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Wednesday 16 August 2017

द्वी झण



सैकिला द्वी पय्या
दगड़ रिंगण, दगड़ चलण
घिसण लग्यां बरोबर
एक अग्वाड़ी हैकू पिछवाड़ी
अर गिरस्त जोर से पेडल मनु
कम हवा मा भी धकम-पेल
सिंगरा-फिंगर दौड़णा
कब्बी स्यंटुलोंक कज्ये (झगड़)
आँखा तते की
कब्बी घुघुतों गोळा-गळी प्रेम
मुल्य-मुल्या हैंसी की
एक बिगैर हैक नि
हैकक बिगैर एक नि
पाळी बल्दें जोड़ी
बिस्वास पर बंध्यां
एक-दुसरक थैक
चाटी-चाटी मिटे देंद
सिंगन एक-हैकक खैजी कन्ये
भूखा लदोड़ी बी लम्पसार ह्वे
सुनिन्द स्ये जांद
ये आशा फर कि
भ्वोळ घ्वला पोथुलों तें
खूब ल्योला बटोरी की
अडिग ये खुणि
सुफल दाम्पत्य चरितर ब्वनु
 दुन्यां त तैल्या-मेल्या कने रेंद।

@ बलबीर राणा "अडिग"

अपणा अपणा समे मा ब्वै किरदार


*ज्येठी ब्वै (पुराणी)*
सुबेर हुर-मुरे उठिक गाजी-पातीs सेवा
फिर बुड्या-बुड्यों सेवा
नोनू कु नंबर आखिर दों
एक-आध चटेला-चटेली से
फिर डोखरा-पुंगड़ी
बण-बूट, ब्याखुंदा तक
भंगर्या ढयबरी जन रिंगणी रैन्द
गिरस्ती को होर-पोर।

*मजली ब्वै (बीच-बीच)*

खूब उज्यालु होंणक बाद
सट-बट्टा मा उठण
ख़बसे-खुबसे नोनू अर वों का बुबे की सेवा
वोंकु ठसक-मसक
स्कूल भेजण-ल्योण
टीवी, कीचन लत्ता कपड़ा
झाड़ू-पोंछा साफ सफ़े
कुछ अपणु भी ठसक-मसक
स्वेटरक सीकों दग्ड कछड़ी
जडडू मा लेंटर
गर्मी मा पंखाक तोळ।

*कणसी ब्वै (अत्याधुनिक मॉर्डन)*

नो बजे गुड़ मॉर्निंग
सोशियल मीडिया पर सुंदर परेरक कोटेशन
द्वी चार लाईक, अंगुठु-इमोजी
हलट-पलट
मोंण मटके-मुटके चा की चुस्की दगड़
ननू का डेड तें धै
बल्लू  देखना जरा
ननू का हगीश चैक करना
फिर अपणु ठसक-मसक
हर ऐंगल से सेल्फी-शॉपिंग,
वर्चवल जिंदगी की हर्क-फर्क
सेर-सपाटा, पार्टी इंजॉय
सब अपणु अपणु किश्मत भाई।

@ बलबीर राणा  "अडिग"

सिपै संकल्प 1


***ज्यूंदा मा***
चखुल्यौं की प्रीत, पोथुलोंs दुलारो  रोस नि रो कब्बी
अपणी ख्याति, माण-सम्माण, वैभवो मोह नि रो कब्बी
चैल-पैल जीवन मा क्या होंदी कब्बी नि पच्छयाणी मिन
सेनापति एक इशारा पर मिटण-मिटाणु जाणी मिन।

गौं ख़्वालों की क्या बात, भ्वोळ कबिता बी बिसरी जाली
लाम मा लम्डणा चार दिन बाद, फिर कैतें याद आली
इतियास मा अमर रावूं इनि मृत्यु इच्छा नि छ म्येरी
संगसार छोड़ी जाण पर बिसरण मा नि होंदी दयेरी।

चीठ्ठीयों मा रैबार अपणेसे आर/सार सदानी राखी मिल
बस सेनापति का एक इशारा पर मिटण-मिटाणु जाणी मिन।

दुन्या बेसक बिसरी जावो सेवा-धर्म निभायी मिल
जै माटी यु शरील बण्यों वे माटी मा मिली/ मिटी जाणी मिल
आखिर सांस तलक भारत विजै रथ हकाणो धरम छ मेरु
बिकट धार-गाड़, ह्यूं कंठों मा अडिग रोंण कर्म छ मेरु।

जीवन तैं माँ माटी खातिर, समर्पण कन माणि मिल
सेनापति का एक इशारा पर मिटण-मिटाणु जाणी मिन।

***शाहिद होणा बाद***
हर फजल एक लाल किरण पल्या धार बटिन आली
व्यक्खुनि सेवा लगे, रात भर गैंणो दंगड़ जगी रैली
दयबतों का मनोणा बाद भी वे स्वर्ग से भाजी जोला
कै रात चट टुटयों गेणु बणि फेर ये धरती पर ऐकी रोला।

बाबा जसवंत हरभजन बणि, सदानी रोणे मंशा पाळी मिल
बस सेनापति का एक इशारा पर मिटण-मिटाणु जाणी मिन।

तुम नि पच्छ्यांण सकला, पर भौंरु बणि यखी रिंटणु रौलु
सुबेर कुखड़ी बणि बांग दयलू,  दिन भर छवप्पा पड़ी रैलु
एक बीर पर मातृ भूमि कु कर्ज जलम जलमान्तर कु होन्दू
कै भी योनि मा यख रैकी फर्ज निभोणु रैन्दू।

नाम नमक निशाणा खातिर अर्पण हूण जाणी मिल
बस सेनापति का एक इशारा पर मिटण-मिटाणु जाणी मिन।

भ्वोळ ज्वनों नसों मा, तातू ल्वे बणि तागत दयूलू
वोंका सांसों मा हवा बणि, जै हिन्द कु जै घोष कनु रैलू
समर बीच वा भड़, जै दिन बैरियों परलय मचाला
मि गर्जलू ध्वजा टुकू बटिन, वा दुश्मने मोंण धड़काला।

भारत मातै आन/बान पर  कुर्वानी दयोंण पच्छयाणि मिल
बस सेनापति का एक इशारा पर मिटण-मिटाणु जाणी मिन।

द्वी फूल शहीदों नो नितर चढ़ै,  हजारों फूल ख़िलला यख
लाखों वीर राष्ट्र का खातिर, कमर कसी खड़ा ह्वला यख
सब्बी भड़ माधोसिंह बणला, जयचंद पैदा नि ह्वला तब
गब्बर दरवान सिंग जन वीर पुत्र जलम ल्योणे राला यख।


पिठें, माँ माटी पर चढ़ण अर चढाणु, इत्गा सी जाणी मिन
बस सेनापति का एक इशारा पर मिटण-मिटाणु जाणी मिन

सिपै संकल्प 2


सुबेर उठिक माँ भारती, त्यारा चरण द्यखदू
ये जीवन पर माँ बस,  त्येरू ऋण द्यखदू
ये खातिर अरि मुंड काटोलो या खुद कटि जैलू
विश्वास करि यू अडिग पिच्छवाड़ी नि हटलू।

अब देखुला तेका भुजा मा कति दम च
हमतें कमजोर समझण तेकु भरम च
ऐ जा कखि बटिन बी जखि ऐलु थै ल्योला
ते तीन फुट्य्या तें वखि खडव्ळ डेल द्योला।

प्रतंच्या पर चढ़ियों बजर बाण जब गर्जलू
औडालु चौं दिशोंक हमर सानी पर ठैरलू
बर्खा ह्वेळी घनघोर रगड़-बड़ग मच जाली
सदानी की औडू सरोंणे आदत टूटी जाली।

फिर तांडव ह्वलू हिमालय तुंग श्रृंग पर
काळी खप्पर ल्ये आळी नचलि मुंड़ों पर 
नाद हर-हर महादेव जय हिंद को गूंजलू
वे की बलि चडली ख्वाब ब्बी फुक्येलू।

सैद मेरी पैली आहुति च जज्ञ चलण द्या
कुछ लोग जै हवा चाण्यां च चलण द्या
जै दिन यूँ कु ज्यू अफूं घुण्डों मा आलू
भारत पर लग्यूं इंडिया कु यु पाप कटि जालू।

उठा दुर्वासाक बंसज भृकुटि चढ़ावा रे
उठा चंट चाणक्य वाळी नीति चलावा रे
उठा राणा शिवजिक तलवार पल्यावा रे
भगत बिस्मिल सुभाषक आह्वान जगावा रे।

गरजा काश्मीर से कन्याकुमारी तक
गरजा मणिपुर से कच्छ भुज तक
लदाख से अरुणाचक तक कपट च
भारत आन-बान शान पर यु संकट च।

तण-तणी गन बंदूक प्रहार तें तैयार च
अबैर दों टिगर दबायी त तेको वार-पार च
एक बारा जलम मा द्वी बार अब मरण नि
हर जाग टांग अड़ण तें तेन अब बचण नि।

बासठ कु प्रतिशोध अब ल्येकी रोला
वे बारो कलंक अबैर दों ध्वेकी रोला
छवड़ले नि अरि टांग कुर्मूला सी चिप्टयां रोला
आखरी दम सांस तलक डटयाँ रोला।

09 अगस्त 2017
रचना:- बलबीर राणा 'अडिग''