जिन्दगी रेस नहीं
क्यों कफर्स्ट आने की ठान ली
ये तो मेराथन है भाई
जिसे हँसते हँसाते पूरा करना है
दौड़ के मंजिल कम ही पाते हैं
आधे ठोकर खा गिर जाते हैं
कभी नहीं से देर भली अडिग
चलकर सभी पहुँच ही जाते हैं।
शुभ दिवस मित्रजनो
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जिन्दगी रेस नहीं
क्यों कफर्स्ट आने की ठान ली
ये तो मेराथन है भाई
जिसे हँसते हँसाते पूरा करना है
दौड़ के मंजिल कम ही पाते हैं
आधे ठोकर खा गिर जाते हैं
कभी नहीं से देर भली अडिग
चलकर सभी पहुँच ही जाते हैं।
:- बलबीर राणा "अडिग"
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