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Monday 15 February 2021

बसंत


मैंन वीं तैं धार-धारों बटि

सुरक सुरक औंणी ध्येखि।


बण-बूट डोखरी पुंगड़ी

लता गता नयुं मौल्यार, 

गाड़ गदना उंदार उकाळ

चों तरफ़ा फुल्याँ फुल्यार।


मैन वीं तैं फ्योंली दगड़

हैंसद-हैंसदी लम्पसार ध्येखि।


आमें डाळी बोरेग्ये

आड़ू खुमानी झकमककार

ग्यूं की सारी पिंगळी लयाँ

बांज दगड़ बुरांस क प्यार।


मैन वीं तैं हिंलास दगड़

खुदेड़ गीत गाणी ध्येखि।


लाल पिंगळु रग़ंबिरंगु

धर्ती को यु कनु सिंगार,

घुघुती कफ्यू चखुली चखुला

डाल्यों डाल्यों करदा खिल्वार।


मैंन वीं तैं कोयल दगड़

मिठ्ठी भौंण मिलाणी ध्येखि।


चैती गीत गौं ख्वाळा

चांचड़ी झुमैलो रात अधरात,

थड़िया चोंफुला चौक चौबारा

मर्द जनानियूं हाथ म हाथ।


मैंन वीं तैं घस्येरियों दगड़

माया क गीत लगाणी देखि।


@ बलबीर राणा 'अड़िग'

Sunday 7 February 2021

ख्वपड़ी त्वैन अज्यू क्या क्या नि द्यखण

 



      कै समै कि बात छ क्वै बामण गंगाजी नयेण जयुं छै, त वेन तख गंगछाळा पर एक मनखी मुंडौ कंकाळ द्येखी। उन त समसाण घाट पर बामणन इना कतिगा अभागी ख्वपड़ी कंकाल दख्यां छै जौं कि कपाळ किरया नि होन्दी पर यीं ख्पवड़िन बामणों ध्यान खींचिन, बामणन नजीक जै द्येखी कि तै ख्वपड़ी कपाळ फर लिख्यूँ छै ख्वपड़ी त्वेन अज्यूं क्या क्या नि देखण। बामणन बि स्वोचि कि यार उन त यु ख्वपड़ी कतिगा अभागी रै ह्वली जै कि कपाळ किरया तक नि ह्वेन अर फेर मथि बटि लिख्यूँ त्वेल अज्यूं क्या क्या नि देखण। बामणन सोचि तौलि कि मिन बि द्यखण या निरजीव ख्वपड़िन अज्यूं क्या क्या द्यखण। बामणन टप वा कंकाळ उठैन अर थैला उन्द धैर घौर ल्ये अयुं ।

      घौर ऐ बामणन घाटे चीज भित्र ल्यी जाण ठिक नि समझी अर कूड़ी भैर जाळा (खादरु/ बियां) मा धरिन।  हैका दिन बटिन बामण अपणा हमेसक काम मा मिसे ग्यूं। एक दिन बामणें दुसरि बिवैत बामणी कि नजर तै जाळा पर पड़िन त वा हक दक रै ग्ये कि या निर्भगी भाटन या असगुनी चीज क्यां कु लियीं छ घौर मु। तबरी बामणी तैं याद ऐग्ये कि लोग बोल्दा छां कि बामण अपणी पैल्ये कज्याण तैं खूब पिरेम कर्दू छै ज्वा स्वरगवासी ह्वेग्ये छै। यु ख्वपड़ी स्या रांडे कि छै । तब्बी त ये कि या अज्युं तक समाळी धरीं छन। त साब, पट बामणी मुंड चड़ाक पड़िन, अर गुस्से बदिन लाल पिंगळी ह्वेगी। होंऽऽ तब्बी त मि ब्वनु यु मास्तु मि दगड़ किलै नड़नड़ू रैन्दू। अब मिन बि द्यखण कने सीं रांडो भूत ये मास्ता फर रैन्दू।

      दा ब्वला, बामणिन स्या ख्वपड़ी जाळा बटिन निकाळी, अर जति सक्या छै छक्कीऽ जुत्तान जुत्यैन। फेर खैंकर्या मा वा कंकाल उठैन अर ठिक कसकुनी (चमड़ा भिगाने वाला तालाब, कठोती) फर्रे (फेंक) दिनी।

      हैका दिन जब बामणन द्येखी कि ख्वपड़ी जाळा फर नि छै त वेन बामणी तैं पूछी कि यख मेरु कुछ धर्यूं छै वा कख छ त बामणिन फेर लाल पिगळी ह्वे बामण तैं खूब सुणें अर ख्वपड़ी कख छ बतेंन। त साब, अब बामण बिंग्ये ग्ये छै कि स्या ख्वपड़िन अज्यू क्या क्या नि द्यखण।

      त साब। जै ख्वपड़ी पर जति द्येखण लिख्यूं ह्वलु तेन तति द्येखण छ निर्जीव ह्वो या सजीव।

कानी : स्व श्री कलम सिंह राणा (पिताजी)

लिपीबद्ध : बलबीर राणा ‘अडिग’