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Monday 24 November 2014

मन दिवा


मन दिवा तु मठु-माठु जगणु रे
सैरी दिन-रात हर घडी हर बगत
झिकुडि मां माया कु बाटू उज्यालु कैर रे।
माया बिरडॉणी ज़िन्दगी का होर-पोर
भटकणी चौक तिवारी गों ख्वाला का धोर
ज्यु जिवा बण बूट जग्वाल बैठय्यां
राँको बणी ये झिकुडि उदंकार कैर रे
मन दिवा तु मठु-माठु जगणु रे।
दुन्या सौंण चौमासी रात बणी ऐ जांदा
माया कि आग जगण नि देन्दा
जून ब्बी लुकीं जान्दी मन्खियोंक जुलम देखी
सुबेरक कोलूँ घाम बणी ऐ जा रे
मन दिवा तु मठु-माठु जगणु रे।
भोल क्या होन्दु कैन नि जाणी
आजक क्या ह्वे सबुन जाणी पच्छयाणी
द्वी दिन का दिनोंण छै यु जीवन
आशा तु जीवन की जगे जा रे
मन दिवा तु मठु-माठु जगणु रे।
मन दिवा तु मठु-माठु जगणु रे
सैरी दिन-रात हर घडी हर बगत
झिकुडि मां माया कु बाटू उज्यालु कैर रे
ये अडिग की बात मान रे।
रचना:- बलबीर राणा 'अडिग'

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