ऐरां अपणु त छौ पर सांखा भिटे नि साकी,
सु पड्यूँ ही यनु जगा छौ कि उच्यै नि साकी।
मास्तौ खांण छौ त हाथी खांद गेर भरी जांदी,
तिमला तिमिल खतैन लाज बि बचै नि साकी ।
लूsका चै लुकावा या खाड़ मुड़ी खड्यावा,
सड़याँ ढयौरै बास क्वी मट्ठयै नि साकी।
ह्यूँ मा हग्यूँ सै ह्वे जांद एक न एक दिन,
कुछ बि करा घामें झोळ क्वे छुपै नि साकी।
टयौळी टफळी, टयौळी अकल छ रे बाबू ,
तब्बी त त्वै तें दुन्याँ बींगै नि साकी।
साग बिगाड़ी माण न, गौं बिगाड़ी रांड न,
या बात तेरी ख्पड़ी किलै पचै नि साकी।
@ बलबीर राणा 'अडिग'
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