Search This Blog

Monday 31 July 2023

बारा बरम : अडिग दोहावली



द्यो-सरग जन भी रावो, बरखा बथौं बयाळ।

ना बिंगदो ना जण्दू छौ, नानछनों उछ्याद।।


ज्योण बाळापनों छयौ, चिंता फिकर अजाण। 

पुटुग भर्यूं चैंद छौ बस, फेर त कुर्चम कुर्चाण।।


मुबैल इंटरनेटला, क्वै निकजु क्वै किसाण।

क्वै पौंछया टुकू मांग, त क्वै गारत मिंजाण।।


मुडी खाड़ टुटगा धौंण, मुबेलौ लग्यूँ रोग। 

सोशल मीडिया चंटा, त असल जिंदग्या जोग।।


बीडियो रीलौं मा छन, ज्वान बुड्या नचाड़।

शरम संस्कार ढुंगा मा, बेसरम बणिन पाड़।।


जाळी-काळी टुफल्यूँ कु, जमें नि करा बिस्वास। 

गुरौऽल डंक मने ही च, चै क्वै किलै नि खास।।


बिन दबयां रस नि द्यना, संतरा निंबू आम। 

अफूँ दब्यां पूरा नि ह्वन, स्या सरकारी काम।। 


सुखी संपत मने जांद, चुलणा चिलमें आग।

बूढ़ बुढयैं आड़ ह्वनी, जन भर्यां बौण बाग।।


भौतिकताऽ भिभड़ाट मा, लग्याँ च भाजम भाज। 

खाणि-पीणी सब हरचीं, टेम नि घड़ैक आज।।


या धरती कैकी नि रै, नामी हो चै आम। 

दाणु-पाणी निमणि जांद, क्या सुबैर क्या शाम।।


अजक्याला राजनीतिज्ञ, उल्टा शतरंज बाज।

जख देखि राजा फंसणु, प्यादा हैका काज।।


ध्वाड़ा इन्द्रियां दै रथ, धर्यां अकल अर हौंग।

मनैं लगाम कसण अडिग, जात्रा ह्वेली सौंग।।


*शब्दार्थ*

द्यो-सरग = मौसम, 

कुर्चम-कुर्चाण = धींगा मस्ती

टुकू = चोटी

निमणि = खतम होण

हौंग = हिगमत


*@ बलबीर राणा ‘अडिग’*

मटई बैरासकुण्ड

No comments:

Post a Comment