Search This Blog

Friday 16 June 2017

भै का सों मैं पलायन नि कर्लु



भै का सों मैं पलायन नि कर्लु
मितें मेरा घोर मा सुरक्षित रोजगार द्या
नोकरी द्या चाकरी द्या
मेरा नोनियालों तें बड्या स्कूल द्या
गुणवत्ता वाळी शिक्षा अर
गुणवान मास्टरों की नियुक्ति द्या
दाल भात मि खले ल्येलू
समुचित कम्प्यूटर अर ई शिक्षा की व्यवस्था द्या।

भै का सों......
मेरा गों मा क्लास नाईन ऑल वेदर रोड द्या
नकली ठयकदारों अर
कमीशनख़्वर इंजीनियरों से छुटकरु द्या
हमेर ग्राम सभा मा पी एच सी द्या
बड्या डॉ अर स्टाफ द्या
स्वीली की जिंदगी द्या
घस्येरियों की सुरक्षा द्या
जोनल अर जिला हॉस्पिटल मा पूरी सुविधाएं द्या
स्पेलिस्ट डॉक्टरों की नियुक्ति द्या
स्पेशल चैकअप डॉ का घोर पर लगाम द्या
दवे भैर बटिन खरीदण से मुक्ति द्या।

भै का सों.........
गों मा स्वरोजगार परक लघु उद्योग धंधा लगा
हड़गा तोड़ी काम कर्लु मेरा हाथों मा काम द्या
खेती किसानी मा मदद द्या
गुणी बांदर सुंगरों से निजात द्या
मेरी जमीन की चकबंदी करे
मेरु अपणु  स्वाभिमान द्या

भै का सों.. ........
मैंखुणि सुशासन द्या
मूल भूत सुविधा से मेरु पहाड़ परिपूर्ण करा
सरकारी दप्तर, कोट कचेरी मा लेट लतीफी से निजात द्या
भरस्टाचारी कर्मचारी, अधिकारियों से मुक्ति द्या
सरकारी काम मा पारदर्शिता द्या
मनमाणी भाडू अर ट्रांसपोर्टरों पर लगाम द्या
दर्व्ला अधकचरा डरेबरों अर
खचाडा गाड़ियों से सुरक्षा द्या
खस्ताहाल सड़कियों से निर्भीकता द्या
प्राकृतिक आपदा फर ठोस योजना द्या

भै का सों भैजी मुख्यमनतरी जी
मि अपणा जीवन क्या
दस पीढ़ी तक कु अनुबंध कनु
मेरी संतति अपणी माटी दगड़ चिपकीं रैली
पलायन कतै नि कर्ली
ज्यादा क्या ब्वन आप खुद समझदार छां

आखिर बात पलायन रव्कणु छवटू सुझाव
मथि जत्गा मांगी कुछ नि चेणु
एक बार जनादेश निकाळी
कर सकदा त कर द्या
सब्बि मंत्री संतरी, अधिकारी
कर्नल,  जनरल, इंजीनियर
डॉक्टर, मास्टर सब्यूँ तें गों मा बसे द्या
अर यूँ का नोन्याल पहाड़ मा ही पढला समझे द्या
फिर द्याखा
कण नि ह्वलु विकास
कने नि रुकलु पलायन।

@ बलबीर राणा '"अडिग"
ग्राम पो मटई, चमोली
#पलायन_सुझाव

Friday 9 June 2017

पर्यावरण रक्षा के साथ आजीविका



मित्रो मैं आज आपका परिचय पर्यावरण संरक्षण के विषय में अपने गांव मटई व क्षेत्र बैसकुण्ड चमोली  के बारे में कराऊंगा। हमारा गांव और क्षेत्र मध्य हिमालय में 1200 से 3500 मीटर ऊंचाई में समशीतोष्ण वनों की श्रेणी में आता है और अन्य मध्य हिमालयी क्षेत्रों की तरह यहां पर जलवायु अनुकूल बांज- बुरांस के मिश्रित जंगल है। बांज (ओक) की यहां पर तीन प्रजातियां है (बांज, तिलोंज :तेलिंग: और खरसू ::खैरु::) इन प्रजातियों की श्रेणी पहले बांज फिर खैरु फिर तेलिंग खैरु मिक्स जंगल हैं। बात करते हैं पर्यावरण रक्षा और आजीविका की जिसको हमारा क्षेत्र और गांव पुश्तेनी से करते आये हैं गांव की खेती के साथ लगे हमारे बांज के जंगल जो हमारे पुरखों द्वारा रोपित और संरक्षित हैं आज भी अपने पूर्ण स्वरूप में झपन्याले (घनघोर) हैं यह पुश्तेनी धरोहर जहां हमारी आजीविका से जुड़ा है वहीं हमारी आध्यत्मिक श्रद्धा और भावनात्मक लगाव इन पेड़ों से है,  क्या मजाल नियम विरुद्ध एक भी वासिन्दा एक सोँली (टहनी) काट दे, इसी दृढ़ संकल्प से हम लोग बिना चौकीदारी के भी अपने इन बांज के पेड़ों को बचाते आये हैं।
     पहाड़ के इस हरे सोने का लाभ हमे निरंतर मिलता रहता है, हमारी ग्राम पंचायत के नियम के अनुसार इस जंगल को तीन से चार खंडो में बांटा गया है एक या दो साल में एक खण्ड की छंटाई होती है उसमें भी कितने फीट की टहनी कटेगी और कितने सुगयटे (बांज के हरे पत्तों से निर्मित चारे के गट्ठा) व कितने भारे (कच्ची लकड़ी के गठ्ठे ) एक परिवार द्वारा लाया जाएगा इसे पंचायत सुनिश्चित करती है विरुद्ध कार्य करने वाले व्यक्ति को दंडित किया जाता है इससे साल में दो से तीन महीने सम्पूर्ण गांव के मवेशियों के लिए पूर्ण चारा और वर्ष भर के लिए ईंधन (लकड़ी) मिल जाती है साथ ही हर वर्ष पतझड़ में बांज की सुखी पत्तियों (सुतर) के लिए भी यहीं नियम होता है व पर्याप्त मात्रा में मवेशियों के नीचे बिछाने के लिए सुतर मिल जाता है जिससे उत्तम कम्पोस्ट खाद बनती है।
    पर्यावरण,खेती- बाड़ी, समाज व संस्कृति से गहरा ताल्लुक रखने वाला बांज आजीविका का उत्तम साधन तो है ही वहीं पहाड़ी जल स्रोत को बचाने व भूस्खलन रोकने में सक्षम है। इन बांज के जड़ के पानी का महत्व वहीं जान सकता जिसने पिया हो। इन बांज के जंगलों को बचाने व जागरण लिए हमारे उत्तराखण्ड में कई लोक गीत, पवाड़े, झुमैलो गाये जाते रहे हैं ।
       मैं अपने इस लेख के माध्यम से नयीं पीड़ी को संदेश देना चाहूंगा कि आगे पहाड़ और गंगा को बचाना है तो बांज का बचना अनिवार्य है चाहे इसके लिए कुछ भी जतन करो।
कुछ गीतों की झलकियां:-
*बांज न काट लक्षीमा बांज न काट*  सरंक्षण गीत झुमैला प्रसिद्ध रहा है वहीं इसकी घनी छाया में अंकुरित होता प्रेम अपने में अनोखा है।
"बांजे जड़यों को ठंडो पाणी रुमालयों की छाया
किले पड़ीं होली छोरी घना घोर माया" ।
   इसी अथाह पर्यावरण प्रेम और अपने स्व सुख के लिए मेरे ससुर जी  #श्री_इंद्र_सिंह_बिष्ट ने अपनी पैत्रिक खेती थनाकटे  बैरासकुण्ड, चमोली  में एक पूरा बांज का जंगल उगा दिया वो भी पिछले 15 सालों में अपनी सरकारी नोकरी से सेवानिवृति के बाद स्थानीय युवाओं के लिए श्री बिष्ट जी एक प्रेणा श्रोत हैं जिनकी आजीविका का आधा हिस्सा अपने द्वारा निर्मित जंगल से उपलभ्ध हो जाता है।
     दोस्तो कहते हैं कोई भावनात्मक लगाव भी एक अंतराल तक होता है बढ़ते वैश्विक परिदृश्य के चलते आज वर्तमान पीढ़ी के लिए ये जंगल ज्यादा लगाव वाले नहीं हैं क्योंकि उनकी आजीविका वास्ता इन से नही है लेकिन पहाड़ और गंगा के अस्तित्व को बचाने के लिए आपको बांज का संरक्षण करना ही होगा।

बलबीर राणा 'अडिग'
ग्राम मटई ग्वाड़

फोटो सभार भुला #राजेन्द्र_सिंह_राणा । सामाजिक कार्यकर्ता ग्राम माटई ग्वाड़