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Tuesday 25 November 2014

पंछी फिर घोलक तरफां उडी



हे माया भारी नखरी माया
सामणी रैंदी स्येली लगोंदी
दूर जै की झुकड़ा बिणोन्दी
त्यारा जंजाल मा इन लिप्टयों
फिरडा फिरडी त्वेमा उड़ि औन्दी।
@ बलबीर राणा "अडिग"

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