Search This Blog

Sunday 30 May 2021

उळौ बाग



     सब्बी तालों फर एक पूरा फिरकी नचणा बाद पंडोन भ्येटि घाटि करि अर आसण विरजमान ह्वेन । अब कुछेक घड़ी थौ खाणों बगत। बीड़ी तमाखु अर पाणि चैन्द डंकरियों तैं। दिन भर निना  (अनुष्ठान) दगड़ नाचण नाचण गोळ सुखी जान्द। तब्बी पदान बौडान एक लम्बी ताण मारि धै लगे। ऐऽ चुप रावा रे छवारों। हपार पिछने द्याखा लौड़यूँ क्या कछ़डी लगिं यीं रात बि। जिट घड़ी जर्रा ते गिच चुप त राखा ले, जखमु द्याखा एक कच्चर कच्चर सिंटुलों जनु किबचाट। चुप रा दौं जिट।अब स्यूँबाग औण वळु च। ब्वारियोंऽऽ तौं छव्टा नोन्यालौं मुख ढक्यान निथर कैका नोन्याळ फर झपाकु लगि जालु। ऐ कमलु चल ब्वटाराम ताळ छटको निथर बाद मा जादा देर ह्वे जान्द। यूँ डंकर्यून बि एक निद स्येणु च। ठिक च काका, अर कमलु दासन ताळ छटकेन।

     धिनऽक्द्दा, धिनऽक्द्दा, धिनऽक्द्दा धिन धिन। झिम्ताण.... झिम्ताण.... झिम्ताण......., तिण तिण झिम, तिण तिण झिम। अर द्वी ज्वान न गळफ्वड़ा फूकी भुंकरा बजेन। पूँऽऽ... भ्वाँऽ। पूँऽऽ..... भ्वाँऽ, भ्वाँऽऽ.... भ्वाँऽऽ..। पूँऽऽ भ्वाँऽ, पूँऽऽ...।

     गौं मा पंडवार्त छै चलणी सैरु द्यो खौळ कोथिगेरुन भर्यूं छै। अर पंडवार्ता बिच बिच मा जंता क मनोरंजन अर डंकर्यां आरामा वास्ता कुछ नट बि दिखै जान्दा छाँ। आज इनु स्यूँबागा नटे बारी छै। उन त सदानी पोरुं साल बटे स्यूँबागो नट कबरेला घारी दार कपड़ा बांधि बागे औनार त्यार कर्दू छै। पर यीं साला नट तैं क्या सूझिन कि तेन अपणा मर्जी से खंतड़ों भैर बटिन ऊळ बांधिन। अर घासौ बाग बणग्ये। जनि बाजा बजिन ताळ लगिन त ऐ ग्यों साब स्यूँबाग सड़मऽऽ..., मुड़ि सगवाड़ी बटिन चार हथ खुट्टोन द्यो खौळ मा। जन्ता नमाण झस्स झसकेग्ये। ऐऽपड़ि ब्वै का। या क्या पिचास ऐन भाय द्यौ खौळ मा आज। हे माच्यो ! अब समणी मसाण जनु बाग बि होण लगिन, ना जाण किलै बिगच्यां युं अजक्याला चकड़ैत छवारा बि। यूं तैं कुछ पता यी नि कि क्वो नट कन बणाण नचााण चैन्द, सुद्दी छिन मास्ता हाथ ध्वोण पर अयां। अपणी मर्जी कु काम। चलो जु बि ह्वेन अब ये तैं यी नाचण द्या।

     द्यौ खौळ मा एक सर्रु घासक खुम्मो नचणु बैठग्यूंँ छै। धिनऽक्द्दा, धिनऽक्द्दा, धिन धिन। झिम्ताण झिम्ताण तिण तिण झिम। तिण झिम, तिण झिम। तिण तिण झिम। अर स्यूँबाग अपणा पूरा रुबाब मा मस्त ह्वे हथ खुट्टा टेकि नाचण लगिन। अपणी कला दिखोंण लगिन। वा झिम्ताण झिम्ताण नाचद नचद जनान्यूँ तर्फां लम्बो हाथ कर्दू, डुकुरताळ मर्दू। जनान्यिाँ क्ल्लि.....।  ऐ ब्वैईईऽऽ। ऐ यख ना, इना ना। स्या डोरिन मुख ढकै चिल्लोट मचोण लगिन। छवटा बाळों मुख तौं कि ब्वैन टालिखन ढक्ये दिनी। जबारि वा ज्वान छवारों फर घुस्ये घुस्ये डस्कान्दू त छवारा टांग खिची तै दगड़ छिंज्याट शरारत मसखरी कर्दा। कब्बी दासों तर्फां फ्वाँ फ्वाँ, सड़म सड़म। बाजा भुंकरा अपणा पूरा रस ताळ फर।

     तबारि किल्लऽऽ किल्कताळ। ऐ ब्वैईई ! ऐऽ.. ऐऽ.. ऐऽऽ वा मोरिग्यूँ रे। मोरिग्यूँ, मोरिग्यूँ। लोगुं को हल्लारोळी चिल्लौट मचि ग्ये। भऽ. भऽ भऽ आगो भभकारु। स्यूँबाग आगा रांका मा बदल्येग्ये। कै उदभरी छवारन धूनि बटिन एक छवटु सि मुच्याळु लगै ध्ये म्येल्यौ तैका पिछने। ऊळन स्यां आग पकड़ी अर फ्वाँ आगो रांकु उठग्ये।जंता मा भैकाम कि जितारु नेगी लौड़ आज ज्यून्दो जगदू। कौथिगेरों मा हफरा तफरि। तबारि कै ज्वानन हिम्मत करि झप्प कमव्टन झपाक मारि तै फर अर आग बुझझेन।सब्यूंन चैने सांस ल्येनी। स्यूँबाग त रैलु अपणा घौर पर विराणु नोनु बचग्ये, आज बड़ी उल्क होण सि रैग्ये। विचारु पिरमु (प्रेम सिंग) जितारु नेगी ज्वान नोनु स्यूँबागो नट बचग्ये।

     जिट घड़ी घपघ्याट घपरौळा बाद सब सन्न सुनताळ। बाजा भुकरा बंद। तब्बी धूनि पिछने अन्ध्यारा मा हैकि आग लगिग्ये। भिड़ भिड़ भिड़, भिभड़ाट। छप्प छप्प छप्प जुत्तें छपाक। जुतम जुत्ते, मेड़ बुबे गाळि।

ऐपड़ि मेड्यो मैं.......!! हराम कु बच्चा। त्वेन मेरा घौर निरास कर्यालि छै आज। कमिने औलाद। हैं। मि बतान्दू त्वै खुणि कनि होन्दी मसखरि मजाक। चप्पाक थप्पड़। लगालू पिछने  मुच्छयाळु ? पिरेमु बाबा जितारु नेगी (जितार सिंग नेगी) एक छवारा तंै छै निगुरु पटकाणु। तबारि हैका तर्फां जनान्यूँ मा बि झिंझड़ा झिंझोड़। गळम गळै। हे रांड, मोरि जालु तेरु। क्यांकू सैंत्यूं त्यारु वा कुबीज। म्यार पिरमु क्या ख्वै तुमारु। पिरमु ब्वै ते उदभरी छवारे ब्वै तैं झिझ्वड़णि बैठग्ये।

     चौं तर्फां एक हल्ला रळी, कव्वारोळी किबच्याट। छुड़ाण बुथ्याण, हां हां, तु तु, मि मि, अर जुत्तम जोड़ मा वा छवटा सि मुच्याळै आग द्वी ख्वाळों लड़ै मा बदल्येगी।जजमान अर बामण ख्वाळी बल।

     जजमान ब्वना छै कि तेनै लगै मुच्छयाळु, वा मंसाराम कु बिगच्यूं बीज, कुबीज। तुम भाटोंक काम हमेस गौं मा उदभरी रै। अर बामण ब्वना छै कि केन देखिन अंध्यारा मा वा मंसारामों कु ही नोनु छै। अर तै जित्वारा नोना तैं कैन ब्वोलि कि तु स्यूँबागे जागा ऊळौबाग बणों। तुम खस्योंक काम सदानी इनि उटपटांग रै। एक ब्वनु तुम खस्या हैकु ब्वनु तुम भाट। एक हैके सै सोणु क्वी त्यार नि छां।   

     त साब ठिक एक घंटा तलक यु कव्वारोळी, किबच्याट, घपघ्याट अर घपरौळो कोथिग चलणु रो। आखिर जनि तनि झगड़ा निबटिन सब्ब शांत ह्वेन। अरे चुप रावा, शांत शांत शांत। पदान जी अर दाना संयाणों न द्वी पक्षों तैं चुप करेन।

     जनि सब्ब चुप ह्वेन तनि गौं कु सबसि दानु मनखी अस्सी सालों दल्लू दादा जांठू टेकि चम्म खड़ू उठि। बल हे छवारों, खूब करि रे तुमुन आजो कोथिग। सोब निहोण्यां काम च रे लठ्याळो या। यार ब्वटों अब तुम चुप शांत ह्वेग्यां त चला अपणा अपणा द्येळयूं। पर मास्तों याद रख्यान अब अग्ने बटि यनु उळौ बाग नि बणायां  रे। फेर एक ना इनि सब्यूं कि कूड़ी फुक्याण मा देरी नि। दादे बात सूणि सब्बी खित्त खित्त खित हैंसण बि लगिन अर गल्ती फर अफसोस बि ह्वेन।

 

असौंग शब्दों कु अर्थ :-

ऊळ/ ऊळौ - बणों सुख्यूँ घास जै तैं बसग्याळ भर र्पयेणा बाद बैठया ह्यूंद इस्तमाल कर्ये जान्द। उळौबाग - छवटी बाते बड़ी बात बणाण। लौड़यूँ - जनान्यिूं। डंकरी - पस्वा/औतारी पुरुष। स्यूँबाग - शेर। टालिख -–मुन्याणु/ मुंड मा कु पल्ला। लौड़ - लड़का/नोनु। कमव्टू - कंबल। उल्क- घटना । मेड़ - ब्वै । जिट - कुछ/ थोड़ी

 

कानीकार : बलबीर सिंह राणा अडिग

  

Monday 24 May 2021

मंशा


तुम अर तुमारा पर

कच्याण

किकराण 

किड़ाण 

कुकराण

कुतराण

खटाण 

खौंकाण

गुवांण 

गौंताण 

चुराण

टौंकाण छै औणि। 

अर

मि अर मेरा पर

कुमराण 

खुड़क्याण 

घियांण 

दुध्याण

मौळयाण छै औणि। 

इलै जन मि

ब्वनु 

कनु

सोचणु 

ध्यखणु 

समझणु

बिंगणु 

उन तुम बि बल। 

निथर

मेरी नि त 

तुमारी क्या ? 


@ बलबीर राणा 'अडिग'

स्यौ लगोण छै

 



                बालम अर चैन सिंग द्वी इस्कुल्या दगड़या पलै* सालों बटि मिलिन। असल कुसल ह्वेन। कैकु जीवन चर्खा कति घुमणु कनु घुमणु बात विचार ह्वेन। बालम सिंग - यार दिदा मिन सूणि त्वेन नोनी बि बिवैल बल ?

चैन सिंग - हाँ यार भुला लगुली अर ब्यटुली जति छाँट ह्वो ठंगरा लगे दीण चैंद निथर वीं भुयां गळजी* जान्द।

बालम - हौं दिदा सयी बात च। दिदा मिन सूणी भलु घौर बार मिली बल नोनी थैं । दिल्ली बि चलग्ये बल जवैं दगड़। सच्ची ?

चैन सिंग - हाँ यार भुला ठिक यी छन ब्वाला। ये संगसारा सोब रिस्ता स्वारथ का बल। अब बेटुल्यों तैं द्याखा। भलु जवैं अर धैन-चैन* बळी मवसी मिली त मेरु भाग ल्येन ये घौर मिथैं, बुबा क्वो होन्द देण वळु अर कखि पस्यौ धारा गरीबी लारा मा कटेणी त मेरा बाबै नि खाण ह्वेन, जु यीं घौर द्ये मेरु बूरू करी। पर चलो खुसी छ अपणा होन्दा खान्दा दिखेन्दा त हरीश लगदू। अर द्वी मितर अपण अपणा बाटा लगिन।

                कुछैक साल बाद नोनी जवैं क तरक्की ह्वे साब बणिन, त नोनी हलण-चलण* बि साबिण वळु होणे छै। गौं मा सब्यूँ तैं पता छै कि अलाणा फलाणें नोनी जवैं बड़ो साब बणिग्ये। नोनी भाग्येस मा बिरस्पति जु बैठयूँ छै।

एक दां नोनी मैत ऐन,  जनि खौळ मा पौंछिन त तैन सौजि बाबा तैं ब्वोली। बाबा जर्रा पिछने क्वलणा* चला दौं।

बाबान बोलि किलै बाबा ?

नोनी - स्यौ* लगोण छै।

चैन सिंग अचरज मा ! दुन्यांऽ छीड़ा छंछड़ों छपोड़यूँ मनखी छै। वा बिंगी ग्ये। तेन उनि सौजि। बाबा आदिम रिस्ता पैदा कर्दू आदर ना। त्वेतैं तति सरम छै लगणी ये बुबा देखि त इन कैर तु बुबा ब्वोली ना। क्वै जबरदस्ती नि, क्वे नि बिलकणु* ? मिन ठिक यी सूणि छै कि बड़ा पद अर कदाऽ झ्याला* तौळ आदर कुर्ची* अर रिस्ता गौळि जान्दा बल।  

 

असौंग शब्दों अर्थ

 

स्यौ - सेवा सौंळि।   पलै - भिज्यां भौत।   गळजी - अळझी कि गलण। हलण चलण - चाळ ढाळ।   क्वलणा – कुलाणा/ मकानो पिछने हिस्सो।  बिलकणु - लगणु।  कदाऽ - कद के।  झ्याला - लगुल्यों जाळ    कुर्ची - कुरचण।

           

Friday 21 May 2021

पिरेमों व्याकरण

 कब्बी स्वर कब्बी व्यंजन

दगड़ दगड़ी बरोबर जतन

ना जादा मातरों घंघतौळ

न सर्ग विसर्गों झौळ

ना अल्प विराम

नि लगाण पड़दू पूर्ण विराम

शब्दों कि अनन्त डार

जति लंबी जातरा वति ग्रंथ अपार

एक हैकक चंद्रबिंदु, साज सिंगार

मिठ्ठी करकरी छुयोंक रस अलंकार

बस सुणण/बिंगण - मनाण/मानण 

इतगा त सरल छ, पिरेमों व्याकरण।


Sunday 16 May 2021

मन मादेब डिगण ना दियाँ (करोना बिमरी से लड़ण वळा सब्बी प्रियजनों तैं सर्मपित)




हर्यां हिया तैं हिराण ना दियाँ,

मन मादेब डिगण ना दियाँ। 


छोड़यां ना दग्ड़या आशा कि ड्वोर, 

औणा ना दियां निरासा ध्वोर,

होंग ना हार्यां उमेद ना छोड़याँ,

काल करोणा जितण ना दियाँ।


हर्यां हिया तैं हिराण ना दियाँ,

मन मादेब डिगण ना दियाँ। 


नाजो कुठार तेरु भर्यूं छै,

यीं थाति तेरो बांठु बच्यूँ छै,  

अपणु बांठो कैतें ना सौंप्याँ,

करोणा बिमारी जीति कि रयाँ।


हर्यां हिया तैं हिराण ना दियाँ,

मन मादेब डिगण ना दियाँ। 


जतिगा तागत सक्या च त्वेमा, 

उतगा पराण नि छिन ये मा, 

छन सक्या कु निरसक्या ना हुयाँ,

खांसी बुखारन भैकाम ना कैर्यां।


हर्यां हिया तैं हिराण ना दियाँ,

मन मादेब डिगण ना दियाँ। 


दिन बौड़ी आला बगत बौड़ी आलु, 

काळि रात ब्येली फजल ह्वे रालु

बगत पैथऱ ते खैरी भ्येजि दियाँ,

हिकमत रख्याँ सांसु बड़ै धैर्या।


हर्यां हिया तैं हिराण ना दियाँ,

मन मादेब डिगण ना दियाँ। 


आशावाद दगड़या ज्येणु कु नाम,   

त्वै दगड़ तेरा ईष्ट भगवान, 

डाक्टर द्यो विस्वास रख्यान, 

दगडा छिन तेरा जलड़ा नमाण। 


हर्यां हिया तैं हिराण ना दियाँ 

मन मादेब डिगण ना दियाँ ।


@ बलबीर राणा अडिग

Sunday 9 May 2021

नरसिंग देव जम्वाल जी की डोगरी कविता "दोषी कौन"



--: दोषी क्वो:--

ब्वै त जननी च

चै नोनु ह्वावु या नोनी

जलम देंण ब्वै कु धरम च। 


बुबा बी भले किलै नि चालु 

खवळ्यांस, कौंळी, फुन्ने कुटमणि जन 

सुंदर कन्यां घोर आउन

भैज्यों तैं हैंसणी ख्यलणि 

ज्यूंदी गुड़िया जनि भुली मिलुन 

रक्षा बंधन, भय्या दूजा दिन 

लुकाण ध्येलों मा ढूढंण से 

अपणा घोरे कन्या कु पुजन ह्वे जौं। 

पर !!

बुबा तैं याद औंदा 

दुन्याभरा अखबार

पत्रिकाएं, रेड्यो, टीवी 

जु देन्दन खबर 

लंड्यरों छेड़खांदी, 

उठाण, अपरण, मार काट

अर ब्वारयों तैं ज्यूंदा जगोणे छुवीं। 


इतगा नि ! 

होरि क्या कुछ नि होंन्दू बेटुल्यों फर

मन सरेले निगुरी पीड़ा, 

ल्वेछाण अर बजारी सौदा। 


ऐ बवैई !! 

कम्पी जांदू बुबा खुट्टा बटि मुंड तक

घूमि जांदी 

वे कि निर्ख़ालिस नजर 

दुन्यांभर का मनख्यों  फर

मन्ख्यात फर, समाज फर 

अर वे सृष्टिकर्ता फर बी, 

अरे आखिर क्वे त द्यावन वे तैं विश्वास 

एक सुखी सुरक्षित 

इना वातावरण को

जेमा ल्ये साकु बेटुळी जलम

अर वा लाड़ि कौंळी गुड्या 

हैंसी खेली भौरिं साकु

अपणा मने ऊँची उड़ान 

कौंळा पोंखुड़यों मजबूत कना वास्ता।


फेर, 

ज्वान ह्वे 

राखि साकु लाज

हमरि मान मर्ज्यादों कु

तीन कुलों कु।


रचना : नरसिंग देव जम्वाल

अनुवाद : बलबीर राणा 'अडिग'


मिमा डे नि ब्वै च



मिमा डे नि  ब्वै च
वा ब्वै
जु फजल्ले झप्प गाळी थुपुडू 
खल्यादी मुंड फर 
कि, छांट उठ रे घाम द्वफरा ऐगये 
इनि कनक्वै होण तेरी मवसिन। 

वा ब्वै 
जु टक लगे धै लगेंदी 
चड़-चड़ा द्वफरा 
संकवलि ओ रे लाटा
भात खाणु
घाम पोड़ीगे, बिमार पड़ी जालू। 

वा ब्वै 
जु व्यखुंद औंदा जांदो मा पूछदी
मेरु नोनु बी देखी तुमन 
अज्यूं नि आई वा 
तफुन अलाण-फलाणा जाग बटिन । 

वा ब्वै 
जु चट अगलर्या बणि जैंदी 
वे टेम जब क्वी मि दगड़ 
छिंज्याट रिबड़ाट करदु। 

वा ब्वै
जु हर बगत फोन पर पूछदी
अज्यूं खै नि खै
क्या खै ? कबैर खै, 
कमजोर ना ह्वयां, 
बिमार ना पड्यां। 

वा ब्वै 
जु बीमार, दिसाण मा पड़-पड़ि 
रबड़ाट लगांदी कि 
मि ठिक छ, मिउण कुछ नि चैणु 
तु खौ, तै ब्वारी नातियों तैं खवो। 

मेरी ब्वै त
हर घड़ी, हर बगत सदानी 
मि दगड़ रैंदी 
वल्या सोर, पल्या सोर बटि
दूर परदेश, बोडरों तक 
सांकि मा, बडुळी मा। 

इलै मिमा
एक डे दिन बार ना 
सदानी डे च
सदान्ये ब्वै च। 

म्यारा बसे नि 
एक दिना वास्ता कविता ल्यखण 
मैं दगड़ हर घड़ी कविता च
अपरम्पार कविता
सर्या वेद उपनिषद 
डेड अक्षरों मा
ब्वै। 
वीं फर कविता ? 
ना भाय ना। 

फेर बी सब्यों का
मान मान्यता कु
आदर च, मान सम्मान च। 

सम्मान च वीं ब्वै कु
जैकि आँखि इकुलकार 
शीला ओबरां धूँयेणा मा फुटिग्ये। 

मान- सम्मान च वीं ब्वै कु 
जु आसा पर छ कि एक दिन वेकु नोनु 
वीं तैं ल्यी जैलू बृद्धाश्रम बटिन। 

आदर च वीं ब्वै कु 
जु आसा पर छ कि 
एक दिन मेरी ममता जगि जैली
अर वा द्वी साबुणा टिकड़ा
अर चा चीनी थैलु भेज द्योलु ब्वारी मा लुके। 

अर आदर सम्मान च वीं ब्वै कु 
जु करोना बेड मा पड़ीं आसा लगीं कि
अब्बी नर्स डॉक्टर बवल्ला कि माता जी 
लो बात कर लो 
आपके बेटे का फोन है।  

@ बलबीर राणा 'अडिग' 
Udankaar.