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Tuesday 17 April 2018

माँ तें बुरु नि लगद


जब तू मसौड़ी-मसौड़ी प्येन्दी
 पुटुग भर्यां बाद
मुल हैंसी लात मारी देन्दू छै
माँ छाती पर
अर होर त होर !
बेशर्मी देखा?
एक लंबी मूते तराक बी
छोड़ी देन्द माँ का मुख फर
 पर! माँ तें बुरु नि लगद
बल्कि होर आनंदित ह्वे
भुकी प्येन्द छै
तब क्या?
आज क्या?
वेंकि ममता मा क्वी फरक नि ऐ
चै तू अपीड़ ह्वे
मुख मोड़ी दूर किले नि चल्गे ।

@बलबीर राणा "अडिग"

Saturday 7 April 2018

जातिगत आरक्षण


बंद करो अब बंद करो, जातिगत आरक्षण बंद करो
आरक्षण की जंजीर में, प्रतिभा बांधना बन्द करो
जकड़ रही है कर्म शक्ति, आरक्षण की बेड़ियों में
देश की एक युवा शक्ति, भ्रमित हो रही फेरियों में
जहर न घोलो संकीर्णता का, बुद्धि न इनकी मंद करो
अपने वोट बैंक के लिए अब, हथियार बनाना बंद करो

आरक्षण से शीर्ष चढ़े जो, वे भी कतारों में बैठे हैं
पचास प्रतिशत वाले पुत्र को, कुर्सी के लिए ऐंठे हैं
हांसिये पर हैं वे अब भी, जिन्हें आरक्षण की दरकरार है
जाति विशेष की खाई ने, डाल रही देश पर दरार है
श्रमशक्ति दो हाथों में, फ्री लॉलीपॉप देना बंद करो
प्रतिभा उपेक्षित करने का ये, गंदा धन्धा बन्द करो।

ये कौन सी हक लड़ाई है, निर्दोषों का घर जलाने का
किसने हक दिया तुमको, निरीहों पर डंडा चलाने का
अरे बंधुओ दम है आप पर, भीम राव बनके दिखाओ
संविंधान के अध्य्याय में, एक पन्ना जोड़के दिखाओ
अरे मौसमी झिंगुर झुंडों, राष्ट्र शांति न अब भंग करो
आरक्षण की आंधी से, घरों को उजाड़ना बन्द करो।

इस वायरस से रुग्ण हो रही, भारत की कर्मप्रधान जातियाँ
कर्मशक्ति भिखारी बनी पटरी पर, बंजर पड़ी है माटियां
ठाकुर ब्राह्मण पंजाबी मराठा, कब कोई लाईन पर लग जाये
चिंगारी है यह गृह युद्ध की, कब ज्वाला बन भष्म कर जाये
सुन लो 'अडिग' आह्वान मित्रो, राष्ट्र को न अब शर्मिंद करो
आरक्षण के तीर से, प्रतिभाओं को घायल करना बंद करो ।

रचना:बलबीर राणा 'अडिग'