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Tuesday 25 August 2020

बांदरों हैंसी

ऐ ले, ऐ गो मालती। चल रे, आज अबेर ह्वेगी घाम द्वफरा ऐगी जति सनक्वाळि जौला वति औला बी त। सावित्रिन बाटा बटिन धै लगै मालती तैं। मालती, औणि छौं गो, जरा ठैर ले। अर मालतिन सट्टा-बटि मा बिमार ससुर जी तैं रुवटि अर दवे पाणि धरि अर समझोण लगिन, जी यखमु धरि तुमारु सब समान, खड़़ु उठा घाम दुफरा ऐग्ये, टेम पर कैर लियाँ अन्वेण, अर दवे खाण ना बिर्सयां। बुढ्यान ढक्याण मुख बे हटे हौं ब्वारी ठिक चा बा ब्वोलि। ऐंरां भगवान त्वे जन ब्वारी नि देन्दू त न जाण ये बुड्या क्या हाल होंदा छाँ, बुड्याऽन मन ही मन बबड़ाट करि। सावित्रिन सोल्टी पीठ पर लगे दथुलि कुर्छला डाळि अर घौर बटि निकळी। जांद-जांद नौनि तै, ऐ चांदनी तौं भाना कुनि मज्ये टेम पर चलि जयां ले इस्कूल अर अपणा भुला तैं समाळि ल्ये जयां, अरे अब भिज्यां उटंगरी ह्वेगी वा बी। अर वा सरपट सावित्री का गेल्या ह्वेगी। द्वी गैल्या इनि सदानी एक हैको सुख दुःख कु सांगु बणि हैंसी ठिठोळी करि रोजमर्रे जीजीविषा कु गदना तर्दा।

मालती अर सावित्री पक्का दगडया, घौर पुंगड़ा बण बूट सब जागा एक दुसरो हाथ बांटि काम कर्दा, द्वियों मा उमरो बी फर्क नि छै एक आध साल अग्ने पिछने। ये वास्ता वा दीदी भुली कु आदर कम अर एक हैको नौ गाड़ि बुलोन्दा छाँ। आठ साल पैलि द्वी ऐकि मैना मा ब्योलि बणि ये गौं मा ऐ छै, अर इनि चांचड़ी बणि खुट्टा से खट्टा मिले गिरस्थी गीत खुसी खुसी गांदा रयां।  

मालती जवैं हुकम सिंह तफुन हरिद्वार मा होटल लौजे नौकरी कर्दू छै अर सावित्री गजे सिंह यनि, छः मैना बद्रीनाथ माळा कंठी बेचदू अर छै मेना घोरपुन पुंगड़ा पातळ, घर्या रवोजगार। दुन्यां हलण चलण अर घिसम घिसै दगड़ घर गिरस्थी लूण तेल से जादा द्वी मनख्यूं आमदानी नि छै। दुसर मा भगवान मिंजाण गरीबों दगड़ एक अन्यों सदानी से कर्दू अयूं, वा गरीब पर जरा अकल कमति देंदू म्येल्यो। भगवान का यीं अन्यों सिकार  हुकम अर गजे बी छाया। कम तेलो भिज्यां चिबड़ाट। कमोंन्दा धमोन्दा जत्गा छाँ हुळयोरपन मा सुदि उड़े देन्दा छाँ, मथि बटिन अजक्याले इन्टरनेशल बिमारी घुट्टी मरण, घौर ह्वो या भैर, कुछ बी ह्वो, ब्यखुन्दा तौन गोळा चींरीं अर मुंडि झमज्याट कैर बिगैर नि रै सकण।

पीणी दा कि फौज त चितान्दा नि पर ये कु गिरस्थी पर बड़ू असर पड़दू साब। एक दिन का द्वी पेग, र्मच्छवाड़ी पाणि किले न ह्वों नमकीन समकीन लगै एक दिन कु कम से कम सौ डेड सौ त कखि नि गयां। अर! कै दिन देशी लालमणि या फौजी मिलग्ये त भै साब एक आदिम तीन सौ से मुड़ि नि बैठदू। अब तुम ब्वाला साब कख बटिन होण मवसिन। अरे मास्तो एक दिन मा ते द्वी तीन सौ क्या चीज नि ऐ सकद, खाण पीण से लेकर पैरण ओड़ण। पर क्या कन, बल जख स्वोनु च वख नाक नि अर जख नाक च वख स्वोनु नि। सैद जै दिन अकल बटेंणी छै यु पीणी दा कि फौज कखि बोग लगि म्येल्यो। भलि अकल अंटि वळा घौर मु रै सोकार बणि जान्द। बूंद बूंदऽल बल घौड़ू भरिं जांद।

अस्सी परसेंट लोगों कु यु ही हाल च आज पाड़ मा बिगैर ते दारू क्वी को-कारिज नि होन्दू क्वे द्यबता नि तूसदू। अरे होर त होर बाज-बाज जागा देखण मा आई कि मरोड़ा मा बी दारू चैंद बल। त बोला कख रै मनखी अर कख मनख्यात। पर क्या ? रिवाज चलिं त चलिं, रिवाज त्वड़ण गौं हंत्या माणद। हुकमु अर गजे त यूं कामों मा नम्बर एक पर रैन्दा। कब्बी कब्बी त यनु समै ऐ जान्द कि आज एक, भ्वोल दुसरू अर परस्यूं तीसरा घौर क्वे न क्वे कारिज हुर्ये जान्द त पीणी दीदों की बार ही बार। पाल्ट्यूं का चक्कर मा कैकि ज्वानि कैकि मवासी धार लगि जान्द। अब यूं मास्तों तै क्व बतौं अकल। वु त कत्गा हुकम अर गजे का जन भग्यान होन्दा जु मालती अर सावित्री जन लकारवान गुणवान ब्वारी पौंन्दा, निथर बाज-बाजों मवासी ढूंगा मा छिन साब।   

मालती अर सावि़त्रीऽ जिन्दगी अपणा मा रेस ना बल्कि मैराथन जन गिरस्थी बाटा तैं सुबेर हुरमुर्र से राति दस बजि तक नपदा। जिन्दगी से न ज्यादा उम्मीद उत्साह ना ही निरासा। किलेकि माटा अदिम माटा मा खुश छाँ देश दुन्यां मा क्या होणु वे कु फर्क तौं जीवन मा ज्यादा नि पड़दू छै। सम्पूर्ण गिरस्थी छै पुंगड़ी पातळ, गाजी बाखरा सब। अपणा हटगा पिसी क्वोदु कापुलौ दगड़ चैड़ बेचैड़ बैठा दिनों मा मनरेगा मा ढैला पैंसा कमोन्दा, मनरेगा अर भैंस कु घ्यू दूध ही वूं कु आय कु साधन छै वीं परताप नालोडों इस्कूलो छुवटु म्वटु खर्चा अर अपणी मांग बिन्दी की जर्वत पूरी ह्वे जान्दी छै। कब्बी कबार त वा डंट मर्द बी फस्के-फुस्के अपण गोळा चिरोण तैं डन्ट्ये देन्दा। पाड़ै नारी पाड़ जन दिल। पतिवर्ता की सीमा से बी अग्ने कर्मो की पवि़त्रा। आखिर रामी बोराणी कु डी एन ए का जु छ साब।

कुल मिले कि बोलि जावो त सन्तोष कु जीवन चलणु छै द्वी दगड़यूं कु। हाँ जीवन मा नि छै त अजक्याला हाईटेक जमानु कु हलण चलण, साज सृंगार, क्रीम पोडर, सैंपु साबुण, हुर्का फुर्का पैरवार। लोगों देखि मन कन नि रमसान्दू छ, पर ! बिगैर सक्या अफुं थैं खये जांद। संतोष तैं पराभव मानी खुस रोण बी जीवन कु एक बड़ू परारभ्ध होन्द। बल खुसी से बड़ि क्वे खुराक नि होन्दी । यु परम सन्तोष कु प्रभो छै कि द्वी गैल्यूँ मुखड़ी अच्छा अच्छा ब्यूटी पालर वळों से बी जादा दमकदी। आहा ! परिकति बेटियूं परिकति जन नेचुरल रूप सज्जा। अब द्वी लौंचि ज्वानि उलार छोड़ि बाल बच्चादार जिमेदार गुस्याण बणिग्यां छै। गौं पंच्येति मा बी अपणा जड़ जंगल अर गौं कि भले का वास्ता सच्चा चिंतक अर कार्यकर्ता छाँ, गौं का हर सुख दुःख का साजीदार। होण बी किले नि या ही मनखी धर्म च, समाज मा रे समाजिकता जरूरी ना बल्कि जर्वत होन्दी। बणमैंसा जन अपणु पुटुग त जानवर बी भर्दा।  

समै कु चक्र कब कने घूमि जावो येकु जबाब आधुनिक विज्ञान बी देण मा असर्मथ छ अब ये साला सुरूवात मा चीन बटिन या कुरोना बिमारी क्या आई दुन्यां कु वैभौ तैं जन ग्रहण लगि।  संगसार तैं तातु दूध ह्वेगी न घुटयेणु च अर न थुक्येणु। नौकरी चाकरी, बात व्योपार सब ठप ह्वेगि ये कु असर छव्टा मजदूर वर्ग पर ज्यादा पड़िन, सरकारी नौकरी चाकरी वळा विचारों त मौळयारों पाणि जन तुप-तुप बगणु छ पर नि रोण ह्वेन पराबटि वळुं । उन त हुकमु अर गजे साल मा अद्दा साल सिजन पर भैर बटिन अदेलु बुस्येळु कमै कर्दा, लूण तेल का अलों अपणु बीडी तमाखु निकल्दा छाँ पर ये साल निरपट घर्या ह्वेग्यां छाँ।

करोनाकाला असर से मालती अर सावित्री घौर बी अछूतो नि रै। हुकमु अर गजे कर्मकार जनान्यूं का चल्दा पैली बटिन घौरा काम मा जर्रा असंगळया त छाँ पर अब ये लौकडोन मा पूरा लौकडौन ह्वेग्यां। पैली जर्रा नोकरी धौंस मा रैन्दा पर ये साल त घौर मु चम्पत र्निखालिस। हाँ वा द्वी सीं हौल गार्द ना जयाँ बाकि उनि जनान्यूं मा का चैंर्या।  लौकडौन का दिनों मा त प्येणु तैं मन मस्वे रयाँ पर जनि लौकडौन खुलिन तौं कि गोळि टपट्याट होण लगिन अर गौं का हौर लुंडों दगड़ वा बी बजार बटिन डैली टली होण लगिन। उन सरकार बी इत्गा उद्धार निकली कि वेन सबसे पैली दारू दुकानी ख्वोलि। कैकि मवसी जावो त जावो सरकारन त अपणी आमदानी देखण। यु अकल त प्येण वळुं तैं होण चैन्द, पर मिन ब्वली नि कि इना अकल का मामला मा पीणी दीदों अकल ढकणी पर रैन्द।  

अब रोज द्वी घौर मु कै ना कै बात पर हल्ला कज्ये होण लगि। जै खुणि घरेलु हिसां ब्वल्दा  वा माभारत मालती अर सावित्री घैर मु होण लगि। घौरा कूणा कुलाणा कुट्यारी धरिं ऊँज पैंछा पैंसा ते दारू भ्योट चढ़ण लगिन। दिल्ली बम्बे अर हौर सेरों बटिन वापस घौर अयां कत्गा लकारवान मर्द माणिकन अपणु खेति बाड़ी काम सुरू कर्याली छै पर ऐरां यू दुश्मनों तैं कु समझावो सुदि मर्द वळि तड़ी मा तड़तड़कार रैन्दा। अब सरकारो क्या दोष खाण कमोण त हमुल च। भर्यां पुटुग तैं क्या पता भूखे कणाट अर बांजा क्वोखऽल क्या चितै स्वेली पीड़ा, सरकार भौंरि बी अर बांजी बी।

आज मालती अर सावित्री द्वी सौंजड़या अपणी स्वल्टी दथुली भुंयाँ धैर पार चैंधारा बिसौंण्यां मा बैठि यीं बात पर छुँवी बात पर मिस्यां छाँ कि यीं मुसीबतौ हल क्या ह्वलू। वूं ज्वानी खून से घौर मु खाण लाणे क्वे अर्चन नि छै पर मर्द लोंगूं यनु घौर बैठण अर मथि बटिन डेलि टुन ह्वे कलौं धन्दा से परेशान छाँ। मालतिन ब्वली यार सावि ज्यू कनु छट छोड़ि ध्यूं ये गिरस्थी अर फाळ मारि ध्यूं अफार भ्यलपाखा भ्योळ, पर ऐंरा क्या कन वा द्वी पोथुला ह्वेगी अर दुसर मा दय्बता जनु सोरा जी निथर ये मनखि से मुक्ति भलि छ। अरे भुली भगवालन बी कनि उल्टी कलम से लिखी यु किसमत।

सावित्रिन बोली अरे दीदी तु ठिक त ब्वनी पर फाळ मारि हमारू दुश्मन, अरे हिकमत कन पड़ली ले। आखिर मनखी त छाँ कन-कन दंत्याळ सिंग्याळ हमुन बस मा करि वा क्या चीज छ, अरे मि त आज तक जग्वाल कनु छै कि सुधर जैलो, पर ब्याली राति त मिन द्वी झपाक धरिं दिनी। अर सावि खितखित हैंसण बैठिन, गुमसुम महौल जर्रा हंस्वाड़ ह्वेगी छै। सावित्री अग्ने बोली ऐंरां बिचारा तैं झांज मा न जाण कख लगि ह्वली आज सुबेर कमसाणु छै। अर हाँ आज त सुबेर मेरा साळी बटिन औण से पैली कल्यो रव्टि बणण लगी छै ले, मि बी चुप रयूं मिन द्वी रव्टी घूळि नोणि मा अर निकळ ग्यूं। मालतिन बोलि यार गौ म्यार बसे बात त नि यनु हाथ उठोंण आखिर जन बी ह्वो हमारू आदिम छ, यार मिन सूणि प्यार पिरेम से बल ढुंगू बी काबू ऐ जान्द सच्ची ? सावित्रिन बोलि चला यीं बाटा बी देखला।

तबारी पता नि द्वी बान्दर कख बटिन ऐन अर वूँका सामणि एक हैका तैं देखि दाँत कताड़ी ठट्टा लगाण बैठिन, सावित्रिन बांदरों तैं बोलि हैंसा ना रे बजरंगबल्यो जति हैंसणा वति आश्रीवाद ध्या दौं। मर्दो हम बी तीलु रौतेली अर रामी बोराणी का बंसज छाँ हार मानण हमारा खून मा नि छ हम बी दिखोला दुन्यां तैं हमारा ब्वै बाबन अनपढ़ नि रख्यां हम। दा रे मालती ! अब त यूं गुणि बांदर बी हैंसण लग्यां हमु पर, चल रे उठऽ देर ह्वेगी अज्यूं घास बी काटण, मेरी वा भैंसी एक अड़काट लगान्दी अगर मि टेम पर घौर नि पौंछी त। सावित्रिन एक सांस मा ब्वोली। अर द्वी दगड़योंन दथुलि अर सोल्टी उठे अर बोण चलग्ये घास तैं। चल्दा चल्दा बात विचार करि आखिर वा एक नतिजा पर पौंछिन।

    ब्यखुन दां द्वी मर्दों खाणु मालती घौर रखिन आज इतवार होण से बजार लौकडौन छै द्वीयूँ पियूँ बी नि छै, द्वी जनान्यूंऽन हुकमु अर गजे तैं अपणी योजना बतै अर ढंग से समझेन कि र्सरू काम हम कर्ला तुमुल केवल दगड़ पुर्योण। एक हप्ता बाद मुड़ि रोड़ मा प्रधान जी दुकानी बगल मा खालि द्वी कमरों मा एक भुजि दुकान अर एक चा मिठें दुकानों उदघाटन ह्वेन। हुकम की भुजि दुकान अर गजे चाय मिठें। गजे तैं हरिद्वार होटले नोकरी फैदा त हुकमु तैं फेरी मा चिफळी गिची लगाणों मौका दिये ग्यो। द्वी घौरे बसग्याले साग भुजि दगड़ गौं का होर घौरें भुजि बी हुकमु का दुकान मा बिकण लगिन अर कोरोना का डौर से बजारे मिठें बदली गजे की दुकानी मिठें लोग खूब पसन्द कन बैठग्यां। द्वी समझदार सौंजडयों प्यार पिरेम, मेसी अर अपणा मालिकों दगड़ बरोबर भगीदारी से इनु सकारात्मक परिणाम निकळी कि द्वी दुकानी दिन व दिन परगति कन लगि। अब हुकमु अर गजे तैं पैंसों चस्का लगण बैठगिन वूंन पीणु बी भौत कम कैर्याली द्वी झांजी लोफर अब प्रगतिशील बिजनिसमेन का बाटा मा हिटण बैठग्यां छै।

आज द्वी मैना बाद फिर मालती अर सावित्री द्वी गैल्या वीं चैंधारा बिसौंण्यां मा बोण बटिन घासे सोल्टी बिसै दुकानी नफा नुकसाने छुँवी पर मग्न छाँ तबारी वा द्वी बांदर न जाण कख बटिन ऐन अर वूँका भर्यां सोल्टयूँ मा बैठण लगिन जनि सोल्टयाँ उन्द फर्केन्दी वूंन बांदर हकेन। बांदर फट भाजी अर पार ढुँगा मा बैठि तौं तैं टुकुर टुकुर यनु देखण लगिन जन ब्वना ह्वला कि अब ना ह्वा सौंजड़यों उदास अब त हैंसा। मालतिन हथ जोड़ि बोलि जै हो हनुमान जी तुमारी हैंसी आश्रीवाद सुफल होणु लगिन अपणु यनु आश्रीवाद बणे रख्याँ परभो। अर द्वी गैल्या हथ जोड़ी खित खित हैंसण लगिन।    

 

@ बलबीर राणा ‘अडिग’