अजाण बाटों फर ना निकल्याँ दगड्या,
हर बाटू छैफुट्या ना समझ्याँ दगड्या।
भुयाँ पुन देखि भालि अग्ने लपाग धर्यां,
बाटा कुमरा कांडों ना अल्झयाँ दगड्या।
लालचौ जाळ फलांग फलांग मा बिच्छयूँ,
यूँ शिकार्यों मनसा पच्छाण्ल्या दगड्या।
कोरोना मौड़ो मसाण बणि संगति ऐग्ये
सुद्दी मुद्दी कै फर ना चिपक्याँ दगड्या।
वति उड़ान भर्र्यांं जति उड़ी सकलो,
छन पंखों र्निपंखी ना हुंयाँँ दगड्या।
सदव्यौवार संजीवनी छिन जिंदगी की,
सूणी लियाँ पर, ना भिड़याँ दगड्या।
छुवीं, छाँ फूली *बकिबात* न ह्वावो,
तै खाब तति ना कताड़याँ दगड्या।
मौड़ा - मरघट
छाँ - छांस
खाब - मुख
@ बलबीर राणा 'अड़िग'
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