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Wednesday 20 May 2020

बगत (कुंडलियां छंद)


1.
ऐसुं साल बगते मार, देखा मनखि लचार।
छड़या चौंळ उनि रैग्यां, कर्याली वार-पार।।
कर्याली वार-पार, अर्सों पीठु कुट्यूं रैन।
ध्याणी चैतो आळु, रैवारे मा पौंछेन।।
समै की बात अडिग, बंध्या रैन घ्वड़ा ऐसुं
सुरुक सारक बंध्या, बिन बरत्यां जोड़ा ऐसुं।।

2.
ऐसुं साल बगते मार, दुनियां मा हाकार।
काम धंधा चैबट हुयूं, नि हाथों लौ लकार।।
नि हाथों लौ लकार, मनसा इनि पांजि रैग्ये।
बगते बत्वाणी मा, ज्यान समलौंण्या ह्वेग्ये।।
परकति खिलपत अडिग, पौन-पंछी चौंर्या ऐसुं।
आदिमें सर्री तड़ी, बगतऽन भतकायी ऐसुं।।

3.
ऐसुं साल बगते सार, खुस छ नोना बाळा।
इनत्याने कुछ चिंता ना, घोर मु पास होला।। 
घोर मु पास होला, होम वर्क बाबाजी कनु।
औन लेन पढै बल, मुबेलों मा सेंड होणु।।
बीच मा लटकि अडिग, बड़ा नोनो भविष्य ऐसुं।
कन के पुरा होला, यूं प्रतिभौं सुपन्यां ऐसुं।।

*सार - सल या तरिका*

@ बलबीर राणा अडिग,

Tuesday 19 May 2020

गजल



मनखी खुशी बगत सदानी द्वकुलु होंदू,
न जाण खैरी बगत किले यकुलु होंदू।

जों उण्स-बिण्सों पे ध्यान नि देन्दा हम,
वा, दुन्या तैं फट-फटांग चमकिलु होंदू।

त्वा अपिछने जति जोड़ा जुत्ता फाड़दू,
वा भैसाब मुख समणी वति मयलु होंदू।

छुयों फिटकरिन जु मथि छाळो लगदू,
मनसा जड पर वा वति़ कौजलु होंदू।

खुण्सो ज्वा बाटु सिद्दा असौंग चितान्दा,
अडिग, चकडै़तों तैं वा भलु सजिलु होंदू।


उण्स-बिण्सों - नुक्ता बात
खुण्स - अछूत, गतल

@ बलबीर राणा 'अडिग'

Saturday 16 May 2020

तीस


1.
माया तीसे,
तृप्त नि ह्वे सकद
अगर कै कि ह्वेगी त
वा निर्वाणे स्थिति च।

2.
तीस छ त
घर गिरस्थी च
देश समाज च
बिगैर तीसो
भजीराम हवलदार,
गाय न बच्छी
नींद आई अच्छी।

3.
आदिमों छैल
आदिमें तीस
ज्वा सींया मा बी
पुछयड़ु नि छवड़द।

4.
तीस त बुजि जान्द
पर भड़ास नि
भड़ास रेत अर पाणि मा
फर्क नि करद
अर आदिम
मृग तृष्णा मा
भटकणु रैंद
दिन रात।

5.
शरीले संवेदशीलता
ज्यू पीड़ा
मने ख्वैस
आँखा सुपन्यां
जिबड़ु स्वाद
हाथों कर्म
खुट्टों धर्म
सोब तीसा रुप।

@ बलबीर राणा अडिग

Friday 15 May 2020

गजल


अजाण बाटों फर ना निकल्याँ दगड्या,
हर बाटू छैफुट्या ना समझ्याँ दगड्या।

भुयाँ पुन देखि भालि अग्ने लपाग धर्यां,
बाटा कुमरा कांडों ना अल्झयाँ दगड्या।

लालचौ जाळ फलांग फलांग मा बिच्छयूँ,
यूँ शिकार्यों मनसा पच्छाण्ल्या दगड्या।

कोरोना मौड़ो मसाण बणि संगति ऐग्ये
सुद्दी मुद्दी कै फर ना चिपक्याँ दगड्या।

वति उड़ान भर्र्यांं जति उड़ी सकलो,
छन पंखों र्निपंखी ना हुंयाँँ दगड्या।

सदव्यौवार संजीवनी छिन जिंदगी की,
सूणी लियाँ पर,  ना भिड़याँ दगड्या।

छुवीं, छाँ फूली *बकिबात* न ह्वावो,
तै खाब तति ना कताड़याँ दगड्या।

मौड़ा - मरघट
छाँ - छांस
खाब - मुख

@ बलबीर राणा 'अड़िग'

बकिबात : लावणी छंद



देखा बाटा घाटों मा कन,
मजदूरों लंगत्यार चा।
मजबूर हुयीं व्यवस्था सर्री, 
भाजणी पुटगों आग चा।।

किलै हाकार मच्यूं संगती,
नियम किलै घुंडा बैठग्ये।
किलै देशा यूं छव्वा ढुंगों
लदौड़ी मुंडों मा ऐग्ये।।

विधाता तेरु बी ढब ठिक नि,
आफत गरीबों नौं किलै।
तेरा कैरो कालऽक सिकार
हमेस गरीबोें मौं किलै।।

आँखा खोला मालिक मर्दोंऽ,
आबरु भैर बलार हुंयी।
कोरोना दुशासना समणी,
जनता छिन लाचार हुयीं।।

मथि मथी ना उर्यावा रे तुम,
भुयां वळुं हाल बी द्याखा।
यूं परताप खाणी कमाणी
बिगैर यूं सब्योंऽक माखा।।

बाते बात दिखणी सब तर्फां,
कन्दुड़ा खोली सुण पड़लो।
बाद मा #बकिबात ह्वे जाली,
भ्वोल कने तु मुख दिखेलो।।

@ बलबीर राणा 'अड़िग'

Wednesday 13 May 2020

कोरोना वाॅरियरों सैयोग




सृष्ठि कु चक्र फिरीं फिरीं की
फेर अपणु जागा पे ही आन्दू,
कुछ बी करा मनख्यो जतन
वा   अपणा पर  ही  लान्दू।

यत्गा खाब कताड़ी मन्खिल
सुखों कु एक गफा करे जौंऊँ,
विधातऽन इनि रंचना रचै कि
सुख दुःख कु गफा बणिग्योंऊँ।

प्रकृति प्रवृति पर अज्यों तक
बरमां कु बस भी नि ह्वाई,
फेर किलै तु भ्रम मा मनखी
इतगा पूर दौडी चलि आयी।

घुंडू मा बैठग्यों विकास भैजी
विज्ञान ददा बी सोच पड़यूं,
कन क्वै लगलु पार यु बैरी
बुद्धी बल बौडा मन्त्रणा कनु।

पर ! निराश नि हौंदू कर्म कब्बी
येन जुग बटिन या धर्ती समाळी,
कर्म ही सार्थक होन्दन आखिर
कर्मऽन ही यख जीवन कमायी। 

जब उज्याड़ अफूं उज्याड़्या मा आंणू
द्याखा समै कु चरखा उल्टा चलणु 
जब सिकार अफूं सिकारी मा जाणूं
तब स्वाचा विधाता अपणु लाठु घमाणु।


अजक्याल इनि समै लग्यूं दगड़या 
कर्म तैं सजग ह्वे हिटणूं पड़लो,
अपणा गिचा म्वाळा-मास्क लगै
सब्यों जीवने लडै जितणें पड़लो।

खून मा छायी कर्मों की सुचिता
येतैं रल्यौ मल्यौ मा भूलीग्यां छै,
हाथ धूण अर तन मन की सफै
या त हमारा जीवन कु हिस्सा छै।

सुदि मुदि कु जै तै फर चिपकणु
बिगैर सुचि ह्वे अशुद्ध मणदा छाँ, 
बिन चूला चैका सनिटाईजर करि
कभी  खाणु  बी नि बणादा छाँ।

नाक मुख बूजणों कर्म अज्क्याल
धाद घौर घौर रैबार पठ्याणु छ,
म्वाळू-मास्क लगै धैरा दगड़यो
संकट समै की मांग बताणु छ। 

आज विधाता न याद दिलौ करि
फिर वे जीवन पद्धति अपनाणु कु,
प्रकृति अन्यों की अति करिग्ये छै
यु झटका छ हमू तैं बिंगाणु कु ।

हर्ता कर्ता यू प्रकृति ही छिन
पालण संहारण सब येका हाथ,
अपणु निसाब ये तैं खूब आंदू
माणिल्या अज्यों बी ये की बात। 

लौकडौन से पर्यावरण चमकणु 
धर्ती नये ध्वये की सजणी छ,
गंगाजी बी निर्मल धवल ह्वेकी
देखा कल कल कैरी बगणी छ।

देखा जीव जमाण भैर पुन ऐ की
अपणु अस्तित्व फिर ख्वजणा छाँ,
मनख्यूं का अलौ सब खुस यख
सब खिलपत ह्वेकी हंसणा छाँ।

आवा हाथ बड़वा ये यज्ञ मा
कर्मो की आहुति सब्यूं की छ,
हब्य बण्यां जु ये संकट का
तौं वाॅरियरों सैयोग जरुरी छ।

खाब कताड़ी - मुंह खोला
पूर - उपर

@ बलबीर सिंह राणा 'अड़िग' 



ईमानदार



यूं स्यता कुर्ता वळा, इनि ठगै चलि जाणा
ईमानदरि से कौ करार, करि चलि जाणा।

तौं उदघाटन करि, हमुल सुपन्यूं मैल चिंढिन
ईमानदार अपणा नौ ढुंगा, चढ़ै चिलि जाणा।

विकासे मुखड़ी पैलि बसग्याल मा पुती जान्द
सीधा सैणा  बाटा बी, पेऽर बणि  चलि जाणा।

ऐरां हमारा लाटोंन हमेस  मुच्छयाला   घच्वरैन
चकड़ैत हर्या भर्या बौण आग लगै चलि जाणा।

गारंटी रोजगार क्या ऐनी, दुकान्यूं  मा फांट लगि छ
तै रजिस्टर मा सर्री मवासी हाजरी लगै चलि जाणा।

कौ-कारिज मुश्किल हुयूं अब, धरम धाद नि लगणी
चट मंगणी पट ब्यौ  टेंटहौस  वळा करि  चलि जाणा।

समै की बात ह्वावो या  नयीं अकलै  समझ भैजी 
घर्या गढ़वळि छौड़ि सब्बी देसी बणि चलि जाणा।

क्वे मनख्योंन पाड़ खैणी, स्वाणु मुल्क बसेन
क्वे अब तौं  बाटों मा  ढुंगु फर्के  चलि  आणा।

र्निपट ह्वेकी मुख लुकायूं  जोन  पाड़ बटिन
सैरों बे पाड़ बचाणों उपदेश द्ये चलि जाणा।

स्यता - सफेद
पेऽर - रगड़ बगड़
बे - बटिन/ से

@ बलबीर राणा 'अड़िग' 

इनै सूण



1.
कति दिन बटिन
ब्वै लगीं रे, इनै सूंऽण दे बाबा
अर! वा, वोग लगणु रौ
कि ब्वै कखि रुकणु न बोलि द्ये,
पर ! बिदै बगत औंसू धाराऽ दगड़
वींऽन एक कुट्यारी थमैन
ल्ये बुबा, कुछ जन्त-जोड़ो काम ऐलु,
मिन सूणी तै सैरों मा
भिज्यां खर्च होन्दू
नयीं गृस्थी ब्वटण मा।

2.
पिताजीऽ न बोली
इनै सूंऽण ब्यटा टक लगै
खैल मा फस्ट औण से
भाग ल्येण मैत्व रखद
फस्ट औंणा चक्कर मा
जिन्दगी रेस ना बणाया लो।

3.
भैजिन बोलि
इनै सूंऽण रे, नाक धर्या
कामयाब होण चैन्द
इन न ह्वो
तिमला का तिमला खतैन
अर नांगी का नांगी दिख्येन।

4.
काकाऽन ब्वोली
ब्यटाराम, इनै सूण
मेरी बी दुन्यां खंयी च
देश विदेश तलक,
काम इन कर्यां
आँखि बी रै जौं
अर खौड़ बी नठि जौं।

5.
बस साब ! इना ही,
कब्बी क्वे इनै सुणान्दू
क्वै उनै बिंगान्दू
सिद्धान्तौं का बीच
जिन्दगी पिसीणै रैन्द
घिसणै रैन्द
कुछ सिद्ध ह्वै जान्दा
कुछौं कु बिगैर सिद्धऽक
अन्त  .............।

@ बलबीर सिंह राणा 'अड़िग' 

घाम



1.
परिकति का दगड़
परिकति कु बणि जान्द
गरीबो नांगू गात
इलै घाम बर्खा ठंडऽल
क्वे असर नि पड़द।

2.
ओंण दां कौंळु स्वाणु
सब्बी जाग
जाण दां सीळु निमाणु
सब्बी जाग
बीच मा करकरु, झरझरु
अर मरमरु
जाग-जागो कारण 
ये मा घामो क्वे दोष नि,
तनि आदिम बी।

3.
सर्ग थूकण मौल मुतण
भल नि होन्द
वा मवसी एक दिन
घाम लगि जान्द,
यनु मि ना ?
घामें जात्रा ब्वनी।

सर्ग थूकण मौल मुतण - रंगत्याट

@ बलबीर सिंह राणा 'अड़िग'

लॉकडौन मा माँजी संदूके याद



कुट्यारी-मुट्यारी, तुमड़ा-तुमड़योऽन
कुलणा-फुंगळा बक्सा, कुठारोऽन
मेजुळ ढैपुरा भितर भरयां छै अपार
चमन्द भरयूं रैन्द छै हमारु घरबार
पर ! ऐड़-चैड़ संकट मा, जु खड़ू रैन्दू
वा संकटमोचन मेरी माँजी सन्दूक होन्दू।

मामा पौणु ह्वो या बिन बुलयां मेमान
रैन्दू छै ते उन्द जर्वतौऽक सब सामान
चा चीनी, भेली, रैंदी छै घ्यू की माणी
कुछ रुप्यों कि गडव्ळी रैंदी छै थामी
ह्वे जान्दी छै बाबा मा जब लाचारी
तब माँ सन्दूक बचान्दू छै इज्जत हमारी।

वे काठाऽक बक्सा पर छै बड़ू ताळु
हुकम छै तै फर क्वै हाथ नि लगालु
पर! माँ तेरवीं पर खुली ग्ये छै बिचारु
बंटग्ये छै भै-भयात मा जति छै सारु
आज यु लौकडोन संकट कति बिथाणु
माँजी वा सन्दूक फिर भौत याद आणु।


तुमड़ा - बीज खाज रखने के लिए सूखी लौंकी के बर्तन
कुलणा-फुंगळा - रिंगाल के छोटे बड़े बर्तन/ढफरे
मेजुळ - दौ मंजिला
चमन्द - पूरा भरा हुआ
ऐड़-चैड - ऐन मौके पर

सुपन्यां


1. मजदूराऽ

ऐरां थौकि बदिन
पळभंग* निन्द ऐ जान्द
चौ मंजिल तलक 
सिमंटा तसला पौंछाण वळा तैं
ये वास्ता वीं तैं 
द्वी मंजिला बी सुपन्यां
नि आन्द।  

* पळभंग – बेसुध

2. गरीबाऽ

अजक्याल जर्रा तंगतगी ह्वयीं
छैं छ पर कुछ मजबूरी ह्वयीं
दिनेक ठैर ब्वटा सस्ता ह्वलू
फेर त्यारा सुपन्यां पूरा कर्लू। 

3. किसानाऽ

वा छतरु ल्येकि 
निकळी ऐंणाऽल*
कुटदा सुपन्यां बचाणों तैं
कि !
क्या पता कुछ तामि पाथी 
स्वेणा बची जों।

*ऐंणा - औले

@ बलबीर राणा 'अडिग' 

जिन्दगी


1.
जिन्दगी                               
फजलौ कौंळू
दु्फरो भडांग
छाडळकै स्येळि
ब्याखुनी सीऽलु
ह्वेगी रात
रैगी बात
या त च जिन्दगी।         2.
ब्याळि आज
आजऽक भ्वोळ
अर भ्वोळ!
नै फजल
नै किरण
ओंशे बूंद, स्यां।
इत्गा च जिन्दगी।
3.
बाळापने तड़म-तिड़ै
ज्वानी भड़म-भिड़ै
बुढापे थिड़म-थिड़ै
इत्गा कर्दी जिन्दगी।
4.
ब्याळी तैं रुण्यां
आज तैं खपोण्यां
भ्वोळ तै तरसौंण्या
या त कर्दी जिन्दगी
5.
जिन्दगी का
एकनस्या साज, बाज
जैन जति बिंगी
वति बजेन
वति छटकेन
कैन ताळ बणेंन
कैन उनि डंगड्येन।
6.
कर्मोंऽ स्याही
अर
सल्ले कलम से
दिनोंऽ पन्ना फर
लिख्यूं एक कलेन्डर च जिन्दगी।
 7.
जिन्दगी काॅपि
सब्बी भरदा
कुछ पन्ना रय्खड़-ब्यखड़
कुछ पन्ना सुन्दर स्वाणा
कुछ पढ़ण लेख ह्वे जान्द
कुछ छवडण लेख।
 8.
बसन्ते बहार
रुड़ी तड़तड़ाट
बसग्याळे तबराट्
ह्यून्दे ककड़ाट
छैः ऋतुओं चार
बारा मैनो बार
या जिन्दगी अन्वार।              9.
जिन्दगी
घड़ी पेन्डुलम
दिन रात चलद्,
गिरस्थि होर-पोर।
10.
धर्ती फर जीवन
संघर्षों वास्ता च
आराम त यख बटिन
जाणा बाद
ना चै किन बी
कन पड़ल
ये वास्ता
लग्यां रावा
जत्गा  देह घिस्येली
वत्गा चमक
वात्गा संचय
जु यख छुटलू।

@ Balbir Rana 'Adig'

दिवा जगणु रालो



भारत जय  ह्वालो विजै ह्वालो
तिरंगा यनु शान से लैरणु  रालो,
जब तलक वीर डट्यां सीमा  पर
देश सुखशान्ति दिवा जगणु रालो ।

अफूं लिख्दा वा जीवन संवीधान
मंगदा ज्वा बरदान मा बलिदान,
यना वीरों का अपर्ण सर्मपण पर 
भारत माँ  मुकुट  सजणु  रालो
देश खुशहाली दिवा जगणु रालो ।

कश्मीर बटिन कन्याकुमारी तक
मणिपुर बटिन कच्छभुज तलक,
क्षितिज पर लक्षमण रेखा बणि वा
जबतक करम अपणु निभाणु रालो
देश अमनचैन दिवा जगणु रालो ।

घाम नि तौं, नि छ बर्खा बत्वाणी 
जडडू बी होन्दू ह्वलु कैन जाणी, 
चालीस डिग्री प्लस माईनस फर
जब तलक वा ज्वानी खपाणु रालो
देश सुखशान्ति दिवा जगणु रालो ।

जब तक वीर माता की ममता 
जब तक वीर नारी की तपस्या,
भारत बिक्रम भारत भाल खातिर
आंसु बदिन तपर्ण करणु  रालो
देश सुखशान्ति दिवा जगणु रालो ।

@ अडिग


माँ




ये वास्ता
मि माँ पर कविता
नि ल्येख सकदू, किलैकि !
माँ से बड़ि कविता माँ
माँ से बड़ि गीता माँ
माँ एक शब्द कु वेद
माँ एक शब्द कु पुराण।
माँ से छवटू शब्द नि
माँ से क्वे बड़ू नि।

@ अडिग


पिरेम


1.
धर्ती अर अगास
द्वी मायादार
टक लगे दयखणा रैन्द
एक हैका तैं दिन-रात
मायाळा ह्वे
कबि भिटोळी नि ह्वे द्वियों की
अर न होणे आसा
पर !
समग्र पिरेम छां यू मा।

वा नीलू असमान
कबि रणरणा घामल
कबि रिमझिम बर्खल
धर्तीऽ क्वोळी भरद
अर हरि धर्ती नाना परकार का
फल-फूलोंऽ सुगंध भेजदी।

धर्ती अर अगास
क्वसों दूर ह्वे किन बी
सर्मपित छां युगों बटिन एक दुसर पर
अर,
समझान्दा रैन्दा दुन्यां तें पिरेम
कि !
पिरेम मा विश्वास, समर्पण छै त,
दूरी क्वी अड़चन नि होंद
सच्ची माया
स्वार्थ नि त्याग मंगद।

@ अडिग


आँशू


1.
आहा !
प्रकृतीऽ आंगण मा
कति स्वाणु गौं छ
कति सुख ह्वोलु तख
पर !
वीं पर्यटक तैं पता नि हून्द
कति पस्यो अर आँशू धारऽन
सिंचण पड़द
या काठै धर्ती। 

2.
डाड मार्द
नि दिखेन्दू वा मर्द
न अड़काट लगान्दू सुणेंद
वा घोट मारि आँख्यूं आँशू
आँख्यूं मा प्येन्दू ।

3.
जबैर तक गाड़ि
बेन्ड उन्द नि चलग्ये
गळघुंटि बाँधी
टाटा ब्वनी रैन्द,
हाथ हिलाणी रन्दै
स्या
जंगलै सतीर पकड़ी
गाड़ी ओझळ होणा बाद
आँख्यों बटिन गंगा जमुना
न जाण कबैर तलक
बगाणी रैन्द
परदेश मा तैऽका
कस्ट खैरी बगोंणा खातिर।

4.
वे दिन वूंऽका
आँख्यूं मा खुसी आँशू छायी
जब बेटो प्लेसमेन्ट
विदेश मा ह्वेन
अर आज मेड़-बुबाऽ
तपस्या खुदगर्ज बी
नि ह्वे सकणि
एक फोना खातिर।

पस्यो = पसीना
मेड़ - बुबाऽ  = ब्वै-बाबा, माता-पिता

@ Balbir Rana अडिग