ऐरां दा लौड़ी
त्यार नि रौण पर
रै जांदी ये भितर
तौं चूड़ियों छमड़ाट
काँसे घनौळी जन
छाळी बाजौ कुण-कुणाट
गातै सिलप्याण
जन घैंसंणा बाद
तीनि उबरा रै जांदी कुछ-कुछ।
जब तू चलि जांदी
तब
छूटि जांद हौर-पोर
तै दमकोंणयाँ मुखड़ी
उदंकार
जन
घाम बुढ़णा बाद
छूटी जांद अगास मा लालिमा,
जन
मणि-मणि बची रैंदी
फजsल हुर्र-मुर्रा मा भी
जूने झोळ बाटा-घाटों ।
त्यार जाणा बाद
रिंगणु रैंदो
डंड्याळी पुन
तै गुस्याव तमतमा मुखड़ी क तमतमाट
खणमणि हैंसि क खिखताट.
अर
सुणेणु रैंदो
चुलाणा पुन
नाक क सुण-सुणाट
खौळ-चौक पुन
चपलों क पट-पटाक
गुठयार पुन
गीतौं क गुणमंणाट।
त्वै बिगैर
ज्यू करदो
बिगैर मयेड़ी
किल्वड़ा बाँधी बाछी
जन
रगर्याट अड़काट,
गौधुली मा घौर बौड़ण
लैंदी गौड़ी जन हणकाट
नाज मा बैठयाँ
घिन्दुड़यूँ जन फर्र-फर्राट।
त्वै बिगैर
नि रैंदी जीवन मा
पूसा घामें जन रंणामणि
मौल्यार मधुमासे जन
निंदै सणमणि
ज्योठा दुफरा
बांजा छैलै जन स्येळी।
त्वै बिगैर
यु पिरेमों द्याळ
ह्वै जांद बिगैर भौंरों जन बाग
सूनों सुनपट
हर्ची जांद
माये कुड़ी कि चळक्वाट।
©® बलबीर राणा 'अडिग'
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