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Friday 14 July 2023

गजल



ऐरां अपणु त छौ पर सांखा भिटे नि साकी,

सु पड्यूँ ही यनु जगा छौ कि उच्यै नि साकी।


मास्तौ खांण छौ त हाथी खांद गेर भरी जांदी,

तिमला तिमिल खतैन लाज बि बचै नि साकी । 


लूsका चै लुकावा या खाड़ मुड़ी खड्यावा,

सड़याँ ढयौरै बास क्वी मट्ठयै नि साकी।


ह्यूँ मा हग्यूँ सै ह्वे जांद एक न एक दिन, 

कुछ बि करा घामें झोळ क्वे छुपै नि साकी।


टयौळी टफळी, टयौळी अकल छ रे बाबू , 

तब्बी त त्वै तें दुन्याँ बींगै नि साकी।


साग बिगाड़ी माण न, गौं बिगाड़ी रांड न,

या बात तेरी ख्पड़ी किलै पचै नि साकी।


@ बलबीर राणा 'अडिग'


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