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Friday 21 February 2020

मातृ भाषा




जै भाषा तैं
ब्वै पुटगा उन्द बी सुण्णा रऽया
आँखा खुलणा बाद
बाळो मन किलकारियों मा
बिंगाणु रैन्दू, सनकाणु रैन्दू
अपणी छुँवी
जै भाषा मा
दै-दादैऽ कानियों दगड़
हुंगरा भरणा रऽया
ब्वै-बाबोऽ लाड़
भै-बैण्यों प्यार पाणा रऽया
जु भाषा
ब्वै दुधै धार दगड़
शरीर मा पौंछी
हमु तैं दुन्यें भाषा
सिखण लेख बणैन्द
वा छ मातृ भाषा
उन त मातृ भाषा
न कब्बी बिमार होन्दी
न कमजोर
पर हाँ !
वा म्वरी जान्दी लाचार ह्वे
सक्स्यै सक्स्यै
जब हमेर जुबान
ठुल अर बडू द्यखणें
लालसा मा लंबी ह्वे
वीं तैं दुसरा तौळ दबै देन्द।
@ बलबीर सिंह राणा 'अड़िग'

Monday 17 February 2020

बिरड़ीं माया




बिरड़ीं माये अल्झीं गेड़ मिली बांटी खोलूला
खत्यां छाँ जु दिन हमारा  दुबारा समाळोला

बिरड़ण्यां छाँ ये बाटा से हचर्यां कतै नि छाँ
अग्ने बाटू खुटी मा खुट्टू धरिं  दगड़ै पुर्योला

आँखि त बच्याणी छै गिचैऽक क्या छै मजबूरी
तै तैं कंठ से उब औंण द्ये भैर मि थामी ल्योला

द्वि आँशू ऐ बी जैला बैमों खौड़ बौगी जालू
रूवेकिन ज्यू हळको ह्वलू बैठ दगड़े बगोला

यो पिरेम आत्माओं छै दिमागऽन कनै हत्येनी
कैन वा जुकुड़ी हिलेनी चल वीं तैं ख्वजोला  
   
आसा किल्वाड़ा तैं विश्वासा गैनू  बणौला
गृस्थै पाळी बंधि एक नयुं गुठ्यार सजौला  

चल सामळ पांज अब नि रौण धर्म जाता गौं 
कखि दूर चखुल्यां  देश प्यारो घ्वोळ बणोला

छकि माया गीत लगोळा  वखि तीस बुथ्यौला
एक बादळ हैकु पाणी बणि गर्जी गर्जी बर्खोला  


@ बलबीर सिंह राणा ‘अडिग’


Saturday 8 February 2020

मायो व्याकरण


कब्बी स्वर कब्बी व्यंजन
दगड़ दगड़ी बरोबर जतन
ना जादा मातरों घंघतौळ
न सर्ग विसर्गों झौळ
ना अल्प विराम
नि लगाण पड़दू पूर्ण विराम
शब्दों की या अनन्त डार
जति भौरी सकदा वति ग्रंथ अपार
एक हैका कु चंद्रबिंदु अर साज सिंगार
छाळा पाणिंग जन भावनों रस अलंकार
सुणण/समझौण, मानण/मनोणु चैन्द परण
बस इतगा सरल छ, मायो व्याकरण।

@ बलबीर राणा 'अड़िग'