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Tuesday 16 September 2014

नखरी माया


थाती माटी की माया बिथोंदी
भैजी यु माया भारी नखरी होन्दी
गौं ख्वाला धार पुंगणो रिन्गोंदी
चौक तिर्वाला उबरा डंडयाली घुमोंदी

माया उठदा बैठदा काका बोडों की
माया खेल्दा फाल मर्दा भुला भूलियों की
माया मयाली भाभी सर्मांदी ब्वारी की
माया रगर्याट कणि बोड़ी ककडाटी काकी मा पिडौंदी
भैजी यु माया भारी नखरी होन्दी

माया रमणाट कणि भैंसी अर तिबडाट कणि बाछी मा
माया उज्यडया गौड़ी अर मर्खु बल्द मा
माया बखरों का ग्वोठ अर नखर्याली बिराली दगड भर्मोंदी
भैजी यु माया भारी नखरी होन्दी

माया हौन्सिया स्कुल्या नोनी नोनु मा
माया चखडेत कख्ड़ी च्वोर छोरुं मा
माया बौडर मा खडु अडिग फौजी भुला दगड रोन्दी
भैजी यु माया भारी नखरी होन्दी।

माया ढोल दमो की सबत भौंकरा रणसिंगा गरज की
माया डोंर थकुली की भौंड जागरी गाथा की
माया बाँसुरी की तान घस्येरियों का गीत मा चितोंदी
भैजी यु माया भारी नखरी होन्दी।

माया! हे माया! यु माया, तु माया,
जख देखा तेरी छाया तेरी काया
घुघूती की सांखी हिलांसे की भोंण
बांजे जड़ियों कु पाणी हरिय्याँ भारिय्याँ बोण।
माया जिन्दगी का होर-पोर बिथोंदी
भैजी यु माया भारी नखरी होन्दी।

@बलबीर राणा "अडिग"
© सर्वाधिकार सुरक

Wednesday 10 September 2014

मायाक बुखार

वा मुखडी ज्यू बटि मिट नि सकदी
आँसुओं बदिन यु आग बुझ नि सकदी
साँस दगड़ी भेर भितर कनि स्या याद
साँस ते हवा तें रुवेक नि सकदी।

दिनक चैन रातेक निन्द हर्चिन बेकार
यु माया च या माया कु बुखार
क्वी दवे दारु त बते दयावो भै बन्दों
किले च मि उठण- बैठणम बिमार।

@ बलबीर राणा

Friday 5 September 2014

क्यों मेरा बचपन मार दिया


माँ कहती थी
अले मेरे लाल
ज्यदा उथल पुथल न कल
बहार आने के बाद
खूब नाचना
सलालत करना
हुदंगल मचाना
किलकारियां मारना
लेकिन!!!
अब आई बारी किल्कीलाने की
तो... तो !

मेरा बचपन छीन लिया
किताबों का बोझ
कंप्यूटर इंटरनेट
दुनियां का इन्साइक्लोपिडिया थोप दिया
डाक्टर, इंजिनियर
और ना जाने कितने प्रकार की
पैंसों की मशीन बनाने की जुगत
वाह रे दुनियां
दुनियां वालो
तुम्हारा लालच ने
क्यों मेरा बचपन मार दिया।

:- बलबीर राणा "अडिग"
© सर्वाधिकार सुरक्षित

जिन्दगी रेस नहीं


जिन्दगी रेस नहीं
क्यों कफर्स्ट आने की ठान ली
ये तो मेराथन है भाई
जिसे हँसते हँसाते पूरा करना है
दौड़ के मंजिल कम ही पाते हैं
आधे ठोकर खा गिर जाते हैं
कभी नहीं से देर भली अडिग
चलकर सभी पहुँच ही जाते हैं।
शुभ दिवस मित्रजनो
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जिन्दगी रेस नहीं
क्यों कफर्स्ट आने की ठान ली
ये तो मेराथन है भाई
जिसे हँसते हँसाते पूरा करना है
दौड़ के मंजिल कम ही पाते हैं
आधे ठोकर खा गिर जाते हैं
कभी नहीं से देर भली अडिग
चलकर सभी पहुँच ही जाते हैं।

:- बलबीर राणा "अडिग"

Tuesday 2 September 2014

अडिग वाणी

भितर मने की कैन नि जाणी
भैरक सबुन जाणी पच्छ्याणी
गिचा मा रामा- रूमी भल स्वभाणी
पुटग की आग किले तेरु ज्यू जलाणी।

द्वि दिनक रोण-ठिकोंण यख सब्बुं कु
जुग-जुग यख कैन नि बिताणी
ना मार गेड अहम् अंखारे की
माया का थैलु त्यार दगड जाण।

नि कण रंग्त्याट भल नि फुन्फ्याट
सब्बुं पर रौंदी एक दिन इन पराण (ताकत)
खुटी संभाली पूरु होन्दु जीवनक यु बाटू
समझी जा मनखी ये अडिग वाणी।

:- बलबीर राणा "अडिग"
© सर्वाधिकार सुरक्षित"