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Sunday 30 November 2014

-----ढुंगु सम्पूर्ण जीवन-----

कैन ब्वॉलि ढुंगु मर्युं होन्दु
वै कि सांस हम देखि नि सकदा
वै कि बात हम सुणि नि सकदा
वै का गुणों का उपभोग बिगैर हम रे नि सकदा
फिर कने मर्युं छ ढुंगु
बैकि उदारता द्यखा
कत्गा सहज च
जैन जख बोली वख फिट
छैणिल छटकायी मूर्ति बणगे
हथौडाल कुटी कुड़ी चिणिगे
कूटी-कूटी गारा बणगे
मशीनोंन पिसी रेत बणगे
पाणिन बगाई गंगलोड बणगे
पहाड़ ब्बी बु छन
हिमालय ब्बी वु छन
माटू ब्बी वी बणदू
पाणी वे का आँशु
ये बोला,
धरती ढुंगु.....
दरार हम मंखियों मां औंदी
वे फर नि!!
अफुं वे फर दरार नि औंदी
जबैर तलक प्रकृति या मनखी छेड़दू नि,
अफुं पार्टी बदली नि करदू
ना धर्म ना सम्प्रदाय
बस छन त ढुंगु
सम्पूर्ण जीवन
पूर्ण जीवंतता
अडिग अखंड
माया कर्ला त जीवन बसे जांदू
गुस्सा कर्ला खोपड़ी फ्वेड देन्दु।
रचना:-बलबीर राणा 'अडिग'

-----सौं खैकी------







छयपडा भैजी कबैर तलक रैलू सौं खाणु
कुड़ी त्वेन जमे नि बणाण
भोल सुबेर त्वेन घाम मां गेर तपोण
छव्टा-छव्टा सौंजड़ियों का बांटिक खैकी
ब्यखुन्दा डकार मारी ढुंगा कुछिला लुकि जांण।

नेता तु बणगे सौं खैकी
कर्म नि होन्दा सौं खैकी
तेरी बणायी माया की कुड़ी
सदानी नि रौंदी सौं खैकी

@ बलबीर राणा 'अडिग'

Tuesday 25 November 2014

ब्वे आशीष


तुमारा खुट्टा कांडा नि चुभ्या लाटो
चैs हम किन्गोडक भूड किले ना हो
तुमारा पुटुग सदानी भरिय्याँ रे
चेs हम भूखी क्ले नि स्यों।


जख भी रावा सुखी शान्ति रावा
यख रावा या परदेश जावा 
ब्यो करि यु ब्वे अलाडी ह्वे जान्दी 
जलम जलम की रीति बतौन्दी



मेरी माया मां ही खोट रे ह्वोलू 
कैतें दोष नि द्येणु 
तुम्हारा ज्यू जग्वाल भी ह्वाला 
मुच्चछ्याळू जगि पिछने औंदु...........

रचना :- बलबीर राणा "अडिग"
 

पंछी फिर घोलक तरफां उडी



हे माया भारी नखरी माया
सामणी रैंदी स्येली लगोंदी
दूर जै की झुकड़ा बिणोन्दी
त्यारा जंजाल मा इन लिप्टयों
फिरडा फिरडी त्वेमा उड़ि औन्दी।
@ बलबीर राणा "अडिग"

पडोसी भैजिक स्कूल

म्यार पडोसी भैजी बल
स्कुल चलोन्दन
वखक
पढ़े मा मंखियत नी
राक्षशी वृति पढ़ैयी जान्दी
वख इन्शान तें हैवान
बणे जान्दु
हे फरि बे का
धर्म का वास्ता
जान डाळा या ल्यावा
कण मुश्किल?????
।।।।।
@बलबीर राणा "अडिग"

मठु-माठू जा नन्दा

मठु-माठू जा नन्दा तु अबेर ना करी
उकाळी का बाटा घाटा भली के जेई 
उदास न होया नन्दा तु ते ऊँचा हिंवाला
तेरा मैतियों तें तेरी याद सताणी रैली

बडुली मां रैबार

किले नि औन्दी मेरी याद
नि छिन क्वी खबर सार
हे बथ्वों कख बटि ल्याई
बडुली मां तों कु रैबार

ज्यू मेरु गंगा जनु छालु
भरी देख ल्यावा अँजुली मा
तीजे जन जून ह्वेग्या
टक आँखी अगास मा
कख हर्ची गैणु का भिभ्डाटक बीच
नि पच्छ्णदिन वा अन्वार

हे बथ्वों कख बटिन ल्याई
बडुली मां तों कु रैबार।

औंदा जांदा बटोयी ब्वल्दिन
भट्कणु देखी ढूंगों का बोणु मां
आगास उड्दी पंछी ब्वनी
इकुली बैठियों मन्खियों का दग्ड मां
ऐजा बोडी ऐजा माया नि मिल्दी तों बाजार

हे बथ्वों कख बटिन ल्याई


ब्याखुनी दां आग भभ्डांदी
सुवेर बासन्दु कवा म्वोर परी
जग्वाल मा जिन्दगी कट्येणी
आज-आज भोल-भोल करी
दिन नि बुड़ेंदु रात नि बियेंदी
हर घडी पल-पल तेरु ख्याल

हे बथ्वों कख बटिन ल्याई
बडुली मां तों कु रैबार।

किले नि औन्दी मेरी याद
नि छिन क्वी खबर सार
हे बथ्वों कख बटि ल्याई
बडुली मां तों कु रैबार।

गीत :-  बलबीर राणा "अडिग"

---मेरु स्वाल----

जिजीविषा सहज जीवन कु बाटू
कबैर तलक खोजणी रैली
कथा व्यथा कागजों मां मेरी
कबैर तलक गयेणी रैली
कैन नि जाणी खैरी बिपदा
भोटक बाद सब्युन मुख फरक्याळी।


@ बलबीर राणा 'अडिग'

Monday 24 November 2014

मन दिवा


मन दिवा तु मठु-माठु जगणु रे
सैरी दिन-रात हर घडी हर बगत
झिकुडि मां माया कु बाटू उज्यालु कैर रे।
माया बिरडॉणी ज़िन्दगी का होर-पोर
भटकणी चौक तिवारी गों ख्वाला का धोर
ज्यु जिवा बण बूट जग्वाल बैठय्यां
राँको बणी ये झिकुडि उदंकार कैर रे
मन दिवा तु मठु-माठु जगणु रे।
दुन्या सौंण चौमासी रात बणी ऐ जांदा
माया कि आग जगण नि देन्दा
जून ब्बी लुकीं जान्दी मन्खियोंक जुलम देखी
सुबेरक कोलूँ घाम बणी ऐ जा रे
मन दिवा तु मठु-माठु जगणु रे।
भोल क्या होन्दु कैन नि जाणी
आजक क्या ह्वे सबुन जाणी पच्छयाणी
द्वी दिन का दिनोंण छै यु जीवन
आशा तु जीवन की जगे जा रे
मन दिवा तु मठु-माठु जगणु रे।
मन दिवा तु मठु-माठु जगणु रे
सैरी दिन-रात हर घडी हर बगत
झिकुडि मां माया कु बाटू उज्यालु कैर रे
ये अडिग की बात मान रे।
रचना:- बलबीर राणा 'अडिग'

------भैजी मेरु देशक थोकदार----


मन मेलु तन चमकदार
भैजी मेरु देशक थोकदार
धोती कुर्ता झमाझम
हर दिन नयुं नयुं सुलार
बोली मयाळी भाषा अपणी
अर तिकड़मी चाल
भैर दूध जन उजळु
भितर मुसादूळी भ्रस्टाचार
भैजी मेरु .......

नि ह्वे सकु एक मैंसक स्वेणि
कन ह्वयूं यु पातर चाल
एक घरय्या द्वी घरय्या
बुडडया हूण तलक सड़सट घरों कु ठाट
जन भी हो कुर्सी वाळु मिलण चैन्दि
जै घार भी मारी जाओ फाल
रँगिला पिंग्ला आंगड़ी पिच्छवाडी
ज्वान छोरों कु चैणु भिभडाट्
भैजी मेरु ..
इनु राष्ट्र भक्त
गों गुठियार पर खिंचवे देन्दु तलवार
जै तें हो निराशपंथ
जैकी मवसि लाग्यां धार
भैजी मेरु ....
क्रमश:-
@बलबीर राणा 'अडिग'