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Thursday 8 December 2022

घौ (घाव)



पैली घौ 

मेरी गरीबी

दुसरो घौ

वींको मेरा नौरुं सारु बणण

तिसरौ घौ

वीं तैं मेरु नौर देण

चौथू घौ 

कैमरा इन्टरव्यू वळों कु

जु पूछणा कि 

वीं दगड़ क्या ह्वेन ? कनुक्वै ह्वेन ? 

पाँचो घौ

न्यायौ भरसू ध्योंण 

अर धरना नारा लगाण वळों 

छटों घौ 

न्याय देण वळों को अन्यो

सातों घौ 

नोनी बुबा होण

आठों 

घौ सोणे 

अब मिमा हिगमत नि।

 

आत्मा फर कच्चाक च पड़ीं

दिन रात मवाद पीप बगणू 

घौ पकीं पिलपिलौ ह्वयूँ

जैतें सत्ता, पैंसा का डाक्टर 

लगातार पितौड़णा।


नौर – कंधा

 रचना  : बलबीर राणा अडिग

भड़



1.

काळा कनूड़, ऊँचा डानों

कठिनै-खौरी जिती 

जब  तू  वीं आखिर चूळा पर ह्वलो 

तब  त्वे लगलो  कि 

क्वी फर्क नि त्वे अर 

तों पाड़ें सगते मा जों तैं 

त्यार ख़ुट्टोन चिपाड़ी,

एक भड़ल नंगायी।

2.

जब तू झैली साकलो 

मैनस पच्चास डिग्री मा हियूँसाड़/ तूफ़ान, 

तब  तू  बिंगलो भड़  तैं  

जौन डिक्सनरी बटि 

असंभौ मठायूँ  रैंद।

3.

सौंग नि भड़ होण  !

हौंग चेंद 

हियूँ चूळा कांठों मा 

यकुली तीन सौ  दुश्मनों दगड़ निबटणे।


यति मजबूत जितम कि 

होरों सुखों वास्ता छत्ती नौन्याळे बलि ध्योंण पर  भी  झर्र  झस्स ना ह्वो ।


खून मा यनु उमाळ कि 

पंद्रा साल मा यी 

दुश्मन सेना बैखों तें 

बैख होंण मा शरम दिलै ध्ये। 


बाकी 

अजक्याल रील बणाण 

वळा भिज्याँ छिन 

भ्योळ भंगार जाणा, 

लमडणा, 

जौं  तें लोग भड़  ना तमास्या बोलणा।


*असौंग  शब्दों अर्थ*

कनूड़ – घणु  जंगळ

हौंग-हिगमत

जितम – छाती


*@ बलबीर  राणा  ‘अडिग’*

Saturday 26 November 2022

खुद मा



ख्वणि-ख्वणी,

वींतैं बि होन्दू ह्वोलू या कि ना ?

जन मितैं होन्द

जनु  कि,

बैठ्यां-बैठ्यां मा उच्चामुच्ची 

अचाणचक गात उन्द हिळऽ हिळाट

कि कैन ठंडूऽ पाणी ढोळी ह्वो

या, झस्स झस्साक,

कि कैन पिछने बटि सौजी

गळोड़यूँ पर चस्साऽ हाथ धरिन ह्वो,

अचाणचक होर-पोर सुगन्ध औण लगीं ह्वो,

चौं दिशा फजलो जनु उदंकार दिखण लग्यूँ ह्वो,

इकुलाँसी डांडी-कांठी

मुळऽ मुळकोण बैठिन ह्वो,

गाड़ गदन्यूँऽक डरोण्याँ सुँस्याट

मन मोण्याँ संगीत जनु बजण लग्यूं ह्वो,

ज्यू फ्योंली, मन मा बुराँस खिलण बैठ जान्द ह्वो

हिया हिलांस जन खुद्योण लगी जान्द ह्वो,

या, कब्बी-कब्बी

इकुलकार मा चड़क चौंकि जान्द ह्वो

कि, कखि वींऽन धै त नि लगाई

या अबेर-सबेर

जनि आँखी मुन्दण लगीं हो स्येणू

उनि चुड़ियों छमड़ाट सुणण लग्यूँ ह्वो

भिभड़ाटा बीच वा खणमड़ौ खितखिताट

कन्दूड़ा बजण लग्यूँ  ह्वो।

या, कब्बी-कब्बी

कांसे घनोळी जन वा छाळी बाज 

सियाँ मा चट्ट निन्द बिजाळी जान्दी हो।

 

पर, ऐरां दगड़यो !

तुम ब्वना

यु तेरु बैम च, खाली तबोक ख्याल च

गंवारो मन थंवार च

यनु कुछ होन्द जान्द नि

खुद मा

सुद्दी ब्वनै बात च

यनु कवितों मा होन्द, सच्ची मा ना।

 

ख्वणि-ख्वणी ?

या

मैंई पागल ह्वलू

क्वो जाण !

 

तुम ब्वना

कैकी खुद बिगैर भी

जीवन चल्दू क्या सरपट दौड्दू  

हिंकर-फिंकर उकाळ-उंदार

कब्बी तैलो कब्बी सीलो

सुख-दुखों बदिन भरेणा रैन्द

मना कुठार ज्यू कुलाणा

ऐड़-चैड़ा वास्ता।

 

पर, तुम माना न माना

जेतैं तुम बेमतलबा ख्याल छन ब्वना

यूँमा कुछ चीज त छैं छ

ज्वा हर बगत हमू दगड़ रैन्द,

ओठंड़यूऽ फर मुळक्याट,

मुखड़ी फर चळक्वाट

ज्यू मा धकध्याट

मन मा उलार

वीं याद मा/ खुद्योण बगत ।

ये  बाना

यीं प्रकृति तैं द्यखणू

यीं कु श्रृंगार पच्छयाड़णू नजरिया

अर

पिरेम कनु हियाराम।

 

असौंग शब्दों अर्थ

 

ख्वणि-ख्वणी = पता नि

ऐड़-चैड़ = बगत-बेबगत

 

रचना : बलबीर राणा अडिग


Tuesday 8 November 2022

गजल




बगदा बगतै धै सुणि कि त द्योख,

कंदूड़ा जाळा खोली कि त द्योख।


क्व छै जु सैंकणू तेरी खुद मा,

आगै भभराट बींगी कि त द्योख । 


ज्वा उबलणा बाद बि बोली नि सकि तू,

उड़दा भापै मनसा मानी कि त द्योख।


हैको खिखताट तब्बी त नि सयेणू,

अपणु घंघतोळ तौलि कि त द्योख। 


बिगैर घट्याळा बि छन भिज्यां औतना, 

तौंका ब्बी जागर जाणि कि त द्योख। 


जादा खुस न ह्वो तिमंजिला पर अडिग,

चव्वा ढुंगों कंणाट सुणि कि त द्योख । 


@ बलबीर राणा ‘अडिग’

Tuesday 5 July 2022

भजन

 


ढुंगा माटू हर्यां भर्यां बण,

असमानऽक रंग नीलो चा।

स्वोन सि सुर्ज, पिंगली जून,

सब तैकी यी लीला चा।

 

ज्वा लुक्यूँ छन सब्यूंऽक भित्र,

सृजनहार श्रृष्ठी को चा,

जै तैं हम परमात्मा ब्वल्दां

यु सब तैकी कृति चा ।

 

हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, हरे कृष्ण राम,

राम कृष्ण, राम कृष्ण, राम कृष्ण राम। 2

 

सैंतणू छै ज्वा पौन पंछी,

ज्वा पाणी मा बगणु चा।

हवा बणी हलकाणु जु डाली,

अन्न द्ये पुटुगो भरणु चा।

 

माया ममता हौंस रौंस द्ये,

रिंगणु ज्वा यीं पृथी  चा।

जै तैं हम भगवान ब्वल्दा

यु सब तैकी कृति चा ।

 

हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, हरे कृष्ण राम,

राम कृष्ण, राम कृष्ण, राम कृष्ण राम। 2

 

जिट घड़ी तैं बि नि छवड़दू

हर बगत हमरा साथ चा,

धौंकदा फौंकदा सांसै कि डवोर,

वार पार तैका हाथ चा ।

 

हैंसणू रुवोणु ज्यूणु मरणु

सब तैकी यी मर्जी चा,

जै तैं हम परमात्मा ब्वल्दा

यु सब तैकी कृति चा ।

 

हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, हरे कृष्ण राम,

राम कृष्ण, राम कृष्ण, राम कृष्ण राम। 2

 

मेरू तेरू यखी छुट्टी जाण,

ना कैर इतिगा स्याणी चा।

चार दिने की जिंदगी या,

भ्वोळ क्या ? कैकी जाणी चा।

 

करम करि ल्या सत का बाटा,

छुटलो ज्वा यीं धर्ती चा।

जै तैं हम परमात्मा ब्वल्दा,

यु सब तैकी कृति चा ।

 

हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, हरे कृष्ण राम,

राम कृष्ण, राम कृष्ण, राम कृष्ण राम। 2

 

@ बलबीर राणा अडिग

https://udankaar.blogspot.com

मैक : कुण्डलिया

 



मैक फर चिपकी जांदा, कवि अर नेता जात,

एक दां सुरु ह्वैग्यां गुरू, तब नि छोड़दा साथ।

तब नि छोड़दा साथ, जब आंद तौं छंद-मंद,

ताळी बजि जाली त, गिच्चू नी होण्यां बंद।

छुवीं छप-छपी अडिग, नी लगदी तौं तें थैक,

जख भी मिली जावो, जंता मंच और मैक।

 

@ बलबीर राणा अडिग

मटई वैरासकुण्ड

https://udankaar.blogspot.com


 

Thursday 23 June 2022

रांडस्वैणी तिरैं

 


चार परकार को सलाद, तीन प्रकारे चरचरी-बरबरी भुज्जी, अरहरे दाळ, खट्टे, आमों अचार, भंग्जीर अर प्वदिने चटणी, पैल्वाण भैंसे मोळी छां मा तुमड़ो रैतो, पापड, पूड़ी, सूजी अर केशर डळयूं मिठ्ठौ भात जना नानापरकार का व्यंजन छा बण्यां। खूब चखळ-पखळ छै हुयींइतगा परकार का पकवानोल जब पातळ पुड़का मा जगा नि छै होणी त खन्यैर द्वि द्वि पालळ छा मांगणा कि क्वी ऐटम ना छूटो। सरो गौं सिंकर-फिंकर करि सपोड़णु छै। कुछेक परोसऽक कुट्यारा बि छै बंधणा। छवटा नौन्याळ त ओंठण्यूं को पतबीड़ो बणें स्यां-स्यूं कैरी ळाळ चुवाण चुवाणें छै सळकोण्यां 

आहा कन रस्यांण ऐन बल आज। तिरैं (तेरहवीं) खाई त गमुली दादी की खायी। स्वारा भारा ह्वो त इन ह्वो भैरांडस्वैणी इनि तिरैं पैली बार देखी। स्या बिचारी त जीवन भर अधीति रे फर तैका पुनल आज सरो गौ धित्यै छौ। आज त गौंका वा ठुल आदिम बि गमुली ददी को गुणगाण करदा नि थकणा छाँ, जोन कब्बी स्या बिचारी तैं गौंका दर-कर मा एक ढैला पाई कि माफी नि दिनी छौ। होर त होर कुछैक ठुलों तैं एक लखड़ो देणु कु बि टेम नि ह्वै छौ ते दिन। हे रे जमाना ! मनख्यातो आखरी सत बि हैसियत औनार देखी निभोन्दा म्येल्यौ। पस्तो पाई त म्वन वळा तैं क्या पर ज्यून्दा मन को थंवार होंद, जतिगा वीन दियूं छै वे सि जादा यी आई।

      उन हमारा पाड़ मा मणि-मणि आज बि छैं छन, पर तबार्यों जमानु होरि बि अपणेस वळो छौ स्वारा भारों रौण बसगान्द जख बि ह्वो पर मुन्डेत मा कैका म्वना बाद चिठ्ठी तार, स्वाल रैबार सूणी मर्द माणिक उल्टो ह्वै पौंछी जान्दा छाँ। नो दिन मा मुंड मुन अर दसकर्मा दिन सुल्टो होणू। चै वा मुल्क परद्योस  जख बि ह्वोन

      रौत मवसिन अपणी स्वर्याण गमुली ददी को किर्याकरम विधी विधान सि करि। गौं ख्वाळा मा नाको सवाल जु छै। सच्चा ज्यू सि करि ह्वो या अछल्यां घामऽक किसाण, क्व जाणा, पर नौ का वास्ता अपणा नौ कि सगरांद बजै छै साब रोत मवसिन। काटा मा मेंगो सामान दिनी। सब स्टेर्न्ड छौ, भानी, बक्सा, छतरु, गांधी आश्रमें रजै-गद्दा, चादर, सोब बिस्तर बन्ध दगड़ सय्या दान करिगैदान मा ज्वान कलोड़ी, यार अबतों की पौ पिठें, बामणों कि भोजन दक्षिणा, सब फिट फोर। पितर मोक्ष का वास्ता जतिगा कारण होंदा सोब करिन।

      ऐरां ! गमुली का ज्यून्दा तलक त तोन कब्बी नि समझिन कि स्या हमारा भयातै विधवा दुख्यारी च, मथि बटि “काज नि पुज्यै, पूठा ऐ रुभै” बि कना रौंदा छा। स्वारा इनि ना करो त स्वारा क्यांका। पर जनि बि ह्वो स्वरोन म्वना बाद वीं को लिंग-लौड़ू पित्रकुड़ी भितर पितरों दगड़ त धर्याली छौ। चलो “स्वारथ का चार हथ खुट्टा बल”। तीस नाळी जैजाद को सवाल बि छौ। स्यूंत-व्योंता वारिस भयात यी होंदा

      वीं तिरैं धक्का-धूम देखी बामण बि मने-मन ब्वनु छौ कि साल मा द्वी चार इनि जजमान झटकी जों त सुदामागिरी सि मुक्ती मिल जाउन। पितर दान मा ज्वा ज्वान कलोड़ि मिलिन स्या सालभर बाद ब्यै जाली। ब्याळी तलक बामणि बौ कै मु ब्वनी छै कि एरां द्यूरा सुदी लाल पाणी छाँ प्योणा का। ग्वोरु बुड्या ह्वेगी। अजक्याल जमानु बि सुदी हाथ ध्वोंण फर एग्यूं लो, क्या कन। लोग काटा मा तनि मरण्यां बाछी छिन द्योणा। अरे़ जौं पितरों परताप तुम राजन बाजन हुँयां वूंन मथि स्या मरण्यां बाछियूं ढांगा चबाण क्या ? पर, आज गमुली ददिऽक काटा मा ज्वान कलोड़ि देखी बामणी खुस छै हुयीं। 

      हप्ता दस दिन तलक गमुली ददी तिरैं छुवीं बत गौं ख्वाळा खूब लगिन। ऐरां स्या बिचरिन “ज्यूंदा मा नि पाई मांड म्वना बाद मिली खांड”। वींन कबि सुकिली रुवटी तक नि चाखी। गातन कबि द्वारो खंतड़ू नि देखी। औंस सगरांद मा खौंजळे बदिन धुयाँ लटुलन त्योल नि पेनी। रांडस्वैणीयूं कु कख त्योल कख बाती। कुम्यांणी का म्वना बाद कंघलु बिसरी गे छै वा। लटुला अगासमात्री जना लगुला अलझ्यां रयां सदानी। बाळापना लंबा छड़छड़ा लटुल्यों को धौंपली दगड़ बैर ह्वो जन।

      गमुली ददी बाळापन बटि सिद्दी निमाणी स्वभौ कि छै, यीं सिद्दापन सि लोग वींतें गमुली लाटी पुकरदा छै। जनि “लगुली ठंगरा पर हाथ द्येण लेख ह्वेन” तनि बुबा बादर सिंग “गंगा नयै ग्यों”। बगला गौं का ढै बीसी पार अध्योड़ सौंणु तैं बिवै दिनी। टको ब्यौ ह्वे छौ, ठया मा बुबान कलदार दगड़ जीन जीवरों फर बि अंग्वाळ बोटिन। गमुली दे-गात अर रंग-रूप मा स्वाण्लिी, कै रैस घौर लेख छै फर बुबाक लालचन कंडाळी  झखल्यांण ढोळी दिनी छै। तबारी जमानो बुबा तैं नोनी भग्यान वळो छौ।

      सौणु (सेनसिंग) कि पेल्यै कज्याण कुम्यांणी सि बाल बच्चा नि ह्वेन, औती छै। सौणु बाळापन सि उटंगरी छौ। ज्वानी मा कुछेक दिन कुमौं सौर पट्टी मा जंगलातो मुंसी रैन, तखि कुम्यांणी दगड़ माया मुस्क ह्वेन अर चम्म उठे ल्यिेन घौर। सूत ब्योंते जनि रे ह्वली पर नोनु इतिगा दूर बटि ल्येन त बुबन बि लोकूं गिच्चू बन्द कना वास्ता चार फ्योरा अपणा यी घौर मु लगवेन, अर दाळ भात खवेन। कुम्यांणी घौर वळोंन बि वीं कि क्वी ख्वोज खबर नि करि। तबारी अजक्याला जन ओण जाणा सौंग साधन नि छौ। गढ़वाळ दशोली  बटि सौर कुमौं ओण जाण मा मेना दिन लगि जान्दा छौ, त केन कन छौ ख्वोज खबर।

      कुम्यांणी असली नौ पार्वती छै। कुम्यांणी नौ कुमौं कि होण सि गौं ख्वाळा वळोंन धरी। तबारी अगसर ब्वारियों कु नौ वीं का मैत मुलुक का नौ फर धरदा छया, जनि कि नागपुरे नागपुर्या, सलाणें सलाण्यां, रामणी रम्वाळी, सेमा कि स्यम्वाळी, फरखेत कि फर्खत्या इत्यादी।

      कतिगा उच्यांणा परखणा, नीज-पूज, जोगी-जगम कना बाद बि कुम्यांणी क्वोखी उन्द बीज नि जमिन। टिपड़ा मा पुत्र योग लिख्यों छौ द्वीयूं को, यीं चक्कर मा तोन मुंडळी नि देखी। जब द्वी बीसी पार पौंछया तब होश आयी कि हैकु ब्यौ बि औता सि मुक्ती होणों साधन छ। द्वी झणों का राजामन्दी बाद सौंणुन बादर सिंग तैं म्वटो ठया कु लालच द्ये ज्वान गमुली औलादा वास्ता बिवै ल्यायी।

      द्वीयेक साल तलक त सौत कुम्यांणी कु ब्योवार “नै-नै गोड़ी नौ पुळा घास” वळु रे। लाटी ब्यंगणी जन बि ह्वो क्वी बात नि आस औलाद होणों जस हुयूं चैन्द। पर क्या कन जै को भाग विधातन उल्टी कलमन लिख्यूं ह्वो वे तैं जस कख। सौंणु का कमी कारण गमुली पुंगड़ा मा बि बीज नि जामी। भागन रमरमी गमगमी ज्वान गमुली तैं बि औतें जमात मा खड़ी कैर दिनी। 

      जब कुम्याणी तैं लगि कि नुक्स अदीम फर च अब क्वी आस नि छन औलाद होणें त वा सौत्याण चाल मा ओंण लगि। लाटी गमुली सौतक अंग्वठयूं मा नाचाण लगिन। क्या खाणु क्या लत्ता कपड़ा। दिन रात खच्चरों जनु बोल। बिचारी गमुली नियति माणी अपणा “भागे भताक” खाणी रे। कबि कै का ठट्टा मुख नि देखी। ब्वेऽन विदै बगत समझयीं बुझयीं छै कि भगवानल त्वेतें खूब खस्यांण बणयी च बाबा, रगसी काम कैरया अर जगसी पुटुग भोरयां। सौरास मा हमारो नाक ना कटयाँ। अपणा सत पर रयाँ।

      वे दिन गमुली ज्यू कु उमाळ सांखी बांधी हां ना कुछ नि ब्वोली चुपचाप बरित्यों पिछने लगी ग्ये छै, डाड मारी रुवोण बि छौ त कैमा, जब अपणोन यी झखल्याण धिक्याली छै। बुबा धौरा मनखी स्वैण बणण ? हे ब्वै ! गात झजराणू छै। पर क्या कर्दी। दुन्यां न लाटी त ब्वोली छौ पर मनख्याते च्यौत सि अच्यौत नि छै। हे परभो ये पुरुष परधान समाज सि क्वो मुक्ति द्यालू। राजा राममोहन राय त सती परथा कु अन्त करि चल ग्यों पर अब नोन्यूं फर यु अत्याचार क्वौ बंद करुलो। हे विधाता नोनी होण पाप कु दुसरो नौ छन क्या ? क्व जाण।

      कुछैक साल बाद सौणु अर कुम्यांणी द्वीयां झण औलादा दंश मा बिमार होण लगिन अर आखिर हारमान ह्वे झकतक छोड़ी परलोक चल ग्यांस्या उबरा छूटी ग्ये गमुली लाटी। गमुली ज्वानी मा रांडस्वैणी  ह्वे ग्ये। बल जन बि ह्वावो सूनी गुठ्यार सि मर्खू बल्द भलो। तबार्यूं  रांडस्वैणी जीवन कांडों दिसाण छौ। अजक्याला जन रामराज कख छै कि विधवा पिनसन का दगड़ फ्री को गल्ला पल्ला।  

      विधवा होणा बाद कतिगा इक्वांणो (विधुरों) नजर गमुली फर पड़ी, रिश्ता बि आयी, लोकुन समझै बि कि गमुली इतगा बड़ी जिन्दगी यकुली कन क्वे काटली। पकड़ कै कु हाथ। नयुं घौर बसो, आस औलाद द्ये कैका घौरऽक जस बणि रो। पर गमुली मेड़ बुबा तैं दियां बचन फर अडिग रे। वींन हैका घौरे स्वेंण होण हरेहद मना करी। अनुसुया, रामी बौराणी जना सत नारियूं कि धर्ती कि जु छै। पाड़े पाड़ जन नारिन पाड़ो जीवन इकुली काटण मंजूर करि। आखिर सांस तलक सोणु उबरा धुँयेर लगाणी रे। सौणु कि जमीन जैजाद भौत छै फर जादाकर ढौ ढंगार वाळी छै, जख मीनत जादा अर उर्जित कम। मथि बटि खौ-बाग, गुणी बांदर अर सुंगरों अलग तमासु।

      भगवानल गमुली तैं जनि ढिलढौल शरेल दिनी उनि हिगमत अर सेन शक्ति बि, ढूंगा जनि जितम ल्येकि लोकूं कु खूब बोल करि, नाक-नाकी अपणा हिस्से जमीन खैनी करि। मांगी देखि होळ तांगळ लगवेन अर अपणा हटगों बदिन गर्जम गुर्जे गिरस्थी खिंचिन। इनि बिगैर लाण-खाणी अर बोलन गमुली तैं बगत सि पैली गमुली ददी बणे दिनी। गौं मा छवटा बड़ा वीं तें गमुली ददी यी पुकरदा छै।

      सत इनु कि म्वोर फर अयां तैं खाली हाथ नि जाण द्येनी। चै अपणु तवा रितो किलै नि राउन। दर-कर, डो-डड्वार, जोगी-जगम दुन्यां का देख देखी निभोन्दी। गौं मा हर कैका दुःख-सुख मा सामिल होन्दी। कैका ब्यौ बरियती मा स्याह पट्टा दिन बटि द्वार बाटा तलक मदद करदी। ऐरां दा जमाना तैं क्या ब्वन, “गरीबे कज्याण बल सब्यूं कि बौ। ज्वा-त्वा सुद्दी टोकदू थ्वचदू। चुगलेर अलग कर्दा। पर स्या चुप सोंदी। कैका मुख नि लगदी। कुछेक औंछा लोगुं का इनमण्यां कटाक्ष बि सैनीये रांडौ मुख कख बटिन दिखिन सुबेर सुबेरचल फुंड म्वोर पता नि कख बटिन ऐ जांदी बुटो नाक ल्ये शुभ करिज मा अगलर्या ह्वे। दुनियें औनार मथि वळाल नि बदली साकी त वा बिचारी क्या बदलेन्दीअपणा बल्दे मार खयीं जनी चुप सोंदी छै। 

      रांड जीवनऽक रगड़याण मा वींन सतित्वे परिक्षा पास यी नि करि बल्कि सदानी फर्स्ट रेन। उजड़यां गिरस्थ का विधवा विलाप तैं सदानी अनहद बणे शांति पाठ जपी। पर जमाना तैं क्या। जै को पुटुग भरयूं रैंद वेन भुखै कबळाट क्या चितौंण। अरे मायाबी मथि वळु ! कैकी किस्मत पार्कर अर कैकी घिसण्यां डोट प्यनल लिखदू। वा रे ! तेरो बि अजीब कृत्य च। कुछ त अद्यळो बुस्यैलोकरि देन्दो वींका जीवन मा। मनखी तैं वे का करयूं कु सिला नि मिल्दो त वा टूटी क्या बिखरी जांदो  साब। पर वा बिचारी क्या बिखरदी यऽक शरेल यऽक ज्यान। दिनभर थौके बदिन पस्त राति कम्वटा पुटुग घुघच्यां घुन्डा सुबेर घामे झौळ पर ही सिद्दा होन्दा।

      समै कबारी सटक्यूं पता नि चलि, बोत्तर साल जन ब्याळी बात ह्वो। तीन चार दिन बटि बुखारन शरेल छौ तपणू, टुटणू। हौंग करि घुण्डा घूसी गुठ्यार पुन घास न्यार करि। रुवटी खाणे तक सक्या नि रे त बणाण क्या छौ। उनि कणान्दी दिसाण पकड़ी । राति कबैर बिगैर पाणि अर हिरण को पराण उड़ी हवा दगड़ मिलिन कैतें पता नि चलि। सुबेर जब गौड़ी अड़काट छै लग्यूं तब जै किन मौ वळोंन ख्वोज करि कि आज बुढ़ळी कख गे। भितर देखी त बुढ़ली का खुल्यां गिच्चा फर माखा छै भिभड़ाणा।

      वींका करमों कु प्रराब्ध ज्येठा घाम सुखणू रो अर पूसे रात कुड़कुड़ाणों रो। आठ भै बेणियों का घिमसाण मा बाळापन नांगी नाची, भुक्खै पाती ज्वानी उलार ओंण सई बुबा का लालचन बुढया बल्द दगड़ बांधिन मथि बटि औती छुरी कि चीर्री। किस्मतन भोरयां दुधलों तैं दूध पोजणों म्वका नि दिनी। जाती वंसे वा क्षत्रांणी जीवने लड़ै नूरानांग का जसवंत सिंग जनि यकुली लड़द खपि ग्ये छै। सैद यीं भोगाया वास्ता मथि वळा भेजी ह्वो। इना अभौ जीवन मा आम मनख्यूँ कि नेत बाटू बदलेणू या छवड़णो जादा दिखेन्द फर वीं मूर्तिन ना बाटू बदळी ना छवोड़ी। खैर वीं कि तिरैंन आज सब्यूं का कंठ अर ज्यू का स्पदन त ख्वोल्याली छौ, पर ! तिरैं हजम होणा बाद खुल्यां राउन यांकी क्वै गारंटी नि।

 

असौंग शब्दों अर्थ :-

रांडस्वैणी (दशोली मा प्रचलित शब्द) - विधवा, रांड। मणि - कमती, थौड़ा। बोल - जादा धाण, अत्यधिक परिश्रम। जितम – पक्की छाती, हिगमत।

 

कानीकार : बलबीर राणा अडिग