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Saturday 30 September 2023

नि रौण फर



ऐरां दा लौड़ी


त्यार नि रौण पर 

रै जांदी ये भितर

तौं चूड़ियों छमड़ाट 

काँसे घनौळी जन

छाळी बाजौ कुण-कुणाट 

गातै सिलप्याण 

जन घैंसंणा बाद

तीनि उबरा रै जांदी कुछ-कुछ।


जब तू चलि जांदी 

तब 

छूटि जांद हौर-पोर 

तै दमकोंणयाँ मुखड़ी

उदंकार

जन 

घाम बुढ़णा बाद

छूटी जांद अगास मा लालिमा, 

जन

मणि-मणि बची रैंदी 

फजsल हुर्र-मुर्रा मा भी 

जूने झोळ बाटा-घाटों ।


त्यार जाणा बाद

रिंगणु रैंदो

डंड्याळी पुन 

तै गुस्याव तमतमा मुखड़ी क तमतमाट 

खणमणि हैंसि क खिखताट.

अर 

सुणेणु रैंदो

चुलाणा पुन

नाक क सुण-सुणाट

खौळ-चौक पुन

चपलों क पट-पटाक

गुठयार पुन

गीतौं क गुणमंणाट।


त्वै बिगैर 

ज्यू करदो 

बिगैर मयेड़ी

किल्वड़ा बाँधी बाछी

जन 

रगर्याट अड़काट,

गौधुली मा घौर बौड़ण

लैंदी गौड़ी जन हणकाट 

नाज मा बैठयाँ

घिन्दुड़यूँ जन फर्र-फर्राट।


त्वै बिगैर 

नि रैंदी जीवन मा 

पूसा घामें जन रंणामणि

मौल्यार मधुमासे जन 

निंदै सणमणि 

ज्योठा दुफरा

बांजा छैलै जन स्येळी।


त्वै बिगैर 

यु पिरेमों द्याळ

ह्वै जांद बिगैर भौंरों जन बाग 

सूनों सुनपट

हर्ची जांद

माये कुड़ी कि चळक्वाट।


©® बलबीर राणा 'अडिग'

Tuesday 26 September 2023

मनसा गीत



चल रे मन-ज्यू मेरा, एक नयूं संगसार बसौला,

दुनियां-दारी का ऐथर, नयुं साज सजौला।

चल रे मन ज्यू मेरा होऽऽ...... होऽऽ.........


ऊँचा अगास मा, पोथळी बणी कि उड़ला, 

घ्वेड़-काखड़ जन, र्निघंड बणों मा घुमला।

मयळी कुखड़ी बणीं, घरों-घरों मा बांग द्यूला,  

घुघता-घुघती का जन, एक हैका का गळज्यू रोला।

होऽऽ...... होऽऽ.........

चल रे मन ज्यू मेरा ................


डाळि-बोटि बणि कि, जीवन हवा पाणि द्यूला,

डोखरा-पुंगड़ों जमि, जी जमाण कु पुटुग भरोला।

बरखा कुयड़ी बणि कि, धर्ती माता सिंचोला,

धारा-मंगरों मा बगि, दुनियां की तीस बुथ्योला। 

होऽऽ...... होऽऽ.........

चल रे मन ज्यू मेरा ................


ऊँचा हिवांळा बणि, गंगा जमुना बगोला,

हरा-भरा बुग्याळ जनु, सुख शान्ति रैबार द्युला।

उकाळ-उन्दार मा, मनख्यों तैं तागत द्यूला, 

सैणा-दमळों का जन, सौंग-सांग बणि कि रौला।  

होऽऽ...... होऽऽ.........

चल रे मन ज्यू मेरा ................

© ® बलबीर राणा ‘अडिग’

Tuesday 19 September 2023

बाबा ! मि उणि वति दूर ना बिवयाँ



बाबा !

मि उणि वति दूर ना बिवयाँ

जख मितैं मिलणा खतिर 

त्वै बेचण पड़ला 

अपणा बखरा।  


जख मनखी सि जादा 

द्यबता बसदा हो

तै मुल्क ना बिवयाँ।


जख बण-बोट 

रौंत्यळी धार

बगदी गंगा-गाड़ ना हो  

तख ना करियां मेरी मांगण। 


वख त बिल्कुल भी ना

जख सड़क्यौं मा 

मन सि जादा 

भाजदा हो गाड़ियां मोटर-कार। 


वीं घौर ना जोड़यां मेरु रिस्ता 

जै घौर मु ना हो 

खिलपत खौळ  

जै द्येळी कि रात नि ब्यान्दी हो

कुखड़ क बागन 

अर ! 

जै कूड़ी बटे नि दिखेन्दू हो  

ब्याखुनी अछलेन्दू 

पिंगळू स्वीली घाम। 


ना ढूंन्या यनु जवैं 

ज्वा डूबियूँ रौन्दो हो दौरु मास मा 

ज्वा निकज्जू 

असंगळया-आदळी हो 

ज्वा रुप कु रसिया 

गात कु खसिया हो।


जवैं 

क्वी थकुलो ल्वट्या नि कि 

जबारी चै बदली ल्योलु

भल बुरु होण फर।


यनु बर नि बर्रय्यां 

ज्वा छवटी सि छुवीं फर कैर द्यों

माँ-बैंणी, लठ्ठ-लात 

यनु बिछनट्या गुस्यार ना हो 

ज्वा चम्म निकळदू हो

थमाळी, कुल्याड़ी तलवार

अर बणैं द्यौ 

अचाणचक मवसी तैं 

बंगाल, असाम, कश्मीर

कैर द्यौ माभारत।


मेरु हाथ इना हाथों मा ना दियां 

जैका हाथन ना रोपी हो एक डाळी

जौं हाथन नि पकड़ी हो हौळै मुठ्ठी 

नि उगैन हो फसल-पात।

  

जैन नि देनी हो 

हाथ कै उणि गौळा तराणू 

जैन नि लगायी हो 

मौ-मदद तैं कखि कांधा-नौर। 


अर ! हौर त हौर 

ज्वा हाथ नि ल्यखण जण्दा हो 

‘ह’ सि हाथ

वे मा ना दियां मेरु हाथ। 


बाबा !

मितैं बिवाण हो त वख बिवयाँ  

जख सुबेर बटे ब्याखुनी तलक

मि देखी साको अपणु मैत कु मुलुक।

अर ! 

कब्बी मि दुख विपदा मा 

रुणी हो वली छाला 

तऽ ! तुम पली छाला बटे

नयेन्दा सूणी साको  

मेरु कणाट-रुणाट। 


जख बटे 

मि भेजी साकूँ तुमुतैं 

अपणी असल-कुसल कु रैबार

अरसा अर रुटणा बणें। 


बगदा बसग्याळ 

भेजी साकूँ

कखड़ी-मुगरी चिचिंडा-ग्वदड़ी कु साग।

पैटे साकूँ, ह्यूँद हिवाँळ 

तुमड़ा लौंकी करैलौं कु सुगसौ 

भुल्ला भुल्लियूँ का वास्ता। 


इना मुल्क बिवयाँ मितैं

जख मिली जावो क्वी अपणों

ख्यळा-म्यळा बजार मा औंदो-जांदो 

अर सु बतै साको मितैं 

मेरी ब्वै कु रैबार

मैत मुल्का हाल-समचार

धौळी गौड़ी कि ब्याणें खबरसार।


वीं मुल्क बिवयाँ मितैं

जख भगवान कम मनखी 

जादा रौंदा हो 

बाग अर बखरा 

योक तल्लौ पाणी पीन्दा हो।


वीं दगड़ बिवयाँ

ज्वा चखुला बणि 

अपणी चखुली दगड़  

रै साको हर बगत।


ज्वा बांटी साको 

बण-बूट डोखरा-पुंगडों बटे 

रात दिसाण तलक 

मैं दगड़ सुख-दुख। 


यनु वर चुन्याँ 

ज्वा बजान्दो हो 

मन-मौण्यां बांसुरीं


ज्वा द्ये 

साको बार-त्यौवारों मा 

द्यबतौं तैं अग्याळ 

बजै साको 

ढवोल दमों मा धुयाँळ 

नचै-ख्यलै साको

अपणा द्यौ-द्बता 

रीती-रिवाज।

 

ज्वा ल्यै साको 

मेरा धौंपेली उणि 

पाखौं बटे सिल्पोड़ी का फुन्ना। 


जै का गौळा उन्द 

गफ्फा ना जावो

मेरा भूक्खा रौण फर

बाबा !!.......

वीं दगड़ बिवयाँ मितैं। 

 

 कविता : निर्मला पुतुल

अनुवाद : बलबीर राणा 'अडिग' 


Friday 15 September 2023

ख्याल

 


   
        

  देखा-देखि
    सब्बि चलि जाणा
       पल, घड़ी, दिन-बार,
                   मैना अर साल
                          यूँ दगड़ उमर
           बस! नि जाणूं
               त
                  वा
                      तेरू ख्याल
                                 किलै ?

  @ बलबीर राणा 'अडिग'

घौ



कुछ पौजणा 

रंद सदानी

सिमारौ जनु पाणी.


कुछ रौंदा बारामासी

हैरा का हैरा

शीला पाखों जनु घास।


कुछ दिखेंदा नि पर 

बिणाणा रैन्दा

कुरौ-कुमरा जन।


कुछ पिल्ला फ़ौड़ू जनु 

उबजी जांद अचाणचक।


अर कुछ ज्वा 

जिंदगी भर मौळदा नि।


जुबाना घौ

ध्वका घौ

बिरह-बिछौहक घौ

अपणासा घौ

दुश्मन-बैरी घौ

वियोग-शोकौ घौ

प्यार-पिरेमा घौ

निरपूतौ घौ

कुपूतौ घौ।


हाँ

मौळयै जांद यूँ मा

कुछ घौ

जब सुबेरौ भूल्यूँ

ब्यखुंदा घौर बौड़ी

ऐ जांद ।


@ बलबीर राणा 'अडिग'

Saturday 9 September 2023

गजल


दिन-बार, साल गुजरी जांद,

उटंगर्या बेमान सुधरि जांद।


खूनौ उमाळ सदानी नि रंद,

बसग्याळे गाड़ उतरी जांद।


आजौ झकमकार डालौ भी,

एक दिन सुखी ठंगरी जांद।


झूंतू जमदरी सदानी नि राई,

छवटा बड़ा सब्बि सर्की जांद।


जख मिली घळकी, तखि ढलकी

भजीराम हवलदरि दुत्तकरि जांद।


ज्वनि मद-मदिरा मत्याळा अडिग, 

सब्बि नशा योक दिन उतरी जांद।


Saturday 2 September 2023

गजल : रूसाण


ज्वा द्वियाँ रुसयाँ राला त क्व मनालो,

जिंदग्या अलझ्यां धागा क्व सुलझालो। 


इनु अब्वलो, गुमसुम चुपचाप ठिक नि 

ये दुन्यांदरी ऊणि गिच्चो क्व ख्वलालो।


आजै दरार भ्वोळ ऊं खाड़ बण सकद, 

फेर वीं खाड़ उंद कैतें क्व खड़यालो।


सुद्दी यतनु को ततनु नि बणाण बल,  

भगवानों दियूँ यु रिश्ता क्व निभालो।


द्वियां अपणा मा इनि उसयाँ रैला त,

माफ कने हिगमत क्व दिखालो।


हिलांस जनु खुदेल्या जब यकुली त, 

घुघतां जनु गळज्यू सांखा क्व लगालो।


योक तम त्यार भितर योक म्यार, फेर,

यूँ तमोंsक तमासु शांत क्व करालो।


रुसाण मा माये डौर कमजोर पड़ली त,

बुढ़ापा मा गौळा क्व तरालो।


द्वियां मा एकन अगर आँखी बुजिन त,

भ्वोळ यूँ छुयूँ छिंज्याट पर क्व पछतालो।


जिंदगी कैतें मिली सदानी वास्ता अडिग,

सदीं जिंदगी ज्योण हमु तैं क्व सिखालो।


8 अगस्त 2023

✍️✍️✍️

@ बलबीर राणा 'अडिग'

गवाड़, मटई बैरासकुण्ड

Friday 1 September 2023

गजल


बात यन च, कि बात जाणण चैंद 

नि जाणि सकणा त मानण चैंद ।


सुद्दी नि खौतण, जु गिच्चा मा आई

गिच्चु ख्वन सि पैली स्वचण चैंद। 


अति का भला ना बुलाण ना चुप्प, 

अति जों बल खति बिंगण चैंद।


म्यार बाबन घ्यू खायी मेरु हाथ सूंगा,

बिगैर बुलयूँ मेमान नि बणण चैंद। 


छवटो सि पैणु यी बुरा मने जड़ ह्वनी,

इलै गौं छवड़ण पर मौ नि छौड़ण चैंद।


बिराणा लाटे हैंसी, अपणा कि रुवै अडिग 

इलै कैकी कमजोरी तैं नि बिमटण चैंद।


@ बलबीर राणा 'अडिग'

मटई बैरासकुण्ड, चमोली

पल्टन गौरवगान


हे बद्रीनाथ बद्री विशाला,

आदि देवा पुरुषोंतमा। 

पल्टन तैं बल बुद्धी दियां,

विजय शक्ति दियां महामना।


इनी छत्रछाया रख्याँ प्रभो, 

कृपानिदान जनार्दमा। 

नाम नमक निशान का खातिर,

जोश हौस हुयाँ बलवानमा। 


जै हो बद्री विशाल, जै हो चौदह गढ़वाल।

तेरी सेवा कना रौला, चै जन बि रैल्या हाल।


त्याग समर्पण दृढ़ता पर, 

अडिग छवाँ हर हाल।  

असम्भौ ब्वना सिख्याँ नि 

तेरी कुछली का हमु लाल। 


माथा तेरु झुकलु नि,  

चै ल्वे लगि जाला खाळ। 

सदानी हमु डटयाँ रौला, 

हर बगत हर हाल। 


जै हो बद्री विशाल, जै हो चौदह गढ़वाल।

तेरी सेवा कना रौला, चै जन बि रैल्या हाल। 


जोधपुर बे सिक्किम चढ़ी, 

पिथोरागढ़ से सियाचिन बढ़ी।  

मेघदूत मा प्रशंसा पै कि, 

मेरठ मा होरि निखरी। 


मणिपुर जंगळों मा,  

विद्रोहियों तैं धूल चटायी।

सी आई पैली विजय पर,

साईटेशन कमायी।


जै हो बद्री विशाल, जै हो चौदह गढ़वाल ।

तेरी सेवा कना रौला, चै जन बि रैल्या हाल। 


देहरादून का पीस मा,

खेलों  मा करि कमाल।  

नौसेरा एल सी पर,

हमुन मचायी  धमाल। 


दुष्मन का घौर घुसी, 

तांडव हमुन मचायी।

आतंक्यूँ ढैर करि,

साईटेशन दुसरु कमायी। 


जै हो बद्री विशाल, जै हो चौदह गढ़वाल।

तेरी सेवा कना रौला, चै जन बि रैल्या हाल। 


ऑप पराक्रम सांबा मा,

बुद्धी शक्ति तैं दिखायी।

माईनों बारुंदों का,

नयूँ इतियास रचायी ।


कटिहार फैजाबाद मा,

ट्रेनिंग कु लो मनायी। 

विश्व शांति कांगो मा,   

पल्टनल कदम बढ़ायी। 


जै हो बद्री विशाल, जै हो चौदह गढ़वाल।

तेरी सेवा कना रौला, चै जन बि रैल्या हाल। 


यू एन प्रशंसा ल्येकि,   

स्वदेशा ओर बढ़ण्याँ। 

नौगाम कश्मीर तर्फां, 

पल्टन का कदम चढ़ण्याँ। 


जटि की चोटियों फर,

मुजादिन ठोकि ठाकी।  

अजय तौमर कृति ल, 

साईटेशन फिर दिलायी।   


जै हो बद्री विशाल, जै हो चौदह गढ़वाल। 

तेरी सेवा कना रौला, चै जन बि रैल्या हाल। 


ताज गरुड़ो पैरी, 

रानीखेत मा राजा बण्याँ।

पल्टन कु शौर्य अग्ने, 

आसामा तर्फां बड़ण्यां। 


ऑप स्नोलेर्पड मा,

साबासी खूब कमाई । 

पल्टन कु झंडा फिर,

मेरठ पीस आई । 


जै हो बद्री विशाल, जै हो चौदह गढ़वाल। 

तेरी सेवा कना रौला, चै जन बि रैल्या हाल। 


अमन ह्वो या युद्धकाल,

कर्मपथ पर अडिग रैनी।

यात्रा अजेय हमारी, 

चौं 


पाईन डिवीजन मा

चैमपियन बणी की रायी

गढ़वाली भुलाओं न

अपणु डंका बजायी


दीपसांग ट्रेक लेह मा

भुजबळ अब दिखोला

चुंग फुंग चीनियों तैं

दम ख़म हम बतौला िशों मा गुंजणी रैनी। 


अडिग नीव रखणा वाळो,

तुम्तें सत सत प्रणाम। 

खंडित नि होणें द्यूला, 

ब्वनु छै पल्टन जवान। 


जै हो बद्री विशाल, जै हो चौदह गढ़वाल। 

तेरी सेवा कना रौला, चै जन बि रैल्या हाल। 


@ बलबीर राणा  ‘अडिग’