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Saturday 27 December 2014

पूसक् घाम


पूसक घाम तु इत्गा नखरा दिखो ना।
बगत सब्युं की औंदी इत्गा तरसो ना।।
माया की भुकी पैंदी यु धरती।
धार पिछना ते मुखडी लुको ना।।

गिच कताड़ि रात खड़ी ह्वयीं समणी।
गर्व से गरु गात नि कण जुग् जम्मे ना।
द्वी दिन घडी पोर जेठ ऐ जालु।
फिर तेरी सैे क्वी ज्यु-जमाण सौंण्या ना।

बगत बगत की बात अर,
बगत बगत का फेर होन्दन्
तेरा जन तपोंण वाळा भोत देखी,
जु सौंण कुयेड़ि मुखडी लुक़न्दन्।
पूसक घाम् इत्गा इतरो ना।
बगत सब्युं की औंदी इत्गा तरसो ना।।

रचना:- बलबीर राणा 'अडिग'
©सर्वाधिकार सुरक्षित

Thursday 18 December 2014

रैबार अन्तर्मन् तें


मैन थोडा सी उज्यालु मांगी
त्वेन दुफरा दे दिनी
राति अँधेरा का ये मनखी तें
स्वोनु सी सुबेर कख बटि ऐनी
क्या देख सक्लो ये मुखडी तें
जु अंध्यारा मां अफुं चमकणि रैंदी
मैन जरा सी माया झळक मांगी
त्वेन पुरो मायाजाल दे दिनी।

डैर लगणी ये मायावी संगसार दगड
कखि चकाचौंध मां ना हर्चेयी
राति-राति कुकडे-कुकडे त्वे जग्वाली
सुबेर पाळा जन सर गोली न जयी
क्वी भरोसु नि ते घाम कु
तेन सरि दुन्यां जगेनि
मैंन ठण्डु-ठण्डु हुरमुर मांगी छयी
त्वेन तपण वाळा दिन दे दिनी।

उदंकार करयाली त्वेन ये काळा मन मां त
अब ये ज्योत तें बुजण ना देयी
हँसणी खैलणी ये हरीं-भरीं धरती से
ज्यु तें निष्ठुर न हूँण देयी
गंगा जनी छालु रखिय्याँ माया मनखियत की
यु पराण सब्युं मां बसी रैनी
मैंन संगसार रचना कु सार मांगी
त्वेन ये अडिग तें पूरो ग्रन्थ पकडे देनी।

रचना:- बलबीर राणा 'अडिग'

Tuesday 9 December 2014

जलम भूमि की याचना


सज्यूं रौलु धज्यूं रौलु मितेँ  सजाला तुम
हरयूँ रौलु भरियुं रौलु मितेँ सिंचला तुम
भरलु तुमारु गुठ्यार आशीष दयोलु मुठ्ठी खोली की
भैर भितर हरीष लगलु ड़्वार नि ढ़्वक्ला तुम।

मैन भी जुग- जुग बितायी तुम मंखियों तें कोळी स्येवाळी
प्रकृति का छपोड़- छपोड़ खैकी तुमारी संतति जिवाळी
मेरु क्वोदु - कपुला खैकी,लॉट साहब बण्या तुम
जलम दयोंण वाळी ब्वे छोड़ी लाड मौंस्याणी तें कना तुम।

खाणा रैला मेरी पीठी मां बस्याँ राला मेरी क्वोलि मां
मन्खियत कु निसाब मिललु माया कु भण्डार मिललु
ज्योत जगणि रैली भोळ कुणी उज्यालु कर्ला तुम
अपणा धर्यां ढुंगों पर बंश कु बाटू अग्ने बडौला तुम।

मैंन कल्प देखी, देखी ते कल्प कु कलिकाल भी
आणु-जाणु जीवन देखी घडी-घडी कु बदलाव भी
मन्खीयों कु हंकार- जैकार देखी कब्बी नि रायी गुम-सुम
आज इनि औडालु आयी ये अडिग तें ब्बी हिल्येगा तुम।

क्रमश:-
रचना -बलबीर राणा 'अडिग'
© सर्वाधिकार सुरक्षित मेरे ब्लॉग 'उदंकार' में
www.ranabalbir.blogspot.in