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Wednesday 25 June 2014

कान्क्सा


आजाद बणो कु स्वतंत्र पंछी छै वा
पंख पसारी उड़दूँ छै
खुट्टा पसारी सेंदु छै
अब ईंटों का पिंजरों मा कैद ह्वेगे
गाड़ियोंक भिभडाट मा भंगरिगे
पैंसों की हवा
नोटों कु पाणी
कख तक जेलू
कब तक रेलू
दौड़ नि रेस ह्वेगी जिंदगी
ज्योंण नि निभोंण ह्वेगी जिंदगी
कब्लाट त वे कु ज्यू कनु ह्वोलू
मन मा कांक्सा त रय्यीं ह्वेली
पर !
कैर भी क्या सक्दू
खाण से पैली नाक जू लग्दू
अब!
न थुकेन्दु न घुटेन्दु
अप्णा बारा का गारा इनि पिस्लू।

@ सर्वाधिकार सुरक्षित

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