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Thursday 19 December 2019

भ्वोल जब ???


औंणु ब्वना
ह्वोणु ब्वना 

खाणु ब्वना
कमाणु ब्वना

बसौंणु ब्वना
जस्योंणु ब्वना

तति मा अग्यो!!!

भ्वोल जब !

साल-साल
तामी पाथियों
घ्यतसार
न भै न !

तबा क्या ह्वलू
क्व जाण...

@ बलबीर राणा 'अड़िग'

Monday 16 December 2019

समै


समैं फ़र्फ़राट्
करि उड़ी जांद
पल, घड़ी, दिन
मैना अर साल बणि
चलि जांद
दूर धार पोर
जख क्वे न देख साकू
पर समै तैं पता नि
वा बँध्यौं रैन्दू
झुकूड़ी किल्वाड़ा पर
यादों गैणु बणि कट-कट
जु कखि नि भैजी सकू।

@ बलबीर राणा 'अड़िग'

Monday 2 December 2019

पक्कू इलाज



बलात्कारियों यनु इलाज ह्वेगी जरूरी
फेर नि रैलू  बांस  नि बजैली   बाँसुरी

एक दां सच्चा मर्द बणै कि  दिखावा
बीच बिचा मा रोणे तै नीति  छवाड़ा
ख्वला तै न्याय देवी आँख्यों की पट्टी
दिखी जैलू कख साफ ,  कख छ टट्टी

संसदा दिदों, यनु इलाजै द्यावा मंजूरी
फेर नि रैलू  बांस  नि बजैली   बाँसुरी

बल यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः
इन मा कनै ह्वली पूजा कख बे आला द्यबता
दुशासन घुमणा सड़क्यों पुन डौर लगीं भारी
वीर लक्ष्मीबाई देशे नारी तैं न बणावा बिचारी।

यूँ कि झगड़े जड़ कटणों द्यवा मंजूरी
फेर   नि  रैलू बांस नि बजैली बाँसुरी

यखक  मर्दोंन  नारी  इज्जते  वास्ता  लंका  जलै
घौरे आबरू पे हाथ डालण वालूँ तैं महाभारत रचै
लोकतंत्र  का  ये  कानूनsल  कन  किन्नर  बणायी
शिखण्डी  दयेखि  सब भीष्मोंळ  हथ्यार  धैर्याली

अब मूमबत्ती नि चिता जगोणे द्यवा मंजूरी
फेर   नि  रैलू  बांस   नि   बजैली  बाँसुरी ।

@ बलबीर राणा 'अड़िग'

Thursday 7 November 2019

खुद



जैतें खुद् नि, वा खुद ही नि छ
या त कुर्च-बुर्च छ या वेसुद छ

खुद छ त सुदबुध छ, जी जमाण छ
खुद नि ढुंग छ  या बुद्ध भगवान  छ
खुद मा खुद होंण धर्ती कु पर्वाण छ
खुद मा खुद नि शून्य छ आसमान छ

खुद मा खुद् छ त मनखि माणि च्वोळा छ
खुद  नि  त झाड़ी/पौंछि पिस्यों  थौला  छ
खुद छ त  जीवन छलबळ सौंण  भादो  छ
बिगैर खुदो मनखि, ठडयों  म्वळो मादो  छ

कंयारी  छै  वा  मयाळी  छै, जर्रा  नखर्यळी  छै
सब्योंक सामणि नि ओंदी वा तति शर्मयाळी छै
क्वांसिली छै वा यकुली लुकि-लुकी रुवोन्दी छै
माँ  माटी की  पीड़ा वा  औंशू दगड़  बगांदी  छै

खुदs कोंकळी कळामळी मायो उलार छ
जिकुड़ी उबलणु ज्वालामुखी भभकार छ
खुदs यादों कुट्यरि ज्यू पांजी  संमोण छ
हर्यों भर्यों बण मा खुदेड़ हिलांसे भौंण छ

खुद होण से खुदs, भिज्यां पिड़ाण्दी/बिणादी छै
क्या बाळो क्या  ज्वान, बुड्यों तलक  बिथांदी छै
ये खुदे क्वी उमर नि सब्योंक सांका पड़ी जांदी छै
खुद  कु  एसास  दिलोंदी  अपणुपन  बिगांदी  छै।

कुर्च-बुर्च - बुरी तरह से टूटयों
पर्वाण - सक्षम
पिस्यों - आटे का
क्वांसिली - कोमल, भावुक

@ बलबीर राणा 'अड़िग'



Saturday 12 October 2019

मनसा


मन मा कबि कबि
स्वचणों छ कि
माया/पिरेमा बिगैर
अपणैस से दूर
यकुलांस का दगड़
जीवन जात्रा करि जावो
फर ज्यू तौं रुखड़ा बाटों का
कांडा कण्डालीss  दयेखि
झझराणों छ किले ?
वा बुद्ध अर ध्रुव
मनखि नि छाँ क्या?

@ बलबीर राणा 'अड़िग'



Tuesday 8 October 2019

बोला तुम मा आज, राम क्वो छ




अधरम पे धर्में विजय ह्वेन
राम लाम बटिन घोर बौड़ी ऐन
फेर रामराज्य सुरु
यनु रामराज्य
जैन *सर्वेभवन्तु सुखिनः*
*सर्वे संतु निरामया:* मंत्र दिनी
क्या मनखि क्या जीव नमाण
सब्बी सुख दुःख एक समान
यनु जीवन दयेखि परलोक बटिन
रावण तैं बी संतोष ह्वे कि
चलो मेरा पापाs बाना धर्ती पर
मनखी और मन्ख्यात को जलम ह्वे
पर आज !!
रावण खूब खुस होणु,  खिलपत ह्वे हैंसणु
कि वे युग मा त रामल कैका
ज्यू मा मैं तैं नि बसण द्य्यायी
पर आज कलजुग का हर मनखी अपणी
आत्मा तक मैं तैं जगह दियाली
वा, होर जोर से ठहाका लगाणु
हमारी बुद्धि पर, विवेक पर, धर्म पर कर्म पर
भैर भैर राम, भितर मि रावण विराजमान
अरे ! साल मा एक बार क्या
हर दिन तुम मेरु पुतोळु जगावा
मैं फर क्वी फर्क नि पड्द
पुतोळ असली आदिम होन्दू क्या ?
हा हा हा ह ह........
अरे ! भुलाओ यनु बतावाss
 कि !
तुमु मा आज राम क्वो च ?
मंत्री या संतरी
अधिकारी या चपडैस
दुकानदार या ठ्यकदार
जमदार या गलेदार
उधोगपति या प्रधानपति
धरमगुरु या बामण ज्यू
बिठ या दलित
रणनीतिकार या पत्रकार
छ रे क्वी राम ? बोलाss
नाss, नs ?
तो सच्चे स्वीकार कण मा क्यांकि सरम्
कि,
भैर रामों नौं
भितर मेरा कामां सौं ।

@ बलबीर राणा 'अड़िग'





Monday 7 October 2019

गद्दाग्वोळी

भुयाँ त रिंगरिट्वळी हुयीं
टक लगे अगास द्यखणु छौं
छुयूँ छुयूँ मा टुकु पौंछिग्यां
यूं छुयूँ मिजात बिंगणु छौं 

धुँवां रौळी मचायीं सर्रा पृथी
भैजी मुठ्ठी मुठ्योंळ उर्याणु छौं
क्व टपकाणु कख बे टपकणु
ऐरां चैतु काका तनि टपराणु छौं

अयां पोरों दां वाळा बी, छुयों ल्यैकी
तौन बी छुयूँ छुयूँ मा ही, मळकैनी
पांच साल तलक छुवीं भकौरणा रयाँ
हमुन छवीं बिंगैन वोंन छवीं क़ुर्च्यनी

भुलाs नोना भुखै पातणे रय्यां
खंतणो बिगैर नांगे नाचणे रय्यां
दिदाs नोनोsक उगत्याट् घबग्याट
सीं छुयूँ सुणी हवा मा उड़णा रय्यां

अब न पच्यैणु न उन्द उब होणु
एक गद्दाग्वोळी चिताणु छौं
कु जागे पीड़ा जिठाणु बैद हुयूँ
अपणा बल्दे जन मार सौंणु छौं
छुयों कु संगति बजार लग्यों
छुयोंक मोल भौ छुयों मा हौणु
कन लूटमार मचीं यूं छुयों की
जु पाळी बांधी वी गैना कटु हौणु

छुयूँ की बाखरी छुयूँ कचम्वळी
जब चावा तब बणावा
अंगुल्यों का टच मा सरो व्योपार
डिजिटल पुज्ये जबैर बी मनावा।

गद्दागवोळी = पेट की अवस्था जब अपच
में न नीचे होता है न ऊपर
@ बलबीर राणा 'अड़िग'

Friday 27 September 2019

द्वगुण ब्याज



बाटा पुन मितैं आज
अँज्वाळ भरि बगत मिली
जु द्खण मा तऽ माया जन छै
फरऽऽ  ज्या बी ह्वो,
त्वे मा सौंपणु  बी छौं 
अर
त्यारा ज्यु मा इन्वेस्ट बी कनु छौं
जर्वत पड़लीऽ  त
द्वगुण ब्याज दगड
दियां लेऽऽ।


@ बलबीर राणा 'अडिग'

Sunday 8 September 2019

छवीं बण जैलो त तब क्या ह्वोलो


पंयांरी पराणी ह्योन्द एलो त तब क्या ह्वलु
भ्वोळ यनु बुग्याल नि मिली त तब क्या ह्वलु

यति अलगस ठिक नि जरा हथ खुट्टा हिलोवुं दों
रेस बणि दुन्यां दौड़ण पड़लो त तब क्या ह्वलु

भिंडी आदत न डाळ रंगीला बसंत नचणे की
रूड़ियों मा निभोण पड़लो त तब क्या ह्वलु

तति रंगमत न ह्वो मिळणे मिठी भौंण पुर्योंणे मा
विरह गीत गाणे नोबत एग्ये त तब क्या ह्वलु

सगोर सीख जरा छव्ट्टा/म्वटा गदरा तरणों कु
अचाणचक असाढ़े गाड़ एग्ये त तब क्या ह्वलु

अबी त चखळ/पखळ छ लेणों जोग जु लग्यों
भ्वोळ बैला/बंठर ही रैग्यां त तब क्या ह्वलु।

फिकर न कैर छवीं की, छविंल त लगणे ही छ
छुयों का चकर मा छवीं बण जैलो त तब क्या ह्वलु।

@ बलबीर राणा 'अड़िग'

Sunday 25 August 2019

चरितर



लोगुन बोली
बधै हो
बल तुम नेता बणिग
मिन बोली कनै भै ?
अरे !
यति हिम्मतदार
क्व ह्वे सकद
जु न उत्तल
न अवतल
बिल्कुल
समतल लेंसा
अग्वडि झूट
ब्वलि सकों।

@ बलबीर राणा 'अड़िग'

Thursday 22 August 2019

बस्योरा दिनों की बात


          


समै की बात न हो अर बगत कु फेर ना फ़र्क्यो त धर्ती फर जीवन चक्र हमेशा एक जना ह्वे जांदोपरिवर्तन तैं प्रकृति को नियम माणे जांद यो ही समयचक्र छ। बल चौड़ी चुसण्यां याने समया हिसाब से जर्वत अर जर्वत का हिसाब से चलण ही सार्थक माने जांद। वर्तमानल हमेशा गाळी खै अर अतीत हमेशा पूजनीय रयो इनु मेरु अपणु विचार च, बल भै या काम ठिक नि होणु स्या काम खराब होणु, अजक्याल पता नि क्या होणु! यो जमाना क्या कनु। हमारा टेम फर इनु नि होन्दू छै उन होन्दू छै, उगैरा उगैरा। इनि बात अक्सर आम जुबान से सुणण मा आंद विशेषकर दाना सयाणौ गिचा सि।

      चला जादा छुवीं ना मिसै कि मि बि अपणा समै इस्कुल्या परम्परौ इनु किस्सा नयां छंवाली तक पेंछाणों परयास  कनौ छौं, ज्वा काम आज हम चाणा बाद बि नि कैर सकद। ये मा कैकु क्वी दोष नि बल्कि मितैं बदलो परभो दिख्येणु। वर्तमान शिक्षा का ये व्यवसायिकण कालखंड मा शिक्षै पूरी अन्न्वारै बदलिग्ये पैलि आर्थिक रूप से गरीबी त जरूर छैं छा पर लोग ज्यू मन का धनी छा अर ये धन मा सबसे बड़ो धन छायो अपणुपन, जु आज क्वसों दूर दिख्येणों। यो अपणापनै एक मिशाल छै इस्कूला मास्टरजि अर गौं वलूँ कि। जख गुरुजि सिद्धहस्तता से नौनों तैं पढान्दा छा अर लोग गुरुजी कि तन-मन-धन से सेवा भक्ति करदा छा।  सेवाकर्मैं यी श्रणि मा एक काम छायो नौंन्याळों स्कोल मा बस्योरा जाण। हमारा स्कूल मा ये पर्था सन छ्यासी मेरा पांचवीं पास होंणा बाद द्वी तीन साल तक रैयी ह्वली ज्वा तख देशी मास्टरणी जीका औणा बाद हर्चिग्ये छै। दगड मा गुरुकुल पर्था को आखरी अंश निबटि गै छौ।

      सटीक त याद नि पर सन चौरासी से पैलि कक्षा आठ अर अठ्ठासी तक पाँचें बोर्ड परीक्षा होंदि छै। हमारा यख तै टैम पर बोर्ड परीक्षा वाळौं तैं गुरुजि राति इस्कूल मा पढ़णा वास्ता बसैरु बुलौंदा छा। देर रात तलक गुरुजि हम नौन्याळौं पढ़ै लिखै समाज संस्कृति अर संस्कारवान बण्णें शिक्षा बि देंदा छा। जख स्यणकरा नौनौं तैं यो बसैरु सजा सि कम नि छौ वखि हुणत्यळौं तैं राम बुटी छै। बस्योरा (बसेरा) वा एक साल मेरी जिंदगी कु इनु समै छै जैकु ऋण देण नामुमकिन छ।

      जख अजक्याल ट्यूशन या एक्स्ट्रा क्लास मा घंटाभर पूरो होण पर मास्टर सवाल तैं अद्दा छोड़ी बच्चों कि छुट्टी कैर दुसरा दिन पर छोड़ी देन्दन वखि हमारा गुरुजि एक सवाल पर राति बारा बजै देंदा छा। उन त आज बि कतगै  गुरुजि इनि निस्वार्थ विद्या सेवा मा लग्यां छन। इना सरस्वत्या सेवकों तैं खुट्टा बानी सेवा लगोन्दो।  अपणा ये संस्मरण का माध्यम सि मि अपणा गुरुजी स्वर्गीय श्री विश्वेस्वर दत्त गौड़ जी अर श्री केसर सिंह बोरा जी तैं सेवा लगोन्दो जौंका अतुल्य परतापन आज मितैं दुन्यां दयखण लैख बणै।

      मेरु बसेरौ काल उन्नीस सौ छयासी छौ। कत्गा याद तै समये छन जौं तें याद करि आज बि मन वे ग्यारह सालो बालक बण जांद। हम सब पाँचा विद्यार्थियों को बिस्तरा भादो मैना बाद इस्कूल मा ऐ जांदो छौ। बिस्तर बि अजक्यला जन म्वटि रजै गद्दा ना बल्कि एक दौंखि या दरी, एक चादर, एक-आद कमोटू/कंबल।  वे टैम पर बिजलि नि छै सब्यों अपणी डिबरि लैंयीं रौंदी छै, जौं घौर मा मट्टी तेलै समस्या रैंदि छै सु हैका दगड़ एडजस्ट ह्वे जांदो छै। जाड़ोंक दिनों मा कमरा ळिातर आग जगोंदा छा। लखड़ों क्वे कमि नि होंदी छै। छ्वटि क्लास वळा एक-एक लखड़ो अर पांच वाळा साम-सुबेर द्वी द्वी लखडा दगड़ लांदा छा। जौंका घौर मा लैण रैन्दु छौ वा गिरेवाटरै शीशी पर दूध लौंदो छै। भुज्जी, घर्या दाल, चौंळ अर घ्यू लोग श्रद्धा से गुरुजि तैं देंदा छा।    

      नौनि लकार वळी होंदी, वो व्यखुंनिदा गुरुजि खाणौं बणाण मा मदद कर्दा अर हम नौनौं ड्यूटि भांडा मज्यांण पर  लगी रैन्दी छै। जनि गुरुजिन बोली जावा रे लड़को, उन्नी हमारि रेस उसैन बोल्ट से बि तेज होंदी छै भडडु दाळ वास्ता, किलेकि जौ पैलि पौंछदू छौ वैको हक़ होंदो छौ भडडु फर। गुरु रसोई का भडडु दालौ जन स्वाद आज पांच सितारा होटल मा तक  नि चितायी। राति पढ़ै का बगत जैतैं निन्द औंदि वैकि सजा छै भैर इस्कूला कोणा पर खड़ो होंण जख बटिन गदेरे स्यूंस्याट अर मिडखों टटराट सुणेन्दू छौ, वे गदेरो मसाणों तमाम किस्सा सब्यों तैं पता छै फेर कैकि क्या मजाल जो खड़ा होणा डैरन स्ये जावो। इनि एक दिन एक ढांट नौनु भैर बटिन गुम ह्वेगि छै। द्वी गुरुजि राति ढूंडद ढूंड्द परेशान ह्वेग्या छा। सुकर ह्वो बाद मा वको बुबा वे तैं घौर बटि वापस ल्येन तब गुरुजि मुखड़ी पर संतोष आयि। सु ढांट इले कि वा भै पाँच क्लास मा सोलह सालों ज्वान छौ अर ज़रा सीधो लाटो  छौ हम सब वे तैं ढांट ब्वल्दा छा।

      हमारा गौड़ गुरुजी उम्रदराज अर नजीक गौंका रौण वळा छा अर बोरा जी ज्वान नयां-नयां मास्टरसि अल्मोड़ा का छा, बड़ा गुरुजी जरा शांत सुभौ स्वभो का छा पर गुस्सा औण पय्यां स्वटै बदिन चटम चटेल देंदा छा, ज्वान गुरुजी गुसैला पर मार्दा कम छा, द्वियों मा पढ़ाणैं होड़ रैंदि छै। कबि रातिम जब नौना निन्दन डगमग कन्न लग जांदा छा त गुरुजि लोग किस्सा कानी सुणौंदा छा। कानी पर सब्यों कि आँखि टक टककार अर कंदुड़ा खड़ा रैंदा छा। कब्बि-कब्बि पढ़ै पैटर्न बदलणा अर जिज्ञासा वास्ता गीत, काथा चुटकिलों को कंपीटिशन रखदा छा। ब्यखुन्दा सब्बि विद्यार्थी अपणा घौर बटिन खाणु खै आंदा छा। कब्बि-कबार क्वै बासी भात खै संतोष करदु छौ। गुरुजि लोग सब्यों तैं जरूर पुछदा छा, अरे लड़को खाणु खायि नि खायी रे। बासी भात वळौं तैं  गुरुजी पक्का रोटी खलान्दा छा। जाड़ों रात एक टैम चा पक्की मिल्दी छै। चा मा गुड़ौ ठुंगार भी चल्दु किलैकि गिरेन मा चीनी कम आदि छै। बार-त्यवार मा गुरुजि कैका वख जाऊं कख ना, फिर बुज्यड़यूं ढेर लग जांदि छै। हैका दिन हम सब घर-घर का स्वाळि-पकोडयूं स्वाद लैन्दा छा।

      इनि नि छौ कि केवल पड़ै-लिखै अर संस्कारों वळि बात होंदी होली, मौका मिळण फर बाळापनौ उकत्याट कख शांत बैठ सकदु। जरा सि गुरुजि भैर या इनै-उनै क्या लगि हमारु खिखच्याट शुरु, कब्बि-कब्बि त ये खिखच्याट को रुप फौन्दरी मा बदल्योण बैठ जांद छौ। फौन्दर्या बि इन कि कंठी त पकड़यालि पर हाथ क्वी न उठौ। एक ब्वनु बेटा पैलि मारिक देखौ त हैकौ ब्वनु तु दिखो अर द्वी बळ्द जना म्यटयां रैन्दा।  दुसर मा आग मा घस्येड़ु डाळण वहौं कमि नि। कब्ीि-कब्बि फौन्दरी ये काम मा नौनि जरा हिम्मत वळी होंदी छै, स्या नौना फा एक-आद झपाक मारि भैर भाजी जांदी छै। कब्बि-कब्बि बोरा गुरुजि चुपचाप भैर किवाड़ बटि मजा ल्येन्दा छा। जब गुरुजि तैं लगि जांद कि बात बढ़ण वळि छ त वो खांसी कैरि बोल्दा छै ऐ बच्चों क्यों हल्ला कर रहे हो ? गुरुज्या भितर औण से हि सिकैतै झमाझम बर्खा, जी इसने पैलि मेरे को माँ की गाळी दी। ना गुरुजी इसने पैले बोला कि तेरा बाप कल्यो खाव्वा बल। गुरुजि इसने मेरी कौपि मा स्यायी फरायी। गुरुजि इसने ही पैलि बळद उज्याडै बात छैड़ी। पता नि कथगै परकारे सिकैत हौंदि छै जौं तैं गुरुजि एक स्वट्या मा निबटै देंदा छा।

 

 

@ बलबीर राणा ‘अडिग’

मटई चमोली


 

Tuesday 13 August 2019

सबसे सुंदर बेटी


बुबा तुम ते मुख पर
कति परकारो क्रीम
लपोड़ी लपोड़ी
विश्व सुंदरी बणणों ख्वाब दयखणा रावा
वा घाम मा तपि-तपी
संगसारे सबसे
खूबसूरत बेटी बणिगे।
@ बलबीर राणा 'अड़िग'

Saturday 10 August 2019

अडिग शब्दों का पहरा: सरहद से अनहद

अडिग शब्दों का पहरा: सरहद से अनहद: कर्म साधना बैठै यति को सि द्धि का उत्साह नहीं स्वीकारा है समिधा बनना फिर होम की परवाह नहीं गतिमान वह समर भूमि में न दिवा ज्ञा...

Sunday 4 August 2019

समै-समै की बात

ऐरां लठ्याळा
तुमुळ क्या जाण
प्यार पिरेम मा
रोणु रूसाणु
ज्यू का जज्बात
मन की बात
ज्यून्दा रैन्दा छाँ
जिन्दगी भर
वे कागजोंsक जमाना मा
इन नि होंदी छै
अंगुल्यों बदिन
स्वां डिलीट
जिंदगी भरे यादें।

@ बलबीर राणा 'अड़िग'

Wednesday 31 July 2019

अगळ्यार


ब्याली बुबान पुर्यायी
आज तुम छाँ पुर्योंणा
भ्वोळ नोना पुर्याला
यू छिन अगळ्यार
जै कि बारी आयी
वेन गाड़ी दौड़ायी
सब्योंन अपणा बारा
गारा पिसण

घट का सल पर छः
यू सर्री पिसै
कैकु मैदा जन महीन
कैकु पींड जन दड़दड़ो
अर कैकी
भंवार* भी नि भर्यएंदी
भौंड़*  बणि मथि-मथि उड़ि जांद
हाँ, ये मा घटsन वत्गा र्फियोंण
चै नाज उड़ो या छिर्यों।

* भंवार = घट मु पिस्यां आटे ढांड।
* भौंड़ = पिसाई का दौरान उड़न वालो आटो।

@ बलबीर राणा 'अड़िग'

Wednesday 12 June 2019

जीवन का चाचड़ी बन जाना


हे प्रभु ! हे ईश्वर ! मेरे कृष्ण, पीर और ईश
समभाव वाद रहित जीवन का दे आशीष
हर जन जीवन चाचड़ी बना देना
बेमनुष्यता इस धरा से मिटा देना।
जीवन का चाचड़ी बनना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है यह इस लिए कह रहा हूँ कि चांचडी बनने के लिए मनुष्य के विचार ही नहीं कर्मो का चरित्र के साथ समभाव होना नितांत आवश्यक है। लाख कोशिश के बाद भी सांसारिकता में रहते हुए मनुष्य के लिए समभाव होना असभव है, यह मनुष्य का दोष नहीं यह सांसारिकता की देन है जो हमारे हद से बाहर है। क्योंकि हम सब किसी न किसी वाद में बंधे है और वाद में समभाव नहीं हो सकता यह पोलियो ग्रस्त व्यक्ति का एवरेस्ट फतह करना जैसा है। मनुष्य का समभाव होना जैसे बुद्धत्व हो जाना निर्वाण होना है जिसमें जाति-धर्म, ऊंच-नीच, अगड़ा-पिछड़ा, महिला-पुरुष छोटा-बड़ा सवर्ण-दलित कुछ नहीं बल्कि मात्र मनुष्य का स्वयं होना होता है। चाचड़ी ऐसी ही अपने आप में निर्वाद गुण समाये हुए है, इस खेल में हमारा लोक जीवन क्षणिक समय ही सही वाद रहित हो जाता है, स्वयं में आनंदानुभुति। चाचड़ी/झुमैलो को लेकर यह मेरा निजी आंकलन है इसका किसी ग्रंथ या साहित्य पृष्ठभूमि से कोई सरोकार नहीं है हां लोक संस्कृति, कला और साहित्य विदों का आश्रिवाद अपने विचारों पर जरूर चाहता हूं। एक बात और स्पष्ट करना चाहूंगा कि चांचडी खुद में निर्वाद और समभाव है बशर्ते चाचड़ी पोषक लोक समभाव नहीं हो सकते क्योंकि वे भी तो किसी वाद के हिस्से हैं मैं खुद शामिल हूँ यह मात्र चाचड़ी के गुणों का आंकलन है।
  चांचडी को उत्तराखंडी लोक संस्कृति की रीढ़ कहा जाय तो अतिसयोक्ति नहीं होगी। चांचडी हमारी लोक संस्कृति का पारम्परिक गायन नृत्य है, जो स्वयं में समभाव है, यही इस लोक नृत्य को विशिष्ट बनाती है। चांचडी को मैं समभाव इस लिए मानता हूं कि इसमें गीत भी है नृत्य भी,  समूह भी एकता भी, महिला भी पुरुष भी, स्वर भी ताल भी और सबको मिलाकर एक उमंग उत्साह आनंद का अतिरेक, कोई लिंग भेद नहीं कोई वर्ण भेद नहीं। जिस प्रकार से आसाम का बिहू वैसे हमारी चाचड़ी जिसे हर उम्र के लोग वाद रहित गाते हैं नाचते हैं खेलते हैं, इसे झुमैलो नाम से भी जाना जाता है इस लोक नृत्य में देव स्तुति से लेकर लोक परम्परा, सामाजिक गीत, प्रकृति महिमा, प्रेम गीत, विरह गीत, समसमायकी गीत और हास्यव्यंग शामिल है या यूं कहें कि जीवन के विविध रगों से सजा लोक नृत्य है।  मेरे उत्तराखंड में चाचड़ी के विविध रूप हैं जिसमे चौंफुला, थडिया, तांदी, छौपती, छोलिया आदि, जो स्थान विशेष और लोकाचार पर आधारित हैं और पौराणिक काल से पीढ़ी दर पीढ़ी अपने लोक के साथ चलते आयी हैं। बस आज इस बात का दुःख है कि यह सांस्कृतिक धरोहर गांव घर से निकल कर आज पाश्चात्य लोकलुभाव गीत संगीत और डिजीटल वाद्ययों के साथ रंगमंचों तक सीमित रह गयी है नये कलेवर में। लोक की कला लोक से विमुख हो गयी इन कारणों पर फिर से विचार करने के साथ क्रियान्वयन करने की जरूरत है।
@ बलबीर राणा 'अड़िग'

Tuesday 11 June 2019

चला चांचडी बण्योला


तुम गीत गावा दग्ड़यो हम भौंणेड़ बण्योला
हम रांसो लगोला जब, तुम भौंण पुर्याला
भिज्यां ह्वेगी छल/कपट आवा हाथ मिलोला
मन्ख्यात की अँगवाल बोटी चांचडी बण्योला ।

तुम गीत गावा दग्ड़यो हम भौंणेड़ बण्योला
हम रांसो लगोला जब, तुम भौंण पुर्याला।

एक बाटा का बटोही छाँ हम तुम
क्वोख से सुरु अर मड़घाट खतम
धर्यों/पांजी वा सब यख छुटि जाण
तेरु जतन मन्ख्यात त्वे दंगड़ जाण
पोगी/पंथ कु जुगफा फुंड फरोला
बैरीपने की आग पिरेमल बुझौला ।

तुम गीत गावा दग्ड़यो हम भौंणेड़ बण्योला
हम रांसो लगोला जब, तुम भौंण पुर्याला।

सच्चे ये धर्ती की, सदानी क्वे नि रायी
यु माटी कैन खायी कतिन कमायी
रंगमंच च जीवन खूब नाचन गाण
खुंनस पाळी त्वेन यख क्या पठ्याण
ते ज्यू बांधी गेड़ मिलीजुली सुलझोला
मैती मांगल गै ये धर्ती मंगल बणोला।

तुम गीत गावा दग्ड़यो हम भौंणेड़ बण्योला
हम रांसो लगोला जब तुम भौंण पुर्याला।

उज्यालू ह्वो सब देळयों, ना रावो अन्ध्यारु
खाणी कमाणि छक्वेकी क्वे न ह्वो बिचारु
जणगण मन ह्वो कंठ, ह्वो भारत जै जैकार
विश्व बंधुत्व गुजोंला सरि दुन्या संगसार
एक भौंरा का म्वारि बणि बैरी झमटोला
सर्वे भवन्तु सुखिनः मंत्र सरा पृथि पौंछोला।

तुम गीत गावा दग्ड़यो हम भौंणेड़ बण्योला
हम रांसो लगोला जब, तुम भौंण पुर्याला
भौत ह्वेगी छल/कपट आवा हाथ मिलोला
मन्ख्यात की अँगवाल बोटी चांचडी बण्योला।

गीत : बलबीर राणा 'अड़िग'

Thursday 6 June 2019

अगास


1.
तति ना फड़फड़ो
ज्युन जमाणो
आगास मा क्वे ठौर निsच।
2.
अगास मा जाणे
तति मंछा छ त
पंख लगाण पड़ल
पर ! मणखी... पंख?
मतलब ?.......बिदै।
3.
सर्ग थुकण
मौळ मुतण
ठिक निच बाबू।
4.
पिरेम हो त
धर्ती अर आगासो जन
जख धर्ती वख अगास।
5.
चै, धर्ती अगास
एक करा
होंण वी छ
जु राम रचि राखा।
6.
सबसे बडू रडार
वा नीली छतरी
वेsकि नजर से
क्वे नि बची
पाताळ भी।
7.
सुर्ज दगड़ अगास
नि ढुबद किलेकि
वेन जून/गैणो दगड़ भी
धर्ती रक्ष्या कन।
8.
सुदी नि ?
अगास मा छेद कन
मेनत कु बर्मा घुमण पड़द
पस्यो दगड़।
9.
अगास मा कैकी
घर/कूड़ी नि बसद
बादळ भी बर्खा बणि
धर्ती परे आन्द।
10.
अगासे चारे
अनन्त इच्छाओं पूर्ति तें
धर्ती जन धीर इरादा
जरूरी छिन।

@ बलबीर राणा 'अड़िग'

Sunday 26 May 2019

ढै बीसी पार



सफेदी ऐ जांदी कंदुड़ा आस-पास,
मथि सफाचट या बच्यां/खुच्यां उदास।

आंख्यों का तौळ काळी लकीर,
मुख अनुभौ, ज्यू  धृगम/धीर।

जिमेदरि फंची से ढळक्याँ कांधा,
मौ मदद अत्यड़ा बड़णे रांदा। 

पुटुग उड़्यार या, थळथमकार, 
तौळी/मौळी चीजों से खट्टा डकार। 

टंगडों की सक्या कमती ह्वे जांदी,
पर, मन ज्यू कि सक्या बड़णी रांदी।

कुटमदरी सुख खातिर जतन जोड़,
सब्बि जगा अपणा ही हड़गा मरोड़।

गिरस्थी का  होर पोर अफूं रिंगणु रैंदू 
घर समाजा का बीच धिक्याणु रैन्दू। 

भितरै कष्ट पीड़ा दंत कीटी सैंणु रैन्दू
ठिक छौं ब्वोली भैर मुलक्येणु  रैन्दू।

भल का वास्ता घिसण/घिसाणु
ब्वलयूँ माना रे, हर बगत बिंगाणु।

अफूं से बड्या तौंकी होणी खाणी आशा
ढै बीसी पार मनखी अभिलाषा।

*@ बलबीर राणा 'अड़िग'*

Saturday 12 January 2019

बुड्या डाळो कंराट



1. 
जणदू छौं 
डुबदा तैं कैका 
हाथ नि उठद
पर ! 
गौधुली ललंकार  
बिनसरी से कम 
बि त नि, 
यु क्वे नि समझणु।

2. 
क्या चिताणा
ठंगरु ही आई मि यख ?
जब
एक पत्या, द्वी पत्यै 
जातरा 
लंगलंगी फाग्यूँ 
झपन्याळी साख्यूँ 
पौंछि तब्बी
तुमारु हैरु भैरु बाग बसिन।

4.
खैर.... हैरा होणे 
न आस, न सास
पर !  
तुमारा किचने 
बास चिताणु छौं अज्यूं ।

5. 
परभौ तेरी माया
झपन्यालौ 
पौंण पच्छौंन आसरो
आज अफूं निआसरो 
ये विकसित मन्ख्यात 
विकासील मनखि जमाना मा।

6.
पवन दय्बता औ
एक सर्राक
मार झटाक 
भुयाँ गिरे द्ये 
तिरिस्कार से म्वन भलु
तब्बी बोझ समझण वलौं 
जितम स्येळी पढ़ळी ।

7. 
भितर ढवौर
भैर खड़खड़ो
पर !  यति डरोंण्यां 
बि नि छौं जति तुम
अपणा कुटमणों का
मुख ढकोणा। 

8.
ऐरां बुबा, 
ठिक ब्वना तुम
खूब छन बाड़ी सगोड़ी मा
डाळा झकमकार
दाणियाँ बी खूब लाल पिंगळा ह्वयाँ
पर..!  क्या कन?
मैं खुणि जैमिर। 

जैमिर = संतरे चारे, पर खट्टू।

@ बलबीर राणा 'अड़िग'

Sunday 6 January 2019

माँकी कसम



 
रतनी काकाs गौं मा पंच्यैत बैठै अपणा तिमिली झंग्रयाड़ घास च्वरण अर झंग्वरू कुर्चणा बाबत शेरसिंगन माँकी कसम खै चतुर सिंह सिंगा नौsकी गवै पंचैत मा दयेकि, भाई...मिन अपणा आंखोंन दयेखि चतुरु परसि रतनी काका का तिमली पुंगड़ा मा सुबेर सुबेर घास काटणु छै, अर मि थोड़ा खांसी बी अगला भै चुप ह्वे झंगोरा पुटुग स्यान ह्वेगी, मि अदयेखी करि अपणा काम चल ग्यों मल गौं। पंच्येतन चतुरु से पूछी अरे चतरू क्या ब्वनो रे यू शेरसिंग ? त्वेन परसि छंछर बारा सुबेर रतनी तिमली पुंगडों घास सच्ची काटि चतुर सन्न रैगी ब्वलौं क्या ब्वलौं... मन ही मन सोचणु रो कि यार घास मिन काटी नि पर यू आदिम कति भरोसा से माँकी कसम खाणोs, हे राम कन कलजुग आयी यू, जु माँ पृथवी से बी बड़कर , स्वार्थी मणखी अपणा स्वारथ का वास्ता वे खुणि बी नि बक्सणि, हे परभू  क्या ह्वलू अग्ने अब ये धरती को। 
सरि पंच्यैत गुण-मुण, गुड़-मुण कन बैठिग्ये, चतुरुs चुप रौंण पर लोगों तैं होर यकीन होंण लगि, चतुरु पर कि ये की करामात यो, पर ! पच्चास पार पौंछि दानु सयाणु मणखी यनु गलत काम कनै कर सकद, रैन्दू क्वे छवsरा छौराs बात मान बि सकद।
तबरि रतन सिंगे जनानी थ्यपुली काकी पल खौळ बटिन मुंड टोखरु जन बणे हिंकर फिंकर करि आयी अर चटमताळी गाळी देंण लग्गे, हे कन जड़ घाम लगि रे त्येरी, त्वे तैं अपणी आस औलादे नि रे रांड मस्ता !   हरे ! दुश्मनोs घास काटि त्वेन पर वे झंगोरा डालौं क्या बिगाड़ी तेरुs....हेरां....कन निरासपंथ ह्वे त्वेखुणि रे रांड मस्ता, कन झगुली त्वपळी घाम लगि रे त्येरी। हेरां कन गर-गरा बाळड़ा ह्वयां छाँ तख   मेरी सरुs कमर त्वडी म्वोळा  थूपुड़न थुपड़ायी छै वा पुंगडूजड़ नास हव्य यनु दुर्बीजों, वे भैंसी कचिना कीड़ा पड़ी जैन मेरु लड़बड़ी डड़यळी खैंन, नि खाण पय्या ऐसूं बग्वाल। थ्यपुलि काकी यनि एक लगीं छै कटमचुरै गाळी देणि च्वोरुं तैं
सरपंचजिन रतनी तैं डांटि यार रतनी इनि पंच्यैत मा जनानियों गाळी गलौज कण ठिक नि भै। बौ तैं बोल तेरु न्यौ निसाब ह्वे जैलू तू यख पंच्यैतो माहौल गरम कर। फुंड जौ रांड यखमु बबड़ाट कैर निथर ? अर रतन सिंगन जांठी उठै कि थ्यपुली काकी उन्द भगैन
थ्यपुली काकी जाणा बाद महौल  कुछ सांत ह्वे सरपंचs चतुरु से फिर ब्वोली भाई चतुरु तेरु अन्यौ करयूं त्वेन अपणी सफै मा होर कुछ ब्वन बोलनिथर ? चतुरन बोळी ना दिदा ना..मिन कुछ नि ब्वन गवै देंण वळाल जब माँs क़सम खयाली ये मा होर कुछ ब्वने गुंजैस नि आप पंचपरमेसुर जन बी दंड दयेला मितें मंजूर , मेरी हिकमत नि माँs कसम खाणे जैल बी खायी एक बार खैलसफै दये कि एक हौर कसम खये जाण।  वे माँ फ़र हौर अन्यौं ठिक नि, यू स्वारथी दुन्यां क्या जाणद माँ खुणे, घास जैन बी काटि काट्यली सजा मि पर लगै दया, कम से कम फिर वे मां व्येजति ह्वो जू हम सब्यों तें पळणी वळी च।
@ बलबीर राणा 'अड़िग