चंट भैजी दिन ब दिन सुखणु चा,
मुसमुस्या ग्वोसु जनु जगणु चा।
भैजी तैं इलै अपच ऐसीडिटी छन,
कि हैका ऊणि कन कि पचणु चा।
लुकैं उन्नति बरगत से अग्ने पौछणु
भैजी सस्तो सौटकट ख्वजणु चा।
अपणों का चिरयाँ सुलारों चिंता नि,
बिराणा टूला-टालौं पर खिर्रसणु चा।
भैजी जणदू नि बिच्छी को मन्त्र पर,
सट्ट सर्प का दूळा हाथ कोचणु चा।
दुन्याँ तैं ठगै झपौड़ी कमाणु भितर,
भैर भटयाभट ईमानदारी पढ़ाणु चा।
दीन धरम आर-सार त चलिग बिलैत,
सु गरीब दुख्यारों कु बि खसकाणु चा।
सु क्या चितालौ मीनत पस्यो अडिग,
ज्वा झूठा सौं मा आगफत गफ्याणु चा ।
*शब्दार्थ*:-
गँजाक - दाड़ मन/ दहाड़
लुकैं - औरों की
खिर्रसण - ख्यदो /ईर्ष्या
पस्यो -पसीना
गफ्याणु - गफ्फा मरण
*@ बलबीर राणा 'अडिग'*
ग्वाड़ मटई
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