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Wednesday 25 June 2014

कान्क्सा


आजाद बणो कु स्वतंत्र पंछी छै वा
पंख पसारी उड़दूँ छै
खुट्टा पसारी सेंदु छै
अब ईंटों का पिंजरों मा कैद ह्वेगे
गाड़ियोंक भिभडाट मा भंगरिगे
पैंसों की हवा
नोटों कु पाणी
कख तक जेलू
कब तक रेलू
दौड़ नि रेस ह्वेगी जिंदगी
ज्योंण नि निभोंण ह्वेगी जिंदगी
कब्लाट त वे कु ज्यू कनु ह्वोलू
मन मा कांक्सा त रय्यीं ह्वेली
पर !
कैर भी क्या सक्दू
खाण से पैली नाक जू लग्दू
अब!
न थुकेन्दु न घुटेन्दु
अप्णा बारा का गारा इनि पिस्लू।

@ सर्वाधिकार सुरक्षित

Monday 23 June 2014

मिसन मालदार

सैराs पृथि गल्दार
भैर भितर चौबाटा
सौदा पत्ता कणा

गल्दारोंक फ़ौज
राजनितिक लडै
तिकड़म पिकडम बंदूक

गैल तें हल्या
चल्चलु तेल लगे
दिखाणा छन

सीधा साधा लाटोन
सौ का नोट मा
भोट दये खरीदयाली

एक घोर तीन पार्टी
हाथ कमल हाथी
दादा ब्वारी नाती

घप्रोल मच्यूं
क्वी नि कै से कम
कखि ह्विस्की कखि रम

ये दों परधान
हैक दों जिला पंचैत
विधायके डगर

छ्वाडा पढे लिखे
तिकडमें स्कुल लगीं
राजनीति सिखोल

मिसन मालदार
गल्दारक बाटा बटिन
जन सेवक तक

@ सर्वाधिकार सुरक्षित
....बलबीर राणा "अडिग"

मर्खु बल्द

गुठियार डोर
बल्द मर्खु
फुन्फ्यांट कनु

मनक कब्लाट
पुटुग घब्ल्याट
भूक चैन नि

डकार मनु
दुकुरताळ कनू
खडतम ताळी

गुसैं नि तेकुणी
गुस्याण नि
दिवाळ भिटकणु

क्या करे जावो
अपणु ही खोटू
दूसरों तें क्या ब्वन

कने समझाओ
पशु मन्खी
अपणी क्वोखू जन्म्युं

@ बलबीर राणा "अडिग"

Thursday 12 June 2014

बिंज्ञावा



खूब बजावा ढोल दमों
खूब लगावा मंडाण्   
गैरसैण त् गैर ही राली
गैरसैण की छ्वीं नि लगाण
भिज्याँ घाम अजक्याल देहरादून मा  
चार दिन पाड् घुम्याण
परमानेंट नी रोंण गैरसैण मा
यख त् पिकनिक मनाण
गैरसैण त् गैर ही राली
गैरसैण की छ्वीं नि लगाण
      .... बलबीर राणा “अडिग”

मेरा ज्यू मां उदंकार



कत्गा कयांरू कत्गा रैबार
बाटा मां किले बिरहक पराग
पराणी गाणी कंठ भोरी भोरी 
कभी त् दिखलू मायाक चिराग
आँशुक तबराट् कबैर तलक रैलू
बोऽडी ऐ जावा एक बार

हैंसी जाली यु भिजिं आँखी
होंठऽक नि रैंलू अब ककडा्ट
ऐ जालू म्यारा भी जीवन मा बसंत
ज्वानीक दिन छन द्वि चार
बोऽडी ऐ जावा एक बार 

बांजा पुंगडी् बीज जमला  
रुखडा् धारुं मां पाणिक छपळाट
इकुलांस डंड्याळी रोणक राली
मेरा ज्यू मां उदंकार
बोऽडी ऐ जावा एक बार 

© सर्वाधिकार सुरक्षित
रचना -: बलबीर राणा “अडिग”

   

Tuesday 10 June 2014

काफळ

ये बरस
भिज्याँ  काफळ अय्याँ
बणू मा
गिचों मा  लाव
मन मा उल्लास च
छोरुं कु
देश दुन्याँ घामल सुखणी
ठंडीऽ बथौं ससराट मा
डालों किब्चाट मचयुं
छोरुं कु
ब्वे बुबों तेन चिंता हूणी
कखी लम्डी ना जावो
युंका उल्लासक दगडी
डाळा भी
झुकण लग्याँ
नोना नोनी काफळ  टिपण लग्याँ