सियासत कु नशा अर कुर्सी कु मोह
नि पछयाण्दु घास नि पछ्याण्दु म्वोल्
रिश्तों का खुट्टा तोड़ी लंगडू बणे देन्दु
कुटमदारी कु ब्बी झोलम-झोल।
भूख भिज्यां अर तीस भौत
लता-पता पुटुग घळचम-घोळ
निर्मुख-बेढंग बड़ा लदुड़ो कु वा मनखी
चिफ्ली बोली हाथ जोड़ी घपरोळ।
एक घर्या द्वी घर्या सोत मा सोत
पापड कु पाणी ढळकम-ढोल
झुटु-लम्पट गलदार नंबर एक कु
शकुनी कु बुबा एक कु स्वोल।
रचना:- बलबीर राणा 'अडिग'