रतनी काकाsन गौं मा पंच्यैत बैठै अपणा तिमिली झंग्रयाड़ घास च्वरण अर झंग्वरू कुर्चणा बाबत । शेरसिंगन माँकी कसम खै चतुर सिंह सिंगा नौsकी गवै पंचैत मा दये, कि, भाई...मिन अपणा आंखोंन दयेखि चतुरु परसि रतनी काका का तिमली पुंगड़ा मा सुबेर सुबेर घास काटणु छै, अर मि थोड़ा खांसी बी त अगला भै चुप ह्वे झंगोरा पुटुग स्यान ह्वेगी, मि अदयेखी करि अपणा काम चल ग्यों मल गौं। पंच्येतन चतुरु से पूछी अरे चतरू क्या ब्वनो रे यू शेरसिंग ? त्वेन परसि छंछर बारा सुबेर
रतनी तिमली पुंगडों घास सच्ची काटि । चतुर सन्न रैगी ब्वलौं त क्या ब्वलौं... मन ही मन सोचणु रो कि यार घास त मिन काटी नि पर यू आदिम कति भरोसा से माँकी कसम खाणोs, हे राम कन कलजुग आयी यू, जु माँ पृथवी से बी बड़कर च, स्वार्थी मणखी अपणा स्वारथ का वास्ता वे खुणि बी नि बक्सणि, हे परभू क्या ह्वलू अग्ने अब ये धरती को।
सरि पंच्यैत गुण-मुण, गुड़-मुण कन बैठिग्ये, चतुरुs चुप रौंण पर लोगों तैं
होर यकीन होंण लगि, चतुरु पर कि ये की करामात च यो, पर
! पच्चास पार पौंछि दानु
सयाणु मणखी यनु गलत काम कनै कर सकद, रैन्दू क्वे छवsरा छौराs त बात मान बि सकद।
तबरि रतन सिंगे जनानी थ्यपुली काकी पल खौळ बटिन मुंड टोखरु जन बणे हिंकर फिंकर करि आयी अर चटमताळी गाळी देंण लग्गे, हे कन जड़ घाम लगि रे त्येरी, त्वे तैं अपणी आस औलादे नि छ रे रांड मस्ता ! हरे ! दुश्मनोs घास त काटि त्वेन पर वे झंगोरा डालौं
क्या बिगाड़ी तेरुs....हेरां....कन निरासपंथ ह्वे त्वेखुणि रे रांड मस्ता, कन झगुली त्वपळी घाम लगि रे त्येरी। हेरां कन गर-गरा बाळड़ा ह्वयां छाँ तख । मेरी सरुsन कमर त्वडी म्वोळा थूपुड़न थुपड़ायी छै वा पुंगडू, जड़ नास हव्य यनु दुर्बीजों, वे भैंसी कचिना कीड़ा पड़ी जैन मेरु लड़बड़ी डड़यळी खैंन, नि खाण पय्या ऐसूं बग्वाल। थ्यपुलि काकी यनि एक लगीं छै कटमचुरै गाळी देणि च्वोरुं
तैं ।
सरपंचजिन रतनी तैं डांटि यार रतनी इनि पंच्यैत मा जनानियों गाळी गलौज कण ठिक नि भै। बौ तैं बोल तेरु न्यौ निसाब ह्वे जैलू तू यख पंच्यैतो माहौल गरम न कर। फुंड जौ रांड यखमु बबड़ाट न कैर निथर ? अर रतन सिंगन जांठी उठै कि थ्यपुली काकी उन्द भगैन ।
थ्यपुली काकी जाणा बाद महौल कुछ सांत ह्वे त सरपंचsन चतुरु से फिर ब्वोली भाई चतुरु तेरु अन्यौ त करयूं च त्वेन अपणी सफै मा होर कुछ ब्वन त बोल ? निथर ? चतुरन बोळी ना दिदा ना..मिन कुछ नि ब्वन गवै देंण वळाल जब माँs क़सम खयाली त ये मा होर कुछ ब्वने गुंजैस नि आप पंचपरमेसुर जन बी दंड दयेला मितें मंजूर च, मेरी हिकमत नि माँs कसम खाणे जैल बी खायी एक बार खैल, सफै दये कि एक हौर
कसम खये जाण। वे माँ फ़र हौर अन्यौं ठिक नि, यू स्वारथी दुन्यां क्या जाणद माँ खुणे, घास जैन बी काटि काट्यली सजा मि पर लगै दया, कम से कम फिर वे मां व्येजति न ह्वो जू हम सब्यों तें पळणी वळी च।
@ बलबीर राणा 'अड़िग'