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Tuesday 7 July 2020

बसग्याळ (गीत)





रुणझुण बर्खा छुम्यां छम्यां  पाणी,
कख हर्चे बसग्याळ तेरी वा बाणी,
अब किले इतगा रोष मा आंदी,
किले ज्यू जमाणा घौ करि जांदी।

जुग बटिन तु धर्ती सिंचणी रे,
हरी भरी लता कु आषीश देणी रे,
अब बादळ फाड़ी बिणास कनि चा
रगड़ बगड़ मचे जीवन घैल कनि रे। 

अब किले कनि इतगा तुथ्याणि बुत्वाणी
अब किले इतगा जल परलै मचाणी
रुणझुण ...........

कब्बी जमाना मा तेरा गीत गांदा छाँ,
चैमासे लर्कातर्की माया भिजान्दा छाँ,
मन मोण्यां होन्दा छीड़ा छंछणा
गाड़ गदन्यां हैंसी खैली बगोन्दा छाँ।

अब चटमताळी मार्दी बदळों की गाणी  
सब्बी चबट कर्दु ज्यू जमाणे की धाणी
रुणझुण ...........

घर कुड़ि लपेटणु मवसी कि मवासी
हेरां ब्वनू नि छौडणु कनु तैसी नैसी
किले बसग्याळ तु अभिषाप बणिग्ये
चैमासी का गीत छोड़ी कंराट ह्वेगी 

तु बी कलोकाल जनि कनि रे स्याणी
तब्बी त हर साल मनखी डुबाणी
रुणझुण ...........

@ बलबीर राणा अडिग




Monday 6 July 2020

पराळे बर्त (गजल)

जब बाड़ ही उज्याड़ खै जों, त भल कने  होण,
जु पाळि बांधी वी गेंडु कटु ह्वो, त भल कने होण। 

अपणु नि देखणा हाल दुसरा देणा स्वाल धै लगे, 
सुदि अपणा गिच्चै बौराण बणण मा, भल कने होण।

बिरालुं क्या मूसा पराण जों त जों, वेन खेलणे छ 
हरंया बोण आग लगाणें मंसा से, भल कने होण। 

जौं कु अपणा बुबा फर बी विस्वास नि तौं कु क्या
बिगैर गेंडौ किल्वड़ा सवालों बदिन भल कने होण। 

घौर ख्वे घर कूड़ी, बौण ख्वै पितर कूड़ी तौं क्या हर्चीं
यख घौरा भेदी लंका ढोण पर लग्यां त भल कने होण।

अडिग झूट लाण गंगा पार, जु निभी जों दिन चार
भुला इनि पराले बर्तो सांगु खैंचला त भल कने होण।  

बर्त - भारी सामान या रस्सा कस्सी के काम लाया जाने वाला मोटा रस्सा

@ बलबीर  सिंह राणा अडिग