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Tuesday 7 November 2017

कलावन्त बी मोहन नेगी


जन सुगन्ध चंदन मा
तनि ते चरितर ते मन मा
ज्यू मा बस्यां राला सदानी
साहित्य का सघन जीवन मा।

हैंसदी मुखड़ी दाड़ी लाल
खुश मिजाजी खुशहाल
सरल व्यक्तित्व का धनी
अब नि मिलण्यां इन मिशाल।

आंख्योंsक चमक करबरकार
गुट-मुट कद कु कलमकार
पाड़ो आदिम पाड़े चाल
जीवंत पोट्रेट चटबटकार।

अपच्छ्याण का पच्छयाण रौंदा छां
न मसखरी, न कब्बी रोष होंदा छां
अथा आदर छों हर साहित्यकार को
कै फर बी कुची कलम घूमोनन्दा छां।

चितेरा छां, चित का चितरकार छां
रंगकर्मी छां, जीवन रंगोंक रंगकार छां
कबिता पोस्टर साहित्य का अद्वित्य हस्ताक्षर
महान कलावन्त, मनख्यात का छायाकार छां।

कर्म क्या छ, साधना क्या छै
अर्पण-समर्पण अराधना क्या छै
सब्बि परिभाषों की एक प्रतिमूर्ति
बृज मोहन नेगी जों कु नो छै।

@ बलबीर सिंह राणा 'अडिग'