भितर मने की कैन नि जाणी
भैरक सबुन जाणी पच्छ्याणी
गिचा मा रामा- रूमी भल स्वभाणी
पुटग की आग किले तेरु ज्यू जलाणी।
द्वि दिनक रोण-ठिकोंण यख सब्बुं कु
जुग-जुग यख कैन नि बिताणी
ना मार गेड अहम् अंखारे की
माया का थैलु त्यार दगड जाण।
नि कण रंग्त्याट भल नि फुन्फ्याट
सब्बुं पर रौंदी एक दिन इन पराण (ताकत)
खुटी संभाली पूरु होन्दु जीवनक यु बाटू
समझी जा मनखी ये अडिग वाणी।
:- बलबीर राणा "अडिग"
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