हे उत्तराखंड का नैनवांणों तुमतें जगाणु अयूँ छौं
देवभुमि का एक बीर की शौर्यगाथा सुणाणु अयूँ छौं।
पंद्रह सौ नब्बे दशक मा एक बीर पैदा ह्वेनी
बीर सौंणबाग भंडारी का घोर वेन जलम लीनी।
जैsकी गाथा जुगबटिन ये गढ़भुमी मा गुंजणी रै
बीरभड़ माधो सिंह भंडारी नाम से वा अमर ह्वे
वे बीरभड़ माधो सिंह भंडारी गाथा तुमतें सुणाणु छौं
हे उत्तराखंड .........
बाळापण से उटंगरी रे वा होंणहार चतुरछंट छै
लौंची उमर मा जी गढ़ सेना कु सिपै बणिगे छै
बीर क्या वा भड़ क्या एक महारणपति छायो
गढ़ नरेश महीपति शाह को शूर सेनापति ह्वायो
एक महानायक सेनाध्यक्ष की बीरता तुमतें बताणु छौं
हे उत्तराखंड .......
ज्वान मा को ज्वान छै वा दवफरी से बांण छै
आगो जन भभकार छै उदमातो फौन्दार छै
ये गढ़भुमी का खातिर कत्गा लड़ै वेन लडिंनी
कति दुश्मनो मुंड म्वडिंन, कत्गों की धौंड़ धड़केनी
यना बीर की शौर्य गाथा तुमतें मि बिगाणु छौं
हे गढ़भूमि का नैनवाणो......
मालों का वे महाकालsन, हूण दापों कु छक्का छवडेनी
सदानी का लड़ै झगड़ा से, सीमा पर मुँडरा बणेनी
पाsड़क पुटुग सुरंग बणाण वाळू दुन्यों पैलु इंजीनियर ह्वायू
अपणा बेटो कु बलिदान करि वा पाणी कूल बगै ल्यायो
यना लोकपरोपकारी मणखी की सत तुमतें समझाणु छौं
हे उत्तराखंड का .......
थाती माटी का खातिर यनु भगिरथ काम करि वेन
जन्मजमान्तर का वास्ता मलेथा को उद्दार करि वेन
एक सिंह बण को, एक सिंह गाय को
एक सिंह माधो सिंह, हैकू सिंह काहे को
इना महाशेर को शूरत्व तुमखुणे दिखानु छौं
हे उत्तराखंड का ......
मणखी छै वा अनमणमाथी को राण्यों को बी रौंसिया छै
अपणो खातिर मयाळू मायादार फूलों को वा हौंसिया छै
एक बार को विजय रथ तौंकु छवटा चीन तलक गैनी
निर्भगी बीमरी लगी जु सदानी तें घर बौडी नि ऐनी
मृत्यु शय्या पर बैठ्यां वे पुरूष की रणनीति तुमतें बताणु छौं
हे उत्तराखंड का.....
साहसी निडर ते भड़न,आखरी दों सिपैयों तें समझायी
मेरा मरणे खबर दुश्मनो तें पता न लगण दयायी
निथर तुम एक भी ज्वान घोर बौडी नि जाला
दुश्मन तें अगर पता चलि तुमतें यखी लमडे दयला
वे गढ़भुमि का रणबांकुर आखरी ख्वाइस बिंगाणु छौं
हे उत्तराखंड का.....
लड़ने रय्या पिछने हटणे रय्या घोरsक बौडी जयां तुम
मेरा शरील तें तेल मा लपोड़ी हरिद्वार मा जगे दियां तुम।
***गौं ख़्वालों कु करुणी***
बारा बित्या मास अर छई ऋतु चली गैनी
बारा ऐनी भेलो बग्वाली सोला शरद पूरा ह्वेनि
सब्बि ऐना घौर बौड़ी की, मेरु माधो किले नि ऐनी।
करुणी कनि रे राणी बौराणी, धरती पछाड़ खाणी रैनी
हिन्क्वाण पड़ी रो गौं ख़्वाळो, हाथ न क्वे धाणी लगीं
सब्बि ऐना घौर बौड़ी की, मेरु माधो किले नि ऐनी।
चौंल छड़याँ का छड़याँ रैग्यां दाल दौलीं की दौळी रैनी
ऊनि रैग्ये बासमती च्युड़ा, थौलो कांकर टंग्यों रैनी
सब्बि ऐना घौर बौड़ी की, मेरु माधो किले नि ऐनी।
हे मेरा नैनवाणों यू छै वे बीरभड़ माधो की कथा
स्वोना आंखरों से लिख्यों रैलू वे की शौर्य गाथा ।
*रचना : बलबीर राणा 'अड़िग'*
*स्रोत ग्रंथ *:-
हरिकृष्ण रतूड़ी रचित और श्री डॉ यशवंत सिंह कटौच द्वारा संपादित एवं संशोधित गढ़वाल का इतिहास, डॉ बीरेंद्र सिंह बर्तवाल रचित गढ़वाली गाथाओं में लोक और देवता और डॉ नंदकिशोर हटवाल जी के ग्रंथ चांचडी झुमाको से सभार।