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Wednesday 13 May 2020

छंद


कुंण्डलिया

1. विषै : दौन

दौन मा दौड़ कन लगीं, ह्वयूं भाजम-भाज।
बिगैर ताळो ढमकाणुए क्वी साज ना बाज।।

क्वी साज ना बाजए भितर भेरुं जन नचणु।
खिर्स मा खिर्सेंणु सुदिए अपणी झुकुडी़ जळणु।।

घुंडों मा सक्या न हो, या तातु दूध जन ह्वोन।
गंगल्वड़ों मा जिंदगी, बणै द्येली स्या दौन ।।


2. विषै : फकादी

मांसखत्ता जोग्यूं कुए न क्वी मैना  मास।
ब्वल्द क्या कर्द क्याए नि छ क्वी विस्वास।।

नि छ क्वी विस्वासए छ पापड़ो जन पाणि।
कब कने ढळकी जौंए अज्यों कैन नि जाणि।।

फकाती दूर रवा, यूं कु क्वी अत्ता न पता
वूं जोग्यों भरोसु नि, ह्वै जान्द जु मांसखत्ता

रुपमाला  : विषै - ढब

चल दगड़या तू मठु माठू, हिट्टा धारे धार।
जर्रा उकाळो बाटु देखि, न लगो वार पार।।
ठीक कैर तौं खुट्यूं ढब, सदानी सिधु सैणु।
कबी जर्रा खर्रखरु सै ल्ये, न रौ मयाळु मैंणु।।

जब बगत छै त्वेमा जर्रा, सौंग-पाति सुधार।
खैरी मा काम आलु वा, लगलु छाला पार।।
खैरी खंयीं रैली अगर, आसान ह्वलु ज्योण।
मुश्किल घड़ी कटी जाली, पुर्येलु जिंदगी भौंण ।।

गीतिका : विषै - बटोई

हार जीत लग्यूं धंधा छै, सास न त्वोड़ दगड़या।
यूं छव्टी म्वटी लड़ै से, आस न छोड़़़ दगड़या।।
लंबो छिन जिंदगी कु बाटू, या त छै पैली चड़ै।
कमर पेटी कस बटोही, बाकी छ असली लड़ै।।

टुकू सदानी मथि होन्दू, चैन्द जर्रा हिमत रखी।
फेर जख चा तेरी मर्जी, लिजाली किश्मत वखी।।
हर मुश्किल जो खड़ू रैंद, हमारी इमानदरी।।
बटोई हिटण जरुरी चा, यु मनखी जिम्मेदरी।।

ताटक : विषै - सांस

ज्वानी कौंल घामा दिनों मा
कांडा मुंडा कुर्चेंदा छां।
बिगैर जांच पूंछी कखी बी,
इनि फाल मारि देंदा छां।

खौळा मेळा नि छोड़यां क्वी,
रात ना दिन जाणदा छां।
माया मुस्कऽन बाटु नि खोजी,
सुद्दी मुंडू कुचै देंदा छां।।

अचाणचक दुफरी औंणा से
दिन वा चंपत ह्वेगे छै।
जिंदगी गिरस्थी सीड़ियों मा ,
समाळी चड़ण लेग्ये छै ।।

तर्फी सफरी वळी लौंचि उमर,
देखदा सयणि ह्वेगे छै।
बाटू पुर्राण वळि सौंजड़या,
जिंदगी हिस्स बणीग्ये छै।

तपण बैठग्ये सौज-सौजि तब,
जिंदगी ततड़ा घामों मा।
सांस लेणु मौंका नि अज्यों तक,
गिरस्थी का जंजाळों मा।

@ बलबीर सिंह राणा अडिग








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