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Tuesday 15 July 2014

सर्ग


सुण मन्खी मेरी जुबानी 
तुम्हारु दुःख सागरों जन पाणी 
प्ये ल्येंदु मी बदळ बणी
रूवे रूवे बरखेंदू कैन नि जाणी
तुमारा जल्दो पराणी स्येली लान्दु
मी औंसूं धार बगान्दु

मोरी जांदू मी बरखी बरखी
धन अप्णु खैली करी
म्यार घोर जंगलों तेंं ना जलावा
अप्णा पापों तें होर ना बढ़ावा
बिगैर जंगलों मी भटकी जान्दु
मी औंसूं धार बगान्दु

@ सर्वाधिकार सुरक्षित
.............बलबीर राणा "अडिग"

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