Search This Blog

Tuesday 29 July 2014

गढ़वाली गजल

सर्गक गगडाट बरखा हूणी
अगास और धरतीक बात हूणी।

धुरपल़ा छज्जों बटि मोतियोंक झालर
चौका मा बून्द-बान्दे बरात हूणी।

रिमझिमक प्यार हरी-भरी सारियों दगड
साटी-झंगोराक आपस मा लडे हूणी।

बादलों बिजली दगड हैंसण बच्याणो
मंखियोंक पराण तों दयेखी कब्लाट हूणी।

जुगुनो कु गेणा दगड़ी रिश्ता पुराणु
सोण की काली रात भी जगमग हूणी।

डोsर ना ब्वारी ते यकुली डंडयाली
गद्नियों मा मिंनिखों की हल्ला रोळी हूणी।

......बलबीर राणा "अडिग"
© सर्वाधिकार सुरक्षित
www.ranabalbir.blogspot.in
म्यार गढ़वाली ब्लॉग
उदंकार

3 comments: