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Thursday 20 December 2018

वे दिने बात


***वे दिने बात***
ऐजा सांखि लगि जा जरा, जाणो बगत ह्वेगी
फेर इकुलांसे  पिड़ा मा बिब्लाणो बगत ऐग्ये।

भ्वोळ बटिन न तु ह्वेली न मि सामणि ह्वलू
अग्ने उनि बडुली मा रैबार पैटाणो बगत ऐग्ये।

समाळी धैर आँख्यों का मोती जरा हैंसी जा
जांदा दौं तौं हाथियूं भुकि प्याणो बगत ऐग्ये।

ओ काखि बैठि जा घड़ेक छविं/बत लगौला
फेर गीरस्थीsक बाटू यकुली कटणो बगत ऐग्ये।

द्वी गफ्फा खल्लै दे तौं  हाथोंsन, धौ कैर दये
बिनबर्खो च्योली जन तिसलू रोणों बगत ऐग्ये।

मिन त फुर्र उड़ी जांण पंछी बण वे परदेश मा
राती दिन तेरु वा फोन मा रुसाणो बगत ऐग्ये।

चल पैटे दे पिठ्ठू मेरु अपणी समोंण बी पांजी दे
आंख्यों मा त्येरी सुवा आंसूं तबराणो बगत ऐग्ये।

@ बलबीर राणा 'अड़िग'

Wednesday 5 December 2018

वे युग पुरुष की अमर गाथा


हे उत्तराखंडी नैनवांणों इतियास तुमतें बताणु छौं
देवभूमि का वे युग पुरुष की  गाथा सुणाणु छौं।

पंद्रह सौ नब्बे दशक मा एक वीर पैदा ह्वेनी
वीर सौंणबाग भंडारी का घोर वेन जलम लीनी
जैsकी गाथा जुगबटिन ये गढ़भुमी मा गुंजणी रै
वीरभड़ माधो सिंह भंडारी नाम से वा अजर अमर ह्वे।

वे युगपुरुष की तागत को ऐसास तुमतें कराणु  छौं
हे उत्तराखंड .........

बाळापण से उटंगरी रे वा होंणहार चतुरछंट छै
लौंची उमर मा जी गढ़सेना कु सिपै बणिगे छै
वीर क्या वा भड़ क्या एक महारणपति छायो
गढ़ नरेश महीपति शाह को शूर सेनापति ह्वायो।

एक महानायक सेनाध्यक्ष की वीरता तुमतें बताणु छौं
हे उत्तराखंड .......

ज्वान मा को ज्वान छै वा दवफरी सी भडांग छै
आगो जन भभकार छै वा उदमातो फौन्दार छै
अपणी जलमभूमि का खातिर कत्गा लड़ै वेन लडिंनी
कति दुश्मनो मुंड म्वडिंन, कत्गों की धौंड़ धड़केनी।

यना वीर की वीर गाथा तुमतें मि बिगाणु छौं
हे गढ़भूमि का नैनवाणो......

मालों का वे महाकालsन, हूण दापों को छक्का छवडेनी
भारत चीन बोर्डर जोन वोड़ा मुँडरा गाड़ दयेनी
पाsड़क पुटुग सुरंग बणाण वाळू दुन्यों पैलु इंजीनियर ह्वायू
अपणा बेटो कु बलिदान करि वा पाणी कूल बगै ल्यायो।

यना परोपकारी मणखी कु सत तुमतें समझाणु छौं
हे उत्तराखंड का .......


थाती माटी का खातिर यनु भगिरथ काम करिगे वा
जन्मजमान्तर का वास्ता मलेथा को उद्दार करिगे वा
एक सिंह बण को, एक सिंह गाय को
एक सिंह माधो सिंह, हैकू सिंह काहे को
इना महाशेर कु शूरत्व आज तुमखुणे दिखानु छौं
हे उत्तराखंड का ......

मणखी छै वा अनमणमाथी को राण्यों को रौंसिया छै
अपणो खातिर मयाळू मायादार फूलों को वा हौंसिया छै
एक बार को  विजय रथ तौंकु छवटा चीन तलक गैनी
निर्भगी बीमरी लगी जु सदानी तें घर बौडी नि ऐनी।

मृत्यु शय्या पर बैठ्यां वे पुरूष की रणनीति तुमतें बताणु छौं
हे उत्तराखंड का.....

साहसी निडर ते भड़न,आखरी दों सिपैयों तें समझायी
मेरा मरणे खबर दुश्मनो तें पता न लगण दयायी
निथर तुम एक भी ज्वान घोर बौडी नि जाला
दुश्मन तें अगर पता चलि त तुमतें यखी लमडे दयला।

वे गढ़भुमि का रणबांकुरे आखरी ख्वाइस बिंगाणु छौं
हे उत्तराखंड का.....

लड़ने रय्या पिछने हटणे रय्या घोरsक बौडी जयां तुम
मेरा शरील तें तेल मा लपोड़ी हरिद्वार मा जगे दियां तुम।
ये बीर गाथा परमाण इतियासकारों की कलम बतै दयली
त्याग समर्पण की मिशाल मलेथा खुशाली तुमतें समझाली।

देवथाती का युग पुरुष की प्रेरणा तुमतें सुझाणु छौं
हे उत्तराखंड का .....

*** वे समै मा मलेथा कु लोक व्यवहार***

बारा बित्या मास अर छई ऋतु चली गैनी
बारा ऐनी भेलो बग्वाली सोला शरद पूरा ह्वेनि
सब्बि ऐना घौर बौड़ी की, मेरु माधो किले नि ऐनी।

करुणा कनि रे राणी बौराणी, धरती पछाड़ खाणी रैनी
हिन्क्वाण पड़ी रो गौं ख़्वाळो, हाथ न क्वे धाणी लगीं
सब्बि ऐना घौर बौड़ी की, मेरु माधो किले नि ऐनी।

चौंल छड़याँ का छड़याँ रैग्यां दाल दौलीं की दौळी रैनी
ऊनि रैग्ये बासमती च्युड़ा, थौलो कांकर टंग्यों रैनी
सब्बि ऐना घौर बौड़ी की, मेरु माधो किले नि ऐनी।

हे मेरा नैनवाणों यू छै वे बीरभड़ माधो की कथा
स्वोना आंखरों से लिख्यों  रैलू वे पुरुष की शौर्य गाथा ।

रचना : बलबीर राणा "'अड़िग'

संकलन सभार:-
हरिकृष्ण रतूड़ी रचित और श्री डॉ यशवंत सिंह कटौच द्वारा संपादित एवं संशोधित गढ़वाल का इतिहास, डॉ बीरेंद्र सिंह बर्तवाल रचित गढ़वाली गाथाओं में लोक और देवता और डॉ नंदकिशोर हटवाल जी के ग्रंथ चांचडी झुमाको




Friday 23 November 2018

वे बीरभड़ की शौर्यगाथा




हे उत्तराखंड का नैनवांणों तुमतें जगाणु अयूँ छौं
देवभुमि का एक बीर की शौर्यगाथा सुणाणु अयूँ छौं।

पंद्रह सौ नब्बे दशक मा एक बीर पैदा ह्वेनी
बीर सौंणबाग भंडारी का घोर वेन जलम लीनी।
जैsकी गाथा जुगबटिन ये गढ़भुमी मा गुंजणी रै
बीरभड़ माधो सिंह भंडारी नाम से वा अमर ह्वे
वे बीरभड़ माधो सिंह भंडारी गाथा तुमतें सुणाणु छौं
हे उत्तराखंड .........

बाळापण से उटंगरी रे वा होंणहार चतुरछंट छै
लौंची उमर मा जी गढ़ सेना कु सिपै बणिगे छै
बीर क्या वा भड़ क्या एक महारणपति छायो
गढ़ नरेश महीपति शाह को शूर सेनापति ह्वायो
एक महानायक सेनाध्यक्ष की बीरता तुमतें बताणु छौं
हे उत्तराखंड .......

ज्वान मा को ज्वान छै वा दवफरी से बांण छै
आगो जन भभकार छै उदमातो फौन्दार छै
ये गढ़भुमी का खातिर कत्गा लड़ै वेन लडिंनी
कति दुश्मनो मुंड म्वडिंन, कत्गों की धौंड़ धड़केनी
यना बीर की शौर्य गाथा तुमतें मि बिगाणु छौं
हे गढ़भूमि का नैनवाणो......


मालों का वे महाकालsन, हूण दापों कु छक्का छवडेनी
सदानी का लड़ै झगड़ा से, सीमा पर मुँडरा बणेनी
पाsड़क पुटुग सुरंग बणाण वाळू दुन्यों पैलु इंजीनियर ह्वायू
अपणा बेटो कु बलिदान करि वा पाणी कूल बगै ल्यायो
यना लोकपरोपकारी मणखी की सत तुमतें समझाणु छौं
हे उत्तराखंड का .......

थाती माटी का खातिर यनु भगिरथ काम करि वेन
जन्मजमान्तर का वास्ता मलेथा को उद्दार करि वेन
एक सिंह बण को, एक सिंह गाय को
एक सिंह माधो सिंह, हैकू सिंह काहे को
इना महाशेर को शूरत्व तुमखुणे दिखानु छौं
हे उत्तराखंड का ......

मणखी छै वा अनमणमाथी को राण्यों को बी रौंसिया छै
अपणो खातिर मयाळू मायादार फूलों को वा हौंसिया छै
एक बार को  विजय रथ तौंकु छवटा चीन तलक गैनी
निर्भगी बीमरी लगी जु सदानी तें घर बौडी नि ऐनी
मृत्यु शय्या पर बैठ्यां वे पुरूष की रणनीति तुमतें बताणु छौं
हे उत्तराखंड का.....

साहसी निडर ते भड़न,आखरी दों सिपैयों तें समझायी
मेरा मरणे खबर दुश्मनो तें पता न लगण दयायी
निथर तुम एक भी ज्वान घोर बौडी नि जाला
दुश्मन तें अगर पता चलि तुमतें यखी लमडे दयला
वे गढ़भुमि का रणबांकुर आखरी ख्वाइस बिंगाणु छौं
हे उत्तराखंड का.....

लड़ने रय्या पिछने हटणे रय्या घोरsक बौडी जयां तुम
मेरा शरील तें तेल मा लपोड़ी हरिद्वार मा जगे दियां तुम।


***गौं ख़्वालों कु करुणी***

बारा बित्या मास अर छई ऋतु चली गैनी
बारा ऐनी भेलो बग्वाली सोला शरद पूरा ह्वेनि
सब्बि ऐना घौर बौड़ी की, मेरु माधो किले नि ऐनी।

करुणी कनि रे राणी बौराणी, धरती पछाड़ खाणी रैनी
हिन्क्वाण पड़ी रो गौं ख़्वाळो, हाथ न क्वे धाणी लगीं
सब्बि ऐना घौर बौड़ी की, मेरु माधो किले नि ऐनी।

चौंल छड़याँ का छड़याँ रैग्यां दाल दौलीं की दौळी रैनी
ऊनि रैग्ये बासमती च्युड़ा, थौलो कांकर टंग्यों रैनी
सब्बि ऐना घौर बौड़ी की, मेरु माधो किले नि ऐनी।

हे मेरा नैनवाणों यू छै वे बीरभड़ माधो की कथा
स्वोना आंखरों से लिख्यों  रैलू वे की शौर्य गाथा ।

*रचना : बलबीर राणा 'अड़िग'*

*स्रोत ग्रंथ *:-
हरिकृष्ण रतूड़ी रचित और श्री डॉ यशवंत सिंह कटौच द्वारा संपादित एवं संशोधित गढ़वाल का इतिहास, डॉ बीरेंद्र सिंह बर्तवाल रचित गढ़वाली गाथाओं में लोक और देवता और डॉ नंदकिशोर हटवाल जी के ग्रंथ चांचडी झुमाको से सभार।

Tuesday 9 October 2018

नौ शक्ति स्वरूप वळी माता



दिव्य स्वरूप कु दर्शन दे जा,
सकल चराचर हे जगमाता।
नौ शक्ति रूप वळी मेरि माता,
तेरु गुण-गाण गांदा माता।।

कंयरी धै पुत्रों की सुणि, 
झट प्रकट ह्वे  जांदी माता।
हे जगदम्बा, हे महामाया, 
कष्ट हरणु आंदी माता।।

दिव्य स्वरूप कु दर्शन ......

ऊंचा हिंवाला जलम ल्येनी, 
दर्शन शैल पुत्री को पैनी।
शैलपुत्री रूप पै की , 
भक्त तेरा धन-धान्य ह्वेनि।।

दूजा रूप ब्रह्मचारिणी को,
सत-स्वभौ धर्ती मा लांदी।
चंद्रघंटा कु तीजा रूप से,
पाप से मुक्ति ह्वे जांदी, माता।

दिव्य स्वरूप कु दर्शन ......

असम्भौ बी संभौ ह्वे जांद, 
जख तेरा चरण पड़ी जांदू।
माँ को कुष्मांडा रूप से माता,
भै-भैकार भाजी जांदू।

धवल बस्तर कमल आसण,
स्कंदमाता कु पांचौ रूप।
बुरा चित वृति से मुक्ति,
देखी माँ कु दिव्य स्वरूप, माता

दिव्य स्वरूप कु दर्शन ......

मन इच्चा फल देणा खातिर, 
माँ कात्यानी बणि आंदी
माकालरात्रि सातवों रुप, 
दुष्टों कु विणाश करि जांदी।

आठवां रूप कंयारी महांगौरी कु,
भगतों कोळी भौरी की जांदी ।
नौवां रूप सिद्धिदात्री मा ऐकी, 
रिद्धि सिद्धि भंडार पुरए जांदी, माता

दिव्य स्वरूप कु दर्शन ......

आशीष रख्यां हे परमेश्वरी, 
रख्यां कृपा भवानी कृपाश्वरी ।
अड़िग विनती करदू माता,
सद्बुद्धि दियाँ माते माहेश्वरी।

दिव्य स्वरूप कु दर्शन ......

भजन : बलबीर राणा "अड़िग"

Tuesday 31 July 2018

अगळ्यार



कबि बाटों मा बटोही बदलणा रैला
कबि बटोही बाटों तें ख़्वजणा रैला
तु मठु-माठू बाटू पुर्यो दग्ड़या
ऐगी तेरी अगळ्यार अब निभो दग्ड़या।

सुख-दुःख त आणा जाणा रैला
यों बाटों मा कांडा बुढेन्दा रैला
कबि मिल्लो सीधू-सैणु स्वांपट
कबि ह्वली चढ़ी-चढ़ी उकाळ अचाणचक
चढ़ा-चुटि उंदार देखी न घबढ़ो दग्ड़या
ऐगी तेरी अगळ्यार अब निभो दग्ड़या।

रैलू  तों बाटों मा उदंकार
ह्वलो सदानी जगमगकार
नि रैलू अज्ञानक अन्ध्यारु
जब रैलू नेकि नारेंण कु हिगनत्यार
द्वी दिवा सच्चे का जगो दग्ड़या
ऐगी तेरी अगळ्यार अब निभो दग्ड़या।

ब्वै-बाब कु हाथ जो तेरा कांद्यों पर रैला
त्यारा खुट्टा कांडों मा चलणा रैला
दुन्यां की बुरी हव्वा से बच्यों रैलू
वा बथोंन बी अपणु बाटू बदलणु रैलू
जरा ब्वै-बाबे सुणी जा, सरि अपणी न लगो दग्ड़या
ऐगी तेरी अगळ्यार अब निभो दग्ड़या।

रचना : बलबीर राणा "अड़िग"

Sunday 29 July 2018

चलि जाणा


सफेद कुर्ता वाळा, इनि ठगे चलि जाणा
सुदी मुदी कु, को-करार करि चलि जाणा

सुप्यनों कु मैल त रचायी- रचायी, दगड मा
अपणा नो कु एक ढुङ्गा चढ़े कि चलि जाणा

वे विकासक मुखड़ी बसग्यालक बाद दयख्णु
वा हर साल यख एक होर रगडू बणे चलि जाणा

ऐsरां इख रौंण वाळा मुच्छयाला बुजोंणा रैन्दा
चकडेत हर्यां-भर्यां बोण आग लगे चलि जाणा

नि छिन अब क्वी लो लकार नि रैगी क्वी सल-सगोर
सस्ता अर फ्री का पैथर कर्मशक्ति ख़्वै चलि जाणा

वा गारंटी रोजगार क्या ऐन दुकानी मा फांट लगीं छ
वे रजिस्टर मा सर्रा परिवारे हाजिरी लगै चलि जाणा

नि छिन कखि नाज पाणी नि छिन कखि साग-भुजी
ये बसग्याल बी बजारक सड़ी लोंकी भोरी चलि जाणा

को-कारज मुश्किल हुयों क्वे धर्म धाध नि लगन्दी अब
जु बी छ टेंट हौस अर डोटियालों दगड पैटे चलि जाणा

समै की बात छ या समझ की बात, क्व जाण भैजी
देखा-देखी एक हैका पिछने बजारी ह्वे चलि जाणा

कै मर्दोन पाड़ काटी स्वाणि घर कुड़ी संवरेंनी
क्वे अब तों बाटों मा ढुङ्गा फर्के कि चलि जाणा

निर्पट ह्वे किन मुख लुकायूँ जों कु घर कुड़ी बटिन
इन भी लोग पाड़ बचाण कु उपदेश दे चलि जाणा

@ बलबीर राणा "अडिग"

गजल

 (द्वी घड़ी)

हर फजल एक नै शुरवात ह्वेली
नयाँ लोग मिळला नै बात ह्वली

गुजरयूं बगत हैंसणे कोशिस  कर्लो
तैका हाल पर जरा कबलाट ह्वेली

तों आंख्यों की जोत समाली रख्यां
चलदा चलदा बाटा पुन रात ह्वेली

आज ही नि छ जु अब्बी सब खत्यांन
समे की बात भोळ क्या हालात ह्वेली

तेरा ज्यू मा बी पिड़ा मेरा ज्यू बी आशा
चल कखि दूर रौंतेली धार मा बात ह्वली

सम्माली राख्यान ते छळकदी ज्वानी
न जाण भौरों कख मुलाकात ह्वेजली

पैटी जा चल हपार फूलों का देश मा
वखि अब द्वियों की च्छविं  बात ह्वेली

ज्यू पांजी रख्यान क्वे सुण न साको
निथर दुर्जन जमाने क्या कर्मात  ह्वेली

बैठी जौला द्वी घड़ी माया मा ख्वे रौला
फिर न जाण कै जलम मा मुलाकात ह्वेली

@ बलबीर राणा "अडिग"

Wednesday 23 May 2018

गढ़वळि दोहे



कबि खुशी कबि गम, जिंदगी अपणु ढंग।
कबि खुदेड़ उदास उबासी, कबि रंग-चंग।।

खुश रावा या उदास, सांस तलक संसार।
घोरे बात घोर तक, भैर बण जैलू बजार।।

ढोले डवोर कसी रैली, बजी बी जाला ढम ढम।
जीवन चाकरी चक्र च, कबि भिज्यां कबि कम।।

जरा सौजी सौजी, भट नि भड़कण दूसरे आग।
जमानु पिरुला बण बस्यों, चट लगलि बणांग।।

जरा मुंड झुकणे जर्वत, फेर तेरु मान मेरु मान।
तड़तड़ी तड़ी स्येखि कु, न क्वे मान न सम्मान।।

मानण पर दयबता, न मानण फर ढुंगू ही नाम।
अपणा जमीरे बात च, किले लग्यां खाम-खाम।।

जीवन पाणी  जनु, बाटू ख्वज्ये जांद अपणा आप।
ज्यादा स्वचणे बात नि, धर्यों नि चैंद हाथ मा हाथ।।

क्या तुमन बींगी क्या मैन, सब अपणा-अपणा अनुभो बात।
उज्याळो देखणु आँखा चैंद अडिग, बिन आँख्यों राती-रात।।

24 मार्च 2018
@ बलबीर राणा "अडिग"

Tuesday 17 April 2018

माँ तें बुरु नि लगद


जब तू मसौड़ी-मसौड़ी प्येन्दी
 पुटुग भर्यां बाद
मुल हैंसी लात मारी देन्दू छै
माँ छाती पर
अर होर त होर !
बेशर्मी देखा?
एक लंबी मूते तराक बी
छोड़ी देन्द माँ का मुख फर
 पर! माँ तें बुरु नि लगद
बल्कि होर आनंदित ह्वे
भुकी प्येन्द छै
तब क्या?
आज क्या?
वेंकि ममता मा क्वी फरक नि ऐ
चै तू अपीड़ ह्वे
मुख मोड़ी दूर किले नि चल्गे ।

@बलबीर राणा "अडिग"

Saturday 7 April 2018

जातिगत आरक्षण


बंद करो अब बंद करो, जातिगत आरक्षण बंद करो
आरक्षण की जंजीर में, प्रतिभा बांधना बन्द करो
जकड़ रही है कर्म शक्ति, आरक्षण की बेड़ियों में
देश की एक युवा शक्ति, भ्रमित हो रही फेरियों में
जहर न घोलो संकीर्णता का, बुद्धि न इनकी मंद करो
अपने वोट बैंक के लिए अब, हथियार बनाना बंद करो

आरक्षण से शीर्ष चढ़े जो, वे भी कतारों में बैठे हैं
पचास प्रतिशत वाले पुत्र को, कुर्सी के लिए ऐंठे हैं
हांसिये पर हैं वे अब भी, जिन्हें आरक्षण की दरकरार है
जाति विशेष की खाई ने, डाल रही देश पर दरार है
श्रमशक्ति दो हाथों में, फ्री लॉलीपॉप देना बंद करो
प्रतिभा उपेक्षित करने का ये, गंदा धन्धा बन्द करो।

ये कौन सी हक लड़ाई है, निर्दोषों का घर जलाने का
किसने हक दिया तुमको, निरीहों पर डंडा चलाने का
अरे बंधुओ दम है आप पर, भीम राव बनके दिखाओ
संविंधान के अध्य्याय में, एक पन्ना जोड़के दिखाओ
अरे मौसमी झिंगुर झुंडों, राष्ट्र शांति न अब भंग करो
आरक्षण की आंधी से, घरों को उजाड़ना बन्द करो।

इस वायरस से रुग्ण हो रही, भारत की कर्मप्रधान जातियाँ
कर्मशक्ति भिखारी बनी पटरी पर, बंजर पड़ी है माटियां
ठाकुर ब्राह्मण पंजाबी मराठा, कब कोई लाईन पर लग जाये
चिंगारी है यह गृह युद्ध की, कब ज्वाला बन भष्म कर जाये
सुन लो 'अडिग' आह्वान मित्रो, राष्ट्र को न अब शर्मिंद करो
आरक्षण के तीर से, प्रतिभाओं को घायल करना बंद करो ।

रचना:बलबीर राणा 'अडिग'

Friday 30 March 2018

गजल "जलम भुमि"



जन्म लिनी जे थोल, जख बाळापन बितेन
जे माटा पल्यां पोस्यां छकी घुड़मुंडी खैंन।

रुंड-मुंड देह बणाण वळी हव-पाणी त्वे सेवा
डाला-बोटी, गाड़-गदनों फाळ मारण सिखैन।

स्वाणी प्रकृति को भरिं कुठार ज्ञान को भंडार
तेरी जोतsन यूं आंख्यों तेँ दुन्यें माया दिखेंन।

पैली किल्क्वरी फर जे अवाज मा दुलार सुणि
जे बोली भाषा मा अपणोंक भिज्यां लाड़ पैन।

धन-धन त्वे जलम भूमि, धन-धन हमारू जोग
तेरु दूधो कर्ज आजतालक क्वी उतैर नि सकेन।

ब्वे की कोळी छै वा वसुधा, बुबा को आशीष छ
याद रख्यां ते जलम भुमि से कबि मुख न लुकेन।

जख रैला भुलो जरूर भिटवली कर्या बिसर्या ना
खुद लगीं रेन्द ते धर्ती, वा तुमारी जग्वाल मा रेन्द।

रचना: बलबीर राणा "अडिग"

Sunday 11 March 2018

चिठ्ठी



घोर बटिन औंदी छै जब वा चिट्ठी
कुछ होंदी छै खट्टी कुछ होंदी मिठ्ठी
रुवांसी आंखरों मा दिखेंदु ब्वै कु दुलार
बाबा भ्यजदू छै सब्यूँ की ख़बरसार।

आंदी छै भुली की फर्मेश,भैजी की सल्ला
परदेश मा ना करि भुला कै दगड़ हो हल्ला
होन्दू छै काकी-बोड़ीयों कु मयालु आसिरवाद
नखर्याळी बोजियों की माया-मसखरी बात।

यार-आबतों की कुशल मिल्दि, गों ख़्वालों कु रंत-रैबार
बांचि जांदी छै वा चिठ्ठी, सब्यूँ का समणि बार-बार
लैंदी भैंसी की छविं लगांदी, लतेड़ गौड़ी की बात
खूब हंसान्दी छै ये परदेश मा, वे उज्याड़ा बल्दे कर्मात।

रिंगाले कलम से लिख्यां वों आंखरों मा
भटकणु रैन्दू मन फिर तों डोखरों मा
मैनो तक रैन्दी छै माटी की सौंणी सुगंध
कागज मा बन्ध्यों रैन्दू ज्यू कु अटूट बंधन।

जति मयाळी छै वा चिठ्ठी, तति गुस्यार बी होंदी छै
रोस-खरोस माया-ममता, एकी अन्तर्देशी मा ऐ जांदी छै
जति शर्मयाळी होंदी छै चिठ्ठी, लाजवंती बी उत्गा ही छै
मान मर्यादा मा रैन्दी छै वा, कबि बेशर्म बी ह्वे जांदी छै।

लुकि-लुकि पढ़ी जांदी वा कबि, कबि पंच्याति मा ऐ जांदी छै
कबि सिराणा पर  चुप स्ये जांदी, कबि छाती पे बिणान्दी छै
कबि खुद का आँशुन भीजी जांदी, कबि खुशिक भुक्की प्ये जांदी छै
कख हरची ह्वली तू प्यारी चिठ्ठी, दयेख अब वा फोन नि उठान्दी छै।

कन याद करदी छै सब्यूँ की तु चिठ्ठी, अब कन यादों मा रैग्ये तु
सब्बि का ज्यू तेँ समलोणी वाळी तू, कन समलोंण्या रैग्ये तु।

@ बलबीर राणा "अडिग"

ऐरां बल हल्या


ऐरां शब्द सूणी
झिकुड़ी मा डाम लगि जांद
हल्या त ठिक च
मि होल लगान्दू
पर ! ऐरां कु क्या मतलब?
ब्वे न बोली
त्यारा बसो कुछ नि
निकाजु मणखी?
द्वी बल्दों पुच्छयडू मडकान्दू
तैकु ही ऐरां च,
मैं सोच मा पड़ीs
कि भाई हल्या ही
धरतिल फाड़ि
अन्नsल ही उगांद
अर मणखी क्या जी जबानों
पुटुग भरिन
वा कम्प्यूटर, मशीन
मोटर-गाड़ी, बंदूक
ग्वाला-बरूद कैका
चुलाणा नि पकणा देखी अज्यों तक
अर गू भी अन्न को ही देखी
लोहा-लकड कैन भी नि हगी
ज्यान जीवोंण वालू
निकजु किले
समझ से परे।
@बलबीर राणा "अडिग'


Tuesday 30 January 2018

सचि माया



धरती अर अगास
द्वी मायादार
टक लगे दयखणा रेन्द
एक हेका तें दिन-रात
मायालु ह्वे
कबि भिटोळी नि ह्वे द्वियों की
अर न होणे आशा
पर !
समग्र पिरेम छां यू मा
वा नीलू असमान
कबि रण-रणा घामल
कबि रिमझिम बर्खल
धरतिक कोळी भरद
अर हरि धरती नाना परकार का
फल-फूलोंsक सुगंध भेजिद
धरती अर अगास
क्वसों दूर ह्वे किन बी
समर्पित छां युगों बटिन एक दुसर पर
अर समझान्दा रेन्द दुन्यां तें पिरेम
कि !! पिरेम मा विश्वास, समर्पण छ त
दूरी क्वी अड़चन नि होंद
सच्ची माया स्वार्थ नि त्याग मंगद।

@ बलबीर राणा "अडिग"

Wednesday 24 January 2018

गजल "अपणा हिस्सो मौल्यार"



अगास मा सर्गक ससराट दयखणु रो
अपणा हिस्सोक मौल्यार ख्वजणू रो।

बामण ब्वनो रो हर साल, किस्मत बर्खली ये दों
मि रोज फजल पाताडों तें, ध्यान लगे पूजणू रो।

ब्याली अयाँ छां बल साब बरखा ल्येकी
परधानाsक गिचल छप-छपी चिताणु रो।

दयो गिड़को, डुकर्ताल ह्वे, म्वटा थ्वपा बी ऐन
वा बदल छिट, मथि सुखिन, मि भुयाँ टपराणु रो।

लिगी छां चकडेत, मथि-मथि उर्ये ते बरखा
मि तों का झपटयां थैलोंsक धूळ दयखणु रो ।

टाटा करि चल्गे छै बरखा, कारों काफिला दगड़
मि गुस्साsल, ढांगा बल्दों पुच्छयडू मरक़ाणु रो।

लोगोंक न्यौन्याल इंग्लिस स्कूल मा गेन टाई पैरी
मेरा पैंछिला पूठा चबाणा रे, मि मुख पल्याणु रो।

टपराणी रे कज्याणी वोंsका टेट सुलार दयेखि
मि तेsकी फटि चदरि सिलक्वारी मारी, बुथ्याणु रो।

गांव में रहो, पहाड़ बचाओ हम तुम्हे विकास देंगे
वा दयरादून उड़ी, मि शीला उबरों धुँयेरू लगाणु रो।

ठगणु रो, छकणु रो सदानी, विकास सुण-सूणी
आखिर अगास ही, अपणु हिस्सो मौल्यार ख्वजणु रो।
अपणु हिस्सो मौल्यार ख्वजणु रो।।

@ बलबीर राणा "अडिग"