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Tuesday 9 December 2014

जलम भूमि की याचना


सज्यूं रौलु धज्यूं रौलु मितेँ  सजाला तुम
हरयूँ रौलु भरियुं रौलु मितेँ सिंचला तुम
भरलु तुमारु गुठ्यार आशीष दयोलु मुठ्ठी खोली की
भैर भितर हरीष लगलु ड़्वार नि ढ़्वक्ला तुम।

मैन भी जुग- जुग बितायी तुम मंखियों तें कोळी स्येवाळी
प्रकृति का छपोड़- छपोड़ खैकी तुमारी संतति जिवाळी
मेरु क्वोदु - कपुला खैकी,लॉट साहब बण्या तुम
जलम दयोंण वाळी ब्वे छोड़ी लाड मौंस्याणी तें कना तुम।

खाणा रैला मेरी पीठी मां बस्याँ राला मेरी क्वोलि मां
मन्खियत कु निसाब मिललु माया कु भण्डार मिललु
ज्योत जगणि रैली भोळ कुणी उज्यालु कर्ला तुम
अपणा धर्यां ढुंगों पर बंश कु बाटू अग्ने बडौला तुम।

मैंन कल्प देखी, देखी ते कल्प कु कलिकाल भी
आणु-जाणु जीवन देखी घडी-घडी कु बदलाव भी
मन्खीयों कु हंकार- जैकार देखी कब्बी नि रायी गुम-सुम
आज इनि औडालु आयी ये अडिग तें ब्बी हिल्येगा तुम।

क्रमश:-
रचना -बलबीर राणा 'अडिग'
© सर्वाधिकार सुरक्षित मेरे ब्लॉग 'उदंकार' में
www.ranabalbir.blogspot.in

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