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Tuesday 23 March 2021

होली गीत

 



ऐग्ये फागुण मैना रे बसंत मन मोण्यां ।
ऐग्ये धर्ती मा उलार देखा कन स्वाण्यां ।

डाळयों मा मौळयार ऐग्ये
फूलों मा फुलार छैग्ये
हैसणु बुरांस बण मा
पाखों मा खिलपत प्योंली देखा कन स्वाण्यां
ऐग्ये फागुण मैना रे बसंत मन मोण्यां।
 
खीसा उन्द गुलाल कोचिं
हथों मा पिचकारी भौरी
होळयारों डार चलग्ये
गौं ख्वाळों बजण लगिगे ढवळकी घमकोण्यां
ऐग्ये होली कु त्योवार देखा रंगमत होंण्या।
 
मुठयूं मा म्वोसु छुपै
भौजी द्यूरा लुकम लुकै
डंडयाळयों उबरा कूणा
कळपट मुखड़ी मा दांत देखा चमकोण्यां
ऐग्ये होली कु त्योवार देखा रंगमत होण्यां।
 
मुखड़यां रंगन रंगीं छां
गात लतपत भिज्यूं छां
होळयारों का गीत गुजणा
दाना सयाणा लग्यान दनकी दनकोण्यां
ऐग्ये होली कु त्योवार देखा रंगमत होण्यां।
 
ऐग्ये फागुण मैना रे बसंत मन मोण्यां
ऐग्ये धर्ती मा उलार देखा कन स्वाण्यां
ऐग्ये होली कु त्योवार देखा रंगमत होंण्या।
 
 
@ बलबीर  राणा अडिग

Sunday 14 March 2021

फूलदेई फूल सग्रान्द



चौं दिशों मा ऐग्ये मौळयार,
डाळी बोटयूँ फूल फुल्यार।
भिटा पाखा झकमकार 
फूलों की सग्रांद फूल त्योवार। 

खिलपत ह्वे किं धर्ती हैंसणी
सार्यों मा कन बसन्ती नाचणी। 
ध्येळी ध्येल्यों मा फूल बर्खणा
सजौली भौरीं सुखी शंति बाटणा। 

बाळा नोन्यालों की लगीं लंगत्यार,
फूलों की सग्रांद फूल त्योवार। 

सजीं गिन चिंकी पिंकी द्वी बेणियाँ,
बाटा लग्यान बाळा सौंजण्यां।
एक हथ सजौळी दौड़म् दौड़ी
हैका हथ बुराँसी प्योंळी सिलपौड़ी। 

देणा छिन बाळा खुस्यों कु रैबार 
फूलों की सग्रांद फूलों त्योवार। 

दादी की डंडयाली लिपि घेंसी छै
चाची कु चौक खोडू सौरीं छै।
बौड़ा नै ध्वै की पूजा लगाणु 
चाचा नौन्यालों तैं खाजा बाटणु।

आज दिणा बाळा द्यो आशीर्वाद
फूलों की सग्रांद फूल त्योवार। 

हैर्यू भरयूं रै बोजी तेरु घरबार 
डोखरी पुंगड़ी दियाँ भौरीं भकार
टळमळ रै अन्न धन का कुठार 
गाजी पाती मा रयाँ मौळयार।

बगौंणा लगिन चैती वयार 
फूलों की सग्रांद फूल त्योवार। 

गीतकार :  बलबीर राणा अड़िग

Saturday 6 March 2021

अफ़खव्वा

 


बाज बाज मर्द ह्वो या जनानी वूं कि आदत इकुले खाणें होंदी। परिवारा हौरि मनखि फिरीं अफूं तौळी मौळी। इना परजाति तैं बोल्दन अफ़खव्वायाने अफूं खाण वळु। केवल अपणी लदौड़ी कु पुज्यारी। अफ़खव्वें बि कति बैराईटी होंद। जन कि, परिवार तैं साग भुज्जी न ल्यावन पर अफूं बजार होटल मा द्वी सौ रुप्या को मीट भात जरूर सटकालु।  घौर मा चा-चीनी तैं पैंसा नि होंदन पर पाँच सौ कि डिफेंस ब्रांडा वास्ता खिस्सा टटोली निकाळी देन्दू । परिवार मा क्वी भलि बुरी चीज होरुं तैं कमति बांटी अफूं जादा भच्काण। या क्वै चीज अलग लुकै मौका पर अफूं सफाचट। बाज-बाज जबारी द्याळम  इकुली राउन तबार चवल्थी म्वल्थी (तला-मला)।

त साब यीं वैरायटी मा छै हमारी एक ददि किरमुली।  ददि जति काम काजै भलि सगोर्या अर हुर्स्यळी छै तति बुढ़ली अपखव्वाबि। जनि घौरा होर मनखि-माणिक, नोना ब्वारी इना उना लगद तनि ददि को कुछ न कुछ चुलाणा मा चढ़ी जांन्दू छौ।

इनि एक होर अणमणमाथिक को किरदार छौ हमारु जगतु काका।  गौं कू नम्बर एको जासूस, नारद मुनि। कखै कि लंका कख लै द्ये। आजतक, कलतक, न्यूज ट्वेंटी फोर, सब्बि चौंनलों कु बुबा।

जगतु काका तैं किरमुली ददि आदत पता छै कि वा मनखि फिरी खांदी। एक दिन जगतु काकान किरमुली काकी कु स्टिंग ऑपरेशन कनू पिलान बणै। सुबेर जनि मनखि माणिक काम मा इना उना लगिन तनि जगतु किरमुली घौर धमकि। दस बजि दुफरा तक काकी उबरा धुँयेर छौ लग्यूँ। जगतुन ब्वोली ओ ! आज मि ठिक टेम पर पौंछी। आज मिन बि दखण या किरमुली बुड़ळी यकुली क्या क्या जी चवल्थी म्वल्थी बणें खांदी ।

जगतुन भैर बटि बिगैर धै लगै झप्प काकी उबरा डवार पर पौंछी।

हे काकी ?  क्या छिन तेरु यीं दुफरा तले धुँयेर छै लगयूँ ?

किरमुली ददि तबारी अफूं तैं गुल्थया (बाड़ी/कल्यो) छै खैंडणी। उन त बुड़लिन खिड़की बंद कैर उबरा भितर अन्ध्यारु बंदोबस्त करयूं छौ, पर जगतू अचाणचक इना रेड मर्लो स्या त्यार नि छै। तबारी अजक्यालक जन गैस चुल्ला नि छै कि बिगैर ध्वाँ रस्वै बणि जाली।

जगतू का अचाणचक मोर फर ओंण सि  किरमुली हकबक ह्वेगी छै। वींन गिच भितर बबड़ाट लगेन। अरे !!  यु मच्यो (मास्तु) बी कख नि पौंछी जांन्द नारद मुनि जन।  लुकों तैं भल बुरु बि नि खाण देन्दू कुकुर। अर वींन घपग्याट मा सर्पट चुल्ला मा चड़यूँ कल्यो भद्याळी सर्र भुयाँ अपणा पिछवाड़ी सरकै। अर हबड़ाट मा जबाब दिनी।

कु..कु....कुछ ना रे जगतु। ओ ओ बैठ, भैंसो पीण्डू छै उज्याणी। या आग सुलकाणी बि नि,  निर्भगी लखड़ा निरपट गिल्ला छिन हुयाँ का। म्यारा आँखा फुटग्ये यीं धुँयेर मा। अच्छा तु कख छौ यीं कुबगत लोगुं का उबरा ढपकणु ?

तबारी तलक जगतु बि भितर अग्यठा (चुल्लाणा) बगल चंकुला मा अड़ी गे छौ।

इना जिट घड़ी जगतु अर किरमुली इनै-उनै छुवीं क्या लगाण लगिन तबारी किरमुली चढ़मताळ बिछू जन चढ़कयीं खड़ू ह्वेन।

ऐ ब्वै !..... मोरिग्यूँ

हे मच्यो नि खाण पड़लू तु ऐसूं बग्वाल। जख द्याखा आणु-जाणू दिखयेन्दू कुबीज।

अर किरमुली जगतु तैं चपट गाळी द्ये अपणू पिछवाडू झबटाण अर ख़बसाण लगि।

जगतु खिकताट हैंसदो फ्वाँ भैर भाजिन।

अब यनु क्या ह्वेन कि किरमुली ददि फर इतगा नखरी चटाक पड़ी। त साब बात इनि ह्वै कि जबारी ददिन सटा-बटि मा भद्याळी अगठ्या बटि भुयाँ अपणा पिछने लुकै, ते बगत भद्याळी तौळ एक अंगारु चिपक्यूं छै। ज्वा ददि का पाखुला पर लगिन,  सौजि-सौजि पाखुलन आग पकड़ी अर बुड़ली पिछवाड़ा  झस्स ... डाम।

हे रां दा ! अपखव्वा बुढ़ळी नि लुकांदी भद्यळी पूठ पिछने, अर नि डमयेंन्दी झस्स। बुढ़ळी  तै अफख्व्वा कु दंड मिल गे छौ । जगतु काकऽक मिशन पुरु ह्वेगे छौ। अर किरमुली दादी पिछवाडु डामेंणे खबर सर्रा गौं मा बाईरल।

 

असौंग शब्दों अर्थ :-

पखुल/ पाखुला/लव्वा- चमोली जिला मा जनान्यों मुख्य पैरवार ज्वा ऊनी पतळी कंबल होंदी।

 

@ बलबीर राणा अड़िग


Thursday 4 March 2021

गजल

 




यनु चिफ्ळू गंगल्वड़ा सुदी नि बण्यूं ठकुरो

छिड़ा छंछडां छक्की कि छपोड़यूँ ठकुरो।


यति सौंग नि छै घळमळा बणणे जातरा,

हिमालै बटिन सागर तलक रगड़यूं ठकुरो।


अतैड़ा देणा वाळा हर लपाग फर मिल्यां,

फिलबट्टों मा समळी यख पौंछयूँ ठकुरो।


तिरछी, तड़तड़ी कराळी छै नजर लगीं, 

तौं आंख्यूँ मा आँखा डाळी अयूँ ठकुरो।


ढांगा यीं पीठ परे इना सुदी नि लग्यान, 

गळदारों हथ कुटयूँ हल्या बण्यूँ ठकुरो।


सैणा बाटा नि हिटिं या जिंदगी कब्बी,

ढिक्का ढुंगों मा ढमणान्दू बढ़यूँ ठकुरो।


लटुल्यां घाम तापी स्येता नि ह्वेनी अडिग,

खैरी खरण्या मा झपोड़ी फुल्यूँ ठकुरो।

@ बलबीर राणा 'अड़िग'