जब आँखि सुदि-सुदि
टबराण लग जांद
गोळी गलघटि अर
कोंकालि ह्वे जांद
अथा मंखियोंक बीच
एकुलांस चितेन्द
रौंतेला डाना-कांठा
फुलोंक बगवान मा भी
मन नि रिझेंन्द
रंगीला पिंग्ला
पोथुलोंक बीच
ज्यू घुघुती बणि रैंद
अर
नजर एकsss टक
कखि दूर
कुछ खुज्यान्द
ये खुणि लोग
ख़ुदक लक्षण बोना
खुद हो या माया
जु भी च
बिमारी भलि नि
फर
ज्यूणु सारू भल च।
@ बलबीर राणा 'अडिग'