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Thursday, 18 December 2014

रैबार अन्तर्मन् तें


मैन थोडा सी उज्यालु मांगी
त्वेन दुफरा दे दिनी
राति अँधेरा का ये मनखी तें
स्वोनु सी सुबेर कख बटि ऐनी
क्या देख सक्लो ये मुखडी तें
जु अंध्यारा मां अफुं चमकणि रैंदी
मैन जरा सी माया झळक मांगी
त्वेन पुरो मायाजाल दे दिनी।

डैर लगणी ये मायावी संगसार दगड
कखि चकाचौंध मां ना हर्चेयी
राति-राति कुकडे-कुकडे त्वे जग्वाली
सुबेर पाळा जन सर गोली न जयी
क्वी भरोसु नि ते घाम कु
तेन सरि दुन्यां जगेनि
मैंन ठण्डु-ठण्डु हुरमुर मांगी छयी
त्वेन तपण वाळा दिन दे दिनी।

उदंकार करयाली त्वेन ये काळा मन मां त
अब ये ज्योत तें बुजण ना देयी
हँसणी खैलणी ये हरीं-भरीं धरती से
ज्यु तें निष्ठुर न हूँण देयी
गंगा जनी छालु रखिय्याँ माया मनखियत की
यु पराण सब्युं मां बसी रैनी
मैंन संगसार रचना कु सार मांगी
त्वेन ये अडिग तें पूरो ग्रन्थ पकडे देनी।

रचना:- बलबीर राणा 'अडिग'

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