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Thursday 20 December 2018

वे दिने बात


***वे दिने बात***
ऐजा सांखि लगि जा जरा, जाणो बगत ह्वेगी
फेर इकुलांसे  पिड़ा मा बिब्लाणो बगत ऐग्ये।

भ्वोळ बटिन न तु ह्वेली न मि सामणि ह्वलू
अग्ने उनि बडुली मा रैबार पैटाणो बगत ऐग्ये।

समाळी धैर आँख्यों का मोती जरा हैंसी जा
जांदा दौं तौं हाथियूं भुकि प्याणो बगत ऐग्ये।

ओ काखि बैठि जा घड़ेक छविं/बत लगौला
फेर गीरस्थीsक बाटू यकुली कटणो बगत ऐग्ये।

द्वी गफ्फा खल्लै दे तौं  हाथोंsन, धौ कैर दये
बिनबर्खो च्योली जन तिसलू रोणों बगत ऐग्ये।

मिन त फुर्र उड़ी जांण पंछी बण वे परदेश मा
राती दिन तेरु वा फोन मा रुसाणो बगत ऐग्ये।

चल पैटे दे पिठ्ठू मेरु अपणी समोंण बी पांजी दे
आंख्यों मा त्येरी सुवा आंसूं तबराणो बगत ऐग्ये।

@ बलबीर राणा 'अड़िग'

Wednesday 5 December 2018

वे युग पुरुष की अमर गाथा


हे उत्तराखंडी नैनवांणों इतियास तुमतें बताणु छौं
देवभूमि का वे युग पुरुष की  गाथा सुणाणु छौं।

पंद्रह सौ नब्बे दशक मा एक वीर पैदा ह्वेनी
वीर सौंणबाग भंडारी का घोर वेन जलम लीनी
जैsकी गाथा जुगबटिन ये गढ़भुमी मा गुंजणी रै
वीरभड़ माधो सिंह भंडारी नाम से वा अजर अमर ह्वे।

वे युगपुरुष की तागत को ऐसास तुमतें कराणु  छौं
हे उत्तराखंड .........

बाळापण से उटंगरी रे वा होंणहार चतुरछंट छै
लौंची उमर मा जी गढ़सेना कु सिपै बणिगे छै
वीर क्या वा भड़ क्या एक महारणपति छायो
गढ़ नरेश महीपति शाह को शूर सेनापति ह्वायो।

एक महानायक सेनाध्यक्ष की वीरता तुमतें बताणु छौं
हे उत्तराखंड .......

ज्वान मा को ज्वान छै वा दवफरी सी भडांग छै
आगो जन भभकार छै वा उदमातो फौन्दार छै
अपणी जलमभूमि का खातिर कत्गा लड़ै वेन लडिंनी
कति दुश्मनो मुंड म्वडिंन, कत्गों की धौंड़ धड़केनी।

यना वीर की वीर गाथा तुमतें मि बिगाणु छौं
हे गढ़भूमि का नैनवाणो......

मालों का वे महाकालsन, हूण दापों को छक्का छवडेनी
भारत चीन बोर्डर जोन वोड़ा मुँडरा गाड़ दयेनी
पाsड़क पुटुग सुरंग बणाण वाळू दुन्यों पैलु इंजीनियर ह्वायू
अपणा बेटो कु बलिदान करि वा पाणी कूल बगै ल्यायो।

यना परोपकारी मणखी कु सत तुमतें समझाणु छौं
हे उत्तराखंड का .......


थाती माटी का खातिर यनु भगिरथ काम करिगे वा
जन्मजमान्तर का वास्ता मलेथा को उद्दार करिगे वा
एक सिंह बण को, एक सिंह गाय को
एक सिंह माधो सिंह, हैकू सिंह काहे को
इना महाशेर कु शूरत्व आज तुमखुणे दिखानु छौं
हे उत्तराखंड का ......

मणखी छै वा अनमणमाथी को राण्यों को रौंसिया छै
अपणो खातिर मयाळू मायादार फूलों को वा हौंसिया छै
एक बार को  विजय रथ तौंकु छवटा चीन तलक गैनी
निर्भगी बीमरी लगी जु सदानी तें घर बौडी नि ऐनी।

मृत्यु शय्या पर बैठ्यां वे पुरूष की रणनीति तुमतें बताणु छौं
हे उत्तराखंड का.....

साहसी निडर ते भड़न,आखरी दों सिपैयों तें समझायी
मेरा मरणे खबर दुश्मनो तें पता न लगण दयायी
निथर तुम एक भी ज्वान घोर बौडी नि जाला
दुश्मन तें अगर पता चलि त तुमतें यखी लमडे दयला।

वे गढ़भुमि का रणबांकुरे आखरी ख्वाइस बिंगाणु छौं
हे उत्तराखंड का.....

लड़ने रय्या पिछने हटणे रय्या घोरsक बौडी जयां तुम
मेरा शरील तें तेल मा लपोड़ी हरिद्वार मा जगे दियां तुम।
ये बीर गाथा परमाण इतियासकारों की कलम बतै दयली
त्याग समर्पण की मिशाल मलेथा खुशाली तुमतें समझाली।

देवथाती का युग पुरुष की प्रेरणा तुमतें सुझाणु छौं
हे उत्तराखंड का .....

*** वे समै मा मलेथा कु लोक व्यवहार***

बारा बित्या मास अर छई ऋतु चली गैनी
बारा ऐनी भेलो बग्वाली सोला शरद पूरा ह्वेनि
सब्बि ऐना घौर बौड़ी की, मेरु माधो किले नि ऐनी।

करुणा कनि रे राणी बौराणी, धरती पछाड़ खाणी रैनी
हिन्क्वाण पड़ी रो गौं ख़्वाळो, हाथ न क्वे धाणी लगीं
सब्बि ऐना घौर बौड़ी की, मेरु माधो किले नि ऐनी।

चौंल छड़याँ का छड़याँ रैग्यां दाल दौलीं की दौळी रैनी
ऊनि रैग्ये बासमती च्युड़ा, थौलो कांकर टंग्यों रैनी
सब्बि ऐना घौर बौड़ी की, मेरु माधो किले नि ऐनी।

हे मेरा नैनवाणों यू छै वे बीरभड़ माधो की कथा
स्वोना आंखरों से लिख्यों  रैलू वे पुरुष की शौर्य गाथा ।

रचना : बलबीर राणा "'अड़िग'

संकलन सभार:-
हरिकृष्ण रतूड़ी रचित और श्री डॉ यशवंत सिंह कटौच द्वारा संपादित एवं संशोधित गढ़वाल का इतिहास, डॉ बीरेंद्र सिंह बर्तवाल रचित गढ़वाली गाथाओं में लोक और देवता और डॉ नंदकिशोर हटवाल जी के ग्रंथ चांचडी झुमाको