
आगास उड्दी पंछी ब्वनी
इकुली बैठियों मन्खियों का दग्ड मां
ऐजा बोडी ऐजा माया नि मिल्दी तों बाजार

हे बथ्वों कख बटिन ल्याई
बडुली मां तों कु रैबार।

ब्याखुनी दां आग भभ्डांदी
सुवेर बासन्दु कवा म्वोर परी
जग्वाल मा जिन्दगी कट्येणी
आज-आज भोल-भोल करी
दिन नि बुड़ेंदु रात नि बियेंदी
हर घडी पल-पल तेरु ख्याल

हे बथ्वों कख बटिन ल्याई
बडुली मां तों कु रैबार।

किले नि औन्दी मेरी याद
नि छिन क्वी खबर सार
हे बथ्वों कख बटि ल्याई
बडुली मां तों कु रैबार।

गीत :-  बलबीर राणा "अडिग"
© सर्वाधिकार सुरक्षित
मेरे ब्लॉग 'उदंकार' में
www.ranabalbir.blogspot.in

Tuesday 16 September 2014

नखरी माया


थाती माटी की माया बिथोंदी
भैजी यु माया भारी नखरी होन्दी
गौं ख्वाला धार पुंगणो रिन्गोंदी
चौक तिर्वाला उबरा डंडयाली घुमोंदी

माया उठदा बैठदा काका बोडों की
माया खेल्दा फाल मर्दा भुला भूलियों की
माया मयाली भाभी सर्मांदी ब्वारी की
माया रगर्याट कणि बोड़ी ककडाटी काकी मा पिडौंदी
भैजी यु माया भारी नखरी होन्दी

माया रमणाट कणि भैंसी अर तिबडाट कणि बाछी मा
माया उज्यडया गौड़ी अर मर्खु बल्द मा
माया बखरों का ग्वोठ अर नखर्याली बिराली दगड भर्मोंदी
भैजी यु माया भारी नखरी होन्दी

माया हौन्सिया स्कुल्या नोनी नोनु मा
माया चखडेत कख्ड़ी च्वोर छोरुं मा
माया बौडर मा खडु अडिग फौजी भुला दगड रोन्दी
भैजी यु माया भारी नखरी होन्दी।

माया ढोल दमो की सबत भौंकरा रणसिंगा गरज की
माया डोंर थकुली की भौंड जागरी गाथा की
माया बाँसुरी की तान घस्येरियों का गीत मा चितोंदी
भैजी यु माया भारी नखरी होन्दी।

माया! हे माया! यु माया, तु माया,
जख देखा तेरी छाया तेरी काया
घुघूती की सांखी हिलांसे की भोंण
बांजे जड़ियों कु पाणी हरिय्याँ भारिय्याँ बोण।
माया जिन्दगी का होर-पोर बिथोंदी
भैजी यु माया भारी नखरी होन्दी।

@बलबीर राणा "अडिग"
© सर्वाधिकार सुरक

Wednesday 10 September 2014

मायाक बुखार

वा मुखडी ज्यू बटि मिट नि सकदी
आँसुओं बदिन यु आग बुझ नि सकदी
साँस दगड़ी भेर भितर कनि स्या याद
साँस ते हवा तें रुवेक नि सकदी।

दिनक चैन रातेक निन्द हर्चिन बेकार
यु माया च या माया कु बुखार
क्वी दवे दारु त बते दयावो भै बन्दों
किले च मि उठण- बैठणम बिमार।

@ बलबीर राणा

Friday 5 September 2014

क्यों मेरा बचपन मार दिया


माँ कहती थी
अले मेरे लाल
ज्यदा उथल पुथल न कल
बहार आने के बाद
खूब नाचना
सलालत करना
हुदंगल मचाना
किलकारियां मारना
लेकिन!!!
अब आई बारी किल्कीलाने की
तो... तो !

मेरा बचपन छीन लिया
किताबों का बोझ
कंप्यूटर इंटरनेट
दुनियां का इन्साइक्लोपिडिया थोप दिया
डाक्टर, इंजिनियर
और ना जाने कितने प्रकार की
पैंसों की मशीन बनाने की जुगत
वाह रे दुनियां
दुनियां वालो
तुम्हारा लालच ने
क्यों मेरा बचपन मार दिया।

:- बलबीर राणा "अडिग"
© सर्वाधिकार सुरक्षित

जिन्दगी रेस नहीं


जिन्दगी रेस नहीं
क्यों कफर्स्ट आने की ठान ली
ये तो मेराथन है भाई
जिसे हँसते हँसाते पूरा करना है
दौड़ के मंजिल कम ही पाते हैं
आधे ठोकर खा गिर जाते हैं
कभी नहीं से देर भली अडिग
चलकर सभी पहुँच ही जाते हैं।
शुभ दिवस मित्रजनो
---------------
जिन्दगी रेस नहीं
क्यों कफर्स्ट आने की ठान ली
ये तो मेराथन है भाई
जिसे हँसते हँसाते पूरा करना है
दौड़ के मंजिल कम ही पाते हैं
आधे ठोकर खा गिर जाते हैं
कभी नहीं से देर भली अडिग
चलकर सभी पहुँच ही जाते हैं।

:- बलबीर राणा "अडिग"

Tuesday 2 September 2014

अडिग वाणी

भितर मने की कैन नि जाणी
भैरक सबुन जाणी पच्छ्याणी
गिचा मा रामा- रूमी भल स्वभाणी
पुटग की आग किले तेरु ज्यू जलाणी।

द्वि दिनक रोण-ठिकोंण यख सब्बुं कु
जुग-जुग यख कैन नि बिताणी
ना मार गेड अहम् अंखारे की
माया का थैलु त्यार दगड जाण।

नि कण रंग्त्याट भल नि फुन्फ्याट
सब्बुं पर रौंदी एक दिन इन पराण (ताकत)
खुटी संभाली पूरु होन्दु जीवनक यु बाटू
समझी जा मनखी ये अडिग वाणी।

:- बलबीर राणा "अडिग"
© सर्वाधिकार सुरक्षित"

Sunday 17 August 2014

हमेर कमे

बण माफियोंन डाळा काटी
खनन माफियोंन उखाड़ी
हेकोंन्   बणे नांगी यु धरती
धरतिन हमेर कुड़ी् उजाड़ी

वरुण द्यबता रुष्ठ ह्वयुं
पर्वत महाराज रुसायुं च
होर कुछ नी दोष दयाणी
अकर्मो से हमारू ही कमायूं च



© सर्वाधिकार सुरक्षित
रचना :- बलबीर राणा “अडिग”
 

काकी गाळी

हे मस्तो
खूब लगाया ते अप्णी ज्वानी!
खूब म्वटी करिय्याँ ते गेर!
मेर काखडी खै .....ह्वे जालु
त!
अजि अय्याँ !
होर चोरिय्याँ !
ते ब्वे तें भि ली जाया 
जेन तु तदगा च्वोर ढांट सेंतियों
सच्ची भुमियाल देंण ह्वोलू
त!
त्वे मास्त तें फ़ौज मा भर्ती केर दिय्याँ
तब!
खूब मरुलो दुश्मन तें च्वर मार दे
तब पड़ेली मेर झुकुड़ी मा सेल !१!



© सर्वाधिकार सुरक्षित
रचना :- बलबीर राणा “अडिग”


Friday 1 August 2014

कण ह्वयुं नि रोण

रात डैर च लगणी
भिभ्डाट छिन हुणु
पैली भी चौमास बरख्येंदी छयी
अब क्ले !!!
इत्गा रगड़-बगड
ये सुरंगोंन हमेर सरि धरती हिल्येली
रोड का बाना कुड़ी पुन्गडी बग्येली
अध् कचरु काम छन हुणिया
सड़क काट्याली
डाळा उजाडयाली
नि चिंडी दिवाळ-भिड़ा
नि रोपी डाळा
ठेकदारोंन अर अधिकारियोंन भरीन अपणा थोला
जेमा जुगती छिन वूं त चलिगे देहरादून
जै विचारू नी कुछ वैकु ह्वयुं नि रोंण .....

© सर्वाधिकार सुरक्षित
रचना - बलबीर राणा :अडिग"

Tuesday 29 July 2014

हाईकू

उदास ज्यू
मन्खियोंक बीच
इकूलु किले

भिभडाट मा
मनक कब्लाट
किले मच्युं


गढ़वाली गजल

सर्गक गगडाट बरखा हूणी
अगास और धरतीक बात हूणी।

धुरपल़ा छज्जों बटि मोतियोंक झालर
चौका मा बून्द-बान्दे बरात हूणी।

रिमझिमक प्यार हरी-भरी सारियों दगड
साटी-झंगोराक आपस मा लडे हूणी।

बादलों बिजली दगड हैंसण बच्याणो
मंखियोंक पराण तों दयेखी कब्लाट हूणी।

जुगुनो कु गेणा दगड़ी रिश्ता पुराणु
सोण की काली रात भी जगमग हूणी।

डोsर ना ब्वारी ते यकुली डंडयाली
गद्नियों मा मिंनिखों की हल्ला रोळी हूणी।

......बलबीर राणा "अडिग"
© सर्वाधिकार सुरक्षित
www.ranabalbir.blogspot.in
म्यार गढ़वाली ब्लॉग
उदंकार

Tuesday 15 July 2014

सर्ग


सुण मन्खी मेरी जुबानी 
तुम्हारु दुःख सागरों जन पाणी 
प्ये ल्येंदु मी बदळ बणी
रूवे रूवे बरखेंदू कैन नि जाणी
तुमारा जल्दो पराणी स्येली लान्दु
मी औंसूं धार बगान्दु

मोरी जांदू मी बरखी बरखी
धन अप्णु खैली करी
म्यार घोर जंगलों तेंं ना जलावा
अप्णा पापों तें होर ना बढ़ावा
बिगैर जंगलों मी भटकी जान्दु
मी औंसूं धार बगान्दु

@ सर्वाधिकार सुरक्षित
.............बलबीर राणा "अडिग"

Wednesday 25 June 2014

कान्क्सा


आजाद बणो कु स्वतंत्र पंछी छै वा
पंख पसारी उड़दूँ छै
खुट्टा पसारी सेंदु छै
अब ईंटों का पिंजरों मा कैद ह्वेगे
गाड़ियोंक भिभडाट मा भंगरिगे
पैंसों की हवा
नोटों कु पाणी
कख तक जेलू
कब तक रेलू
दौड़ नि रेस ह्वेगी जिंदगी
ज्योंण नि निभोंण ह्वेगी जिंदगी
कब्लाट त वे कु ज्यू कनु ह्वोलू
मन मा कांक्सा त रय्यीं ह्वेली
पर !
कैर भी क्या सक्दू
खाण से पैली नाक जू लग्दू
अब!
न थुकेन्दु न घुटेन्दु
अप्णा बारा का गारा इनि पिस्लू।

@ सर्वाधिकार सुरक्षित

Monday 23 June 2014

मिसन मालदार

सैराs पृथि गल्दार
भैर भितर चौबाटा
सौदा पत्ता कणा

गल्दारोंक फ़ौज
राजनितिक लडै
तिकड़म पिकडम बंदूक

गैल तें हल्या
चल्चलु तेल लगे
दिखाणा छन

सीधा साधा लाटोन
सौ का नोट मा
भोट दये खरीदयाली

एक घोर तीन पार्टी
हाथ कमल हाथी
दादा ब्वारी नाती

घप्रोल मच्यूं
क्वी नि कै से कम
कखि ह्विस्की कखि रम

ये दों परधान
हैक दों जिला पंचैत
विधायके डगर

छ्वाडा पढे लिखे
तिकडमें स्कुल लगीं
राजनीति सिखोल

मिसन मालदार
गल्दारक बाटा बटिन
जन सेवक तक

@ सर्वाधिकार सुरक्षित
....बलबीर राणा "अडिग"

मर्खु बल्द

गुठियार डोर
बल्द मर्खु
फुन्फ्यांट कनु

मनक कब्लाट
पुटुग घब्ल्याट
भूक चैन नि

डकार मनु
दुकुरताळ कनू
खडतम ताळी

गुसैं नि तेकुणी
गुस्याण नि
दिवाळ भिटकणु

क्या करे जावो
अपणु ही खोटू
दूसरों तें क्या ब्वन

कने समझाओ
पशु मन्खी
अपणी क्वोखू जन्म्युं

@ बलबीर राणा "अडिग"

Thursday 12 June 2014

बिंज्ञावा



खूब बजावा ढोल दमों
खूब लगावा मंडाण्   
गैरसैण त् गैर ही राली
गैरसैण की छ्वीं नि लगाण
भिज्याँ घाम अजक्याल देहरादून मा  
चार दिन पाड् घुम्याण
परमानेंट नी रोंण गैरसैण मा
यख त् पिकनिक मनाण
गैरसैण त् गैर ही राली
गैरसैण की छ्वीं नि लगाण
      .... बलबीर राणा “अडिग”