कबि खुशी कबि गम, जिंदगी अपणु ढंग।
कबि खुदेड़ उदास उबासी, कबि रंग-चंग।।
खुश रावा या उदास, सांस तलक संसार।
घोरे बात घोर तक, भैर बण जैलू बजार।।
ढोले डवोर कसी रैली, बजी बी जाला ढम ढम।
जीवन चाकरी चक्र च, कबि भिज्यां कबि कम।।
जरा सौजी सौजी, भट नि भड़कण दूसरे आग।
जमानु पिरुला बण बस्यों, चट लगलि बणांग।।
जरा मुंड झुकणे जर्वत, फेर तेरु मान मेरु मान।
तड़तड़ी तड़ी स्येखि कु, न क्वे मान न सम्मान।।
मानण पर दयबता, न मानण फर ढुंगू ही नाम।
अपणा जमीरे बात च, किले लग्यां खाम-खाम।।
जीवन पाणी जनु, बाटू ख्वज्ये जांद अपणा आप।
ज्यादा स्वचणे बात नि, धर्यों नि चैंद हाथ मा हाथ।।
क्या तुमन बींगी क्या मैन, सब अपणा-अपणा अनुभो बात।
उज्याळो देखणु आँखा चैंद अडिग, बिन आँख्यों राती-रात।।
24 मार्च 2018
@ बलबीर राणा "अडिग"