मजदूरों लंगत्यार चा।
मजबूर हुयीं व्यवस्था सर्री,
भाजणी पुटगों आग चा।।
किलै हाकार मच्यूं संगती,
नियम किलै घुंडा बैठग्ये।
किलै देशा यूं छव्वा ढुंगों
लदौड़ी मुंडों मा ऐग्ये।।
विधाता तेरु बी ढब ठिक नि,
आफत गरीबों नौं किलै।
तेरा कैरो कालऽक सिकार
हमेस गरीबोें मौं किलै।।
आँखा खोला मालिक मर्दोंऽ,
आबरु भैर बलार हुंयी।
कोरोना दुशासना समणी,
जनता छिन लाचार हुयीं।।
मथि मथी ना उर्यावा रे तुम,
भुयां वळुं हाल बी द्याखा।
यूं परताप खाणी कमाणी
बिगैर यूं सब्योंऽक माखा।।
बाते बात दिखणी सब तर्फां,
कन्दुड़ा खोली सुण पड़लो।
बाद मा #बकिबात ह्वे जाली,
भ्वोल कने तु मुख दिखेलो।।
@ बलबीर राणा 'अड़िग'
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