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Tuesday 31 July 2018

अगळ्यार



कबि बाटों मा बटोही बदलणा रैला
कबि बटोही बाटों तें ख़्वजणा रैला
तु मठु-माठू बाटू पुर्यो दग्ड़या
ऐगी तेरी अगळ्यार अब निभो दग्ड़या।

सुख-दुःख त आणा जाणा रैला
यों बाटों मा कांडा बुढेन्दा रैला
कबि मिल्लो सीधू-सैणु स्वांपट
कबि ह्वली चढ़ी-चढ़ी उकाळ अचाणचक
चढ़ा-चुटि उंदार देखी न घबढ़ो दग्ड़या
ऐगी तेरी अगळ्यार अब निभो दग्ड़या।

रैलू  तों बाटों मा उदंकार
ह्वलो सदानी जगमगकार
नि रैलू अज्ञानक अन्ध्यारु
जब रैलू नेकि नारेंण कु हिगनत्यार
द्वी दिवा सच्चे का जगो दग्ड़या
ऐगी तेरी अगळ्यार अब निभो दग्ड़या।

ब्वै-बाब कु हाथ जो तेरा कांद्यों पर रैला
त्यारा खुट्टा कांडों मा चलणा रैला
दुन्यां की बुरी हव्वा से बच्यों रैलू
वा बथोंन बी अपणु बाटू बदलणु रैलू
जरा ब्वै-बाबे सुणी जा, सरि अपणी न लगो दग्ड़या
ऐगी तेरी अगळ्यार अब निभो दग्ड़या।

रचना : बलबीर राणा "अड़िग"

Sunday 29 July 2018

चलि जाणा


सफेद कुर्ता वाळा, इनि ठगे चलि जाणा
सुदी मुदी कु, को-करार करि चलि जाणा

सुप्यनों कु मैल त रचायी- रचायी, दगड मा
अपणा नो कु एक ढुङ्गा चढ़े कि चलि जाणा

वे विकासक मुखड़ी बसग्यालक बाद दयख्णु
वा हर साल यख एक होर रगडू बणे चलि जाणा

ऐsरां इख रौंण वाळा मुच्छयाला बुजोंणा रैन्दा
चकडेत हर्यां-भर्यां बोण आग लगे चलि जाणा

नि छिन अब क्वी लो लकार नि रैगी क्वी सल-सगोर
सस्ता अर फ्री का पैथर कर्मशक्ति ख़्वै चलि जाणा

वा गारंटी रोजगार क्या ऐन दुकानी मा फांट लगीं छ
वे रजिस्टर मा सर्रा परिवारे हाजिरी लगै चलि जाणा

नि छिन कखि नाज पाणी नि छिन कखि साग-भुजी
ये बसग्याल बी बजारक सड़ी लोंकी भोरी चलि जाणा

को-कारज मुश्किल हुयों क्वे धर्म धाध नि लगन्दी अब
जु बी छ टेंट हौस अर डोटियालों दगड पैटे चलि जाणा

समै की बात छ या समझ की बात, क्व जाण भैजी
देखा-देखी एक हैका पिछने बजारी ह्वे चलि जाणा

कै मर्दोन पाड़ काटी स्वाणि घर कुड़ी संवरेंनी
क्वे अब तों बाटों मा ढुङ्गा फर्के कि चलि जाणा

निर्पट ह्वे किन मुख लुकायूँ जों कु घर कुड़ी बटिन
इन भी लोग पाड़ बचाण कु उपदेश दे चलि जाणा

@ बलबीर राणा "अडिग"

गजल

 (द्वी घड़ी)

हर फजल एक नै शुरवात ह्वेली
नयाँ लोग मिळला नै बात ह्वली

गुजरयूं बगत हैंसणे कोशिस  कर्लो
तैका हाल पर जरा कबलाट ह्वेली

तों आंख्यों की जोत समाली रख्यां
चलदा चलदा बाटा पुन रात ह्वेली

आज ही नि छ जु अब्बी सब खत्यांन
समे की बात भोळ क्या हालात ह्वेली

तेरा ज्यू मा बी पिड़ा मेरा ज्यू बी आशा
चल कखि दूर रौंतेली धार मा बात ह्वली

सम्माली राख्यान ते छळकदी ज्वानी
न जाण भौरों कख मुलाकात ह्वेजली

पैटी जा चल हपार फूलों का देश मा
वखि अब द्वियों की च्छविं  बात ह्वेली

ज्यू पांजी रख्यान क्वे सुण न साको
निथर दुर्जन जमाने क्या कर्मात  ह्वेली

बैठी जौला द्वी घड़ी माया मा ख्वे रौला
फिर न जाण कै जलम मा मुलाकात ह्वेली

@ बलबीर राणा "अडिग"