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Sunday 26 December 2021

सरहद से अनहद' का विमोचन

'चैन की नींद वतन सोता है, जिन वीरों के पहरे में'

- बलबीर सिंह राणा अडिग की पुस्तक 'सरहद से अनहद' का विमोचन

-कवयित्री शांति बिंजोला की सरस्वती वंदना से हुई कार्यक्रम की शुरुआत

देहरादून: युद्ध और साहित्य के मोर्चे पर एक साथ डटे  बलबीर सिंह राणा 'अडिग' की पुस्तक 'सरहद से अनहद' का रविवार को धाद के बैनर तले मालदेवता स्थित स्मृति वन में विमोचन किया गया। इस मौके पर अडिग जी ने अपनी कविता 'चैन की नींद वतन सोता है, जिन वीरों के पहरे में' का पाठ भी किया। कार्यक्रम में गढ़वाल राइफल में कार्यरत राणा के साथी भी मौजूद थे। 

साहित्यकार डा. नंद किशोर हटवाल ने पुस्तक की समीक्षा करते हुए कहा कि राणा अडिग जी बहुत संवेदनशील कवि हैं, जो अनुशासित सैन्य जीवन के बावजूद समाज की विसंगतियों को भी दृढृता के साथ अपनी कविताओं में बयां कर रहे हैं। साहित्यिक पृष्ठभूमि के न होने के बावजूद अडिग ने जहां अपनी कविता 'आड़' के माध्यम से मां भारती की रक्षा के लिए समर्पण की बात कही है, वहीं छुट्टी में घर आने और बच्चे को देखकर जो भाव मन में उमड़ते हैं, उसको भी खूबसूरती से कविता का लिबास पहनाया है। साहित्यकार देवेश जोशी ने कहा कि बलबीर राणा अडिगकी कविताएं कहीं से भी इस बात का बोध नहीं कराती कि वह साहित्य से अछूते हैं। ऐसा लगता है कि साहित्य उनके दिल में रचा-बसा है। भाषाविद् रमाकांत बेंजवाल ने कहा कि राणा जी की कविताएं जीवन के बहुत करीब हैं। मुख्य अतिथि पद्मश्री जागर गायिका बसंती बिष्ट ने राणा जी को महिलाओं के जीवन पर भी कविताएं लिखने को प्रेरित किया।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए धाद के केंद्रीय अध्यक्ष लोकेश नवानी ने अडिग की कई कविताओं का जिक्र करते हुए उन्हें संवेदनशील कवि बताया। इस मौके पर साहित्यकार शूरवीर रावत, कैप्टन धर्मेंद्र राणा, कैप्टन केदार सिंह, कैप्टन रामप्रसाद पुरोहित, कलम मियां, महिपाल सिंह कठैत, कलम सिंह राणा, सरोजिनी देवी, अंजना कंडवाल, रक्षा बौड़ाई, मनोज भट्ट, दर्द गढ़वाली, पुष्पलता ममगाईं, बीना कंडारी, अडिग जी के पारिवारिक लोग, ग्रामवासी, व साहित्य से जुड़े कई गणमान्य लोग मौजूद थे। कार्यक्रम का संचालन शांति प्रकाश जिज्ञासू ने किया। 

Saturday 11 December 2021

कुण्डलिया छंद

 



भ्वोळ ऊणी खूब पांजा, भौरी कूल कुठार

लगावा ताळा कूँजी, समाळा भौं भंडार।

समाळा भौं भंडार, सुचित चरेत्रौऽक विचार

जाण बाद रैलु वा, तेरु सुबाटौ उपकार

कब सामळ निमणि जौं, कै टेम लगी जौं ज्वोळ

पता नि चलण्यां अडिग, क्या ब्याखुनी क्या भ्वोळ।


https://udankaar.blogspot.com/

@ बलबीर राणा 'अडिग' 

Monday 22 November 2021

मातृभाषा : बलबीर राणा अडिग



ब्वै कि क्वोखी उन्द ज्वा सूणी 

वा छै हमरि मातृभाषा। 

धर्ती मा ऐ ज्वा हमुल बींगी 

वा छै हमरि मातृभाषा। 


बुराँस काफल का रसों मा 

जै भाषा तैं हम चुसणा रयाँ

जु ब्वै कि दूधेऽ धार मा प्येनी

वा छै हमरि मातृभाषा। 


बाळापन किलकर्यों मा 

बच्याण रयाँ सनकाणा रयाँ

ख्वल्यांस मन कुबळाट कैरी 

अपणी छुँयूँ तैं बिंगाणा रयाँ

हो हो कैरी गूणी बांदर हकायी 

वा छै हमरि मातृभाषा। 


ब्वै कि क्वोखी उन्द ज्वा सूणी 


घुघती न्योळी का सुरों मा

गाड़ गदना छीड़ा छंछडों मा ़

धारा पंदरोंऽक छाळा पाणी मा

जै भाषा तैं हम घटकाणा रयाँ

सुरसुर्या बथौं कु जु सांस ल्येनी 

वा छै हमरि मातृभाषा। 

वा छै हमरि गढ़वळि भाषा। 


ब्वै कि क्वोखी उन्द ज्वा सूणी 


डांडी कांठयूँ ज्वा भटयाणा रयाँ

खुदेड़ गीत मा जै गाणा रयाँ

दै दादा की किस्सा कान्यूँ मा 

जै भाषा हुंगरा मा देणा रयाँ

भै बेणियों मा जु छिंज्याट कैरी

वा छै हमरि गढ़वळि भाषा। 


ब्वै कि क्वोखी उन्द ज्वा सूणी 


डोंर थाळी कु डमड़ाट  

बाजा भुंकरों कु भिभड़ाट 

भान जगरी का रासों मा 

जै भाषा की भौंण पुर्याणा रयाँ

ज्यूंदाळ मा दद्यबतोंन जु द्येनी

वा छै हमरि मातृभाषा। 

वा छै हमरि गढ़वळि भाषा। 


ब्वै कि क्वोखी उन्द ज्वा सूणी 


नरेन्द्र नेगी राही का कंठों मा

प्रीतम बंशती का जागरों मा

कन्यालाल की कबितों मा 

जै भाषा तैं हम गाणा रयाँ

भजन दा की पोथ्यूँ मा जु पढ़िन

व छै हमरि मातृभाषा।

वा छै हमरि गढ़वळि भाषा।


ब्वै कि क्वोखी उन्द ज्वा सूणी 


सीखा बाबू दुन्यें की भाषा

तर्की कैरा तुम यीं च आसा 

पर अपणी भाषा. ना तैं छवाड़ा 

यीं भाषा तुमरा जलड़ा जम्यां छै 

दुन्यां मा तुमरी पच्छयाण रैली 

तुमु मा ह्वेली अपणी भाषा।


ब्वै कि कोख उन्द ज्वा सूणी 

वा छै हमरि मातृभाषा। 

धर्ती मा ऐ ज्वा हमुल बींगी 

वा छै हमरि मातृभाषा। 


बुराँस काफल का रसों मा 

जै भाषा तैं हम चुसण रयाँ

जु ब्वै दूधेऽ धार मा प्येनी

वा छै हमरि मातृभाषा।

@ बलबीर सिंह 'राणा'

Saturday 6 November 2021

गजल


कन चिफळी गिचीs भरोसु कैर ग्यां,
यूँ रगड़याण* बाटों सफर कैर ग्यां ।

पैल्ये बटिन असन्द कम नि छै,
मथि बटि हैकू बबाल कैर ग्यां।

मान मर्ज्यादा खातिर फsड़* लगेंन,
वा छौं कैरी सेरुळो कौथिग कैर ग्यां।

अकलवान मनखि फंचू मुंड राखी,
गाबिण घोड़ी सवारी कैर ग्यां। 

जौं बल्दों सिंगा तेल पैरे पैना कर्यां छै,
वा गुसैं लदोड़ू घचोरी बैरी मने कैर ग्यां।

जौंका बाना सर्री दुन्यां दगड़ भिड़िन 
मर्द वा मैं दगड़ फोंदरी कैर ग्यां।
 
सोरा जिठाणा यी जरा पर्दा पर छाया,
वा यी मुंन्याणु* चूंडी बेपर्दा कैर ग्यां।

सौ सल्ला कन जयाँ छै भल आदिम,
वा उल्टू खिर्तो होरी ताजा कैर ग्यां।

अडिग सस्ता बाना तखुंद भाजिन ज्वा
वा यखौ एकुलांसो सौदा-पत्ता कैर ग्यां।  

असौंग शब्दार्थ :- 
रगड़याण – ढुङ्गा डोळी वळू
फsड़ – बड़ू रसोड़ू 
मुंन्याणु – मुंड कु पल्ला

@ बलबीर राणा ‘अडिग’

Friday 3 September 2021

लघु कानी : जब बिगड़ी काम तब ऐन बैसाखु बाबा कु नाम


            कै समयै बात च एक गौं मा बैसाखू नौ कु एक किसाण रैंदू छै। अपणी गाजी पाती नाज पाणि से पूरो जिम्दार मनखी। अपणा घौर मु अयाँ कै बि मेमानों ज्यू ख्वोली आदर परमत कर्दू छै। जन कि पैल्या जमाना मा मनख्यूँ नामकरण जादा कर मैना, बार या कै विशेष दिन पैदा होण पर कर्ये जान्दू छै। तनि बैसाखू नौ बि छै। चैता मैनों जलम्यूं चैतू, असाड़ो असाड़ू, सौणा मैनों सौण्यां, भादो कु भादू, शिवरात्री दिनों शिबसिंग आदि आदि। इनि बैसाखा मैनों बैसाख सिंग छै।

            एक दिन बैसाख सिंगा द्याळ मु ब्यखुन्दा एक ज्वोगि ऐन। ज्वोगि जगमटा तैं सुलकरि मिली जान्द कि फलाण गौं मा फलाण मवसी भलि आदर भगति वळी छै, अर वा वींका घौर मु आसन जमै देन्दू छै। बैसाखुन जोगी कु चा-पाणी, हुक्का-तमाखु से आदर परमत करि अर ब्वोली स्वामी जी आज मेरा घौर मु रुकि सेवा मौका द्यावन। जोगि तैं क्या चैणु छै जर्रा ना नुकर का बाद जमी ग्यों बैसाखू डंडयाळी मा।

वे दिन भोजन तातो गुळथ्या (कळयों), घ्यू-दूध, दै अर छां (छांस) छक सपोड़िन जोगिन। स्योंणें बगत ह्वेन त बैसाख सिंगन बोली स्वामी जी मेरु नौ बैसाख सिंग छ अर मि ग्यूँ (गेहूँ) लोणा मैना पैदा हुयूँ। रात मा क्वे बि अड़चन परेसानी होण पर मितैं धै लगै दियाँ। यखमु ल्वटया फर पाणी बि धर्यूं छ। अर बैसाखु भित्रखंड चलग्यों सेणा वास्ता।

स्वामी जी खै प्ये डकार ल्ये पसरग्यों दिसाण मा। त साब जोगिन भौत दिनों बाद इनि तळो-मळो, चखळ-पखळ वळू भोजन करी छै वे दिन। तातू गुळथ्या घ्यू दगड़ ठंडी छांस दै बी। अब अद्दा राति मा । सितगरमल जोगि पुटुग खबताण लगिन। अब क्या करुन ? नै जागा। भैर दिशा मेदानों बाटू बि पता नि। यकुला जाणे हिम्मत बि नि ऐन। मथि बटिन जुगापट अन्धयारु। अजक्याला जन चकमककार बिजली लेट नि छै तबारी। अर ना घौर-घौर मु लेटिन लुटने सुविधा। जोगी बैसाखु नौ बिसरी ग्यों अर वे तैं याद रै केवल ग्यूँ लोणा मैना।

अब जोगी धै लगाण लगिन। ग्यूँ लोणा मैना बाबा। ग्यूँ लोणा मैना बाबा। ग्यूँ लोणा मैना बाबा।

            साब। हर आदिम तैं अपणु नौ प्यारु होन्द अर वा नौ वेका अवचेतन मा मिस्यूँ रैन्द। क्वे कब्बी बि अर कखि बि पुकारुन त आदिम तुरन्त चौंकि जान्द कि क्वो छै मितै भटयाणु, चै वा कति गैरी निन्द मा किलै नि छिन। तख ग्यूँ लोणा मैना कैकु नौ त छै नि छै। त कख खुलण छै बैसाखू निन्द ?

            जोगि तैं निर्रा पिर्रा ह्वेगी। करुन त क्या करुन। पूरी तागत लगै रोकणु छै। पर आखिरकार जोगि इन्द्रिन जबाब द्यै याली। अर वा स्यूँ कपड़ा तखि छियरे ग्ये। इतगा मा भितर बटिन बैसाखु बि निन्द खुलिन अर वा चम्म भैर। ब्वला स्वामी जी ? क्या ह्वेन आपन धै लगाई क्या ? जोगिन निराश ह्वे ब्वोली। अरे बाबा ! बल ।  “जब बिगड़ी काम तब ऐन बैसाखु बाबो नाम”। तबारी जोगि गिच्चा बि बैसाखु ऐग्ये छै। तबारी बटिन या कावत हमारा यख चलण मा ऐन कि “जब बिगड़ी काम तब ऐन बैसाखु बाबो नाम”  याने । काम बिगड़णा बाद मदद कै कामें नि होन्दी। 

 

कानी : बलबीर राणा अडिग। 

Wednesday 11 August 2021

गजल

ज्यू मा गेड़ ह्वली बि त बताणु क्वो चा
जन मि चिताणु तन चिताणु क्वो चा ।
 
कुछ त कारण छिन या उठा पोड़ की
निथर यनु रात भर जगणु क्वो चा ।
 
जिंदग्या चांचड़ी मा अंग्वाळ बोटी त्वेन
नित मि जना बांगा तैं पुछणु क्वो चा ।
 
चलती कु नौं गाड़ी च साब दुन्यांदारी
फट्यां टेरों तैं वर्कशॉप ल्यीजाणु क्वो चा ।
 
भैर मन से धरम की बात सब्बी कना
पर ! आज धर्में बात मानणु क्वो चा ।
 
इन्टरनेट पे बुग्यळयों कमी नि अजक्याल
बाग पड़ी गुठ्यारों पर झपटणु क्वो चा ।
 
मना रिश्ता  छिन या ज्यू का मंदिर
त्वड़णा सब्बी फर जोंड़णु क्वो चा ।
 
तीरथ बार खूब घूमणा छिन सब्बी लोग
शीली उबरा खांसणी ब्वै तैं पुछणु क्वो चा।
 
परगति कन वळा त लग्यां च दिन रात
फर ! फ्री का बाना वा उंगणु क्वो चा ।
 
तेरु अभाग कि त्वेन नोनी नि होण द्ये 
औलंपिक मा तिरंगा लेराणु क्वो चा ।

भारत सदानी जोड़णें जुगती पे रयूँ अडिग 
या द्ववफाड़ कने साजिस रचणु क्वो चा ।
 
@  बलबीर सिंह राणा ‘अडिग’
https://udankaar.blogspot.com/

Sunday 8 August 2021

गीत : हथगुळयों का रयखड़ा

हथगुळयों का रयखड़ा, रयखड़ा नि छन

बैखाता छन या घौ का, यूँ तैं ना पढ़ा   

ज्यू बे उठणु धुआँ तैं धुँवा ना ब्वला

औडाळू छिन पीड़ा को, यूँ तैं ना पढ़ा।  

 

ज्वा मुळ-मुळकिन वा त, स्वेणा औंणा लग्याँ

खिलपत ह्वे हैंसी त, दिन बि स्वाणा लग्याँ

जब वीं की नजर न छुवेनी मितें

म्यारा आँख्यूँ का औंसू सुखणा लग्याँ।

 

अब ना औंसू, ना स्वेणा, ना क्वी चर्कबर्क

या ख्वखळा सीपियाँ छिन, यूँ तैं ना पढ़ा।

 

माछा छैं छाँ पर, जाळ डाळी नि मिन

गारा-मूरा धर्यां छै, पर चुटाई नि मिन

त्वेतैं वाड़ु भलु लगिन लठ्याळी इलै

खुट्टा चदरी बे भैर निकाळी नि मिन।

 

क्वारा पन्ना छन त क्या ह्वे चुट्ये द्या

या अल्येखी चिठ्ठयाँ छिन, यूँ तैं ना पढ़ा।

 

हथगुळी जिंदगी भर, दिखाणु रयूँ

निरासा मा आसा बधाणु रयूँ

जब बे देखी तेरी माया फूलों दगड़

मि छज्जों मा गमला सजाणु रयूँ।

 

चुभणा छाँ ज्वा चस्स त्वै, वा कांडा नि छिन

स्या म्येरी अंगुळयाँ छिन, यूँ तैं ना पढ़ा।

 

मन मत्याळु ह्वेनी त घबड़ाण लग्याँ

भूख इतिगा ह्वेनी कि घाम खाण लग्याँ

जिंदगी भर कांडों मा भटकणा रयाँ

बुढेन्दा नीतियूँ घौर आण लग्यां 

अब पहाड़ों तैं भलि कैरि याद कैरा

ज्वा गल्त गिनतियां छिन वूं तैं ना पढ़ा।

 

मेरे प्रेरक गीतकार विष्णु सक्सेना जी का गीत “हाथ की ये लकीरें, लकीरें नहीं”  का गढ़वळी अनुवाद

 

अनुवाद :  बलबीर सिंह राणा ‘अडिग’

Saturday 24 July 2021

पैलि गुरु




नि औन्दी छै वीं तैं
गिनती पाड़ा,
पर !
वींऽन जिंदग्या हिसाब किताब मा
कब्बी गल्ती नि करिन।
 
ज्यू जोड़ण, बिराणुपन घटोंण
दुन्यें रीति नीति कु भागफल
रिस्तों कु गुणांक
वीं कु बिल्कुल सयी रैन्दू छै।
 
वा जण्दी छै संगसारे
रेखागणित ज्यामिति
वीं कि त्रिकोणमिती मा कोण
सदानी समकोण रै।
 
मनख्यात कु परिमेय अपरिमेय
वीं तैं कंठस्त छै
गिरस्थी वाणिज्य की त वा
सल्ली वाणिज्यकार छै।
 
भले
अ ब, वीं तैं काळा आँखर
भैंस बरोबर किलै नि रै होला
पर ! वींऽन
ना कब्बी गलत पढ़िन, ना ल्येखिन।
 
वीं का
शब्दों मा ना अशुद्धी रैन्दी छै
ना व्याकरण मा गल्ती होन्दी छै।
 
वीं का
पिरेम गीत कबिता
होण खाणा छन्द
सदव्योहारा मुक्तक
आज जीवन बाटा घाटा मा
हाथ पकड़ी गोळा तरान्दा।
 
जिन्दग्या मोडों फर
सारु देन्दा
वीं कि सुणायीं किस्सा कान्यां
बाटू बतौन्दा,
एकांकी नाटक
भल कि हिटण सिखान्दा
पुरखों कि जीवनी, यात्रा वृतान्त।
 
खूब बिंगाई छै वींऽन
कंडाळिन चतौड़ी अर मुठ्ग्युन घमकै
अपणी रीति-रिवाज, द्यो-धरम,
संस्कृति-संस्कार, भलै बुरै। 
 
समाजशास्त्र धर्मशास्त्र
सब्बी जीवन शास्त्रों की जणगुर छै
म्येरि पैलि गुरु, मास्टरणी जी
म्येरि ब्वै लीला देवी राणा।
 
रचना : बलबीर सिंह राणा अडिग

Saturday 10 July 2021

कुड़बाक्या : ननि लोककानी

 



            कीडा़ पड़यां त्यारा गिच्चा उन्द बि। त्वेन बि कब्बी सुबाग नि बोली, तु बि भखन्ड कु जनु कुड़बाक्या ह्वेगी। अरे ढूंगे दिवार पर बि पराणा होन्दू। तुम सदानी कै बि दिवार, मोरि संगार या निरजीव चीज तैं चटेली गाळी देणा रावा, कुड़बाग ब्वने रावा त एक दिन वा चीज जरुर खिन्नत ह्वे जाली।

            त भुलाराम जर्रा स्वोचि समझी ब्वलण चैन्द। तै ज्यू मा जर्रा ठो धैर, धीर धिर्गम ह्वो। चट फट ना खैत भैर। अब जमानु उनि नि रेन कि जन्यो (क्वे) सूणी चुप रै जाउन। द्येल्यू क्वी गाल पर चपकताळ खेंचि। मंगलु दा अपणा एक भुला तैं समझाणु छै जु बात बात फर कैतें बि अबिन सबिन (उल्टा सुल्टा) ब्वलणू रैन्दू छै।

            ल्ये सूण तेरा जन एक कुड़बाक्ये कानी सुणान्दू। कै जमाना मा भखन्ड गौं मा बल एक बामण छै सुविधानन्द, हाँ जात से वा बामण छै फर करम से खांदू मंगदू भाट, कुड़बाक्या। तैकि जति बि सेवा पाणी कारा फर आखिर तैन उल्टू जुबान बकणें छै। सुल्टो त तैका गिचन कब्बी ब्वोलि नि। कुड़बाक्या बि इनु कि धोनू तुरन्तो, सेंड परसेंट, दुर्बासा। जादाकर तैकि जुबान सच्ची ह्वे जान्दी छै। तनि निरासिल छुवीं ह्वे जान्दी छै जनु तैकु बक्यूं रैन्दू। इलै सर्रा इलाका का लोग तैका गिचा से भिज्यां डर्दा छै कि ना जाण वा कखमु कैतें क्या अणकसी ब्वोली द्यों ।  

            त भुलाराम एक बार नजीक कै गौं मा बल कै ठाकुर मवासिन बड़ी धैन चैन हौंस हुलास से नै मकान बणेन। बूटा नक्कासीदार तिबारी, जंगला। धुर्पळा मा घूनी लंबी चौड़ी छपछपी पठाळ। चौड़ा ऊँचा मोर संगार। मकानो काम पूरा होणा बाद तै मवसिन धूमधाम से गरबेस (गृहप्रवेश) कु कारिज करिन। तीन दिन कु माविद्या पाठ। खोळी गणेश मोरि नारेणें विधी विधान से पूजा प्रतिष्ठा। कारिज का आखिर दिन सर्रा गौं इलाका कु ब्रह्मभोज रखिन । त ब्रह्मभोजा दिन वा कुड़बाक्या बि तख पौंछिग्ये। नारदमुनि जनु जखौ तख दिख्यूँ पौंछयूँ मिल्दू। तैखुणि घंडोळि शंख, बाजा भुंकरा बजण चैन्दा छै, बिगैर न्यूतयूँ मेमान बणि जान्दू छै।

            वे दिन जब भोज कु बगत ह्वेन त लोगुन बोलि यार इनि कैरो कि सबसे पैली तै सुविधानन्द तैं खवै द्यावा भाय। बाद मा पता नि तैकु गिचा क्या बक्की द्यूलु। गौं ख्वाळा अर मकान मालिकन सुविधानन्द तैं पठार्दीयों से अग्ने डंडियाळी मा आसन लगै ब्रह्मभोज करेन, थकुला उन्द हाथ धुवेन। भोजन दक्षिणा द्ये अर विदा करिन।  चलो लोगुन लम्बी सांस लिनी कि आज बचग्यां। फर आदिमें फितरत कैन जाणि वा बि सनक्या कुड़बाक्या मनखी कि। वा मथि बटिन भैर खौळ मा ऐन अर खौळे दानणी मा बैठग्यूं, अर कटगिन दांत घचौरदु बड़ा मेसि फर नै मकानें सज्जे धज्जे कु जैजा ल्येण लगिन। सब्बी चीजें पुल्बे कन लगिन। वा बि बड़या, आहाऽ या बि खूब। आऽ हाऽ वा कति सुन्दर आदि आदि।  अर हाँ रे जजमानो खोळी त तुमुन भलि चौड़ी बणेन लो ठिक जौंळा मुर्दा औण लेख।

            हे ब्वेईई !!!! त बोला। सब्बी सन्नऽ रैग्यां। अब यां से हौर कुड़बाग क्या ह्वे सकदू छै। कन मर्यूं रे ये भाटक, कन अणकसी निराशपंथ वळी बात बक्की ग्यूं। फेर लोगुन लठ्येन वा तख बटिन। कै आदिमा शुभ कारिज मा इनु कुड़बाग ब्वलला त मार क्या जुत्ता खाण वळि बात छ। हाँ तै दिन जु बि ह्वे ह्वलु पर हैका साल तै खौळि बटिन सच्ची जौंळा मुर्दा भैर ल्येणु अपसगुन ह्वेन बल। त भुलाराम कैतें सुबचन नि ब्वोली सकदां त कुबचन बि नि ब्वन चैन्द, ठिक च।

 

कानी बीसवीं शताब्दी होर पोर सच्ची घटना पर आधरित च केवल गौं अर मनखी नौ बदळयूं च।

 

@ बलबीर सिंह राणा अडिग


 

 

Thursday 8 July 2021

सुद्दी ब्वने बात नि या भ्वोळे त्यारी च

 


 

सुद्दी ब्वने बात नि या भ्वोळे त्यारी

या भूमि हमारी बाप बपोदी थोकदारी च।

 

बिगैर भू कानून अर चकबन्दिल भुलाराम

तुमरी जमीननेतों चकड़ेतों तैं दूधा धारी च। 

 

इनि सियां रै ग्यां घुंत्या चुसण हमुल

भ्वोळ यूं सैंचारों मा हैकें पदानचारी

 

बेचण वळूं क्या तोंन असमान बि ब्येचिन

रोका भैसाब, यु धर्ती माँ तुमरी हमारी च।

 

स्वचणा क्या रेजड़  जंगळ का  मालिको

भ्वोल तुम यूं सड़क्यूं का कुल्ली कबाड़ी च।

 

फसोरी पड़यां रावा तुम तखुन्द सौ गज मा

भ्वोळ यखक मालिक मुनस्यां अर दाड़ी च।  

 

धै नि लगेल्या कुर्सिन सिंयी रौण अडिग

तौं बिजाळणू अब फिलिंग ना रांके बारी

 

 
@ बलबीर सिंह राणा अडिग

मटई बैरासकुण्ड चमोली

Monday 5 July 2021

मुक्तक

अब लाज मा गळोड़यां लाल नि होन्दी,  

माया झिकुड़यों बिंवाळ नि होन्दी, 

जख ज्यू हाल बिंगादी छै एक कराळी नजर, 

मुखड़याँ अब उनि खुलि किताब नि होन्दी।


उटंगरी दगड़या धपाक मारि बतै जान्दा छाँ,

अबै उबै साला मुला मा समझे जान्दा छाँ, 

अब फेसबुक वर्टसैप मा वा हियाराम कख रै, 

जनु एक चिठ्ठी मा ज्यू उगाड़ी देन्दा छां । 


स्वचणु छौं दगड़या हम कख बटि कख ऐग्याँ,

यतिगा व्यवारिक ह्वेग्यां कि भावना खै ग्याँ, 

दूर परदेश तलक खूब बात विचार छै होणु, 

अपणा भितरे भितर इकुलकार ह्वे कि रैग्याँ। 


अब क्वी भै भै मा समस्यो समाधान नि पूछदू,

नोनु बुबा मा घंघतौळो निदान नि जाणदू 

चैली नि पूछदी ब्वै मु गिरस्थिक लौ लकार 

ना क्वी बूढ़ बुढ़या सौ सल्ला मणदू। 


आँछरी परियूँ कि बात अब कैतें नि स्वान्दी

हुन्ड फुन्ड रै कैतें मुळकै याद नि बिथान्दी 

अब क्वी सुदामा तैं सौंजड़या नि चितान्दू

ना क्वे कृष्ण बणि दगड़या धरम निभान्दू । 


ठुला होणा पैथर ब्यवारिक बणि रैग्याँ

मशीन ह्वेग्ये हम, मनखि कख रैग्याँ

दौड़म दौड़ मा इतिगा पूर पौंछिग्यां अडिग कि 

आफूं अग्ने अर अपणेस पिछवाड़ी छोडि़ ग्याँ।


@ बलबीर राणा  'अडिग'


Sunday 30 May 2021

उळौ बाग



     सब्बी तालों फर एक पूरा फिरकी नचणा बाद पंडोन भ्येटि घाटि करि अर आसण विरजमान ह्वेन । अब कुछेक घड़ी थौ खाणों बगत। बीड़ी तमाखु अर पाणि चैन्द डंकरियों तैं। दिन भर निना  (अनुष्ठान) दगड़ नाचण नाचण गोळ सुखी जान्द। तब्बी पदान बौडान एक लम्बी ताण मारि धै लगे। ऐऽ चुप रावा रे छवारों। हपार पिछने द्याखा लौड़यूँ क्या कछ़डी लगिं यीं रात बि। जिट घड़ी जर्रा ते गिच चुप त राखा ले, जखमु द्याखा एक कच्चर कच्चर सिंटुलों जनु किबचाट। चुप रा दौं जिट।अब स्यूँबाग औण वळु च। ब्वारियोंऽऽ तौं छव्टा नोन्यालौं मुख ढक्यान निथर कैका नोन्याळ फर झपाकु लगि जालु। ऐ कमलु चल ब्वटाराम ताळ छटको निथर बाद मा जादा देर ह्वे जान्द। यूँ डंकर्यून बि एक निद स्येणु च। ठिक च काका, अर कमलु दासन ताळ छटकेन।

     धिनऽक्द्दा, धिनऽक्द्दा, धिनऽक्द्दा धिन धिन। झिम्ताण.... झिम्ताण.... झिम्ताण......., तिण तिण झिम, तिण तिण झिम। अर द्वी ज्वान न गळफ्वड़ा फूकी भुंकरा बजेन। पूँऽऽ... भ्वाँऽ। पूँऽऽ..... भ्वाँऽ, भ्वाँऽऽ.... भ्वाँऽऽ..। पूँऽऽ भ्वाँऽ, पूँऽऽ...।

     गौं मा पंडवार्त छै चलणी सैरु द्यो खौळ कोथिगेरुन भर्यूं छै। अर पंडवार्ता बिच बिच मा जंता क मनोरंजन अर डंकर्यां आरामा वास्ता कुछ नट बि दिखै जान्दा छाँ। आज इनु स्यूँबागा नटे बारी छै। उन त सदानी पोरुं साल बटे स्यूँबागो नट कबरेला घारी दार कपड़ा बांधि बागे औनार त्यार कर्दू छै। पर यीं साला नट तैं क्या सूझिन कि तेन अपणा मर्जी से खंतड़ों भैर बटिन ऊळ बांधिन। अर घासौ बाग बणग्ये। जनि बाजा बजिन ताळ लगिन त ऐ ग्यों साब स्यूँबाग सड़मऽऽ..., मुड़ि सगवाड़ी बटिन चार हथ खुट्टोन द्यो खौळ मा। जन्ता नमाण झस्स झसकेग्ये। ऐऽपड़ि ब्वै का। या क्या पिचास ऐन भाय द्यौ खौळ मा आज। हे माच्यो ! अब समणी मसाण जनु बाग बि होण लगिन, ना जाण किलै बिगच्यां युं अजक्याला चकड़ैत छवारा बि। यूं तैं कुछ पता यी नि कि क्वो नट कन बणाण नचााण चैन्द, सुद्दी छिन मास्ता हाथ ध्वोण पर अयां। अपणी मर्जी कु काम। चलो जु बि ह्वेन अब ये तैं यी नाचण द्या।

     द्यौ खौळ मा एक सर्रु घासक खुम्मो नचणु बैठग्यूंँ छै। धिनऽक्द्दा, धिनऽक्द्दा, धिन धिन। झिम्ताण झिम्ताण तिण तिण झिम। तिण झिम, तिण झिम। तिण तिण झिम। अर स्यूँबाग अपणा पूरा रुबाब मा मस्त ह्वे हथ खुट्टा टेकि नाचण लगिन। अपणी कला दिखोंण लगिन। वा झिम्ताण झिम्ताण नाचद नचद जनान्यूँ तर्फां लम्बो हाथ कर्दू, डुकुरताळ मर्दू। जनान्यिाँ क्ल्लि.....।  ऐ ब्वैईईऽऽ। ऐ यख ना, इना ना। स्या डोरिन मुख ढकै चिल्लोट मचोण लगिन। छवटा बाळों मुख तौं कि ब्वैन टालिखन ढक्ये दिनी। जबारि वा ज्वान छवारों फर घुस्ये घुस्ये डस्कान्दू त छवारा टांग खिची तै दगड़ छिंज्याट शरारत मसखरी कर्दा। कब्बी दासों तर्फां फ्वाँ फ्वाँ, सड़म सड़म। बाजा भुंकरा अपणा पूरा रस ताळ फर।

     तबारि किल्लऽऽ किल्कताळ। ऐ ब्वैईई ! ऐऽ.. ऐऽ.. ऐऽऽ वा मोरिग्यूँ रे। मोरिग्यूँ, मोरिग्यूँ। लोगुं को हल्लारोळी चिल्लौट मचि ग्ये। भऽ. भऽ भऽ आगो भभकारु। स्यूँबाग आगा रांका मा बदल्येग्ये। कै उदभरी छवारन धूनि बटिन एक छवटु सि मुच्याळु लगै ध्ये म्येल्यौ तैका पिछने। ऊळन स्यां आग पकड़ी अर फ्वाँ आगो रांकु उठग्ये।जंता मा भैकाम कि जितारु नेगी लौड़ आज ज्यून्दो जगदू। कौथिगेरों मा हफरा तफरि। तबारि कै ज्वानन हिम्मत करि झप्प कमव्टन झपाक मारि तै फर अर आग बुझझेन।सब्यूंन चैने सांस ल्येनी। स्यूँबाग त रैलु अपणा घौर पर विराणु नोनु बचग्ये, आज बड़ी उल्क होण सि रैग्ये। विचारु पिरमु (प्रेम सिंग) जितारु नेगी ज्वान नोनु स्यूँबागो नट बचग्ये।

     जिट घड़ी घपघ्याट घपरौळा बाद सब सन्न सुनताळ। बाजा भुकरा बंद। तब्बी धूनि पिछने अन्ध्यारा मा हैकि आग लगिग्ये। भिड़ भिड़ भिड़, भिभड़ाट। छप्प छप्प छप्प जुत्तें छपाक। जुतम जुत्ते, मेड़ बुबे गाळि।

ऐपड़ि मेड्यो मैं.......!! हराम कु बच्चा। त्वेन मेरा घौर निरास कर्यालि छै आज। कमिने औलाद। हैं। मि बतान्दू त्वै खुणि कनि होन्दी मसखरि मजाक। चप्पाक थप्पड़। लगालू पिछने  मुच्छयाळु ? पिरेमु बाबा जितारु नेगी (जितार सिंग नेगी) एक छवारा तंै छै निगुरु पटकाणु। तबारि हैका तर्फां जनान्यूँ मा बि झिंझड़ा झिंझोड़। गळम गळै। हे रांड, मोरि जालु तेरु। क्यांकू सैंत्यूं त्यारु वा कुबीज। म्यार पिरमु क्या ख्वै तुमारु। पिरमु ब्वै ते उदभरी छवारे ब्वै तैं झिझ्वड़णि बैठग्ये।

     चौं तर्फां एक हल्ला रळी, कव्वारोळी किबच्याट। छुड़ाण बुथ्याण, हां हां, तु तु, मि मि, अर जुत्तम जोड़ मा वा छवटा सि मुच्याळै आग द्वी ख्वाळों लड़ै मा बदल्येगी।जजमान अर बामण ख्वाळी बल।

     जजमान ब्वना छै कि तेनै लगै मुच्छयाळु, वा मंसाराम कु बिगच्यूं बीज, कुबीज। तुम भाटोंक काम हमेस गौं मा उदभरी रै। अर बामण ब्वना छै कि केन देखिन अंध्यारा मा वा मंसारामों कु ही नोनु छै। अर तै जित्वारा नोना तैं कैन ब्वोलि कि तु स्यूँबागे जागा ऊळौबाग बणों। तुम खस्योंक काम सदानी इनि उटपटांग रै। एक ब्वनु तुम खस्या हैकु ब्वनु तुम भाट। एक हैके सै सोणु क्वी त्यार नि छां।   

     त साब ठिक एक घंटा तलक यु कव्वारोळी, किबच्याट, घपघ्याट अर घपरौळो कोथिग चलणु रो। आखिर जनि तनि झगड़ा निबटिन सब्ब शांत ह्वेन। अरे चुप रावा, शांत शांत शांत। पदान जी अर दाना संयाणों न द्वी पक्षों तैं चुप करेन।

     जनि सब्ब चुप ह्वेन तनि गौं कु सबसि दानु मनखी अस्सी सालों दल्लू दादा जांठू टेकि चम्म खड़ू उठि। बल हे छवारों, खूब करि रे तुमुन आजो कोथिग। सोब निहोण्यां काम च रे लठ्याळो या। यार ब्वटों अब तुम चुप शांत ह्वेग्यां त चला अपणा अपणा द्येळयूं। पर मास्तों याद रख्यान अब अग्ने बटि यनु उळौ बाग नि बणायां  रे। फेर एक ना इनि सब्यूं कि कूड़ी फुक्याण मा देरी नि। दादे बात सूणि सब्बी खित्त खित्त खित हैंसण बि लगिन अर गल्ती फर अफसोस बि ह्वेन।

 

असौंग शब्दों कु अर्थ :-

ऊळ/ ऊळौ - बणों सुख्यूँ घास जै तैं बसग्याळ भर र्पयेणा बाद बैठया ह्यूंद इस्तमाल कर्ये जान्द। उळौबाग - छवटी बाते बड़ी बात बणाण। लौड़यूँ - जनान्यिूं। डंकरी - पस्वा/औतारी पुरुष। स्यूँबाग - शेर। टालिख -–मुन्याणु/ मुंड मा कु पल्ला। लौड़ - लड़का/नोनु। कमव्टू - कंबल। उल्क- घटना । मेड़ - ब्वै । जिट - कुछ/ थोड़ी

 

कानीकार : बलबीर सिंह राणा अडिग

  

Monday 24 May 2021

मंशा


तुम अर तुमारा पर

कच्याण

किकराण 

किड़ाण 

कुकराण

कुतराण

खटाण 

खौंकाण

गुवांण 

गौंताण 

चुराण

टौंकाण छै औणि। 

अर

मि अर मेरा पर

कुमराण 

खुड़क्याण 

घियांण 

दुध्याण

मौळयाण छै औणि। 

इलै जन मि

ब्वनु 

कनु

सोचणु 

ध्यखणु 

समझणु

बिंगणु 

उन तुम बि बल। 

निथर

मेरी नि त 

तुमारी क्या ? 


@ बलबीर राणा 'अडिग'

स्यौ लगोण छै

 



                बालम अर चैन सिंग द्वी इस्कुल्या दगड़या पलै* सालों बटि मिलिन। असल कुसल ह्वेन। कैकु जीवन चर्खा कति घुमणु कनु घुमणु बात विचार ह्वेन। बालम सिंग - यार दिदा मिन सूणि त्वेन नोनी बि बिवैल बल ?

चैन सिंग - हाँ यार भुला लगुली अर ब्यटुली जति छाँट ह्वो ठंगरा लगे दीण चैंद निथर वीं भुयां गळजी* जान्द।

बालम - हौं दिदा सयी बात च। दिदा मिन सूणी भलु घौर बार मिली बल नोनी थैं । दिल्ली बि चलग्ये बल जवैं दगड़। सच्ची ?

चैन सिंग - हाँ यार भुला ठिक यी छन ब्वाला। ये संगसारा सोब रिस्ता स्वारथ का बल। अब बेटुल्यों तैं द्याखा। भलु जवैं अर धैन-चैन* बळी मवसी मिली त मेरु भाग ल्येन ये घौर मिथैं, बुबा क्वो होन्द देण वळु अर कखि पस्यौ धारा गरीबी लारा मा कटेणी त मेरा बाबै नि खाण ह्वेन, जु यीं घौर द्ये मेरु बूरू करी। पर चलो खुसी छ अपणा होन्दा खान्दा दिखेन्दा त हरीश लगदू। अर द्वी मितर अपण अपणा बाटा लगिन।

                कुछैक साल बाद नोनी जवैं क तरक्की ह्वे साब बणिन, त नोनी हलण-चलण* बि साबिण वळु होणे छै। गौं मा सब्यूँ तैं पता छै कि अलाणा फलाणें नोनी जवैं बड़ो साब बणिग्ये। नोनी भाग्येस मा बिरस्पति जु बैठयूँ छै।

एक दां नोनी मैत ऐन,  जनि खौळ मा पौंछिन त तैन सौजि बाबा तैं ब्वोली। बाबा जर्रा पिछने क्वलणा* चला दौं।

बाबान बोलि किलै बाबा ?

नोनी - स्यौ* लगोण छै।

चैन सिंग अचरज मा ! दुन्यांऽ छीड़ा छंछड़ों छपोड़यूँ मनखी छै। वा बिंगी ग्ये। तेन उनि सौजि। बाबा आदिम रिस्ता पैदा कर्दू आदर ना। त्वेतैं तति सरम छै लगणी ये बुबा देखि त इन कैर तु बुबा ब्वोली ना। क्वै जबरदस्ती नि, क्वे नि बिलकणु* ? मिन ठिक यी सूणि छै कि बड़ा पद अर कदाऽ झ्याला* तौळ आदर कुर्ची* अर रिस्ता गौळि जान्दा बल।  

 

असौंग शब्दों अर्थ

 

स्यौ - सेवा सौंळि।   पलै - भिज्यां भौत।   गळजी - अळझी कि गलण। हलण चलण - चाळ ढाळ।   क्वलणा – कुलाणा/ मकानो पिछने हिस्सो।  बिलकणु - लगणु।  कदाऽ - कद के।  झ्याला - लगुल्यों जाळ    कुर्ची - कुरचण।