किस्सा तबारी छ जब चारधामा वास्ता क्वी मोटर रोड़ नि छै। जात्री रिऋीकेस बटे पैदल जान्दा छाया। गौचर बटे मील द्वी मील अग्ने चटवापीपळ गौं पड़दू। तबारी जात्रा टेम फर एक दिन तीन साधु बद्रीनाथै जात्रा पर छौ बल। ज्यौठा मैने बात तड़तड़ौ घाम। जोग्यूँ तैं तीस छै लगीं। जब जोगी चटवापीपळ मा पौंछी त बाटा मा पीपळा डाळा छैल मा थौ खाणू बैठ्यां, तबारी तौंकि नजर बाटा ऐथर कै मवसी साळी अग्ने बंधी घळमळकार बाळैण भैंस पर लगिन। अब तौन मिस्कोट बणेंन कि यार तै घौर मु ठंडी टपटपी छांस मिल जाली। अर जोगी पौंछग्यां मथि खौळ मा। धै लगान्दी बौड़ी भैर ऐन अर जोग्यूँ तैं सेवा सौंळी करि। स्वामी जी बोला मि क्या सेवा पाणी कैर सकदी आपक। जोगी जगम अपणी डिमांड सि पैली मनखी तैं पुळयाण पटाण नि छौड़दा। मायी तू बड़ि भारी भग्यान जसीली मनख्याण छन। तेरी साळी सदानी लेणी लवाण गाजियूँन भौरिं रयां। नाती नतेण पूत संतान को भलौ सुख लिख्यूँ तेरा भाग मा।
मायी तिन सेवा क्या कन, घाम मा हिटद हमारा पराण सुखिगे,
हमूतैं भारी तीस च लगीं, परियै ठंडी छांस मिली
जाली हमारा पराण भगवान बद्री तक पौंछी जाला। बौड़ी सट्ट भितर बटे परोठा भौरी छांस
ल्येन, जोगियूँन छक्की तीस बुथैन अर आश्रीबाद द्ये अपणा बाटा
लग्यान।
अब आप बोना होला कि या त आम बात, यामा किस्सा क्या
अलैद छ। पर साब किस्सा
कु हिस्सा अग्ने द्यौखा। ब्याखुन
दां जब बौड़ी फिर सौदी छां छोळणा वास्ता परिया खाल्यौण लगि त एक मौरियूँ सर्प तै
परिया उन्द दिखै, स्या झस्स झसकिन अर मुंड
पकड़ी भुयाँ बैठिगे कि हे भगवान कन पाप करि मिन आज। मि फर कन मात्मा जोग्यूँ हंत्या लगि या। अब कैतैं पूछदी कि सु जोगी कख तक पौंछया होला या कख
मौरियां होला ? कर्णपरयाग तक पौंछि कि ना
? हे भगवान क्वौ जाण। अजक्याला जन संचार कख छै तबारी। अब जु
बि हो बौड़ी तैं चुप जितम डाम धरी घटणा सौंण पड़ी। बगत का दगड़ बात आयीं-जयीं ह्वेगी।
बगत भादौ मैनों ऐग्ये छौ मौसम गरम तौ-भौ वळू, जात्री
उब कम अर उन्द जादा जाणा दिखेन्दा। सु तीन जोगी बि बद्री भगवानें जात्रा करि उन्द लग्यान अर पौंछया तखि
तै चटवापीपळ। जोगी-जगम क्या जीव नमाणें आदत
होन्दी कि जै घौर खाण पीण मिल्दो तख फेर पौंछी जान्दा। आसा बलवती बल।
तबारी एक दिन बौडी सदानी तरां दिन मा अपणा उबरा छै काम पर म्येसीं कि भैर
बटे धै सूणैं ऐ मायी, भग्यान मायी कख छै तू। भैर
औ। बौड़ी चड़म भैर। मायी तू सच्चीगे की भग्यान छ तेरी छांस न तै दिन हमू तैं इनि
सक्या दिनी कि ठीक पीपलकोटी तक पौंछयां एकी दिन मा। मायी आज बि पिलै द्यै
द्वी-द्वी ल्वटया टपटपि छांस कि हम हरिद्वार तक रुकौ ना। बौडिन ध्यान सि देखी कि जोगी ऊनि दिखणा जौन
ज्यौठा मैना जैरीली छां प्येन छै। स्या तौं देखी
अचरज ! कखि मि स्वेणा त नि द्योखणी, या सु जोगी मसाण बणि मेरी द्येली मा पौंछयां।
पर लगणा त ज्यून्दा जमाण ही छन।
बौडिन बोली कि स्वामी जी छांस बि प्यवा अर भात बि खावा पर इन बोला कि तुम
सच्ची मा ज्यून्दा छां कि ? हे बद्री हंत्या लगौण सि बचैल त्वेल।
अब बौड़ी छुवीं सूणी
अचरज होणू नम्बर जोग्यूँ को। मायी किलै, क्या बात छ ? क्या ह्वे छौ तै दिन ?
ऐरां दा बौडिन झिकुड़ै गेड़ खट्ट ख्वौली। स्वामी जी बात इनि छै कि जु छांस तै
दिन तुमुल प्येनी छौ तै दिन परिया मा गुरौ छौ मरयूं। बौड़ी तति क्या बोन छौ कि एक साधुन सर्र तखमु हाथ खुट्टा छौड़ि बल। अर गौचर जाण-जाण
बच्यां द्वी बि स्वरग सिधारिन। त या च साब सक, सकौ जैर चार मैना बाद लगिन। इलै बोलदन कि सक जैर अर विस्वास वैद बरोबर होन्द।
@ बलबीर राणा ‘अडिग’
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