अधरम पे धर्में विजय ह्वेन
राम लाम बटिन घोर बौड़ी ऐन
फेर रामराज्य सुरु
यनु रामराज्य
जैन *सर्वेभवन्तु सुखिनः*
*सर्वे संतु निरामया:* मंत्र दिनी
क्या मनखि क्या जीव नमाण
सब्बी सुख दुःख एक समान
यनु जीवन दयेखि परलोक बटिन
रावण तैं बी संतोष ह्वे कि
चलो मेरा पापाs बाना धर्ती पर
मनखी और मन्ख्यात को जलम ह्वे
पर आज !!
रावण खूब खुस होणु, खिलपत ह्वे हैंसणु
कि वे युग मा त रामल कैका
ज्यू मा मैं तैं नि बसण द्य्यायी
पर आज कलजुग का हर मनखी अपणी
आत्मा तक मैं तैं जगह दियाली
वा, होर जोर से ठहाका लगाणु
हमारी बुद्धि पर, विवेक पर, धर्म पर कर्म पर
भैर भैर राम, भितर मि रावण विराजमान
अरे ! साल मा एक बार क्या
हर दिन तुम मेरु पुतोळु जगावा
मैं फर क्वी फर्क नि पड्द
पुतोळ असली आदिम होन्दू क्या ?
हा हा हा ह ह........
अरे ! भुलाओ यनु बतावाss
कि !
तुमु मा आज राम क्वो च ?
मंत्री या संतरी
अधिकारी या चपडैस
दुकानदार या ठ्यकदार
जमदार या गलेदार
उधोगपति या प्रधानपति
धरमगुरु या बामण ज्यू
बिठ या दलित
रणनीतिकार या पत्रकार
छ रे क्वी राम ? बोलाss
नाss, नs ?
तो सच्चे स्वीकार कण मा क्यांकि सरम्
कि,
भैर रामों नौं
भितर मेरा कामां सौं ।
@ बलबीर राणा 'अड़िग'