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Monday 20 November 2023

ह्वणकारै औनार

जबारी बि सु छुट्टी मा घौर औन्दू

जरा सि घौर अर जरा सु बदली जांदू

तै ऊणि मि हौर कमजोर अर बुड्या त 

मितैं सु खूब डमडमौ सयांणू नजर औन्दू।


स्या इलै जादा मयाळी निमाणी ह्वे जांदी

म्यैल्यो सु अब ब्वै मु होणी खाणी लगान्दू 

वींन भी चितैली कि येल फाँगी पकड़याली 

अर सु अफूँ तैं टुकू पौंछणू हौंग चितांदू।


जबारी बि सु......


तै से अब नि रैंदी क्वै सिकैत कमी हमुतैं 

सु हमारा गुजराट को दिक नि चितांदू 

कभी सुणे भी जांदा हम नखरी सकरी त

सु या हुंगरा देंदू या मुल मुळकी जांदू ।


जबारी बि सु......


मुखड़ी फर चिमुड़ा हमारा बड़णा 

काँधा झुक्याँ सु अपणा चितांदू 

पैंसें फिकर ना कैर मि बोल्दू छौ कब्बी 

अब वीं बात घौर बटे जांद सु द्वौरान्दू।


जबारी बि सु......


भलि बुरी छवटी बड़ी समझाण बैठयूँ सु 

म्यैल्यौ गिरस्थी फंची अफूँ उठाण चान्दू 

समै चकर फिरड़ी अपणी जगा औन्दू साब 

इलै नोनू भी एक दां ब्वै बाबा बणी बुथ्यान्दू।


जबारी बि सु......


©® बलबीर राणा 'अडिग'

20 नवम्बर 2023

Saturday 30 September 2023

नि रौण फर



ऐरां दा लौड़ी


त्यार नि रौण पर 

रै जांदी ये भितर

तौं चूड़ियों छमड़ाट 

काँसे घनौळी जन

छाळी बाजौ कुण-कुणाट 

गातै सिलप्याण 

जन घैंसंणा बाद

तीनि उबरा रै जांदी कुछ-कुछ।


जब तू चलि जांदी 

तब 

छूटि जांद हौर-पोर 

तै दमकोंणयाँ मुखड़ी

उदंकार

जन 

घाम बुढ़णा बाद

छूटी जांद अगास मा लालिमा, 

जन

मणि-मणि बची रैंदी 

फजsल हुर्र-मुर्रा मा भी 

जूने झोळ बाटा-घाटों ।


त्यार जाणा बाद

रिंगणु रैंदो

डंड्याळी पुन 

तै गुस्याव तमतमा मुखड़ी क तमतमाट 

खणमणि हैंसि क खिखताट.

अर 

सुणेणु रैंदो

चुलाणा पुन

नाक क सुण-सुणाट

खौळ-चौक पुन

चपलों क पट-पटाक

गुठयार पुन

गीतौं क गुणमंणाट।


त्वै बिगैर 

ज्यू करदो 

बिगैर मयेड़ी

किल्वड़ा बाँधी बाछी

जन 

रगर्याट अड़काट,

गौधुली मा घौर बौड़ण

लैंदी गौड़ी जन हणकाट 

नाज मा बैठयाँ

घिन्दुड़यूँ जन फर्र-फर्राट।


त्वै बिगैर 

नि रैंदी जीवन मा 

पूसा घामें जन रंणामणि

मौल्यार मधुमासे जन 

निंदै सणमणि 

ज्योठा दुफरा

बांजा छैलै जन स्येळी।


त्वै बिगैर 

यु पिरेमों द्याळ

ह्वै जांद बिगैर भौंरों जन बाग 

सूनों सुनपट

हर्ची जांद

माये कुड़ी कि चळक्वाट।


©® बलबीर राणा 'अडिग'

Tuesday 26 September 2023

मनसा गीत



चल रे मन-ज्यू मेरा, एक नयूं संगसार बसौला,

दुनियां-दारी का ऐथर, नयुं साज सजौला।

चल रे मन ज्यू मेरा होऽऽ...... होऽऽ.........


ऊँचा अगास मा, पोथळी बणी कि उड़ला, 

घ्वेड़-काखड़ जन, र्निघंड बणों मा घुमला।

मयळी कुखड़ी बणीं, घरों-घरों मा बांग द्यूला,  

घुघता-घुघती का जन, एक हैका का गळज्यू रोला।

होऽऽ...... होऽऽ.........

चल रे मन ज्यू मेरा ................


डाळि-बोटि बणि कि, जीवन हवा पाणि द्यूला,

डोखरा-पुंगड़ों जमि, जी जमाण कु पुटुग भरोला।

बरखा कुयड़ी बणि कि, धर्ती माता सिंचोला,

धारा-मंगरों मा बगि, दुनियां की तीस बुथ्योला। 

होऽऽ...... होऽऽ.........

चल रे मन ज्यू मेरा ................


ऊँचा हिवांळा बणि, गंगा जमुना बगोला,

हरा-भरा बुग्याळ जनु, सुख शान्ति रैबार द्युला।

उकाळ-उन्दार मा, मनख्यों तैं तागत द्यूला, 

सैणा-दमळों का जन, सौंग-सांग बणि कि रौला।  

होऽऽ...... होऽऽ.........

चल रे मन ज्यू मेरा ................

© ® बलबीर राणा ‘अडिग’

Tuesday 19 September 2023

बाबा ! मि उणि वति दूर ना बिवयाँ



बाबा !

मि उणि वति दूर ना बिवयाँ

जख मितैं मिलणा खतिर 

त्वै बेचण पड़ला 

अपणा बखरा।  


जख मनखी सि जादा 

द्यबता बसदा हो

तै मुल्क ना बिवयाँ।


जख बण-बोट 

रौंत्यळी धार

बगदी गंगा-गाड़ ना हो  

तख ना करियां मेरी मांगण। 


वख त बिल्कुल भी ना

जख सड़क्यौं मा 

मन सि जादा 

भाजदा हो गाड़ियां मोटर-कार। 


वीं घौर ना जोड़यां मेरु रिस्ता 

जै घौर मु ना हो 

खिलपत खौळ  

जै द्येळी कि रात नि ब्यान्दी हो

कुखड़ क बागन 

अर ! 

जै कूड़ी बटे नि दिखेन्दू हो  

ब्याखुनी अछलेन्दू 

पिंगळू स्वीली घाम। 


ना ढूंन्या यनु जवैं 

ज्वा डूबियूँ रौन्दो हो दौरु मास मा 

ज्वा निकज्जू 

असंगळया-आदळी हो 

ज्वा रुप कु रसिया 

गात कु खसिया हो।


जवैं 

क्वी थकुलो ल्वट्या नि कि 

जबारी चै बदली ल्योलु

भल बुरु होण फर।


यनु बर नि बर्रय्यां 

ज्वा छवटी सि छुवीं फर कैर द्यों

माँ-बैंणी, लठ्ठ-लात 

यनु बिछनट्या गुस्यार ना हो 

ज्वा चम्म निकळदू हो

थमाळी, कुल्याड़ी तलवार

अर बणैं द्यौ 

अचाणचक मवसी तैं 

बंगाल, असाम, कश्मीर

कैर द्यौ माभारत।


मेरु हाथ इना हाथों मा ना दियां 

जैका हाथन ना रोपी हो एक डाळी

जौं हाथन नि पकड़ी हो हौळै मुठ्ठी 

नि उगैन हो फसल-पात।

  

जैन नि देनी हो 

हाथ कै उणि गौळा तराणू 

जैन नि लगायी हो 

मौ-मदद तैं कखि कांधा-नौर। 


अर ! हौर त हौर 

ज्वा हाथ नि ल्यखण जण्दा हो 

‘ह’ सि हाथ

वे मा ना दियां मेरु हाथ। 


बाबा !

मितैं बिवाण हो त वख बिवयाँ  

जख सुबेर बटे ब्याखुनी तलक

मि देखी साको अपणु मैत कु मुलुक।

अर ! 

कब्बी मि दुख विपदा मा 

रुणी हो वली छाला 

तऽ ! तुम पली छाला बटे

नयेन्दा सूणी साको  

मेरु कणाट-रुणाट। 


जख बटे 

मि भेजी साकूँ तुमुतैं 

अपणी असल-कुसल कु रैबार

अरसा अर रुटणा बणें। 


बगदा बसग्याळ 

भेजी साकूँ

कखड़ी-मुगरी चिचिंडा-ग्वदड़ी कु साग।

पैटे साकूँ, ह्यूँद हिवाँळ 

तुमड़ा लौंकी करैलौं कु सुगसौ 

भुल्ला भुल्लियूँ का वास्ता। 


इना मुल्क बिवयाँ मितैं

जख मिली जावो क्वी अपणों

ख्यळा-म्यळा बजार मा औंदो-जांदो 

अर सु बतै साको मितैं 

मेरी ब्वै कु रैबार

मैत मुल्का हाल-समचार

धौळी गौड़ी कि ब्याणें खबरसार।


वीं मुल्क बिवयाँ मितैं

जख भगवान कम मनखी 

जादा रौंदा हो 

बाग अर बखरा 

योक तल्लौ पाणी पीन्दा हो।


वीं दगड़ बिवयाँ

ज्वा चखुला बणि 

अपणी चखुली दगड़  

रै साको हर बगत।


ज्वा बांटी साको 

बण-बूट डोखरा-पुंगडों बटे 

रात दिसाण तलक 

मैं दगड़ सुख-दुख। 


यनु वर चुन्याँ 

ज्वा बजान्दो हो 

मन-मौण्यां बांसुरीं


ज्वा द्ये 

साको बार-त्यौवारों मा 

द्यबतौं तैं अग्याळ 

बजै साको 

ढवोल दमों मा धुयाँळ 

नचै-ख्यलै साको

अपणा द्यौ-द्बता 

रीती-रिवाज।

 

ज्वा ल्यै साको 

मेरा धौंपेली उणि 

पाखौं बटे सिल्पोड़ी का फुन्ना। 


जै का गौळा उन्द 

गफ्फा ना जावो

मेरा भूक्खा रौण फर

बाबा !!.......

वीं दगड़ बिवयाँ मितैं। 

 

 कविता : निर्मला पुतुल

अनुवाद : बलबीर राणा 'अडिग' 


Friday 15 September 2023

ख्याल

 


   
        

  देखा-देखि
    सब्बि चलि जाणा
       पल, घड़ी, दिन-बार,
                   मैना अर साल
                          यूँ दगड़ उमर
           बस! नि जाणूं
               त
                  वा
                      तेरू ख्याल
                                 किलै ?

  @ बलबीर राणा 'अडिग'

घौ



कुछ पौजणा 

रंद सदानी

सिमारौ जनु पाणी.


कुछ रौंदा बारामासी

हैरा का हैरा

शीला पाखों जनु घास।


कुछ दिखेंदा नि पर 

बिणाणा रैन्दा

कुरौ-कुमरा जन।


कुछ पिल्ला फ़ौड़ू जनु 

उबजी जांद अचाणचक।


अर कुछ ज्वा 

जिंदगी भर मौळदा नि।


जुबाना घौ

ध्वका घौ

बिरह-बिछौहक घौ

अपणासा घौ

दुश्मन-बैरी घौ

वियोग-शोकौ घौ

प्यार-पिरेमा घौ

निरपूतौ घौ

कुपूतौ घौ।


हाँ

मौळयै जांद यूँ मा

कुछ घौ

जब सुबेरौ भूल्यूँ

ब्यखुंदा घौर बौड़ी

ऐ जांद ।


@ बलबीर राणा 'अडिग'

Saturday 9 September 2023

गजल


दिन-बार, साल गुजरी जांद,

उटंगर्या बेमान सुधरि जांद।


खूनौ उमाळ सदानी नि रंद,

बसग्याळे गाड़ उतरी जांद।


आजौ झकमकार डालौ भी,

एक दिन सुखी ठंगरी जांद।


झूंतू जमदरी सदानी नि राई,

छवटा बड़ा सब्बि सर्की जांद।


जख मिली घळकी, तखि ढलकी

भजीराम हवलदरि दुत्तकरि जांद।


ज्वनि मद-मदिरा मत्याळा अडिग, 

सब्बि नशा योक दिन उतरी जांद।


Saturday 2 September 2023

गजल : रूसाण


ज्वा द्वियाँ रुसयाँ राला त क्व मनालो,

जिंदग्या अलझ्यां धागा क्व सुलझालो। 


इनु अब्वलो, गुमसुम चुपचाप ठिक नि 

ये दुन्यांदरी ऊणि गिच्चो क्व ख्वलालो।


आजै दरार भ्वोळ ऊं खाड़ बण सकद, 

फेर वीं खाड़ उंद कैतें क्व खड़यालो।


सुद्दी यतनु को ततनु नि बणाण बल,  

भगवानों दियूँ यु रिश्ता क्व निभालो।


द्वियां अपणा मा इनि उसयाँ रैला त,

माफ कने हिगमत क्व दिखालो।


हिलांस जनु खुदेल्या जब यकुली त, 

घुघतां जनु गळज्यू सांखा क्व लगालो।


योक तम त्यार भितर योक म्यार, फेर,

यूँ तमोंsक तमासु शांत क्व करालो।


रुसाण मा माये डौर कमजोर पड़ली त,

बुढ़ापा मा गौळा क्व तरालो।


द्वियां मा एकन अगर आँखी बुजिन त,

भ्वोळ यूँ छुयूँ छिंज्याट पर क्व पछतालो।


जिंदगी कैतें मिली सदानी वास्ता अडिग,

सदीं जिंदगी ज्योण हमु तैं क्व सिखालो।


8 अगस्त 2023

✍️✍️✍️

@ बलबीर राणा 'अडिग'

गवाड़, मटई बैरासकुण्ड

Friday 1 September 2023

गजल


बात यन च, कि बात जाणण चैंद 

नि जाणि सकणा त मानण चैंद ।


सुद्दी नि खौतण, जु गिच्चा मा आई

गिच्चु ख्वन सि पैली स्वचण चैंद। 


अति का भला ना बुलाण ना चुप्प, 

अति जों बल खति बिंगण चैंद।


म्यार बाबन घ्यू खायी मेरु हाथ सूंगा,

बिगैर बुलयूँ मेमान नि बणण चैंद। 


छवटो सि पैणु यी बुरा मने जड़ ह्वनी,

इलै गौं छवड़ण पर मौ नि छौड़ण चैंद।


बिराणा लाटे हैंसी, अपणा कि रुवै अडिग 

इलै कैकी कमजोरी तैं नि बिमटण चैंद।


@ बलबीर राणा 'अडिग'

मटई बैरासकुण्ड, चमोली

पल्टन गौरवगान


हे बद्रीनाथ बद्री विशाला,

आदि देवा पुरुषोंतमा। 

पल्टन तैं बल बुद्धी दियां,

विजय शक्ति दियां महामना।


इनी छत्रछाया रख्याँ प्रभो, 

कृपानिदान जनार्दमा। 

नाम नमक निशान का खातिर,

जोश हौस हुयाँ बलवानमा। 


जै हो बद्री विशाल, जै हो चौदह गढ़वाल।

तेरी सेवा कना रौला, चै जन बि रैल्या हाल।


त्याग समर्पण दृढ़ता पर, 

अडिग छवाँ हर हाल।  

असम्भौ ब्वना सिख्याँ नि 

तेरी कुछली का हमु लाल। 


माथा तेरु झुकलु नि,  

चै ल्वे लगि जाला खाळ। 

सदानी हमु डटयाँ रौला, 

हर बगत हर हाल। 


जै हो बद्री विशाल, जै हो चौदह गढ़वाल।

तेरी सेवा कना रौला, चै जन बि रैल्या हाल। 


जोधपुर बे सिक्किम चढ़ी, 

पिथोरागढ़ से सियाचिन बढ़ी।  

मेघदूत मा प्रशंसा पै कि, 

मेरठ मा होरि निखरी। 


मणिपुर जंगळों मा,  

विद्रोहियों तैं धूल चटायी।

सी आई पैली विजय पर,

साईटेशन कमायी।


जै हो बद्री विशाल, जै हो चौदह गढ़वाल ।

तेरी सेवा कना रौला, चै जन बि रैल्या हाल। 


देहरादून का पीस मा,

खेलों  मा करि कमाल।  

नौसेरा एल सी पर,

हमुन मचायी  धमाल। 


दुष्मन का घौर घुसी, 

तांडव हमुन मचायी।

आतंक्यूँ ढैर करि,

साईटेशन दुसरु कमायी। 


जै हो बद्री विशाल, जै हो चौदह गढ़वाल।

तेरी सेवा कना रौला, चै जन बि रैल्या हाल। 


ऑप पराक्रम सांबा मा,

बुद्धी शक्ति तैं दिखायी।

माईनों बारुंदों का,

नयूँ इतियास रचायी ।


कटिहार फैजाबाद मा,

ट्रेनिंग कु लो मनायी। 

विश्व शांति कांगो मा,   

पल्टनल कदम बढ़ायी। 


जै हो बद्री विशाल, जै हो चौदह गढ़वाल।

तेरी सेवा कना रौला, चै जन बि रैल्या हाल। 


यू एन प्रशंसा ल्येकि,   

स्वदेशा ओर बढ़ण्याँ। 

नौगाम कश्मीर तर्फां, 

पल्टन का कदम चढ़ण्याँ। 


जटि की चोटियों फर,

मुजादिन ठोकि ठाकी।  

अजय तौमर कृति ल, 

साईटेशन फिर दिलायी।   


जै हो बद्री विशाल, जै हो चौदह गढ़वाल। 

तेरी सेवा कना रौला, चै जन बि रैल्या हाल। 


ताज गरुड़ो पैरी, 

रानीखेत मा राजा बण्याँ।

पल्टन कु शौर्य अग्ने, 

आसामा तर्फां बड़ण्यां। 


ऑप स्नोलेर्पड मा,

साबासी खूब कमाई । 

पल्टन कु झंडा फिर,

मेरठ पीस आई । 


जै हो बद्री विशाल, जै हो चौदह गढ़वाल। 

तेरी सेवा कना रौला, चै जन बि रैल्या हाल। 


अमन ह्वो या युद्धकाल,

कर्मपथ पर अडिग रैनी।

यात्रा अजेय हमारी, 

चौं 


पाईन डिवीजन मा

चैमपियन बणी की रायी

गढ़वाली भुलाओं न

अपणु डंका बजायी


दीपसांग ट्रेक लेह मा

भुजबळ अब दिखोला

चुंग फुंग चीनियों तैं

दम ख़म हम बतौला िशों मा गुंजणी रैनी। 


अडिग नीव रखणा वाळो,

तुम्तें सत सत प्रणाम। 

खंडित नि होणें द्यूला, 

ब्वनु छै पल्टन जवान। 


जै हो बद्री विशाल, जै हो चौदह गढ़वाल। 

तेरी सेवा कना रौला, चै जन बि रैल्या हाल। 


@ बलबीर राणा  ‘अडिग’  

Saturday 5 August 2023

गजलै गँजाक चंट भैजी पर


चंट भैजी दिन ब दिन सुखणु चा,

मुसमुस्या ग्वोसु जनु जगणु चा।


भैजी तैं इलै अपच ऐसीडिटी छन,  

कि हैका ऊणि कन कि पचणु चा।


लुकैं उन्नति बरगत से अग्ने पौछणु 

भैजी सस्तो सौटकट ख्वजणु चा।


अपणों का चिरयाँ सुलारों चिंता नि,

बिराणा टूला-टालौं पर खिर्रसणु चा।


भैजी जणदू नि बिच्छी को मन्त्र पर,

सट्ट सर्प का दूळा हाथ कोचणु चा।


दुन्याँ तैं ठगै झपौड़ी कमाणु भितर,

भैर भटयाभट ईमानदारी पढ़ाणु चा।


दीन धरम आर-सार त चलिग बिलैत,

सु गरीब दुख्यारों कु बि खसकाणु चा।


सु क्या चितालौ मीनत पस्यो अडिग,

ज्वा झूठा सौं मा आगफत गफ्याणु चा । 


*शब्दार्थ*:-


गँजाक - दाड़ मन/ दहाड़ 

लुकैं - औरों की

खिर्रसण - ख्यदो /ईर्ष्या

पस्यो -पसीना

गफ्याणु - गफ्फा मरण 


*@ बलबीर राणा 'अडिग'*

ग्वाड़ मटई

Monday 31 July 2023

बारा बरम : अडिग दोहावली



द्यो-सरग जन भी रावो, बरखा बथौं बयाळ।

ना बिंगदो ना जण्दू छौ, नानछनों उछ्याद।।


ज्योण बाळापनों छयौ, चिंता फिकर अजाण। 

पुटुग भर्यूं चैंद छौ बस, फेर त कुर्चम कुर्चाण।।


मुबैल इंटरनेटला, क्वै निकजु क्वै किसाण।

क्वै पौंछया टुकू मांग, त क्वै गारत मिंजाण।।


मुडी खाड़ टुटगा धौंण, मुबेलौ लग्यूँ रोग। 

सोशल मीडिया चंटा, त असल जिंदग्या जोग।।


बीडियो रीलौं मा छन, ज्वान बुड्या नचाड़।

शरम संस्कार ढुंगा मा, बेसरम बणिन पाड़।।


जाळी-काळी टुफल्यूँ कु, जमें नि करा बिस्वास। 

गुरौऽल डंक मने ही च, चै क्वै किलै नि खास।।


बिन दबयां रस नि द्यना, संतरा निंबू आम। 

अफूँ दब्यां पूरा नि ह्वन, स्या सरकारी काम।। 


सुखी संपत मने जांद, चुलणा चिलमें आग।

बूढ़ बुढयैं आड़ ह्वनी, जन भर्यां बौण बाग।।


भौतिकताऽ भिभड़ाट मा, लग्याँ च भाजम भाज। 

खाणि-पीणी सब हरचीं, टेम नि घड़ैक आज।।


या धरती कैकी नि रै, नामी हो चै आम। 

दाणु-पाणी निमणि जांद, क्या सुबैर क्या शाम।।


अजक्याला राजनीतिज्ञ, उल्टा शतरंज बाज।

जख देखि राजा फंसणु, प्यादा हैका काज।।


ध्वाड़ा इन्द्रियां दै रथ, धर्यां अकल अर हौंग।

मनैं लगाम कसण अडिग, जात्रा ह्वेली सौंग।।


*शब्दार्थ*

द्यो-सरग = मौसम, 

कुर्चम-कुर्चाण = धींगा मस्ती

टुकू = चोटी

निमणि = खतम होण

हौंग = हिगमत


*@ बलबीर राणा ‘अडिग’*

मटई बैरासकुण्ड

Friday 14 July 2023

गजल



ऐरां अपणु त छौ पर सांखा भिटे नि साकी,

सु पड्यूँ ही यनु जगा छौ कि उच्यै नि साकी।


मास्तौ खांण छौ त हाथी खांद गेर भरी जांदी,

तिमला तिमिल खतैन लाज बि बचै नि साकी । 


लूsका चै लुकावा या खाड़ मुड़ी खड्यावा,

सड़याँ ढयौरै बास क्वी मट्ठयै नि साकी।


ह्यूँ मा हग्यूँ सै ह्वे जांद एक न एक दिन, 

कुछ बि करा घामें झोळ क्वे छुपै नि साकी।


टयौळी टफळी, टयौळी अकल छ रे बाबू , 

तब्बी त त्वै तें दुन्याँ बींगै नि साकी।


साग बिगाड़ी माण न, गौं बिगाड़ी रांड न,

या बात तेरी ख्पड़ी किलै पचै नि साकी।


@ बलबीर राणा 'अडिग'


Wednesday 12 July 2023

उन्नीस घ्वड़ा



कै गौँ मा एक संपन्न सेठ मनखी छौ। अपणा जीवन कु समै पूरो कना बाद एक दिन सु स्वरगबास ह्वेगे अर छोड़िगे अपणी चीज बस्त सम्पद जनु  कि विधातो नियम छन। धन संपद क्वे छति मा बाँधी नि ल्ही जान्दो। त साब तैं आदिमे संपद  मा उन्नीस घ्वाड़ा भी  छया, जों का बँटवरा वास्ता तेन बस्यत छोड़ी छौ। करियाकाराम का बाद सु वसीयत पढ़े ग्ये।

वसीयत मा लिखयूँ  छौ कि म्यारा उन्नीस घवाड़ों मा बटे अद्दा मेरा  लड़ीक तैं, एक चौथै मेरि बेटी तैं,  पाँचवा हिस्सो मेरा नौकर  तैं दिए जावो।

अब सब लोग परेसान घंघतौळ मा कि उन्नीस को यनु बँटवारु कन क्वे होलू? उन्नीस को अद्दा कु मतलब  एक घ्वाड़ो द्वी फाड़ कन पड़लो याने काटण पड़लो, एल घोड़ा तैं मारण पड़ोल। चला एक मारी भी ध्योला त अब अठ्ठारा बचला, अब वूं कु चौथै साड़े चार, साड़े चार।  फिर अग्ने पांचवा हिस्सो ?

 सब्बि यार आबत बड़ा घंघतौळ मा छया कि ये आदमिल कन जंजाळ करि या, फूँ म्वना बाद  कुटुमदरी तैं यनु जाळ बुणेगे।ज

ब कैका समझ मा क्वी सई जबाब नि आई त सल्ला करिगे कि फलांण गौँ  मा फलांण आदिम भौत चतुर बुद्धिमान मनखी छन, वे सणि बुलये जावो, वूं मा पक्को समधान मिल्लो।

तै चतुर आदिम तैं अर्तवळू भेजे गयो, अर सु बुद्धिमान भी अपणा घ्वाड़ा ल्ये पोंछीगे।

बुद्धिमान मु समस्या बतैयेगे , बुद्धिमानल समस्या सुणी, समझी  अर अपणु दिमाग़ लगेन।  फेर बोली यार भै बन्दों इनु करा तौं उन्नीस घ्वाड़ों मा मेरु घ्वोडू मिलै बाँटी ध्यावा। 

अब जनता स्वचण लगी कि एक त सु म्वन वळू पागल छौ ज्वा इनि बस्यत करि चलग्ये अर हैको पागल यु आई ज्वा बोनू तौं मा मेरु मिलै बाँट ध्यावा। 

फेर सब्यून सोची तौळी कि जब सु बोनू त बात मानी ल्या,  यनु कन मा हर्ज बि  क्या छ। 

अब

उन्नीस मा एक हैको घोड़ू मिले कि बीस ह्वेन, 

बीस को अद्दा दस, ज्वा लड़ीक तैं दियेगे।

बीस कु चौथै पाँच, पाँच बेटी तैं दिनी। 

बीस कु पाँचवा हिस्सू चार, सु चार नौकर तैं दियेग्ये।

दस धन पाँच पंद्रा,

पंद्रा धन चार उन्नीस।

तौं बीस घोड़ों मा बचीग्ये एक। 

ज्वा सु बुद्धिमान मनखी कु छयो,

चतुर बुद्धिमान मनखी अपणु घ्वाड़ो ल्ये कि अपणा घौर चलीगे।

त साब एक घोड़ू मिलाण सि उन्नीस घोड़ों बँटवारु सुख शांति अर संतोष सि सम्मपन ह्वेन.

त साब यु उन्नीस को प्रसंग हमारा जीवन मा भी जनि तनि विद्यमान रैंदो। 

दगड़्यो हम सब्यूँ का जीवन मा बि उन्नीस मैत्वपूर्ण घ्वाड़ा होंदा, जौं कि सयी सै समाळ अर इस्तमाल करि जीवन सुफल बणई जांद।

यु उन्नीस मा छन पाँच ज्ञानइन्द्रियां

आँखा, कंदूड़, नाक, जीबड़ो अर चमड़ा याने त्वचा।

उन्नीस मा पाँच छन कर्मइन्द्रियां, 

हथ, खुट्टा, गिच्चो, पूठो अर जन्नेद्री। 

उन्नीस मा पाँच होंदा प्राण,

प्राण, अपान, समान, व्यान अर उदान। 

अर अब बचीगे चार,

जौं तें बोल्दन अंतःकरण,

मन, बुद्धि, चित्त, अँखार याने अहंकार।

सरो जीवन यूँ उन्नीस घ्वाड़ों बँटवारु मा अळझ्यूँ रैंद। जबारी तलक यूँ मा मितर दगड्या, यार आबत रूपी घ्वोडु नि मिलायी जांद तबैर तक जीवन मा सुख, शांति, संतोष अर आनंद नि मिली सकदू। इलै हमेश पणा सरेल मा विद्यमान चीजों सयी इस्तेमाल कन चेंद।


@ बलबीर राणा 'अडिग'

हिंदी प्रसंग कु ग़ढ़वळी अनुवाद 


Sunday 25 June 2023

द्वी झण




सैकिला द्वी पय्या

दगड़ रिंगण, दगड़ घिसण

पल-हरपल इंच-इंच खपण

जबाबदरी पर बरोबर

अग्वाड़ी-पिछवाड़ी अदला-बदली।


गिरस्थ जोर से पैडल मनु रंद

कम हवा मा भी धकम-पेल

सिंगरा-फिंगर दौड़णा रंद

दुन्यांदारी निभाणु।


कब्बी स्यंटुलों जन कज्यै किबच्याट

कब्बी घुघुतों गळज्यू घुर्र-घुर्र

एक का बिगैर हैकु नि

हैका बिगैर एक नि।


पाळी बल्दें जोड़ी

बिस्वास पर बंध्यां

एक हैकै कि थौक

चाटी-चाटी मिटोंन्दा

एक हैकै कि खैजी कन्यै

भूखा लदोड़ी बी लम्पसार ह्वे

सुनिन्द स्ये जांदा

ये आशा पर कि

भ्वोळ घ्वोला पोथुळौं तैं

खूब बटोरी ल्योला ।


अडिग यु यी

सुफल दाम्पत्य चरितर च।


बाकि अजक्याल गैरजिम्मेदार

लिव इन रिलेशनशिप वळी मानसिकतान

क्या बिंगण दामपत्य झण-झुणि। 


*@ बलबीर राणा ‘अडिग’*

Monday 19 June 2023

ननि गजल

 

हिया अजमौंण छौ,
त पैली बतौंण छौ।
 
बबालै जड़ मैंयी किलै,   
त्वेन नि सनकौण छौ।
 
बात द्वियाँ बीचै छै त,
तिसरु नि बखौण छौ।
 
इस्क.मुस्क भितरै बात,
ढिंढौरा नि पीटौंण छौ।
 
नि छै सकणें सक्या त,
बौंळा नि बिटौंण छौ।
 
फुटकुला बतै अब क्या होण,
घपरौळ मा मुंड बचौण छौ।
 
@ बलबीर राणा अडिग
 

 

Wednesday 14 June 2023

गजल

 


छुवीं  सच्ची  च  या झूटी त बतौला,
जब दाड़ सूळ उठली त बतौला।

चुप्प आँखा न बूज ममता अंधी होंदी,
बबाल पंच्यति मा पोंछलो त बतौला।

गफ्याणु रौ आगफतौ  माल  जु छन,
बदहजमी उंद-उब ह्वेली त बतौला।

स्यौण पे गीजो च्वोर मौड़ फर बाग,
जै दिन हथगड़ी पैरलो त बतौला।

किराया चक्कर मा चिफलौ न ह्वो,
जब सर्री मकान हथ्यालो त बतौला।

सेकुलर स्याळ बणी नठी जाण अडिग,
कलम ह्वलो या कलमा पढ़लो त बतौला।


@ बलबीर राणा 'अडिग'

Thursday 8 June 2023

ननि गजल


वलि वौर ठिक नि,
पलि पौर ठिक नि। 

द्योस योक म्योस द्वी
क्वी ठौर ठिक नि।

स्याळ जन भाज ना 
यति डौर ठिक नि।

अपण ऊंणि चक्रव्यू, 
यनु घौर ठिक नि।

मेमानबाजी योक दिने, 
डेली खन्यौर ठिक नि। 

बिगैर सौंग-पत्ता कु,
सुद्दों भनौर ठिक नि।

हग्याँ-मुत्याँ रील बल
यना लन्यौर ठिक नि।

भितर ऊंणि चीड़ी-च्योंग,
भैरौ मेलख़्वौर ठिक नि।

योक बार बिंगै द्यावा,
इखरी मुंडौर ठिक नि।

बात समणी ह्वो अडिग,
पिछवड़ी झौर ठिक नि।

दशौल्या शब्दों अर्थ

वौर, पौर - वार, पार
खन्यौर - मेमान
भनौर - भंड़ारो
लन्यौर - लिन्डेर/लींडी
चीड़ी-च्योंग - चिढ़ण 
मेलख़्वौर - मिलनसार
झौर - झैर/जहर 


@ बलबीर  राणा 'अडिग'
मटई बैरासकुण्ड चमोली 


Tuesday 25 April 2023

किस्सा - सक जैर अर विस्वास वैद

 



     किस्सा तबारी छ जब चारधामा वास्ता क्वी मोटर रोड़ नि छै। जात्री रिऋीकेस बटे पैदल जान्दा छाया। गौचर बटे मील द्वी मील अग्ने चटवापीपळ गौं पड़दू। तबारी जात्रा टेम फर एक दिन तीन साधु बद्रीनाथै जात्रा पर छौ बल। ज्यौठा मैने बात तड़तड़ौ घाम। जोग्यूँ तैं तीस छै लगीं। जब जोगी चटवापीपळ मा पौंछी त बाटा मा पीपळा डाळा छैल मा थौ खाणू बैठ्यां, तबारी तौंकि नजर बाटा ऐथर कै मवसी साळी अग्ने बंधी घळमळकार बाळैण भैंस पर लगिन। अब तौन मिस्कोट बणेंन कि यार तै घौर मु ठंडी टपटपी छांस मिल जाली। अर जोगी पौंछग्यां मथि खौळ मा। धै लगान्दी बौड़ी भैर ऐन अर जोग्यूँ तैं सेवा सौंळी करि। स्वामी जी बोला मि क्या सेवा पाणी कैर सकदी आपक। जोगी जगम अपणी डिमांड सि पैली मनखी तैं पुळयाण पटाण नि छौड़दा। मायी तू बड़ि भारी भग्यान जसीली मनख्याण छन। तेरी साळी सदानी लेणी लवाण गाजियूँन भौरिं रयां। नाती नतेण पूत संतान को भलौ सुख लिख्यूँ तेरा भाग मा।

     मायी तिन सेवा क्या कन, घाम मा हिटद हमारा पराण सुखिगे, हमूतैं भारी तीस च लगीं, परियै ठंडी छांस मिली जाली हमारा पराण भगवान बद्री तक पौंछी जाला। बौड़ी सट्ट भितर बटे परोठा भौरी छांस ल्येन, जोगियूँन छक्की तीस बुथैन अर आश्रीबाद द्ये अपणा बाटा लग्यान।  

     अब आप बोना होला कि या त आम बात, यामा किस्सा क्या अलैद छ। पर साब किस्सा कु हिस्सा अग्ने द्यौखा। ब्याखुन दां जब बौड़ी फिर सौदी छां छोळणा वास्ता परिया खाल्यौण लगि त एक मौरियूँ सर्प तै परिया उन्द दिखै, स्या झस्स झसकिन अर मुंड पकड़ी भुयाँ बैठिगे कि हे भगवान कन पाप करि मिन आज। मि फर कन मात्मा जोग्यूँ हंत्या लगि या। अब कैतैं पूछदी कि सु जोगी कख तक पौंछया होला या कख मौरियां होला ? कर्णपरयाग तक पौंछि कि ना ? हे भगवान क्वौ जाण। अजक्याला जन संचार कख छै तबारी। अब जु बि हो बौड़ी तैं चुप जितम डाम धरी घटणा सौंण पड़ी। बगत का दगड़ बात आयीं-जयीं ह्वेगी।

     बगत भादौ मैनों ऐग्ये छौ मौसम गरम तौ-भौ वळू, जात्री उब कम अर उन्द जादा जाणा दिखेन्दा। सु तीन जोगी बि बद्री भगवानें जात्रा करि उन्द लग्यान अर पौंछया तखि तै चटवापीपळ जोगी-जगम क्या जीव नमाणें आदत होन्दी कि जै घौर खाण पीण मिल्दो तख फेर पौंछी जान्दा। आसा बलवती बल।

     तबारी एक दिन बौडी सदानी तरां दिन मा अपणा उबरा छै काम पर म्येसीं कि भैर बटे धै सूणैं ऐ मायी, भग्यान मायी कख छै तू। भैर औ। बौड़ी चड़म भैर। मायी तू सच्चीगे की भग्यान छ तेरी छांस न तै दिन हमू तैं इनि सक्या दिनी कि ठीक पीपलकोटी तक पौंछयां एकी दिन मा। मायी आज बि पिलै द्यै द्वी-द्वी ल्वटया टपटपि छांस कि हम हरिद्वार तक रुकौ ना। बौडिन ध्यान सि देखी कि जोगी ऊनि दिखणा जौन ज्यौठा मैना जैरीली छां प्येन छै। स्या तौं देखी अचरज ! कखि मि स्वेणा त नि द्योखणी, या सु जोगी मसाण बणि मेरी द्येली मा पौंछयां। पर लगणा त ज्यून्दा जमाण ही छन।

     बौडिन बोली कि स्वामी जी छांस बि प्यवा अर भात बि खावा पर इन बोला कि तुम सच्ची मा ज्यून्दा छां कि ? हे बद्री हंत्या लगौण सि बचैल त्वेल।

अब बौड़ी छुवीं सूणी अचरज होणू नम्बर जोग्यूँ को। मायी किलै, क्या बात छ ? क्या ह्वे छौ तै दिन ?

     ऐरां दा बौडिन झिकुड़ै गेड़ खट्ट ख्वौली। स्वामी जी बात इनि छै कि जु छांस तै दिन तुमुल प्येनी छौ तै दिन परिया मा गुरौ छौ मरयूं। बौड़ी तति क्या बोन छौ कि एक साधुन सर्र तखमु हाथ खुट्टा छौड़ि बल। अर गौचर जाण-जाण बच्यां द्वी बि स्वरग सिधारिन। त या च साब सक, सकौ जैर चार मैना बाद लगिन। इलै बोलदन कि सक जैर अर विस्वास वैद बरोबर होन्द।   

 

@ बलबीर राणा अडिग


 

Friday 14 April 2023

चलीस हजारै सिगरेट




    डंडयाळी मा मनख्यूँ भिभड़ाट छौ लग्यूँ, क्वै बोना छौ झपाळियूँ छळयूँ, क्वै बोना बौणें बयाळक्वै गरमी ख्वपड़ी बैठी छौ बोना। क्वै कुछ, क्वै कुछ। जति मनखी तति भौंण तति बाणी। डंडयाळी मा अड़गट्यां (बेहोस) बिन्नू क (विनोद) वौजाऽ डूंका छौ लग्यां अर बिच बिच मा सु ख्वर्रऽऽ .....ख्वर्रऽऽ करि बंगेंणूं छौ, गिच्चो मुख पिछने। मि तै फर पंखा छौ झलौणू, दिन्नू (दिनेश) तैका गिच्चा क डूंका छौ पूजणू, गबरु झाड़ा डाळण वळा पंडेजी तै ल्येणु छौ जयूँ। अर तैकि ब्वै दगड़ कुछ जनानियां हे ब्वै, हे ब्वै करि तै कु मुंड, कळनसां, नौल, अर हथ खुट्टा पर त्यौले मलीम छै मलासणा। तै कि ददी, अर घौरा छवटा बड़ा कारुणी छै कना कि बिन्नू तैं क्या ह्वै यु अचाणचक।

     तैका अस्सी साला दादा पदमू फर छौ काल बेकाल भैरुं अयूँ अर तौं कि डंडयाळी मा छै रै दैं करिं, बुढ्या धुपणा क्वेला बुकान्द-बुकान्द छौ ब्वनु, हौऽऽलक क्वौ छ तु ? छौड़ भौटया तैं छौड़, छौड़ ये बाळा तैं, क्व छै तू ? मेरा थान मा औणें तेरु सास कनै होयी ? यनि द्वी चार बैख अर जननियूँ फर भी छौ कुछ न कुछ द्यबता औतनु। क्वी सिध्वा नौ सि कम्पणा, त क्वी देवी भगवती उगैर-उगैरा।

     तबारी गबरु बाज सुणेयी अरे हटा हटा पंडेजी तैं बाटु द्यावा, चलो चलो जगा खाली कौरा। गिरधर पंडेजिन आसन ल्येनी, अपणी पौथी खोली, दगड़ मा एक ल्वटया पर पाणी, गरुड़ पांख अर कंडाळी पत्ता पर चुलाणें छार (राख) मंगैन। साजौ सामान सजौणा बाद पंडेजिन विनोद मा झाड़ा ताड़ा सुरु करि।

     ऊँ नमो गुरुजी को आदेश, ऊँ अजयपाल की आण पड़े, ईजया-विजया राणी की आण पड़े, कैलास मादेब की आण पड़े, नन्दा भगवती की आण पड़े, द्योगणी ऐड़ी आंछड़ी की आण पड़े, बौणे बयाळ गाड़ा भैरुं की आण पड़े। येकु रोग सिर चढ़े, पेट पड़े, भूत पिचास खबेस लगे। पायो नि झड़े त महादेव की जटा टूटे, पार्वती को खप्पर फूटे, फुर्र मंत्र ईसरो वाच, ऊँ  ह्रिंग हुरुंग स्वा फट। छौड़ येको पिंड छौड़। उगैर-उगैरा। 

     इतिगा मा बिन्नुल ख्वर्रऽऽ .....ख्वर्रऽऽ करि मौण फरकाण त छोड़ियाली छौ फर सु गैरी सांस ल्ये धौंकणू। सबून विस्वास करि कि झाड़ा कु असर पण लग्यूँ, बामणन बोली ये फर जु छौ लग्यूँ मिन झाड़ियाली, अब्बी तुम ये ऊण कुछ ना दिंया कुछ देर बाद उठि जैलो त फेर पाणी पिलै सकदा। लोग बाग अपणा घौर चलग्यां, तखमु रैग्यां मि यानी सबरु (सबर सिंग), गबरु (गबर सिंग), दिन्नू अर बिन्नू का घौर वळा। 

     बिन्नू-दिन्नू, सबरु-गबरु हम चारों कि जु छै गौं मा रौंळया-पौंळया जोड़ी, एक गळज्यू पाणी। हाथ ना छूटो साथ ना छूटो, भले इस्कूल अर घौरक काम धाणी छूटी जयाँ, दुन्याँ रुठी जयाँ। हमेर उमर पन्द्रा सौला। कौंळा पालिंगा जनि डांकुल्याँ अर बिगच्याँ काम कनो हौंसल हौंग बांजे जन लाठ। बिन्नू अर दिन्नू एक-एक बार दस फिल्यौर, गबरु डांट अज्यूँ नौं का गौळ छौ अटक्यूँ। तौं मा मि छौं तड़ी मा तड़तड़कार कि इन्टर कौलेज मा पौंछी ग्यों कन पौंछी सु मयी जण्दू।

     अब डंडयाळी बटे बिन्नू ददी-दादा, ब्वै, बेणियां अपणा भितर उबरा स्येणू चलिगे, किलैकि हमुल तौं ते विस्वास दिनी कि हम छाँ ये का दगड़ हौर कुछ परेसानी होली त हम बतै द्यूला। हम तैका तीन जिगरी यार कनक्वै छौड़ी सकदा तै यना हालत मा।  दिन भर किचक्याट बिगच्याट कन वळा हम तीन चुप्प सन्न छै बैठयां, कि यार ये तैं क्या ह्वै होलु अचाणचक। दिन मा त अयां हम भगवती ड्वला पडयार गौं छोड़ी कि।

     मिन बोली यार गबरु मेरु बाबा तब्बी त मना छौ कनु कि अयांणूं तैं देबी डवला दगड़ नि जाण द्यावा किलैकि देबी दगड़ बयाळ भी चल्दी बल, जै का गरै कम होन्दा सु यनी अड़गटी जान्दू। सब्यून हाँ मा मुंडी हिलैन। घंटाभर बाद सु तन्नी अकड़णू अर ख्वर्रऽऽ .....ख्वर्रऽऽ  कन बैठियूं। फेर हमुल तैकि मौंण-धौण, हथ खुट्टा मलासी अर सु फिर सन्न धौंकण लग्यूँ। राति मा एक दां फिर बामण मंगे तैमा झाड़ा ताड़ा करवेन। सुबेरा बगत ठंड मा तै ऊंणि निंद ऐगे।

     उनि त राति सरा गौं तैं पता लग्यूँ छौ कि फलाणों नोनू बेहोस हुयूँ/अड़गटयूँ । अड़गटणों कारण झपाळू, बयाळ छौ मानेणू। द्वी दिन पैली गौं मा माता नन्दा भगौती को ड्वला छौ अयूं। हम चार दगड़या भी सयाणों दगड़ भगौती डव्ला पडयार गौं पौंछाण जयां छया। जात सि पैली माँ नंदा भगौती ऊंणि हम मैत मुल्क वळा भेटी घाटी नंदाघूंटी कैलास भ्यजद। दशोली मा कुरुड़े नन्दा।

     हम छवारा हुळसट त छैं छया, बाटापुन कैकि कखड़ी लम्यौण कैकी मुगरी, कब्बी कुछ, कब्बी सुद्दी बक-सक। चलो जु बी छौ मातौ डवला धरी तै रात हम तैयी गौं रयां अर हैका दिन घौर। हाँ एक बात छै कि पैली दिन भी हम हौर लोंगों का बाद पडयार गौं पौंछयाँ अर घौर औणा दिन भी बाटापुन बिंवाळयाँ।

      दिन मा द्वी बजै हौर-पोर हम झंग-तंग, झंग-तंग, करि घौर पौंछयां फेर सब्बी अपणा अपणा द्याळ लग्यां मि त एक ल्वटया छां प्यै पसरी छौ। तै राति फुल-फटांग जुन्याळी रात छै। भादो मेनु चड़ा-चूट साटी झंगौरे लौ मानण छै लगी। कति मवासी जुन्याळी मा च्यूड़ा छौ कुटणा। लगभग नौ बजी कु टेम, अचाणचक पल्ल ख्वाळा रुवांट धुवांट। कै का यख छै सु कणाट पडयूं ? मेरा बाबन बोली यार मि जाण पदमू काका चलिग्यों म्येल्यौ सु छौ तख बुढ़या। गर-गर लोग तख। तख पता चलि कि तौं कु लौंच्या दिन्नू अड़गटयूँ छौ।

     सुबेर सरा गौं क्या अगल बगल गौंका भी याद खबर कन औणा लग्यान, सबूं कु अपणू अपणू ओपेनियन। जति मुख तति तुक। मल्ला गौं  का कमल सिंग मास्टरन बोली कि यार भै बन्दो लग्यूं बिलक्यूं त जु भी होलू ये फर, तुम एक दां ये तैं डाक्टर मु ल्ही जावा मितैं त हौर कुछ लक्षण दिखणा ये मा। मास्टर जीऽन नुक्स त नि बतैन पर झर्र-झुर्र हमू फर छौ होणू।

     दिन्नु ल झट बोली गुरुजी पता ब्याळी जब हम डोली ले जा रे थे ना तो बिन्नू का पांव गदरे में रड़ा अर इसको हिर्रऽऽ, झस्स हुई बल। माँ कसम मंसाराम काका तैं पूछा बल, तौन त निकाळी सु मुड़ी पाणी तलौ बटी। मास्टरन मुंडी हिलै बोली बेटाराम झस्स फस्स त डाक्टर बतालू क्या छ।

     मास्टर जी कि बात मर्द जनानी कैका हिया नि जमणी छै अड़गट्यां केस मा। सब्यूं कु एकतर्फां मानण छौ कि देबी डवळा दगड़ आंछरी बयाळ भी चल्दी अर जै का गरै कमजौर रैन्दा तै फर झपौळू लगद।

     कुछैक टेम बाद बिन्नू को काका हैका गौं का माण्यां जाण्यां कर्मकांडी गणत का पंडित अर त्रांत्रिक परामान्ंद जोशी पंडेजी ऊणि ल्ही ऐन। परामान्ंद जीऽन भी अपणू आसण जमेन, पंचाँग पातड़ौ निकाळी, तौं सब्यूँ कि कुंडळी मंगवेन, अपणी जाँच पूछ डाळी। एक चौंकुला मा माटौ धुयेटो डाळी अर तैमा खैंच्या लकीरों तैं छुवोणू परिवार का गार्जिन पदमू दादा तैं बुलैन।

     यार जजमानो बात यु चा कि ये फर क्वी ऐड़ी-आंछड़ी बयाळ नि लगीं, हाँ गणत या बतौणी कि क्व गदनू छौ नजीक बगणू। सब्यून हाँ हाँ सु बोली कन नि ततनु म्वोळ गाड़। तख त हर साल क्वी ना क्वी झपाळी जान्द। पंडेजिन बोली हाँ त तै गाड़ौ मसाण छौ ये फर लग्यूँ अर सु द्वी बखरा सि कम मा नि तूसण वळू। एक खटकौण्यां अर एक ज्यून्दो चिर्राेण्यां। आप बोला त मि तै भूत प्रेत को साधण जाप सुरु करदू, तीनेक घंटा लगी जाला फिर परस्यूं छंछरबारा दिन तखी गदना जै मसाण कु न्यूज् पूज द्ये नौने ज्यान छुड़वोला। 

     हे प्रभौ भगवान जु कन, जनु भी कन कौर द्यावा, द्वी ना चार बखरा द्ये द्यूला पर मेरु बिन्नू खड़ू होण चौंद ये तैं बचे द्यावा। बिन्नू कि ब्वैल रुणाट लगै बामणां अग्नै हथ पसारी बोली। सब्यून हुंगरा भरी। पंडेजी आप जाप सुरु करा हम ये का बाबा तैं रैबार पटे द्यूला कि तू तखि बटे बखरा ल्ये अयां। सु भेटी गौं इस्कूल मा छौ चपड़ैस।     पंडेजी परामान्ंद जीऽन भूत साधण जाप सुरु करि। बिन्नू उनि सन्न छै पड़यूं, अब सु कम छौ बंगेणू। पंडेजी जाप दगड़ सब्बी तैका ठिक होणे आस फर छै लग्याँ।

     लगभग बारा बजे कमल मास्टर जी दगड़ हैका गौं बटे डाक्टर आयी। डाक्टरन बीपी, थर्मामीटर स्टेथैस्कोप सब्बी यंत्रोंन तैकी नबज, जिबड़ू आँखा नाक चक करि। अर बोली द्वी आदिम येका हाथ खुट्टा थामा। तौन एक सुई लगैन अर एक बोतळ गुलकोस तै फर चड़ैन। जबारी हम तैका हथ खुट्टा छै थामणा अर डाक्टर सुई छौ लगाणू सु अकड़ाट कनु अर जिदैर छौ ह्वोणू बेहोशी मा भी।  

     लोगुन डाक्टर मा पूछी कि साब क्या ह्वै ये तैं ? पैली त डाक्टरन छौड़ा रौण द्या, द्वीयेक घंटा मा सु खड़ू ह्वे जैलू चिन्ता ना कौरा बोली।  फिर लोगुंका घचौरी पूछण फर बताई कि येका दगड़यूं तैं पूछा कि योन क्या पीनी ब्याली परसी। तबारी कमल मास्टर जीऽन बोली हेलो दिन्नू सर अब बोलो कि गुरुजी इसका तो पांव रड़ा अर इसकौ हिर्ररऽ हुई।  सौर का बच्चौ तुमने परसौं सुल्पा पीया कि नंयीं। ऐसे लक्षण भांग के अधिक नशे से होता है, गरमी खोपड़ी चढ़ जाती अर शरीर का पानी सूख जाता, नै तो धन सिंग काका को पूछौ कि जख तख छांस क्यों घटकाता रैता।  

     यति क्या सुणी कि मि पीछने बटी ग्वोळ, दिन्नू माँ कसम गुरुजी ना ना ब्वनू छौ  अर गबरु ब्यटा सट्ट लुकीगे उबरा। हमू दगड़ जयां लोग खुबसाट गुमड़ाट कन लग्यां कि यूँ  पार्टीं तब्बी त परसी हमू सि लेट पौंछयां पडयार गौं अर ब्याळी भी हमु से पिछने ह्वेग्यां छौ बाटापुन। अजक्याळ जख तख भंगळु फूल्यूँ।

     सारा घटनाक्रम मा डाक्टर अर मास्टर जी कि बात पर ना त कैन ध्यान दिनी ना जिज्ञैस लीनी, कि सुल्पा प्यै भी इनु ह्वै सकद। द्वीयेक घंटा बाद पंडेजी कु जाप भी खतम ह्वेन अर तबारी तक तीन डिप ग्यूकोसा डाक्टरन भी समाप्त करियाली छौ। बिन्नु न आँखा खोलियाली छौ अर कुछ कुछ हाँ हूँ कन लगी छौ। ब्याखुली तक बिन्नू भाई टक-टकौ ह्वे गयूँ।

     छंछरा दिन म्वोळा गाड़ मसाण पुज्यै ह्वेन। बिन्नू बुबा बलवंत सिंग वखि बटे पन्द्रा-पन्द्रा हजारा द्वी बड़ा सिंगा क मेन्डा ल्येन, दगड़ मा पांच-पांच लीटरा द्वी गेलन मर्रछवाड़ी कच्ची। मैण मसाला, घ्यू त्यौल, बामणें बिदै पिठैं सब्बी मिलै पैंतीस से चालीस हजारौ प्रोग्राम छौ सु मसाण पुज्यै।

     गौं का बैख नमाण मसाण पुज्यै खन्यौर। पंडित जीऽन विधी विधान से भूत मसाण पूजी, एक मेंडू खडगन खटकेन अर एक ज्यूनो चिरेन। कच्ची गिलासौं दगड़ ल्वेंस, कळेजी अर भिर्धवासौं कुछ पता नि चली, कुछ काचौ त कुछ पाकौ भकौरियूँ।

      हम अयांणोंन सयांणों दगड़ सब्बी काम ज्यू लगे निभायी, बखरा भड़ये भुनी, काटी अर चुल्ला मा चढैन, पूरी हलवा, रुवटी बणाण मा मदद करि। बामण तैं सिर्री फटटी फंची बांधी। जबारी तलक सिकार पकदी तबार तक हम तीन पाऽर एक डांग मा कचमौळी थकुला पकड़ी बैठग्यां।

     गबरुल बात बड़ेन यार सबरु ! डाक्टर, डाक्टर हौन्दू भाई, कन बोली तौन पट्ट कि येकु नशा छौ करियूँ । पर यार ! मि अज्यूँ नौ कलास मा किलै नि छौ अटक्यूँ पर तू इन्टर कौलेज वळू बतौ कि डाक्टरै बात सयी छै त फिर इत्गा खर्च कनै क्या जरोरत छौ।

दिन्नू ल बोली यार कमल गुरुजी ठीक त ब्वना कि हमारु समाज अज्यूँ भी कुछ यन अंधविस्वास अर धर्मान्धता मा जकड़यू कि इत्गा जल्दी भैर औण मुस्कल छ।

कचमौळी गमजान्द मिन बोली याल कम्वळ गुल्जी अर डाक्टलै बात लोग ध्यान देन्दा त बेटा हम यखमु कचमौळी नि गमजणा रौन्दा बल्कि दिसाण मा रौन्दा हटगौं फर काचु हल्दु मलसणा अर गुळथ्याल स्यौकणा।

गबरुल बोली यार ब्याळी तक त मितैं भी छौ रंगर्याट होणू, कै दां त यनु लगणू छौ कि मि भी कखी भुयाँ ना लमडी जौं।

चुप्प रौ रै कुकर, साला तू अर सु कमिना बिन्नू त छौ कि चल यार एक हौर सिगरेट भौरा, तुम उल्लू का पठौन सु बाद वळी भी चोरी प्येनी । हेलो ! क्या बोल रहे थे, कि यार खीसा उन्द गौळी गे। बेटा परामांनेन्ट गलौंणें नौबत ऐगे छौ, सु डाक्टर नि आन्दू त अबारी रैन्दू बिन्नू बुबा छुपकलु पैरियूं उबरा, दिन्नुल बोली।

गबरु- यार मिन क्या समझण छौ कि मेरा हाथ्यूँ सुल्पा इति खतरनाक होलू।

मिन जाबाब दिनी यार सु चालिस रुप्यें कि चार सिगरेट चालिस हजार मा पटली मितैं भी पता नि छौ निथर मि रुप्या देन्दो ही नि, ना यनी नौबत औंदी।


कानिकार : बलबीर राणा ‘अडिग’