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Tuesday 24 November 2015

अब चिंतन नी

चिंता अर चिंतन
कबेर तलक रेलू खाळी मंथन
अब मंथन कु बगत नि
चट करा कुछ जतन।

सुख छै: त रगर्याट किले
बिन तीसक् टपट्याट किले
जै पाड़े असन-आतुरिल
उन्द भाज्यां तुम
शैरों बटिन ते फर
चिंता अर चिंतन किले।

हिम्मत छ त आवा दों
बारामासी जुद्ध जुटयूं
तुम भी बोलां बिटवा दों
दुःख बिपदा को आतंक मच्युं
सुख की बंदूक लावा दों।

द्वी दिनी मेहमान किले
पिकनिक तक ही पहाड़े सैर किले
अगर पलायन समझदां छां तुम त
घर की कुड़ी फर जाळा किले।

@ बलबीर राणा 'अडिग'
बैरासकुण्ड चमोली

Friday 6 November 2015

कूsड़ी उमाळ

कैकि मि स्वाणी हवेली छै
कैखुणि मि झोव्पडि बणगे
मयाली सुहागिण रै मि कैकि
कैखुणि मि  डंसिलि रांड बणगे
भग्यान लेन्दी-रुमाळी की, पलोस करि कैन
क्वे अब, निर्भगी डंगर बोळी छोड़ीगे
हंसे-हंसे लंपसार करदू छै क्वी
क्वे अब कंठ भरी उमाळ् दे ग्ये।
जंत-जोड़ करि मैं सजे-धजे कैन
कैन गळताणी दे-दे नयीं ख्वजायी
सान समजदा छाँ क्वे अपणी बोली मैं खुणि
कैन त्वहीन समझी अब मुख लुकायी
अथा उबरा-बोंड
धिधराट-भिभडाट् मचांदा छाँ, गुरबळा... कैका
क्वे किराया-किटों मा, हिटणु कु सगोर सिखाणा छायी
क्वे छज्जा मा बैठी दूर तलक बाटू देखदा छां मयाली कु
कैका मोर अग्वाड़ी अब ईंटों कु जंगळ बण ग्यायी।
संकल्प लीन कैन यख करम पैटाळी
क्वी एक रात भी नि टिकी धडम,धरम छोड्याली
हिम्मत करि कैन माँ माटी समाळी
कैन हिम्मत तोड़ी अब बोग धर्याली।
प्रकृति अर परिवर्तन क्या होन्दु
खूब समजदू छौं मैं भी
भैरक चकम की भीतरी पीड़ा
खूब बिंगदु छौं मैं भी
ये का खातिर युगों कु इतियास 
मेरा खुट्टा थौर धर्याँ छिन्
ब्वे छोड़ी भौतिक विकास करी जोन
वु भीड़क बीच भरमाणा छिन्
इनि भी नि????
सब् स्याल बणि उड़्यार बटिन,
लुक-लूकी के द्यखणा
क्वे मथि-मुलि, सब तरां ऐ जे
मुल्ककी पैरादारी करणा 
तीज-त्यौहार, सुख-दुःख मा
क्वी मेरा धोर ऐ जांदा 
क्वी पल्ले कि रुवे देखी के 
टेमक टमट्याट बते जांदा।
ब्वे दूधs की लाज ताक धरीं
मातृ भाषाक तिरिस्कार होणु छिन
जड़-जमाल तें गंवार क्या समझदा
ते खातिर तुम लाट साब बण्यां छिन
सात समुदर पार मेरा नौन्याल  
प्रीत-गीत मेरा गांदा छिन  
अफ़सोस वों फर, जू यख रे किन भी
ब्रह्म संकर बण्या छिन्
ब्रह्म संकर बण्या छिन्।
कैकि मि स्वाणी हवेली छै
कैखुणि मि झोव्पडि बणगे
मयाली सुहागिण रै मि कैकि
कैखुणि मि  डंसिलि रांड बणगे।
रचना:-बलबीर राणा 'अडिग'

Monday 26 October 2015

थोड़ी क्या हिलेन वेन


कख छां तुम रौंठ्याल- बौंठ्याल
किले लगिन इत्गा डैर
कख गैन जाति-विरादरी वाळ
किले दनकि यकुली भैर
थोड़ी क्या हिलेंन वेन
सरका-बर्क़ी थडम-थैर
धरम-शरम कु प्रचंड बुखार
किले सर्कि सरपट-सैर।

@ बलबीर राणा 'अडिग'

Saturday 17 October 2015

मनखी गीत


हाथों मा सिद्धि हो कर्मो मा ऋद्धि ह्वो
मनखियत की पीड़ा नसों मा,  ल्वे फर उमाळ ह्वो
नयुं सल-साज ह्वो जोश तेरु ज्वान ह्वो
झुकी जावो खैर-खरण्यां तेरी,  सोंग-सुफल तेरु बाटु ह्वो
मन मा सरस्वती  कु वास अर वाणी मा हिलांस ह्वो
दुन्ये रीती,जग प्रीत ज्यु मा जगीं रैयी, अंतस मा तेरा भगवान् ह्वो
प्रचंड मन-मान, गात-बबड़ाट, सक्या-पराण तों हाथ ह्वो
राष्ट्र ध्वज-गीत ज्यान से ब्बी प्यारु हो,
इन स्व मान सम्मान तेरु स्वाभिमान हो
झुकी जावो खैर-खरण्यां तेरी,  सोंग-सुफल तेरु बाटु ह्वो
हर फजल नयीं उमंग तेरी नयाँ जीवन गीतों कु तरंग-तान ह्वो
नव तौरण, लता-गता हाथ ल्हयेकि धार-धार तू बिराजमान ह्वो
जलम भूमी सदानी स्वर्ग बणि रावो, धरणी-धर तेरु बोल बचन सौं- करार ह्वो
बुग्यालों जन सुख-शांति छळकणु रे ललाट से तेरा,
माया तेरी निर्मल गंगा जनि छाळी हो
झुकी जावो खैर-खरण्यां तेरी,  सोंग-सुफल तेरु बाटु ह्वो
बीर छै तू भड़ छै माधो सिंग, गबरू कु नौ- निशाँण छै
देवथान हिमालय कु वासी तू,
गढ़कुमौं की आशाओं को नौ-नवाण छै
खडग उठो रणसिंग गरजो,
थाती-माटी की लाज को  तू तरणहार छै
त्वे घत्याणी बैरियों की ललकार
कसम त्वेखुणि तेरी ब्वे की
ते तिरंगा थें झुकण ना दियां ह्वो झुकण ना दियां ह्वो
झुकी जावो खैर-खरण्यां तेरी,  सोंग-सुफल तेरु बाटु ह्वो
हर्ष ह्वो उल्लास ह्वो मनखियत तेरा धोर बटिन  निराश न ह्वो
ग्लानि क्षोभ् आँखर तेरा  किताब से समूल नाश ह्वो
इन दिवा जलो दगड्या ब्याखुनि  हैंस जो
निर्बल बिचारी रात तें, तों गैणो का सारा न रोण पड़ो
अडिग करम परधान का ड़ाला रोप 
मनखीयत् का गीत कंठ भोर, 
भोंण मा अपणेस ल्यो भौण मा अपणेस ल्यो
झुकी जावो खैर-खरण्यां तेरी,  सोंग-सुफल तेरु बाटु ह्वो
मनखियत की पीड़ा नशों मा, ल्वे फर उमाळ ह्वो
सोंग सुफल तेरु बाटू ह्वो।
रचना:- बलबीर राणा 'अडिग'







Thursday 8 October 2015

मैली राजनीती

क्वी दुःखेणा छिन
क्वी ख़तेणा छिन
क्वी झपोड़-झपोड़ी
टप-टपकणा छिन।

यूँ तें थोडा कटयूं चैन्द
लूण-मर्च ल्येकी तैयार छिन
चीरी मची चाहे देश फर
मुछ्यालु ल्येकी तैयार छिन।

हिन्दू मरिन या मोमिन मरिन
यों गरुड़ों की नजर तेज छिन
लोछि-लोछि ल्ये जाणा उठे
चुनो मैदान लोगों मा बटेंणा छिन।

दाल कु अकाळ पड़यूँ
मुर्गा खै-खै उक्त्याट छिन
प्याजे की दाणी सोनुक ह्वेगे
ये फर क्वी नि सोचणा छिन।

अपणी नाकामयाबी लुकोणा खातिर
एक दूसरा तें गाळी दे देणा छिन
राजनीती क्या इत्गा मैली होंदी
अडिग यु तेरी समझ से भैर छिन।

@ बलबीर राणा 'अडिग'

Friday 21 August 2015

शकुनी कु बुबा


सियासत कु नशा अर कुर्सी कु मोह
नि पछयाण्दु घास नि पछ्याण्दु म्वोल्
रिश्तों का खुट्टा तोड़ी लंगडू बणे देन्दु
कुटमदारी कु ब्बी झोलम-झोल।

भूख भिज्यां अर तीस भौत
लता-पता पुटुग घळचम-घोळ
निर्मुख-बेढंग बड़ा लदुड़ो कु वा मनखी
चिफ्ली बोली हाथ जोड़ी घपरोळ।

एक घर्या द्वी घर्या सोत मा सोत
पापड कु पाणी ढळकम-ढोल
झुटु-लम्पट गलदार नंबर एक कु
शकुनी कु बुबा एक कु स्वोल।

रचना:- बलबीर राणा 'अडिग'

Tuesday 18 August 2015

रिमिक्स हिंग्लिस मा गोत्राचार


खोला-चौक स्वांपट सवार
ठंग्रा बिगैर लग्लु लाचार
कुर्चणा छां आंदा-जांदा
पिछने मुड़ी द्येखा एक बार।   

कत्गा कयांरू कत्गा रैबार
आँखियों चौमासी बरखेक धार
भग्यान ह्वे निर्भागी बंण्यु मी
ह्वेग्यां यख सब निर्चट-बलार।

गुणी-बांदर हल्या सैणा-सैंचार
लंपसार प्लास्टिक थैलाक थ्वकदार
रड्यां सुलारक मालदार कबतलक
रिमिक्स हिंग्लिस मा गोत्राचार।

रचना-: बलबीर राणा 'अडिग'

Sunday 26 July 2015

SOS बस्ग्याल

जेठ ज्वानि कु, तातु उमाळ
बैठिग्ये बस्ग्यालक उलार देखी
तेरु रुसाण संशय कनु विधाता
कखि बौगी न जों,
ज्यु झुराणु तेरु गुस्सा देखी।

SOS =safe our sole मितें बचावा मेरी ज्यान जाणी
© सर्वाधिकार सुरक्षित
www.ranabalbir.blogspot.in

Saturday 18 July 2015

मेरु सौंण


डांडा छान्यों मा रंगत ऐे होळी
एक तरफ बल्दों की लड़े
दुसर तरफ बखरों की टोली।

गिचा कताड़ी ब्वे धै लगाणी
भितर ल्यो भैंसा तें थ्वोरु बिब्लाणी।

सुरुजु देखा रंगमत हुयुं च
चौ चक्की खेलण मा धै नि सुणु च।

पार डांडा देखा बरखाक् भिभ्डाट्
छिड़ा गदनो कु छिड़-छिछड़ाट।

पुंगडा पातळा लकदक होला
काखड़ी मुंगरि आलू छैमुला।

बस्ग्याली ब्यखुन्दा आनंद-आनंद
घ्यू दूधे रेलम-पैल रोज सग्रांद।

दिन मा गोरु दगड़ जाणे रोंस लगीं च
पल्या गों की गोरी कु स्वाल अयुं च।

भ्वौल, वल छाला अपणा गोरु लियाँन
सेणां तमलों बैठी त्वे दगड़ छ्वीं लगाण।

कनु निर्मल जीवन छै निश्चल माया छै
आजक फिकर ना भ्वोळक चिन्ता छै।

बरखा का छीड़ मा लतर-पतर् गात
ड़ाला ऐथर धर्युं रेन्दु हाथ मा हाथ।

सरूली गौड़ी पुछै्यड़ी खड़ा करि दनकणी
धौल्या, कल्या बल्दों तें खूब सन्काणी।

सैद यु काल नि रयूँ अब समय नि रयूँ
यादों की थैला की #अडिग तेरी कल्पना रयीं।

भैतिकताक भोग, डंडा-मरूड़ा भी चड़िग्ये
आपार सुख देणु वाळू जीवन अब नि रै ग्ये।

कुछ भी ब्वाला भैजी भुलाओ
ठण्डु माठु करि ज्यु जगाओ।
 
जै जीवन मा ज्यादा तीस-तृष्णा नि रौंदी
वु ही जीवन सच-मुच कु बैकुण्ड माण्येन्दु।

द्वी गत्ये सौण बि. सम. 2072

रचना:- बलबीर राणा "अडिग"

@ सर्वाधिकार सुरक्षित।

 

 

Sunday 12 July 2015

बक्या/पुच्छयारु


बोल भोट्या बोल
सच्ची अपणा मन की खोल
बोल बचन  ल्ये ज्यूंद्याल
समझ मा आली त हाँ बोली
निथर ना बोली
तेरी पूछ जांचणा कु विषय
दो पायी नि यु चौपई कु संशय
घात नि जैकार नि
कैकु आँखार नि
तेरु बगुट्या हर्ची च
कैकु नि यु दर्वाल्युं की करमात च
हाँ प्रभु !!!!
सच्चा छां तुम
साकसात छाँ
मेरी जिंदगी का उद्धार छां
जन बोलला तन करुलु
तुमारा थान भेट पावड रखलु
फर
मेरु बगुट्या मितें दे द्या
हाँ ठिक च
ये थाली मा सौ रुपया होर डाल
जमानु बदलिगे
महंगाई ह्वेगे
लोग!!
कट्यां मा मुतणुक तय्यार नि
मिन भी क्ले मुतण
ल्यो बीड़ी पिलो ।
स्वाट...स्वाट...सू....सू.....

रचना :-बलबीर राणा 'अडिग'

Thursday 18 June 2015

मसाणो का ठाट पड़े


ॐ नमो आपदा देवी
तेरी जन बार पड़े
मसाणो का ठाट पड़े
खूब चखल-पखळाट पड़े
दुन्या की चाहे किलकिलाट पड़े।

ॐ नमो
हरीश दा को आदेश
किशोर दा को आ देश
कै भी गाड़ पूजा
कै भी धार नचावा
ढोल बजा या भोँकर बजावा
कंडाळीन झाड़ा
या गरुड़ पंखोंन झाड़ा
मसाणो की
झाड़ सी.बी.आई. से नि होली
चाहे जन्ता की आण पड़े
बीजेपी वलों की ताण पड़े
फुर्र मन्त्र फुर्र मसाणो
फुर्र फुर्र फू फू......

ॐ नमो
गुरुघंटयाल खबेस कु आदेश
बोल मसाणो
क्या खायी तुमून
क्या पायी तुमुन
अगास मा कने गया
धरती कु चक्कर कण काटी
फुर्र मसाणो चट चाटी
फुर्र मसाणो कट काटी
फुर्र फुर्र फू फू......

मसाणो उवाचो
गुरूजी तुमारा सौं
पहाड़ छोड़ी कखि नि गयों
थोडा सिकार-भातन बांधो
डबल बेड ऐसील बांदो
बांधो डीजल स्कूटर की सवारिन
बांधो हवे जहाज की हवा ळ
ओ.....ओ .....ओ कीsलल....

ॐ नमो
केदार बाबा कु आदेश
बद्रीनाथ कु आदेश
कृपा माँ भवानी की कृपा
देश विदेश बटिन
लोगन खूब द्याई
कुछ चकडेतों न पायी
कुछ हमुन भी खायी
इत्गा भिबडाट किले
इत्गा चिरी मंचिं त
कुंबे जांच नि किले
ओ.....ओ .....ओ कीsलल....

ॐ नमो
प्रकृति दयबता कु आदेश 
कखि भूकम्प करुलो
कखि बरखा बरखलो
कै की कुड़ी हिलोला
कै की बगोला
ये बाना तुमारु ग्येर भरुला
फुर्र मसाणो
नि हूँण अजाण
नि रुसाण
फुर्र फुर्र फू फू
जब तलक कांग्रेस बीजेपी रैली
तुमारी पूज्ये हुणि रैली
फुर्र मसाणो पट पटकावा
फुर्र फुर्र फू फु ........।

ॐ नमो
नेता खबेस दा कु आदेश
सुण ल्या रे मसाणो हमारू आदेश
खाणा रोला पीणा रोला
ये उत्तराखंड मा उताणा ह्वे रोला
लोग त शेरों मा भाजी गेन
यख हमुन त रेण
खोला भी हम प्योला भी हम
फुर्र मसाणो फुर्र
झट झटकावा
जख मिली तख चटकावा
जनता कु दुःख फुर्र स्वाहा
पाहाड़क पीड़ा फुर्र स्वाहा
फुर्र मसाणो फुर्र हराम का पैंसा सुर।

ॐ नमो
मनखियत कु आदेश
हमूतें ना सुणावा
हम मनखी नि
हमूतें ना बिंज्ञावा
हम रागसस  छां मासाण भूत प्रेत
नि कै पार्टी से भेद
सरकारक इष्ट छाँ
जो भी कुर्सी मा बैठु
वे का हम छाँ
फुर्र जन आन्दोलन फुर्र स्वाहा
फुर्र फुर्र फू फू ......

रचना:-बलबीर राणा 'अडिग'

फुर्र मसाणो फुर्र फुर्र


ॐ नमो मसाणो कु राज, कन ठाट-बाट
भैर मुर्दों की कारुणा, भितर चखल-पख्ळाट।

ॐ नमो
हरीश दा को आदेश
किशोर दा को आदेश
कै भी गाड़ पूजा
कै भी धार नचावा
ढोल बजा या भोँकर बजावा
कंडाळीन झाड़ा
या गरुड़ पंखोंन झाड़ा
मसाणो की
झाड़ सी.बी.आई. से नि होली
चाहे जन्ता की आण पड़े
बीजेपी वलों की ताण पड़े
फुर्र मन्त्र फुर्र मसाणो
फुर्र फुर्र फू फू......

ॐ नमो
गुरुघंटयाल खबेस कु आदेश
बोल मसाणो
क्या खायी तुमून
क्या पायी तुमुन
अगास मा कने गया
धरती कु चक्कर कण काटी
फुर्र मसाणो चट चाटी
फुर्र मसाणो कट काटी
फुर्र फुर्र फू फू......

मसाणो उवाचो
गुरूजी तुमारा सौं
पहाड़ छोड़ी कखि नि गया
थोडा सिकार-भातन बांधो
डबल बेड ऐसील बांदो
बांधो डीजल स्कूटर की सवारिन
बांधो हवे जहाज की हवा ळ
ओ.....ओ .....ओ कीsलल....

ॐ नमो
केदार बाबा कु आदेश
बद्रीनाथ कु आदेश
कृपा माँ भवानी की कृपा
देश विदेश बटिन
लोगन खूब द्याई
कुछ चकडेतों न पायी
कुछ हमुन भी खायी
इत्गा भिबडाट किले
इत्गा चिरी मंचिं त
कुंबे जांच नि किले
ओ.....ओ .....ओ कीsलल....

ॐ नमो
प्रकृति दयबता कु आदेश 
कखि भूकम्प करुलो
कखि बरखा बरखलो
कै की कुड़ी हिलोला
कै की बगोला
ये बाना तुमारु ग्येर भरुला
फुर्र मसाणो
नि हूँण अजाण
नि रुसाण
फुर्र फुर्र फू फू
जब तलक कांग्रेस बीजेपी रैली
तुमारी पूज्ये हुणि रैली
फुर्र मसाणो चट चटकावा।

ॐ नमो
नेता खबेस दा कु आदेश
सुण ल्या रे मसाणो हमारू आदेश
खाणा रोला पीणा रोला
ये उत्तराखंड मा उताणा ह्वे रोला
लोग त शेरों मा भाजी गेन
यख हमुन त रेण
खाला प्योला भी हम
फुर्र मसाणो फट स्वाहा
फुर्र फुर्र फू फू........

रचना:-बलबीर राणा 'अडिग'

Monday 1 June 2015

भैर वाळी भितर बल

भैर वाळी भितर- भितर
भितर वाळी भैर बल
मोंस्याणि का कोळि स्येलि
अपणी ब्वे गैर बळ।

सेमन्या प्रणाम की मिठी भोंण मा
हेलो हाई की मर्च कैन मिले
अंग्रेजी लोड़ल थैंचि-थैंचि
निखाणी आज किले बणे
हम गँवाड़ी का गंवार नि
ऐग्या अब त सैर बल
मोस्याणि का कोळी ......

बिंग तो जाता हूँ
बोलना नहीं आता बल
मेरे को क्यों दोष दे रहे हो
मम्मी डेड ने नहीं सिखाया बल
समे-समे की बात मान ल्या या
घुमे ल्या बगत-बगत का फेर फर
मोस्याणि का कोळी......

दूध बोली कु तिरिस्कार कैर
पढ्यां लिख्याँ अनपढ़ किले
वा अंग्रेजियांण नि छयी अपणी ब्वे छयी
जैन बोतल नि, दुधि कु दूध पिले
किले जिझक् किले सरम
दिन दोफरा हो या, राति सुबेर बल
मोस्याणि का कोळी .......

खूब सीखा अर सिखावा
देश परदेश की भी विन्गावा
ब्वनु-बच्यांण तब्बी होन्दु
बिन जाण्या लाटू रैन्दु
फर?
अपणी ना बिसरा ना हर्चावा
ये कु ब्बी उत्गा मान बढ़ावा
निथर? मिट जाळी पच्छ्याँण नि रैलू वर्चस्व
भिंडयाँ ह्वेगी देर अब ना करा अबेर
नि पड़दी मोस्याणि का कोळी स्येलि
नि बनाण 'अडिग' अपणी ब्वे गैर ।

रचना:- बलबीर राणा 'अडिग'

Saturday 30 May 2015

सच


लौंची उमर मा
ब्वौड़
जत्गा भी गेळ/पड़गोल
क्ले नि रे ह्वोलु
बल्द बणि
खेंचम-खैंच कु हल्या बणि जान्द
सैद यु जीवनक सच च।

@ बलबीर राणा 'अडिग'

Thursday 26 March 2015

चिपको प्रेणता गैरा दीदी की धै -----------------------------------


कुल्याडु ल्येकी कख जाणु रे
कै मुल्क कु तु कसाई रे
अपणा त क्वे नि इन निर्दयी
तु जरूर सरकार को पाल्यों रे
हाथ लगे देख जरा अजमाईस कर
हाथ टंगडा तोड़ी द्योला तेरा रे
भाज अपणी डोफलि टोफुलि ल्येकी
पिछने मुडिक ना द्येख रे
यु डाला मेरा आस छन
औलाद भी यु ही रे
हाथ लगे दिखो जरा
तेरी फिर खैरी नि च रे
मेरी अंग्वाल मेरा भोल पर
धरती की यु धरोहर रे ।
चिपका छोरों दीदी भुल्यों
चिपका बैख नमाण रे
डाला कटला या हम कटला
यूँ कु सास देखला रे।

रचना: बलबीर राणा अडिग"

Saturday 14 March 2015

महान चित्रकार बी मोहन नेगी


हैंसदी मुखडी  दाढ़ी लाल
कलम कुचिल लेखदु सब्युं कु हाल
चित्र साधना मां लीन वा यति
जीवनक सुलझान्दू जटिल सवाल।
श्रद्धा से  शीष झुकता है उस तपस्वी के लिए जो सम्पूर्ण जीवन कला साधना के माध्यम से संसार को हर पल नईं ऊर्जा से लबरेज रखता है । आध्यात्मिक शुचिता और व्यसनों से मुक्त, भारतीय ऋषि परम्परा का निर्वहन करते हुए एक अनोखा संयमित जीवन जीने वाला चित्रकार जो कभी भी चर्चा में रहने को लालायित न रहा और न रहना चाहा। उनकी कला साधना जीवन की उस  गहराई को नापती है हुयी जड़ तक जाती जहाँ से वास्तविक जीवन को पोषण मिलता है न्यौछावर क्या होता न्यौछावर की असली परिभाषा जाननी हो तो भैजी श्री बी मोहन नेगी जी की कुचि और रंग सहज चंद मिनट में बता देती है।  बिना राजनैतिक पक्षधरता के,चाटुकारिता से दूर अपनी कुटिया में जीवन सार संचित करता एक महान कलाकार बिना स्वस्वार्थ के कर्म पथ पर अडिग खड़ा रहता है लाभ हानि से बिरक्त सत्ता के गलियारों में अपनी पहचान अंकित करने या सत्ताधीशों को रिझाने की छटपटाहट सोयी रही जगी रही वो चेतना जो मात्र कर्म जानती है फल नहीं ।छोटे पहाड़ी कस्बों में कला साधना में डूबा बड़ा चित्रकार। आज हजारों कविता पोस्टर के साथ चित्र कला के कई नव सृजित कलाकृतियां अपने जीवन के पन्नों में चित्रित कर चुके हैं जो युगों तक देव भूमि  उत्तराखंड  की भूमि में महकती रहेगी चमकती रहेगी ।निरन्तर सक्रीय और लगातार लगातार दिन रात लगन में मगन । भगवान् ने कौन सी देह बनायी है । भैजी श्री बी मोहन नेगी जी को लगभग युवावस्था में आने के बाद ही जाना मुलाक़ात आज भी तरस्ती है लेकिन उनकी चित्रकला का अवलोकन साहित्य क्षेत्र में आने के बाद ज्यादा रहा हर चित्र में पहाड़ और पहाड़ की संस्कृति की नईं झलक दिखती है  एक दिन की भी कला साधना को बिराम देना उन्हें अखरता है। इतने लम्बे समय तक बिना किसी रिटर्न के, न दाम और न उनके योगदान के मुकाबले का कोई बड़ा सम्मान, निरन्तर कला साधना में रत रहना बिरले ही लोगों के बस का है। बिना किसी फायदे के पूरा जीवन खपा देना गृहस्थ के बस का नहीं लेकिन उन्होंने गृहस्थ की अच्छी पारी खेलने के साथ कला की पिच को बखूबी सम्भाला और अभी सिर्फ प्रथम पारी का खेल मानते हैं डाक सेवा से सेवा निवृत्ति के बाद की अभी महत्वपूर्ण मानते हैं ऐसे महान साधक कविता पोस्टर विधा के महान चित्रकार श्री बी मोहन नेगी जी को कोटिस नमन। 
आपका प्रसंशक :- बलबीर सिंह राणा 'अडिग' मटई बैरासकुण्ड चमोली

Tuesday 3 March 2015

ऐगे वा होरी


ऐगे वा होरी
याद कंठ-कंठ तक भोरी भोरी
ज्यु मां उमाल च
मन मां उलार च
कै मां डालुला रंग
कु आलो संग
जौला देली- देली
भटकुला मोरी- मोरी
गीत लगौला
प्रीतक अंग्वाल भरुला
पर !
वु बाळापन अब नि रायी
ना माया को वु जमानु रायी
भटकणु छै यु पराण आज भी
गौं गल्यों धोरा आज भी
जख होरी का नबाब बणि
बक्सट बण्यां रैन्दा जणि
ब्वे व्यखुन्दा मुंड पलासी
दैन्दी छै होरी तें गाळी।

@बलबीर राणा 'अडिग'

Sunday 22 February 2015

चकबंदी बिंज्ञी जा मेरु भुला

किताब मा लिख्यां आँखर त मिऽटी जान्दा
भाग मा लिख्यां नि मिटदा
किताब त क्वी भी लिख सकदा भुला
जोग त्वेन अपणु खुद लिखण भुला

किले बिबलाट कनु मेरू प्यारू भुला
कुसंगति लोभ मा न भाग मेरू भुला
किले मन अपणु भरमान्दू भुला
चकबंदी मंत्र तें विंगी जा मेरा भुला 
समझी मेरु भुला
विंगी जा तु भुला........

देव भूमि मां जन्म मिलदू कै जतन का बाद
ये तें अर्खाद ना जाण दे हे भूलाऽऽऽऽऽऽ.... आज
हरि भरि ये भूमि तें बांजा ना बणण दयावा
बाप दादों की थाती तें खाली हूँण से बचावा

जड़ जंगल जमीन की लडे छिन भुला
सचु गढ़ पुत्र छै त लड़ जा मेरु भुला
रोजगारक रुण अब तु ना रोवू भुला
अपणु रोजगार अफुं बण जा मेरु भुला
रोजगार बण जा मेरु भुला........
रोजगार बण जा तु भुला

माफियों कु जंगल राज कब तलक रैलू 
राजनीति ठ्यकदारोंक हाथ कब तलक ठगण रैलू 
गरीब क्रांति मिशन कुणी चौक-चौका पोंछावा
विकासक रांकों थामी घर-घर उज्यालू करि जावा

गणेश भैजी स्वेणा तें साकार कर भुला
इकुलांस हुन्य्याँ पाड़ तें उदंकार कर भुला
ये धरती को भुम्याल छै तु रक्षा कर भुला
पाडे कि पाणी-ज्वानी समाल मेरु हूला
समाल मेरु भुला
रक्षा करि जा मेरु भुला .....

किले बिबलाट कनु मेरू प्यारू भुला
कुसंगति लोभ मा न भाग मेरू भुला
भाग मेरू भुला .....
भाग मेरू भुला .... 

गीतकार :- बलबीर राणा “अडिग”

Wednesday 18 February 2015

******गरीब भैजी कु रैबार*****


ये ज्योत तें बुजण ना दियां
गरीब का स्वेणा टूटण ना दियां
लक दक फूल पाती से सजलु मेरु मुल्क
चकबंदी की सबत बिसरी ना जयां।

कमर कसि ल्या रैबार सुणी ल्या
नेता थोकदार गल्दार भैजी तुम भी सुण ल्या
भाषणों घोषणाओं से अब ज्यु उबिगे
तुम भी बंग्लो से भैर ऐ ल्या।

हिमालय की शान गढ़ कुमौं
देवी द्यब्तों कु थान गढ़ कुमौं
धरती पुत्र छाँ तुम ये धरती का
उत्तराखंड की पच्छ्याँण गढ़ कुमौं।

गणेश भैजी मंगल मंत्र हाथ धरि
घुमणु देली- मोर  गौं ख्वाला फिरी- फीरि
अपणु आज हमारा भ्वोल् तें
ख्वज्याणु चकबंदी का बाटा फरि।

बात नि यु विचार नि
क्वी आँखरों कु जाल नि
ये बाटा ही ये मुल्क का पराण बच् सकदा
दिल्ली देहरादून की बात नि।

ना भटका दिन रात नौकरी का बाना
अठ्ठारह घंटा द्वी रोटी का बाना
ये धररती कु बर्चस्व तब्बि बच्युं रैलु
घर बौड़ण कु तुम संकल्प ल्याला।

@ बलबीर राणा 'अडिग'
गरीब क्रांति अभियान

Wednesday 7 January 2015

चकबंदी बिंगि जावा

किताब मा लिख्यां आँखर त मिऽटी जान्दा
भाग मा लिख्यां नि मिटदा
किताब त क्वी भी लिख सकदा भुला
जोग त्वेन अपणु खुद लिखण भुला

किले बिबलाट कनु मेरू प्यारू भुला
कुसंगति लोभ मा न भाग मेरू भुला
किले मन अपणु भरमान्दू भुला
चकबंदी मंत्र तें विंगी जा मेरा भुला 
समझी मेरु भुला
विंगी जा तु भुला........

देव भूमि मां जन्म मिलदू कै जतन का बाद
ये तें अर्खाद ना जाण दे हे भूलाऽऽऽऽऽऽ.... आज
हरि भरि ये भूमि तें बांजा ना बणण दयावा
बाप दादों की थाती तें खाली हूँण से बचावा

जड़ जंगल जमीन की लडे छिन भुला
सचु गढ़ पुत्र छै त लड़ जा मेरु भुला
रोजगारक रुण अब तु ना रोवू भुला
अपणु रोजगार अफुं बण जा मेरु भुला
रोजगार बण जा मेरु भुला........
रोजगार बण जा तु भुला

माफियों कु जंगल राज कब तलक रैलू 
राजनीति ठ्यकदारोंक हाथ कब तलक ठगण रैलू 
गरीब क्रांति मिशन कुणी चौक-चौका पोंछावा
विकासक रांकों थामी घर-घर उज्यालू करि जावा

गणेश भैजी स्वेणा तें साकार कर भुला
इकुलांस हुन्य्याँ पाड़ तें उदंकार कर भुला
ये धरती को भुम्याल छै तु रक्षा कर भुला
पाडे कि पाणी-ज्वानी समाल मेरु हूला
समाल मेरु भुला
रक्षा करि जा मेरु भुला .....

किले बिबलाट कनु मेरू प्यारू भुला
कुसंगति लोभ मा न भाग मेरू भुला
भाग मेरू भुला .....
भाग मेरू भुला .... 

गीतकार :- बलबीर राणा “अडिग”
15 जनवरी 2013

जब ह्वेली चकबंदी

रैली अपणी हदबंदी जब ह्वोलि चकबंदी
नि रैली दूर धार गाड़ पुंगड़ी पाटळी
काम धाणी ह्वोलि सन्क्वाळी ।

भैजी/भुलाओ अब निरास ना हो
गरीब क्रांति की आश जगी हो
तेरा नो की ह्वोलि तेरा पुंगडूं घेराबंदी
रैली अपणी हदबंदी जब ह्वोलि चकबंदी।

बांजा डोखरी सूनी तिबारी त्वे भट्याणि हो
पिछने मुड़िक देख तेरु यु गौं त्वे धै लगाणी हो
ना जा मुख मोडी भुला त्वे तेरी ब्वै बुलान्दी
रैली अपणी हदबंदी जब ह्वोलि चकबंदी।

मार अंग्वाल तों धार कांठा की पुंडगि हो
बोंलाँ बिटो कमर कस तेरा हक़ की यु लड़े हो
गरीब क्रांति की अलख त्वेन देळी देळी जगान्दि
रैली अपणी हदबंदी जब ह्वोलि चकबंदी।

नि भटकलु तु अब दिल्ली की सड़्क्यों हो
बेरोजगारक रुण–धूण सरकारक मुख ताकण हो
अपण हाथ अपणु भविष्य त्वेन खुद ल्येखंण
रैली अपणी हदबंदी जब ह्वोलि चकबंदी।

गीत:–बलबीर राणा 'अडिग'
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