Search This Blog

Tuesday, 4 April 2023

गजल




कै उणि कन मिलदो अपणू नसीब हून्द 

यु प्यार पिरेमा चक्कर भी अजीब हून्द ।


शर्म करदी मायै लपाग अग्नै बड़णू, 

जौं बाटों का मायादार गरीब हून्द। 


बोक मारी बौराण नि मिल्दी मंसा वळी ,

पुळकौंण पटाणू भी क्वी तरकीब हून्द।


बाटा गौरु भी अबाटा लगी जान्दा भुला, 

जब सु्द्दी फिलबट खाणू नसीब हून्द।


सर्रा बाटा नपद नि चितैंद असन आतुरी   

भिज्यां थौक लगद जब घौरा नजीक हून्द।


तौली बौग्यां बाद अयीं अक्कलौ क्या कन,

बगत पे खबरसार करि यी क्वै करीब हून्द।


@ बलबीर राणा अडिग

No comments:

Post a Comment