धर्ती पर जीवन संघर्षों वास्ता च, आराम त यख बटिन जाणा बाद, ना चै किन बी
कन पड़ल, ये वास्ता लग्यां रावा, जत्गा देह घिस्येली उत्गा चमक, उत्गा संचय जु यख छुटलू।
@ बलबीर राणा 'अडिग'
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Tuesday 25 November 2014
पंछी फिर घोलक तरफां उडी
हे माया भारी नखरी माया सामणी रैंदी स्येली लगोंदी दूर जै की झुकड़ा बिणोन्दी त्यारा जंजाल मा इन लिप्टयों फिरडा फिरडी त्वेमा उड़ि औन्दी। @ बलबीर राणा "अडिग"
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