कै गौँ मा एक संपन्न सेठ मनखी छौ। अपणा जीवन कु समै पूरो कना बाद एक दिन सु स्वरगबास ह्वेगे अर छोड़िगे अपणी चीज बस्त सम्पद जनु कि विधातो नियम छन। धन संपद क्वे छति मा बाँधी नि ल्ही जान्दो। त साब तैं आदिमे संपद मा उन्नीस घ्वाड़ा भी छया, जों का बँटवरा वास्ता तेन बस्यत छोड़ी छौ। करियाकाराम का बाद सु वसीयत पढ़े ग्ये।
वसीयत मा लिखयूँ छौ कि म्यारा उन्नीस घवाड़ों मा बटे अद्दा मेरा लड़ीक तैं, एक चौथै मेरि बेटी तैं, पाँचवा हिस्सो मेरा नौकर तैं दिए जावो।
अब सब लोग परेसान घंघतौळ मा कि उन्नीस को यनु बँटवारु कन क्वे होलू? उन्नीस को अद्दा कु मतलब एक घ्वाड़ो द्वी फाड़ कन पड़लो याने काटण पड़लो, एल घोड़ा तैं मारण पड़ोल। चला एक मारी भी ध्योला त अब अठ्ठारा बचला, अब वूं कु चौथै साड़े चार, साड़े चार। फिर अग्ने पांचवा हिस्सो ?
सब्बि यार आबत बड़ा घंघतौळ मा छया कि ये आदमिल कन जंजाळ करि या, फूँ म्वना बाद कुटुमदरी तैं यनु जाळ बुणेगे।ज
ब कैका समझ मा क्वी सई जबाब नि आई त सल्ला करिगे कि फलांण गौँ मा फलांण आदिम भौत चतुर बुद्धिमान मनखी छन, वे सणि बुलये जावो, वूं मा पक्को समधान मिल्लो।
तै चतुर आदिम तैं अर्तवळू भेजे गयो, अर सु बुद्धिमान भी अपणा घ्वाड़ा ल्ये पोंछीगे।
बुद्धिमान मु समस्या बतैयेगे , बुद्धिमानल समस्या सुणी, समझी अर अपणु दिमाग़ लगेन। फेर बोली यार भै बन्दों इनु करा तौं उन्नीस घ्वाड़ों मा मेरु घ्वोडू मिलै बाँटी ध्यावा।
अब जनता स्वचण लगी कि एक त सु म्वन वळू पागल छौ ज्वा इनि बस्यत करि चलग्ये अर हैको पागल यु आई ज्वा बोनू तौं मा मेरु मिलै बाँट ध्यावा।
फेर सब्यून सोची तौळी कि जब सु बोनू त बात मानी ल्या, यनु कन मा हर्ज बि क्या छ।
अब
उन्नीस मा एक हैको घोड़ू मिले कि बीस ह्वेन,
बीस को अद्दा दस, ज्वा लड़ीक तैं दियेगे।
बीस कु चौथै पाँच, पाँच बेटी तैं दिनी।
बीस कु पाँचवा हिस्सू चार, सु चार नौकर तैं दियेग्ये।
दस धन पाँच पंद्रा,
पंद्रा धन चार उन्नीस।
तौं बीस घोड़ों मा बचीग्ये एक।
ज्वा सु बुद्धिमान मनखी कु छयो,
चतुर बुद्धिमान मनखी अपणु घ्वाड़ो ल्ये कि अपणा घौर चलीगे।
त साब एक घोड़ू मिलाण सि उन्नीस घोड़ों बँटवारु सुख शांति अर संतोष सि सम्मपन ह्वेन.
त साब यु उन्नीस को प्रसंग हमारा जीवन मा भी जनि तनि विद्यमान रैंदो।
दगड़्यो हम सब्यूँ का जीवन मा बि उन्नीस मैत्वपूर्ण घ्वाड़ा होंदा, जौं कि सयी सै समाळ अर इस्तमाल करि जीवन सुफल बणई जांद।
यु उन्नीस मा छन पाँच ज्ञानइन्द्रियां
आँखा, कंदूड़, नाक, जीबड़ो अर चमड़ा याने त्वचा।
उन्नीस मा पाँच छन कर्मइन्द्रियां,
हथ, खुट्टा, गिच्चो, पूठो अर जन्नेद्री।
उन्नीस मा पाँच होंदा प्राण,
प्राण, अपान, समान, व्यान अर उदान।
अर अब बचीगे चार,
जौं तें बोल्दन अंतःकरण,
मन, बुद्धि, चित्त, अँखार याने अहंकार।
सरो जीवन यूँ उन्नीस घ्वाड़ों बँटवारु मा अळझ्यूँ रैंद। जबारी तलक यूँ मा मितर दगड्या, यार आबत रूपी घ्वोडु नि मिलायी जांद तबैर तक जीवन मा सुख, शांति, संतोष अर आनंद नि मिली सकदू। इलै हमेश पणा सरेल मा विद्यमान चीजों सयी इस्तेमाल कन चेंद।
@ बलबीर राणा 'अडिग'
हिंदी प्रसंग कु ग़ढ़वळी अनुवाद
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